Author : Angad Singh Brar

Expert Speak Raisina Debates
Published on Feb 08, 2024 Updated 0 Hours ago
युद्ध के बाद के गाज़ा के लिए नया संकट: संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी के लिए फंडिंग बंद

अमेरिका ने ऐलान किया है कि वो, फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था, यूनाइटेड नेशंस रिलीफ वर्क्स एजेंसी फॉर पलेस्टाइन रिफ्यूज़ीस इन दि नियर ईस्ट (UNRWA) को फिलहाल कोई नया फंड नहीं देगा. अमेरिका ने ये एलान उन आरोपों के बाद किया, जिनमें कहा गया है कि इज़राइल पर 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए हमले में UNRWA के भी 12 कर्मचारी शामिल थे. ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ब्रिटे, जापान, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स स्विटज़रलैंड और फिनलैंड ने भी संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था को फंड देने पर रोक लगा दी है. वैसे तो अमेरिका ने पहले भी इस संगठन को पैसे देने पर रोक लगाई थी. मगर उस वक़्त इसे अपवाद के तौर पर देखा गया था. क्योंकि यह फ़ैसला 2018 में ट्रंप प्रशासन ने लिया था. 2021 में बाइडेन प्रशासन के अंतर्गत UNRWA के लिए अमेरिका ने फंड दोबारा ज़ारी कर दिए थे. उस वक़्त कहा गया था कि अमेरिका, बहुपक्षीय संगठनों को लेकर अपने उन दायित्वों का निर्वहन करेगा, जो ट्रंप के दौर से पहले से चले आ रहे हैं. लेकिन, अमेरिकी सरकार द्वारा फंड रोकने के इस मौजूदा क़दम से UNRWA के सामने अस्तित्व का संकट बना हुआ है, भले ही अमेरिका में किसी का भी राज क्यों न हो. इस बार कई प्रमुख दानदाता देशों द्वारा जितने बड़े पैमाने पर फंड रोकने का ऐलान किया गया है, उससे एक संगठन के तौर पर UNRWA के ख़ात्मे का संगठन, पहले की तुलना में कहीं अधिक वास्तविक लग रहा है. फंड रोकने के ये ऐलान कितने बड़े हैं, इसका अंदाज़ा हम UNRWA के 25 सबसे बड़े दानदाताओं की सूची (picture 1) देखकर लगा सकते हैं.

अमेरिकी सरकार द्वारा फंड रोकने के इस मौजूदा क़दम से UNRWA के सामने अस्तित्व का संकट बना हुआ है, भले ही अमेरिका में किसी का भी राज क्यों न हो.

Picture 1: 2022 में UNRWA के दानदाताओं की रैंकिंग (लाल रंग में वो देश जिन देशों ने फंडिंग अस्थायी तौर पर रोकने का ऐलान किया है)

 

Picture 1: UNRWA’s Donor Ranking 2022 (Red = Donors states which have announced temporary defunding)

 

UNRWA ग़ज़ा में काम कर रही सबसे प्रमुख बहुपक्षीय संस्था है. क्योंकि, 1967 में गाज़ा पर इज़राइल के क़ब्ज़े के बाद से ही ये संस्था शांति के दिनों में वही काम करती आ रही है, जो किसी देश की सरकार या अस्थायी सरकार करती है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस एजेंसी को ज़िम्मेदारी दी है कि वो गाज़ा में रहने वाले फिलिस्तीनियों को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सेवाएं दे, क्योंकि ग़ज़ा की आबादी की देखभाल के लिए नाम-मात्र की भी सरकारी व्यवस्था नहीं है. 2007 में जब इज़राइल ने गजा की नाकेबंदी कर दी, तब से तो UNRWA की अहमियत और भी बढ़ गई है. इसीलिए, 2023 में हमास और इज़राइल के बीच ताज़ा युद्ध शुरू होने से पहले से ही ग़ज़ा पट्टी, UNRWA की मानवीय निगरानी में थी. किसी अन्य बहुपक्षीय संगठन के उलट, UNRWA इकलौती एजेंसी है, जो विशेष रूप से अलग-थलग पड़े फिलिस्तीनी शरणार्थियों के समूह की देखभाल के लिए बनाई गई है. ये शरणार्थी, भौगोलिक रूप से जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, ग़ज़ा पट्टी और पूर्वी यरूशलम समेत पश्चिमी तट के इलाक़ों में फैले हुए हैं. UNRWA इन सभी इलाक़ों में काम करती है. लेकिन, ग़ज़ा पट्टी इसके एजेंडे का सबसे बड़ा हिस्सा है, क्योंकि UNRWA अपने कार्यक्रमों के लिए उपलब्ध कुल फंड का 41 प्रतिशत हिस्सा अकेले ग़ज़ा पट्टी पर ही ख़र्च करती है. यही नहीं, किसी अन्य अधिकार क्षेत्र की तुलना में ग़ज़ा में ही इस एजेंसी के सबसे ज़्यादा कर्मचारी काम करते हैं.

UNRWA का फंड रोकने का फिलिस्तीनियों के भविष्य पर स्थायी असर पड़ सकता है. विशेष रूप से संघर्ष के बाद के ग़ गाज़ा में, क्योंकि गाज़ा में UNRWA के बराबर की गहरी पहुंच रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की कोई और संस्था नहीं है.

UNRWA द्वारा फंड रोकना 

 

संयुक्त राष्ट्र के तमाम बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों में जहां संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी और अफ़सर काम करते हैं. वहीं इसके उलट, UNRWA के ज़्यादातर कर्मचारी फिलिस्तीनी होते हैं. ग़ज़ा पट्टी में UNRWA रोज़गार देने वाली सबसे बड़ी संस्थाओं में से एक है. ग़ज़ा में इसक 95 प्रतिशत कर्मचारी फ़िलिस्तीनी हैं. इज़राइल पर 7 अक्टूबर के आतंकी हमले में UNRWA के कर्मचारियों के शामिल होने के हालिया आरोप को हमें इस बात को ध्यान में रखते हुए देखना चाहिए कि इस संगठन में अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों से ज़्यादा स्थानीय लोग काम करते हैं. संयुक्त राष्ट्र की संस्था में स्थानीय लोगों के काम करने से ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनियों को रोज़गार मिलता है, जहां बेरोज़गारी की दर इस युद्ध के शुरू होने से पहले 40 प्रतिशत थी. UNRWA के कर्मचारियों को जो वेतन मिलता है, वो न केवल उनके अपने लिए आमदनी का स्थायी स्रोत होता है, बल्कि ग़ज़ा में रह रहे उनके परिजनों को भी इससे बड़ा सहारा मिलता है. ग़ज़ा के फ़िलिस्तीनियों के लिए UNRWA की बहुत अधिक अहमियत है. मगर, इस एजेंसी के सामने खड़े मौजूदा संकट की एक बड़ी वजह इसके ज़्यादातर कर्मचारियों का फिलिस्तीनी शरणार्थी होना भी है. स्थानीय कर्मचारियों पर निर्भरता की वजह से इस बहुपक्षीय संस्था की निष्पक्षता कमज़ोर हो जाती है. क्योंकि इनमें से कुछ स्थानीय कर्मचारी ऐसे भी होते हैं, जो अपनी फिलिस्तीनी पहचान की वजह से इज़राइल और फिलिस्तीन के विवाद को लेकर एक ख़ास राय रखते हैं. मौजूदा संघर्ष में जिन 12 कर्मचारियों के 7 अक्टूबर के हमले में शामिल होने का आरोप लगा है, उनमें से 9 UNRWA के अध्यापक थे. इनमें से सात पर इल्ज़ाम है कि वो सरहद पार करके इज़राइल में दाखिल हुए थे. वैसे तो ये संख्या, UNRWA के कुल कर्मचारियों का एक मामूली हिस्सा भर है. लेकिन, इनके हमले में शामिल होने की वजह से संस्था के पश्चिमी दानदाता देशों को UNRWA के लिए फंड रोकने का सख़्त क़दम उठाने का एक बहाना ऐसे मौक़े पर मिल गया, जब गाज़ा को इस बहुपक्षीय संस्था की सख़्त दरकार है.

 

UNRWA का फंड रोकने का फिलिस्तीनियों के भविष्य पर स्थायी असर पड़ सकता है. विशेष रूप से संघर्ष के बाद के ग़ गाज़ा में, क्योंकि गाज़ा में UNRWA के बराबर की गहरी पहुंच रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की कोई और संस्था नहीं है. वैसे तो फंड रोकने के मौजूदा एलानों को आधिकारिक तौर पर तब तक के लिए अस्थायी क़दम बताया जा रहा है, जब तक ये संस्था अपनी संगठनात्मक कमियों को दुरुस्त नहीं करती और अपने भीतर सुधार नहीं करती. लेकिन, इन क़दमों ने एक ऐसी मिसाल क़ायम कर दी है, जहां UNRWA जैसी बेहद महत्वपूर्ण संस्था को वित्तीय तौर पर अलग थलग करना, दानदाता देशों के लिए स्वीकार्य बन गया है. UNRWA ऐतिहासिक रूप से ही फंडिंग की कटौती की शिकार होती रही है. क्योंकि ये संयुक्त राष्ट्र की कोई स्थायी संस्था नहीं है. इसको हर साल संयुक्त राष्ट्र की महासभा से अपने लिए मंज़ूरी हासिल करनी पड़ती है. इस वक़्त जिस तरह फंड रोका जा रहा है, उतने बड़े पैमाने पर फंड में कटौती का मतलब होगा कि इस संस्था ने ऐसे कई बड़े देशों का समर्थन गंवा दिया है, जो महासभा में मतदान को प्रभावित करने की कूटनीतिक ताक़त रखते हैं. वैसे तो इस तरह के दांव-पेंच की आशंका तो कम ही है. लेकिन, बढ़ती वित्तीय अस्थिरता UNRWA के लिए चिंता का सबसे बड़ा सबब बन गई है. 2018 में ट्रंप द्वारा फंड रोके जाने के बाद UNRWA ने बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाया था, ताकि वो अन्य देशों से फंड जुटा सके. इस दौरान इस संस्थान ने उन देशों की पहचान भी की थी, जो उसको दान दे सकते हैं, मगर अभी नहीं देते. चीन, UNRWA का एक ऐसा ही छोटा सा दानदाता देश है, जो बड़ा योगदान दे सकता है, मगर इस वक़्त वो हाशिए पड़ पड़ा है. खाड़ी देश भी इसी दायरे में आते हैं, क्योंकि फिलिस्तीनियों की भलाई में ख़र्च होने वाली जो रक़म UNRWA को मिलती है, उसका एक बड़ा हिस्सा पश्चिमी देशों से ही आता है. मौजूदा वित्तीय कटौती से संकेत मिलता है कि UNRWA को चीन और खाड़ी देशों जैसे दानदाताओं से अधिक नज़दीकी से संपर्क साधना पड़ेगा.

बड़े दानदाता देशों को चाहिए कि वो वित्तीय समीकरणों को दोबारा साधते वक़्त इस बात का भी ख़याल रखें कि इस समय गाज़ा में ऐसी कोई दूसरी संस्थान नहीं है, जो UNRWA की बराबरी कर सके.

आगे की राह 

 

संपूर्ण निष्पक्षता प्राप्त करने की राह में UNRWA की सांगठनिक बनावट ही इसके लिए सबसे बड़ी बाधा बन गई है. संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था पर सियासी हमलों को तब तक नहीं रोका जा सकता, जब तक ये एजेंसी अपने कर्मचारियों की मौजूदा स्थिति के साथ काम करती रहेगी. UNRWA में उस वक़्त तक संगठनात्मक सुधार आने की उम्मीद भी कम ही है, जब तक ये संस्था ग़ज़ा में लोगों को मानवीय सहायता देने के लिए अपनी पूरी ताक़त से काम कर रही है. इस संस्था की स्वतंत्र रूप से एक समीक्षा करने का ऐलान तो कर दिया गया है. लेकिन, सवाल ये है कि ये स्वतंत्र विश्लेषण करेगा कौन? यूरोपीय आयोग ने एक बयान जारी करके सीधे तौर पर संकेत दिया है कि वो UNRWA से अपेक्षा करती है कि वो अपनी समीक्षा के लिए तैयार होगी. ये आकलन ‘यूरोपीय संघ द्वारा नियुक्त स्वतंत्र बाहरी विशेषज्ञ’ करेंगे. वैसे तो ऐसे ऑडिट ज़रूरी हैं. लेकिन, UNRWA के सांगठनिक असंतुलन को रातों-रात दुरुस्त नहीं किया जा सकता है. इस नाज़ुक मोड़ पर UNRWA के कामकाज को दुरुस्त करने पर ज़ोर देकर, गाज़ा पट्टी के लोगों को फ़ौरी तौर पर मानवीय सहायता देने की सख़्त ज़रूरत की अनदेखी नहीं की जा सकती है. इसके बड़े दानदाता देशों को चाहिए कि वो वित्तीय समीकरणों को दोबारा साधते वक़्त इस बात का भी ख़याल रखें कि इस समय गाज़ा में ऐसी कोई दूसरी संस्थान नहीं है, जो UNRWA की बराबरी कर सके. जो संगठन के स्तर पर इसके बराबर की पहुंच रखती हो, जिससे संघर्ष के बाद ग़ज़ा पट्टी में हालात दोबारा बहाल करने में सक्षम हो.

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