पाकिस्तान इस वक़्त एक गंभीर राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है. पाकिस्तानी सेना पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक–ए–इंसाफ (PTI) के साथ बुरी तरह उलझी हुई है. वैसे तो सेना ने इमरान खान और PTI को कमजोर करने के लिए अपने हर दांव का इस्तेमाल किया है लेकिन इमरान भी सेना को जवाब देने के लिए कोई कोर–कसर नहीं छोड़ रहे हैं. ताजा घटनाक्रम के तहत इमरान खान ने आरोप लगाया है कि मौजूदा राजनीतिक पार्टियों के लोगों को चुनकर “बादशाह की पार्टी“- जो परोक्ष रूप से सेना का हवाला है– बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. इसके साथ–साथ कथित तौर पर सरकार ने राष्ट्रीय मीडिया को कहा है कि वो इमरान खान के भाषणों, बयानों, ट्वीट या उनकी तस्वीर दिखाने या छापने से बाज आए.
मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अप्रैल 2022 में सत्ता संभालने के फौरन बाद दावा किया था कि कश्मीरियों का खून “कश्मीर की सड़कों पर बह रहा है और घाटी उनके खून से लाल है” और “अगस्त 2019 में जबरन अतिक्रमण किया गया था”.
चूंकि पाकिस्तान में राजनीतिक लड़ाई जारी है, ऐसे में जम्मू और कश्मीर के युवा वहां की गतिविधियों पर काफी उत्सुकता के साथ नजर रखे हुए हैं.
पाकिस्तान के अलग–अलग प्रधानमंत्रियों के साथ–साथ सेना के लिए भी देश की राजनीतिक और आर्थिक कठिनाइयों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए कश्मीर एक सामान्य नैरेटिव बना हुआ है. मिसाल के तौर पर, मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अप्रैल 2022 में सत्ता संभालने के फौरन बाद दावा किया था कि कश्मीरियों का खून “कश्मीर की सड़कों पर बह रहा है और घाटी उनके खून से लाल है” और “अगस्त 2019 में जबरन अतिक्रमण किया गया था“. इसी तरह इमरान खान ने भी अपनी राजनीतिक नौटंकी और संकुचित राजनीतिक हितों के लिए अक्सर कश्मीर को हथियार की तरह इस्तेमाल किया था. अगस्त 2019 में भारत के द्वारा जम्मू और कश्मीर में प्रशासनिक पुनर्संरचना की घोषणा के ठीक बाद सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र (UN) में उनके आक्रामक भाषण से कश्मीर में कई लोग उनके मुरीद बन गए. इमरान खान ने UN में अपने भाषण के दौरान कश्मीर को मुख्य मुद्दा बनाया और इस तरह पाकिस्तान को लेकर कश्मीर के एक तबके के लोगों के बीच अपनापन का नया माहौल बनाया.
G20 के टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की सफल बैठक ने भी घाटी के हरित, समावेशी और लचीले पर्यटन विकास में स्थानीय युवाओं की भागीदारी की संभावना में बढ़ोतरी की है. उन्हें उम्मीद है कि पश्चिमी देश ट्रैवल एडवाइजरी वापस ले लेंगे और कश्मीर में एक बार फिर से पश्चिमी देशों के सैलानी आने लगेंगे.
लेकिन अपनापन का ये दौर कुछ ही समय तक रहा. वैसे कश्मीर घाटी के बहुत कम लोगों को ही ये उम्मीद थी कि इमरान खान, PTI या पाकिस्तान अपने जुबानी दावों और कश्मीर के समर्थन के वादे पर काम करेंगे. इसके अलावा कश्मीर घाटी से सुरक्षा एवं इंटरनेट से जुड़ी पाबंदियों को वापस लेने और इस केंद्र शासित प्रदेश के नये प्रशासन के द्वारा गवर्नेंस और विकास से जुड़ी कई पहल के कारण कुछ ही समय में घाटी में स्थायित्व का दौर आ गया.
लगभग चार साल के बाद कश्मीर में हालात पहले के समय के ठीक विपरीत लग रहे हैं. आतंकवादी हमलों में कमी के साथ घाटी के सुरक्षा हालात में नाटकीय सुधार हुआ है, भले ही टारगेट किलिंग (निशाना बनाकर हमला) की छिटपुट घटनाएं हो रही हैं. इसके अलावा उग्रवादियों की भर्ती में काफी कमी आई है. 2023 में अभी तक घाटी के भीतर सिर्फ सात नौजवान उग्रवादी संगठनों में शामिल हुए हैं. पिछले दिनों G20 के टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की सफल बैठक ने भी घाटी के हरित, समावेशी और लचीले पर्यटन विकास में स्थानीय युवाओं की भागीदारी की संभावना में बढ़ोतरी की है. उन्हें उम्मीद है कि पश्चिमी देश ट्रैवल एडवाइजरी वापस ले लेंगे और कश्मीर में एक बार फिर से पश्चिमी देशों के सैलानी आने लगेंगे.
जमीनी हकीकत में इस बदलाव ने पाकिस्तान को लेकर स्थानीय युवाओं की बदलती सोच में काफी योगदान दिया है. पिछले दिनों युवाओं की राय जानने पर पाकिस्तान को लेकर उनकी सोच की झलक मिलती है. जब पाकिस्तान में गंभीर राजनीतिक और आर्थिक संकट को लेकर युवाओं से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सेना और सरकार ने पिछले डेढ़ दशक के दौरान सोशल मीडिया का फायदा उठाकर अपने प्रोपेगेंडा को फैलाया और स्थानीय नौजवानों के एक तबके को कट्टरपंथी बनाया. लेकिन अब उसी सोशल मीडिया ने पाकिस्तान की गहराती राजनीतिक और आर्थिक बदहाली का पर्दाफाश किया है.
कश्मीर को लेकर पाकिस्तानी राय
पिछले कुछ वर्षों से कश्मीर में इमरान खान से हमदर्दी रखने वाले लोगों का एक वर्ग है लेकिन इस बार कश्मीर में इमरान के हमदर्दों की राय उनके बारे में अच्छी नहीं है, खास तौर पर इमरान के द्वारा खुलकर सेना को कोसने और PTI समर्थकों के द्वारा 9 मई 2023 को इमरान की गिरफ्तारी के बाद दंगा करने और सेना की संपत्तियों और निशानियों में तोड़फोड़ के बाद से. PTI कैडर के द्वारा अराजकता पैदा करने वाले प्रदर्शन की तस्वीरों पर कश्मीर के युवाओं ने व्यापक रूप से चर्चा की है. कुछ युवाओं ने पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के द्वारा महिला प्रदर्शनकारियों के साथ मारपीट के वायरल वीडियो की तुलना कश्मीर घाटी में कुछ वर्ष पहले के प्रदर्शन से भी की. उन्होंने जोर देकर कहा कि कश्मीर में 2016 से 2019 के बीच हिंसक प्रदर्शनों के दौरान भी महिला प्रदर्शनकारियों को सुरक्षाबलों के हाथों इस तरह की शारीरिक बदसलूकी का सामना नहीं करना पड़ा था. उनके मुताबिक मुमलिकात–ए–खुदादाद (अल्लाह की देन) यानी पाकिस्तान अब एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है जो बंटवारे, भाई–भतीजावाद, भ्रष्टाचार और लालच को जन्म देता है.
कश्मीर में आतंकवाद को पाकिस्तान का समर्थन कश्मीरी मुसलमानों के प्रति उसके अपनेपन की वजह से नहीं है बल्कि दुनिया के मंच पर भारत की तेज प्रगति को रोकने के लिए पाकिस्तान की सेना और सरकार की अपनी भू-सामरिक और भू-राजनीतिक साजिशों की वजह से है.
ये नजरिया कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान की भूमिका के बारे में युवाओं की सोच के बारे में भी बताता है. युवा महसूस करते हैं कि पाकिस्तान ने धर्म का फायदा उठाकर कई बार कश्मीरियों को मूर्ख बनाया है. इसकी आड़ में पाकिस्तान गंदी हरकतों और नीच व्यवहार में शामिल रहा है जैसे कि नारकोटिक्स की तस्करी जिसके जरिए पाकिस्तान न सिर्फ घाटी में आतंकवाद और हिंसा के लिए पैसे का इंतजाम करता है बल्कि कश्मीर की मिली जुली संस्कृति के बचे हुए हिस्से को भी खत्म करता है. अब युवाओं के बीच इस बात को लेकर सही एहसास है कि कश्मीर में आतंकवाद को पाकिस्तान का समर्थन कश्मीरी मुसलमानों के प्रति उसके अपनेपन की वजह से नहीं है बल्कि दुनिया के मंच पर भारत की तेज प्रगति को रोकने के लिए पाकिस्तान की सेना और सरकार की अपनी भू–सामरिक और भू–राजनीतिक साजिशों की वजह से है. इसके नतीजतन घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हिंसा की हर घटना को लेकर एक निर्णायक और कभी–कभी बेहद उग्र प्रतिक्रिया होती है. मिसाल के तौर पर, प्रवासी मजदूरों या कश्मीरी पंडितों की टारगेट किलिंग की ज्यादातर वारदात के बाद स्थानीय युवाओं ने मशाल जुलूस निकाल कर पाकिस्तान के समर्थन से होने वाली आतंकवादी घटनाओं के खिलाफ प्रदर्शन किया.
साफ तौर पर, कश्मीर अब पाकिस्तान को लेकर अपने रवैये के मामले में निश्चित बदलाव के मुहाने पर खड़ा है. इसके जवाब में पाकिस्तानी हुकूमत वो करेगी जो वो सबसे ज्यादा जानती है यानी आतंकवादी हिंसा करके परेशानी पैदा करना और भारत में सांप्रदायिक घटनाओं के इर्द–गिर्द केंद्रित प्रोपेगेंडा फैलाना. साथ ही दक्षिणपंथी महत्वहीन तत्वों के बड़बोले बयान को लेकर दुष्प्रचार करना. बहुत ज्यादा राजनीतिक अराजकता की स्थिति भी पाकिस्तान को अपनी रणनीति बदलने से रोक नहीं सकती है.
समीर पाटिल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं
एजाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम में फेलो हैं.
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