Author : Sauradeep Bag

Expert Speak Digital Frontiers
Published on Feb 19, 2024 Updated 0 Hours ago

इसमें कोई दो राय नहीं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से तमाम क्षेत्रों में बदलाव हो रहे हैं. हालांकि, AI को एक सकारात्मक शक्ति के तौर पर देखने के लिए नैरेटिव में बदलाव की ज़रूरत है, जिससे इसकी सकारात्मक बदलाव लाने वाली संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जा सके.

राह दिखाने वाली प्रगति: ‘AI आधारित तरक़्क़ी की संभावनाओं की तलाश’

पिछले एक दशक के दौरान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में अभूतपूर्व आविष्कारों की वजह से इतनी तेज़ गति से तकनीकी तरक़्क़ी हो रही है, जो पहले कभी देखी नहीं गई. अब AI के उपयोग के बहुत से नए और क्रांतिकारी मामले उभरकर सामने रहे हैं. इससे ये साफ़ हो रहा है विकास की योजनाओं में AI का एकीकरण अब एक विकल्प भर नहीं रह गया, बल्कि ज़रूरत बन गया है. मगर इस क्षेत्र की अब तक बहुत पड़ताल नहीं की गई है, जिससे जवाब से ज़्यादा सवाल खड़े हो रहे हैं. हालांकि, इस बात की जांच करना ज़रूरी है कि क्या AI के इनोवेशन को भविष्य के विकास के मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर अपनाया जा सकता है. एक संभावित शुरुआती बिंदु इस बात की पड़ताल करने का हो सकता है कि क्या विकासशील देश, अपने एजेंडे के शीर्ष विषय के तौर पर AI से जुड़ी तैयारी को तरज़ीह दे सकते हैं, और क्या इस बात की संभावना है कि ये देश परिवर्तन करके, तकनीकी विकास प्रक्रिया की कुछ सीढ़ियां फांदते हुए, ‘AI फर्स्टदेश बन सकते हैं? इंटरनेट और स्मार्टफोन के व्यापक इस्तेमाल की जांच करते हुए क्या ये संभव है कि आबादी के अनुपात में कुशल AI के औज़ार शुरू से ही विकसित करने पर ज़ोर दिया जा सकता है, जिससे अधिक समावेशी और तकनीक का इस्तेमाल करने में सक्षम कामगार वर्ग तैयार किया जा सके? ये पड़ताल एक बुनियादी विचार पर आधारित है: क्या उभरते हुए देशों को तेज़ी से AI के औज़ारों के मामले में कुशलता हासिल करनी चाहिए?

 ये पड़ताल एक बुनियादी विचार पर आधारित है: क्या उभरते हुए देशों को तेज़ी से AI के औज़ारों के मामले में कुशलता हासिल करनी चाहिए?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की गतिविधियां

 

AI अब ऐसे बदलावों का स्थायी तत्व बन गया है, जो अनअपेक्षित हैं और कई बार उनको समझ पाना भी मुश्किल होता है. हालांकि, इस तकनीक के सकारात्मक पहलुओं को उजागर करना और इसे अपनी अर्थव्यवस्था और विकास के साझा लक्ष्यों के साथ जोड़ना बेहद अहम है. चूंकि AI की प्रकृति स्थायी होती है, तो AI को समझने और इसके प्रभावी इस्तेमाल पर ज़ोर देने की ज़रूरत है. शायद AI के औज़ार उपयोगी हो सकते हैं. AI टूल्स में वो सॉफ्टवेयर ऐप और सिस्टम शामिल होते हैं, जो AI की तकनीक का इस्तेमाल उन कामों के लिए करते हैं, जिसमें इंसानी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता होती है. एल्गोरिद्म और मशीन लर्निंग के माध्यम से AI के ये औज़ार डेटा का विश्लेषण करते हैं, फ़ैसले लेते हैं और प्रक्रिया को स्वचालित बनाते हैं. इससे कुशलता और समस्या के समाधान की क्षमता में इज़ाफ़ा होता है.

 

यहां इस बात पर ज़ोर देना आवश्यक है कि AI के औज़ारों का निर्माण मज़बूत शिक्षा दीक्षा और मूलभूत ढांचे पर निर्भर करता है. हो सकता है कि इस मामले में विकसित देशों को बढ़त हासिल हो. पर, उभरते हुए देशों को चाहिए कि वो AI के मामले में उद्यमिता और विशेषज्ञता को विकसित करने पर ध्यान दें. ये ऐसा काम है, जो शिक्षा के सहयोगात्मक माहौल और तकनीकी मूलभूत ढांचे की स्थापना से जुड़ा हुआ है. इससे भी अहम बात ये है कि AI के टूल्स में कुशलता प्राप्त करना, उभरते हुए देशों के लिए पहली शर्त है. अब ये औज़ार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित हों, या फिर घरेलू उद्योग द्वारा किए गए हों, मगर ये औज़ार ग़ैर तकनीकी व्यक्तियों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जिससे वो तकनीक के ज़रिए कारोबार शुरू कर सकें और इसका प्रबंधन भी कर पाएं. इसमें ज़ोर देने वाली सबसे प्रमुख बात, AI के मौजूदा औज़ारों का इस्तेमाल, उनको दोबारा निर्मित किए बग़ैर कारोबारी गतिविधियों को सहज बनाना है. इस सामरिक तरीक़े में इस बात की संभावना है कि वो उभरते हुए देशों को ‘AI फर्स्टदेशों के दर्जे की दिशा में आगे बढ़ा सके.

 

‘AI-फर्स्टदेशों की परिकल्पना में एक ऐसी जनसंख्या भी हो सकती है, जिसके पास AI के औज़ार ज़मीनी स्तर से तैयार करने का हुनर या फिर शैक्षणिक काबिलियत हो. ऐसे में औज़ार के निर्माण पर ज़ोर देने के बजाय, लक्ष्य ये होता है कि लोगों को कारोबार खड़ा करने और अपने अलग अलग सामाजिक आर्थिक लक्ष्य हासिल करने के लिए ऐसे ज्ञान और कौशल से लैस करना, जिससे वो AI के उपलब्ध औज़ारों का असरदार तरीक़े से इस्तेमाल कर सकें. AI के औज़ारों के निर्माण के बजाय उनके उपयोग पर ध्यान देने वाले इस बदलाव में उभरते हुए देशों को सशक्त बनाने की संभावना है. इससे वो देश AI की परिवर्तनकारी शक्ति का इस्तेमाल आर्थिक तरक़्क़ी और विकास के लिए कर सकते हैं.

 

विकास को ताक़त देना

 

आगे का रास्ता सरकारों द्वारा AI को अपनाने को बढ़ावा देने में सरकारों द्वारा अहम भूमिकाएं अपनाने से निकलता है. प्राथमिक ज़ोर, शिक्षा व्यवस्था के हर स्तर पर AI की शिक्षा को शामिल किए जाने पर होना चाहिए. एक और क्षेत्र जिसमें संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं, वो सरकारी और निजी क्षेत्र के AI इनक्यूबेटर्स की स्थापना करना भी है. AI तकनीक को पोसने वाले ये केंद्र कारोबार की सहयोगी संस्थाओं का काम करेंगे और उद्यमियों को AI और दूसरी उभरती हुई तकनीकों का इस्तेमाल अपने कारोबार को आगे बढ़ाने में करने में मदद देंगे. AI को कारोबारी अभियानों का हिस्सा बनाने के फ़ायदों को रेखांकित करना बहुत आवश्यक है. विशेष तौर पर ये बताया जाना चाहिए कि इन तकनीकों से कारोबारी प्रबंधन के तमाम पहलुओं पर किस तरह से सकारात्मक असर पड़ेगा.

 AI को कारोबारी अभियानों का हिस्सा बनाने के फ़ायदों को रेखांकित करना बहुत आवश्यक है. विशेष तौर पर ये बताया जाना चाहिए कि इन तकनीकों से कारोबारी प्रबंधन के तमाम पहलुओं पर किस तरह से सकारात्मक असर पड़ेगा.

हालांकि, कुछ ग़ैर-पारंपरिक और अब तक जांचे परखे गए ऐसे तरीक़े भी काफ़ी असरदार साबित हो सकते हैं, जिनसे हम परिचित हैं. एक आविष्कारी और दूर की देखने वाला एक प्रस्ताव, सरकार से प्राप्त होने वाले सेवाएं भी हो सकता है, ठीक उसी तर्ज पर जैसे डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) है. ये सेवाएं व्यक्तियों और कारोबारियों को AI के औज़ार मुहैया कराएंगी. इनमें व्यापारियों के लिए AI से चलने वाले चैटबॉट, भंडार के प्रबंधन की व्यवस्थाएं और डेटा के विश्लेषण के औज़ार शामिल हैं. इस विचार में एक ऐसे मंज़र की परिकल्पना है, जिसमें सरकार AI की तकनीक तक पहुंच को सबसे लिए आसान बनाए, जिससे समाज का एक व्यापक वर्ग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के फ़ायदों का लाभ उठा सके.

 

भारत को एक उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं. ये परिकल्पना करना आसान है कि भारत में इस बात की काफ़ी संभावना है कि वो इंडिया स्टैक से जुटाए जाने वाले डेटा के विशाल भंडार की मदद से ख़ुद का लार्ज लैंग्वेज मॉडेल (LLM) विकसित कर सकें. इस मॉडल को भारतीय भाषाओं और संदर्भों की बारीक़ियों के हिसाब से तैयार किया जा सकता है, जिससे भारत में इसके इस्तेमाल की ख़ास ज़रूरतें पूरी हो सकें और चुनौतियों सेनिपटा जा सके. इस प्रयास में इतनी संभावना है कि उसे या तो इंडिया स्टैक से पूरक योगदान मिले या और ताक़त हासिल हो, जहां LLM का ये समूह, जन सेवाएं देने के मामले में प्राथमिकता हासिल कर सके. इसका मक़सद ठीक उसी तरह पूरी आबादी के फ़ायदे के लिए काम करना है, जैसे आधार और UPI से सभी नागरिको को फ़ायदा हो रहा है. मोटे तौर पर इससे AI के औज़ारों तक पहुंच सबके लिए आसान हो जाएगी. ख़ास तौर से उद्यमियों और छोटे कारोबारियों के इस्तेमाल लायक़ ज़रूरी औज़ार. इन औज़ारों में डेटा के विश्लेषण से लेकर चैटबॉट और पर्सनल असिस्टेंट जैसे तमाम टूल्स हो सकते हैं, जो कुछ ख़ास कार्यों को स्वचालित बनाने में सहायक होंगे.

 

भारत जैसे देश के संदर्भ में तो विशेष रूप से इस परिकल्पना के पीछे का तर्क मोटे तौर पर वही है. भारत में स्टार्ट-अप के ऊर्जावान इकोसिस्टम और जनता के उपयोग वाले AI के उत्पाद विकसित करने में निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी को देखते हुए, सरकार के लिए ये काम पूरी तरह मुमकिन है कि वो अपने नागरिकों के लिए ऐसे ही उत्पाद विकसित करने में दख़ल दे. ये नज़रिया UPI जैसी कामयाब पहलों के साथ मेल खाता है, जिससे दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश को चौथी औद्योगिक क्रांति की चुनौतियों और अवसरों के लिए तैयार करने में सरकार की क्षमता का प्रदर्शन होता है. सरकारें, AI की शिक्षा देकर, AI के इनक्यूबेटर्स स्थापित करके और DPI जैसी इनोवेशन वाली पहलों पर विचार करके, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाने की राह को प्रभावी तरीक़े से सुगम बना सकती हैं. ये रणनीतिक उपाय सामूहिक रूप से AI तक पहुंच सबके लिए आसान बनाने, इनोवेशन को बढ़ावा देने और कारोबारियों को तकनीकी तौर पर उन्नत भविष्य की ओर बढ़ाने का काम करते हैं.

 

भविष्य की राह दिखाने वाले प्रस्ताव

 

उभरती हुई तकनीकों का असर बहुत व्यापक होगा और इससे विकसित एवं विकासशील दोनों ही देश प्रभावित हों. एक उम्मीद ये है कि शायद उभरते हुए बाज़ार और विकासशील देशों को AI की वजह से मचने वाली उथल-पुथल का असर कम झेलना पड़े. हालांकि, इन देशों के पास ऐसे मूलभूत ढांचे और हुनरमंद कामगारों का अभाव होता है, जिससे वो AI के फ़ायदों का अधिकतम इस्तेमाल कर सकें. इससे ख़तरा इस बात का है कि समय के साथ साथ ये तकनीक देशों के बीच वैश्विक स्तर पर खाई को और बढ़ा देगी.

 ये रणनीतिक उपाय सामूहिक रूप से AI तक पहुंच सबके लिए आसान बनाने, इनोवेशन को बढ़ावा देने और कारोबारियों को तकनीकी तौर पर उन्नत भविष्य की ओर बढ़ाने का काम करते हैं.

सरकारों को तुरंत सक्रियता से क़दम उठाने चाहिए और उन्हें ये असमानता बढ़ने से पहले अपने नागरिकों को AI के औज़ारों के इस्तेमाल में कुशल बनने में मदद करनी चाहिए. क्योंकि, इस मामले में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के सामने जोखिम अधिक है. मिसाल के तौर पर आप देखिए कि विकासशील देश अपनी प्रगति के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSMEs) पर अधिक निर्भर होते हैं. इंटरनेट की उपलब्धता में सुधार से क्या, MSMEs इसकी ताक़त का इस्तेमाल अपनी कारोबारी गतिविधियां बढ़ाने के लिए कर सकते हैं? इससे भी एक क़दम आगे जाते हुए, क्या AI से इन कारोबारियों की सहायता या फिर उन्हें स्वचालित बनाया जा सकता है? ये मंज़र भविष्य का सही, मगर ये महज़ एक मिसाल भर है. इसमें कोई दो राय नहीं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से पूरी दुनिया में उथल-पुथल मच रही है. हालांकि, AI को सकारात्मक शक्ति के तौर पर देखने और सकारात्मक परिवर्तन लाने और आविष्कार करने में इसकी संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नैरेटिव में बदलाव लाने की ज़रूरत है.



The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.