पिछले दिनों G7 शिखर बैठक में मिले नेताओं की घरेलू चुनौतियों पर एक नजर डालें. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए डोनाल्ड ट्रंप परेशानी खड़ी कर रहे हैं. फ्रांस में मैक्रों की पार्टी को यूरोपीय संसद के चुनावों में झटका लगा तो उन्होंने संसदीय जल्दी चुनाव करा लिए और उसमें भी झटका खाया. ईयू चुनाव में जर्मन चांसलर का प्रदर्शन भी खराब रहा, लेकिन उन्होंने कोई जोखिम मोल नहीं लिया. ऋषि सुनक को अगले महीने के चुनावों में हार के आसार दिखाई दे रहे हैं. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो करीब एक साल से ओपिनियन पोल्स में पीछे चल रहे हैं.
ऐसे समय में जब दुनिया कई चुनौतियों से जूझ रही है और वैश्विक नेतृत्व जवाब देने में हांफ रहा है, भारत की ओर से निरंतरता का यह संदेश बहुत मायने रखता है.
इन सबसे अलग खड़े नजर आते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो तीसरा कार्यकाल जीतने के बाद इस साल लगातार पांचवें G7 शिखर सम्मेलन में शामिल हुए. उन्होंने अपने सभी प्रमुख कैबिनेट सदस्यों को बनाए रखकर निरंतरता का एक मजबूत संदेश दिया. ऐसे समय में जब दुनिया कई चुनौतियों से जूझ रही है और वैश्विक नेतृत्व जवाब देने में हांफ रहा है, भारत की ओर से निरंतरता का यह संदेश बहुत मायने रखता है.
अलग तरह का शीतयुद्ध
आज दुनिया की तमाम बड़ी ताकतों में हाल के वर्षों के मुकाबले कहीं अधिक तीव्र प्रतिस्पर्धा दिख रही हैं. नई ताकतें भी अपनी जगह तलाशने को लेकर बेचैन हैं. परस्पर विरोधी गुटों के बनने से दुनिया एक अलग तरह से, लेकिन शीत युद्ध के दिनों में वापस जा रही है. ऐसे में जब वैश्विक संस्थाओं की सबसे ज्यादा जरूरत थी, वे पूरी तरह असमर्थ साबित हो रही हैं.
इस व्यापक वैश्विक उथल-पुथल के समय में भारत आशा की किरण के रूप में सामने आया है. यह आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है, जहां लोकतांत्रिक स्थिरता भी है. लंबे समय तक, भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को उस पर एक बोझ के रूप में देखा जाता रहा. लेकिन वही संस्थागत ताना-बाना है जो आज गुणात्मक रूप से अलग प्रभाव पैदा कर रहा है.
रूस-चीन की धुरी
चीन की बढ़ी हुई आक्रामकता ने निश्चित रूप से लोकतांत्रिक दुनिया के लिए अपनी प्राथमिकता को रेखांकित करने की जरूरत बढ़ा दी है. दूसरे छोर पर है एक घटती हुई शक्ति रूस, जिसने यूरेशिया में भू-राजनीतिक संतुलन को बदल दिया है. यूक्रेन-रूस युद्ध ने यूरोप को एक बार फिर भू-राजनीति पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है. वैश्विक स्तर पर रूस-चीन धुरी मजबूत हो गई है.
जाहिर है, अमेरिका समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी की जरूरत को पहचानता है. लेकिन विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी अपनी चिंताओं के मद्देनजर उसका खास उद्योगों में सप्लाई चेन के पुनर्गठन पर जोर देना वैश्वीकरण में एक नए चरण की शुरुआत का संकेत है.
इस संदर्भ में अमेरिका महत्वपूर्ण तकनीकों तक चीन की पहुंच रोकने और उस पर निर्भरता कम करने के लिए नीतिगत कदम उठा रहा है. इसका अहम हिस्सा है वैकल्पिक सप्लाई चेन तैयार करना. जाहिर है, अमेरिका समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी की जरूरत को पहचानता है. लेकिन विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी अपनी चिंताओं के मद्देनजर उसका खास उद्योगों में सप्लाई चेन के पुनर्गठन पर जोर देना वैश्वीकरण में एक नए चरण की शुरुआत का संकेत है.
अनियंत्रित आर्थिक वैश्वीकरण की ताकतें एक समय भले सभी वैश्विक समस्याओं के लिए रामबाण मानी जाती रही हों, अब पीछे हट रही हैं. अब पारस्परिक निर्भरता को हथियार बनाया जा रहा है. अगर उभरती हुई तकनीकें भू-राजनीति के अगले चरण को निर्धारित करने जा रही हैं, तो सप्लाई चेन का ध्रुवीकरण नई वास्तविकता है जिसका नीति-निर्माताओं और बाजार की ताकतों को सामना करना होगा.
भारत की प्राथमिकता
आने वाले वर्षों में भारत की पहली प्राथमिकता होगी आंतरिक तौर पर अपनी क्षमता को मजबूत करना ताकि वह पेइचिंग के नापाक इरादों का बेहतर ढंग से सामना कर सके. इसके साथ ही गंभीर साझेदारियां कायम करनी होंगी. पीएम मोदी के प्रयासों की बदौलत साझेदारी के सवाल पर भारत का नजरिया अतीत की जकड़न से मुक्त हो चुका है. वह आज गर्व से घोषणा करता है कि वह नॉन-वेस्ट (गैर-पश्चिम) है, एंटी-वेस्ट (पश्चिम विरोधी) नहीं. अगर पश्चिम आज भारत को ग्लोबल साउथ के लिए अपने पुल के रूप में देख रहा है तो यह अकारण नहीं है. मोदी और जयशंकर की चतुर कूटनीति ने सुनिश्चित किया है कि भारत का कई हितधारकों के साथ जुड़ाव निर्बाध जारी रहे.
मोदी और जयशंकर की चतुर कूटनीति ने सुनिश्चित किया है कि भारत का कई हितधारकों के साथ जुड़ाव निर्बाध जारी रहे.
वैश्विक मंच पर मोदी की कूटनीति ने भारत की एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय भूमिका निभाने की आकांक्षाओं को पंख दिए हैं. अब उसे एक ऐसे राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है, जो ग्लोबल गवर्नेंस में योगदान करने के लिए हमेशा तैयार रहता है. मोदी ने दुनिया के साथ भारत के जुड़ाव की प्रकृति को बदल दिया है.
मूल्यांकन का मौका
आज किसी भी अन्य प्रमुख शक्ति की तुलना में, भारतीय अपने भविष्य को आकांक्षापूर्ण दृष्टि से देखते हैं. मोदी न केवल उस भावना को प्रभावी ढंग से भुनाने में सफल रहे हैं, बल्कि एक तरह से उस आकांक्षा को अपनी छवि में ढाल चुके हैं. वैश्विक व्यवस्था में यह एक महत्वपूर्ण पल है. उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत की केंद्रीयता अब अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी है. मोदी सरकार की निरंतरता एक तरह से भारत के सहयोगियों और विरोधियों को भी यह मौका दे रही है कि वे नई दिल्ली के साथ अपने रिश्तों का नए सिरे से मूल्यांकन कर सकते हैं.
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