यह दि चाइना क्रॉनिकल्स श्रृंखला का 128वां लेख है.
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चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव शी जिनपिंग ने हाल ही में युद्ध के अलावा मिलिट्री ऑपरेशन्स को लेकर एक आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं. यह आदेश पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को आपदा राहत अभियानों को संचालित करने और इससे भी अहम चीन की संप्रभुता, सुरक्षा एवं विकास से संबंधित हितों की रक्षा के लिए कानूनी आधार प्रदान करेगा. यह कदम सीसीपी की वैश्विक वृहत रणनीति में पीएलए की बड़ी और महत्वपूर्ण संभावना को मज़बूत करता है. चीन का यह क़दम यह दिखाता है कि एक राष्ट्र अपने हितों की रक्षा के लिए, उन्हें पूरा करने के लिए किस प्रकार राजनीतिक, सैन्य और राजनयिक संसाधनों को लामबंद करता है.
1989 के तियानमेन स्क्वायर की घटना के दौरान, जब शासन पर सीसीपी के नियंत्रण को चुनौती दी गई थी, तब बगावत को कुचलने और पार्टी के शासन को मज़बूत करने के लिए पीएलए को उतारा गया था. हाल के दिनों में भी, सीसीपी के पूर्व महासचिव हू जिंताओ ने पीएलए के मिशन को सीसीपी की संयुक्त शक्ति को मज़बूत करने और घरेलू सुरक्षा को संभालने में सहायता करने के तौर पर वर्णित किया था
ऐसा प्रतीत होता है कि वर्ष 2020 चीन की वृहत रणनीति में सीसीपी के भूमिका के पुनर्मूल्यांकन को लेकर एक अहम मोड़ साबित हुआ है. सीसीपी की 19वीं केंद्रीय समिति के पांचवे अधिवेशन में कहा गया कि “100 वर्षों में अप्रत्यक्ष परिवर्तन ” थे, जो “रणनीतिक अवसरों को प्रस्तुत करते थे”, इसका मतलब यह है कि COVID-19 महामारी के मद्देनज़र, पश्चिम की ज़्यादातर परेशानियों और अव्यवस्थाओं को दूर करने के साथ ही महाशक्ति के तौर पर परिवर्तन के इस मौक़े का फ़ायदा उठाने की ज़रूरत थी. सीसीपी अपनी सरकार की प्राथमिकताओं को निर्धारित करने के लिए अधिवेशन का इस्तेमाल करती है. सीसीपी के कुलीन की सोच यह थी कि यदि चीन को वैश्विक शक्तियों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा होना है, तो उसे पीएलए की भूमिका को बढ़ाने की आवश्यकता है.
PLA का दबदबा
अब तक सीसीपी के शीर्ष नेतृत्व ने पीएलए को एक ताक़त बढ़ाने वाली सेना के रूप में देखा है. आधुनिक चीन के संस्थापक माओत्से तुंग ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि “ताकत बंदूक की नली से बाहर निकलती है”, इसका अर्थ यह है कि पीएलए सरकार की शक्ति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ थी और समाजवादी व्यवस्था में सत्ता को सशक्त करने के लिए एक ताक़तवर सेना का होना बेहद आवश्यक था. 1989 के तियानमेन स्क्वायर की घटना के दौरान, जब शासन पर सीसीपी के नियंत्रण को चुनौती दी गई थी, तब बगावत को कुचलने और पार्टी के शासन को मज़बूत करने के लिए पीएलए को उतारा गया था. हाल के दिनों में भी, सीसीपी के पूर्व महासचिव हू जिंताओ ने पीएलए के मिशन को सीसीपी की संयुक्त शक्ति को मज़बूत करने और घरेलू सुरक्षा को संभालने में सहायता करने के तौर पर वर्णित किया था.
ज़ाहिर है कि एक “समृद्ध राष्ट्र” और “सशक्त सेना” बनाने के लिए राष्ट्रीय रक्षा रणनीति का आधुनिकीकरण वर्ष 2020 के अधिवेशन में प्रमुख ‘विकास लक्ष्य’ था. सीपीसी ने माना कि राष्ट्रीय रक्षा रणनीति के आधुनिकीकरण से पीएलए की राष्ट्रीय संप्रभुत्ता, सुरक्षा और विकास के हितों की रक्षा करने की काबिलियत में वृद्धि होगी. हांगकांग में स्थित थिंक टैंक तिआंडा इंस्टीट्यूट के जुनफी वू ने कहा यह पहली बार था, जब चीनी कुलीन वर्ग ने पीएलए में अपने विकास लक्ष्यों को शामिल किया था. हांगकांग के एक सैन्य विश्लेषक सोंग झोंगपिंग के मुताबिक राष्ट्रीय रक्षा सामर्थ्य के आधुनिकीकरण का उद्देश्य वर्ष 2027 तक पीएलए को अमेरिकी सेना की बराबरी पर खड़ा करना है. 2027 पीएलए का शताब्दी वर्ष है यानी पीएलए की स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं. 2020 में चीनी सत्ता के केंद्र झोंगनहाई में उत्सव का माहौल था, क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की सरकार ने कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने पर काबू पा लिया था. चीनी सरकार ने उस वक़्त वुहान को फिर से खोल दिया गया था, जब दुनिया के कई बड़े शहरों में लॉकडाउन लगा हुआ था. उसी दौरान सीसीपी समर्थित शिक्षाविद यह भविष्यवाणी कर रहे थे कि चीन अपनी आर्थिक शक्ति के बल पर दुनिया के देशों की सूची में चोटी पर होगा.
शी जिनपिंग की ख़ास परियोजना, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) ने विदेशों में चीन के आर्थिक पदचिह्नों यानी आर्थिक ताक़त का विस्तार किया है. जैसे कि विदेशी धरती पर चीनी व्यवसायी और कंपनियां काम करती हैं
बीजिंग के एक थिंकटैंक, चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के लिन लिमिंग ने यहां तक कह दिया कि COVID-19 के प्रसार को थामने में चीन की “सफलता” ने इसकी संस्थागत श्रेष्ठता को पूरी दुनिया के सामने सिद्ध कर दिया है और यह चीन को वर्ष 2027 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था से आगे निकलने के लिए हौसला प्रदान करेगा. लिन ने यह भी कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और 5G जैसी नई तकनीकों को विकसित करने में चीन की अग्रणी भूमिका, उसकी ताक़त को और बढ़ाएगी. हालांकि, कोरोना का प्रसार रोकने की क़ामयाबी की इस कहानी में यह सच्चाई भी निहित थी कि इस पर पूर्ण रूप से काबू पाने की राह बहुत मुश्किल भरी होगी. सिंघुआ यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइन्स के प्रोफेसर यांग शुडोंग ने चेताया था कि चीन के प्रतिद्वंद्वी इस महामारी का इस्तेमाल चीन को एक महाशक्ति के रूप में बढ़ने से रोकने के लिए करेंगे. इसी डर ने यह निर्धारित कर दिया कि चीन को अपनी विकास की रणनीति में ‘सुरक्षा’ पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
चीन की रणनीति
शी जिनपिंग की ख़ास परियोजना, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) ने विदेशों में चीन के आर्थिक पदचिह्नों यानी आर्थिक ताक़त का विस्तार किया है. जैसे कि विदेशी धरती पर चीनी व्यवसायी और कंपनियां काम करती हैं, चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के आर्म्स कंट्रोल स्टडीज सेंटर के निदेशक गो शाओबिंग ने कहा कि चीन को दूसरे देशों में रहने वाले अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपनी योग्यता और क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है, क्योंकि यह उसकी आर्थिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है. हाल ही में चीनी नागरिकों पर हमलों की घटनाएं काफ़ी बढ़ गई हैं. इनमें निशाना भले ही चीनी नागरिकों को बनाया गया हो, लेकिन वास्तविकता में इनके पीछे का उद्देश्य चीनी हितों को नुकसान पहुंचाना रहा है. अप्रैल, 2022 में कराची के एक मंदारिन भाषा के प्रशिक्षण संस्थान, कन्फ्यूशियस सेंटर से जुड़े तीन चीनी शिक्षक एक फ़िदायीन हमले में मारे गए थे. इस हमले की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के एक अलगाववादी समूह ने ली थी. कहा जाता है कि बलूचिस्तान में, जहां ग्वादर बंदरगाह और चीन द्वारा चलाई जा रहीं दूसरी बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं स्थित हैं, वहां काम करने वाले चीनी नागरिकों पर हुए कई हमलों के पीछे अलगाववादी समूह का हाथ है. इन आरोपों के बाद कि सोलोमन आईलैंड्स के प्रधानमंत्री मनासेह सोगावरे चीनी धन का इस्तेमाल करके संसदीय मतदान को प्रभावित कर रहे हैं, नवंबर, 2021 में वहां चीनी नागरिकों की आबादी वाले इलाक़ों में आगजनी और दंगे की घटनाएं हुई थीं. इन घटनाओं से यह साबित होता है कि चीन विदेशों में स्थानीय राजनीति के जाल में फंसने से बच नहीं सकता है क्योंकि जैसे-जैसे वह नई जगहों में अपने पैर पसारता है, उसके हित अन्य किरदारों के हितों से टकरा सकते हैं.
ओआरएफ़ और भारत सरकार द्वारा आयोजित जियोपॉलिटिक्स पर भारत के प्रमुख सम्मेलन रायसीना डायलॉग में ऑस्ट्रेलिया के नेशनल इंटेलिजेंस ऑफिस के महानिदेशक एंड्रयू शीयर ने चेताया है कि सोलोमन आईलैंड्स के साथ चीन के सुरक्षा समझौते से वहां अधिक से अधिक चीनी सैन्य बलों की मौजूदगी होगी.
इसका तात्पर्य यह है कि चीन अपने हितों की रक्षा को लेकर विदेशी सरकारों के आश्वासन के भरोसे निश्चिंत नहीं बैठ सकता है. आज कंबोडिया के एनर्जी सेक्टर में चीन का दबदबा इस हद तक बढ़ गया है कि कंबोडिया की लगभग 75 प्रतिशत बिजली आपूर्ति चीन द्वारा बनाए गए या वित्तपोषित संयंत्रों से होती है. यहां तक कि कंबोडिया के क़रीब-क़रीब सभी कोयला संयंत्र चीन द्वारा बनाए गए हैं. ऐसे में चीन वहां रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रीम नौसैनिक अड्डे के नवीनीकरण के ज़रिए ना सिर्फ़ अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहा है, बल्कि अपने आर्थिक हितों की भी रक्षा करने का प्रयास रहा है. इसी प्रकार, चीन के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि सोलोमन आईलैंड्स उसकी बेल्ट एंड रोड परियोजनाओं और विशेष इकोनॉमिक जोन का नया केंद्र होगा. एक निवेश तभी अच्छा होता है, जब वो बेहतर रिटर्न की गारंटी दे सके और निश्चित तौर पर यह राजनीतिक स्थिरता जैसे कारकों पर निर्भर होता है. लगता है कि हाल ही में चीन और सोलोमन आईलैंड्स के मध्य हुए सुरक्षा समझौते के पीछे यही कारण रहा है. इस समझौते बाद सोलोमन आईलैंड्स की आंतरिक सुरक्षा को मज़बूती देने की आड़ में सीसीपी अब अपनी सैन्य बल को वहां तैनात कर सकता है. यूक्रेन में रूस के हमले को देखते हुए, यह अब सिर्फ़ अटकलबाजी का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसने एक गंभीर बहस को शुरू किया है. ओआरएफ़ और भारत सरकार द्वारा आयोजित जियोपॉलिटिक्स पर भारत के प्रमुख सम्मेलन रायसीना डायलॉग में ऑस्ट्रेलिया के नेशनल इंटेलिजेंस ऑफिस के महानिदेशक एंड्रयू शीयर ने चेताया है कि सोलोमन आईलैंड्स के साथ चीन के सुरक्षा समझौते से वहां अधिक से अधिक चीनी सैन्य बलों की मौजूदगी होगी. उन्होंने आगे कहा कि चीन अपने लाभ के लिए कोरोना महामारी का इस्तेमाल कर रहा है, छोटे देशों को अपने पाले में लाने के लिए आर्थिक, सैन्य और राजनयिक संसाधनों का उपयोग कर रहा है.
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का महत्व
पहला, यह सोच कि विश्व की बड़ी शक्तियां तेज़ गति से आगे की ओर बढ़ते चीन को नाकाम करने की कोशिश कर रही हैं, सीसीपी के भीतर गहराई तक पैठ बना चुकी है. जैसा कि यह इसकी इस बात से स्पष्ट है कि पश्चिमी ताक़तों और जापान ने 19वीं शताब्दी में इंपीरियल चीन को अपने अधीन कर लिया था. हालांकि, इंपीरियल चीन के पास एक बड़ी अर्थव्यवस्था थी, लेकिन उसने अपनी सेना का आधुनिकीकरण नहीं किया था और इसी वजह से दूसरे देश उसे धौंस दिखा पाए, अपने कब्ज़े में ले पाए. इसलिए, ऐसा लगता है कि चीन अपनी वृहत रणनीत में पीएलए को अधिक महत्व देकर, अतीत में हुए गलत आकलन को सही करने की कोशिश कर रहा है.
दूसरा, माइकल पिल्सबरी की क़िताब ‘द हंड्रेड ईयर मैराथन’ यह बताती है कि पीएलए पहले से ही सीसीपी के पावर मैट्रिक्स में शामिल है. यह इससे भी स्पष्ट होता है कि1960 के दशक के अंत में पश्चिम में चीनी जगहों की जांच के लिए माओत्से तुंग ने अपने राजनयिक सैन्य दल के बजाए पीएलए को प्राथमिकता दी थी. चीन के निर्णय लेने वाले सर्वोच्च संस्थाओं या निकायों जैसे पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति में पीएलए का प्रतिनिधित्व है. पोलित ब्यूरो के 25 सदस्यों में से दो पीएलए से हैं, जबकि केंद्रीय समिति के 205 स्थायी और 171 वैकल्पिक सदस्यों में से पीएलए के 20 प्रतिशत सदस्य हैं. विश्व का इतिहास साम्राज्यों के उत्थान और पतन के अनगिनत उदाहरणों से भरा पड़ा है. ये उदाहरण चीन को अपने उत्थान के लिए कई विकल्प उपलब्ध कराते हैं. जापान ने ‘समृद्ध राष्ट्र, सशक्त सेना’ के मंत्र के जरिए विकास किया और अपना प्रभाव जमाया. इसी के फलस्वरूप, एक सैन्य पृष्ठभूमि के साथ राजनीतिक हस्तियों के दबदबे और बड़े निगमों (zaibatsu) के प्रभाव ने जापान के साम्राज्य को विदेशों में विस्तार करने के लिए प्रेरित किया और आख़िर में यही द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के विनाश की वजह भी बना. अन्ततः यह प्रबुद्ध साम्राज्यों के ऊपर निर्भर है कि वे दूसरों की नादानियों से सीखते हैं या नहीं.
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