Authors : Javin Aryan | Angad Singh

Published on Dec 28, 2020 Updated 0 Hours ago

मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य में ये बहुत महत्वपूर्ण है कि सैन्य आधुनिकीकरण के लिए आवंटित फंड में बढ़ोतरी हो

पेंशन या मैनपावर? सार्थक सैन्य सुधारों की तलाश

भारत के केंद्रीय बज़ट 2020-2021 में रक्षा मंत्रालय को 4,71,378 करोड़ रुपये (63.7 अरब अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए गए. पिछले साल के बज़ट के मुक़ाबले इसमें 8.5% की बढ़ोतरी की गई. लेकिन इस बढ़ोतरी का एक बड़ा हिस्सा पेंशन, वेतन और भत्तों के भुगतान के लिए किया गया. वास्तव में इस साल रक्षा मंत्रालय के कुल बज़ट का 28% हिस्सा पेंशन के लिए निश्चित किया गया और 28.6% वेतन और भत्तों के लिए. इस तरह कुल बज़ट का आधे से ज़्यादा ख़र्च पहले से तय था. देश का बज़ट सीमित है और मौजूदा कोविड-19 महामारी की वजह से ख़ज़ाने पर पहले से दबाव है, ऐसे में ये तय है कि सैन्य आधुनिकीकरण के लिए भारत की ज़रूरत काफ़ी आगे नहीं बढ़ पाएगी.

क्या है प्रस्ताव?

देश का बज़ट सीमित है और मौजूदा कोविड-19 महामारी की वजह से ख़ज़ाने पर पहले से दबाव है, ऐसे में ये तय है कि सैन्य आधुनिकीकरण के लिए भारत की ज़रूरत काफ़ी आगे नहीं बढ़ पाएगी.

इस पृष्ठभूमि में सैन्य मामलों का विभाग (DMA), जिसकी अगुवाई इसके सचिव के रूप में चीफ़ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत करते हैं, हाल में एक प्रस्ताव लेकर आया है जिसमें तीन बदलावों की बात की गई है. प्रस्ताव में पहला बदलाव है मेजर जनरल और उसके समकक्ष अधिकारियों तक रिटायरमेंट उम्र में रैंक के मुताबिक बढ़ोतरी. इसमें आर्मी मेडिकल कोर और मिलिट्री नर्सिंग सर्विस को छोड़ दिया गया है. दूसरा बदलाव है लॉजिस्टिक, टेक्निकल और मेडिकल ब्रांच, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स और मेकैनिकल इंजीनियर (EME) की कोर, आर्मी सर्विस कोर (ASC) और आर्मी ऑर्डिनेंस कोर (AOC) शामिल हैं, के जूनियर कमीशंड अधिकारियों (JCO) और जवानों की रिटायरमेंट उम्र में बढ़ोतरी. तीसरा बदलाव है उन सैनिकों की पेंशन की समीक्षा जो पेंशन पाने के योग्य होने के बाद समय से पहले रिटायरमेंट चाहते हैं. जो सैनिक 35 साल से ज़्यादा देश की सेवा करेंगे उनको पूरी पेंशन मिलेगी यानी उनके आख़िरी वेतन के 50% के बराबर.

देखने से लगता है कि इस प्रस्ताव का मक़सद प्रशिक्षित सैन्य कर्मियों को ज़्यादा समय तक सेना में बनाए रखना है. इसमें कहा गया है, “कई स्पेशलिस्ट/सुपर स्पेशलिस्ट हैं जिनको सेना में ज़्यादा हुनर वाले काम की ट्रेनिंग दी गई है, वो सेना छोड़कर दूसरे सेक्टर में काम करना चाहते हैं. हुनरमंद मैनपावर का ये नुक़सान सेना के लिए नुक़सान और उसके हितों के ख़िलाफ है.” इस तरह तकनीकी विशेषज्ञता वाले अधिकारियों और JCO/जवानों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाकर उन्हें ज़्यादा समय तक नौकरी में रखा जा सकेगा. पेंशन की सुविधा में प्रस्तावित बदलाव को सैनिकों के लिए इशारे के तौर पर देखा जा रहा है कि वो समय से पहले रिटायरमेंट लेकर दूसरे सेक्टर में रोज़गार ढूंढ़ने के बदले सेना में काम करते रहें.

हाल में एक प्रस्ताव लेकर आया है जिसमें तीन बदलावों की बात की गई है. प्रस्ताव में पहला बदलाव है मेजर जनरल और उसके समकक्ष अधिकारियों तक रिटायरमेंट उम्र में रैंक के मुताबिक बढ़ोतरी

लेकिन बड़ा लक्ष्य साफ़ तौर पर पेंशन के ख़र्च में कमी है. प्रस्ताव के मुताबिक़ पेंशन के भुगतान में देरी से पेंशन के नये बोझ में कमी आएगी और नतीजतन कुल पेंशन ख़र्च में कमी आएगी. सैनिकों के ज़्यादा समय तक देश की सेवा करने से उनके बाद आने वाले सैनिकों को बार-बार दी जाने वाली ट्रेनिंग पर ख़र्च में भी कमी आएगी. इस तरह अपेक्षाकृत कम उम्र में रिटायर होने वालों की पेंशन और उनके बदले आने वालों के वेतन के दोहरे बोझ से कुछ हद तक छुटकारा मिलेगा.

पेंशन की शर्तों में अचानक बदलाव से नैतिक सवाल

सेवा और पेंशन की शर्तों में अचानक और सख़्त बदलाव से नैतिक सवाल तो उठते ही हैं, साथ ही प्रस्ताव की सबसे साफ़ चुनौती ये है कि इस तरह के बदलाव सैन्य मामलों के विभाग के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं. सरकार के काम-काज के आवंटन का नियम, 1961 में सैन्य मामलों के विभाग की ज़िम्मेदारी का ज़िक्र है. उसे देखते हुए अधिकार क्षेत्र पर सवाल वाजिब लगता है क्योंकि इसकी सूची में रोज़गार और पेंशन की शर्तों का ज़िक्र नहीं है. फिर भी चीफ़ ऑफ डिफेंस स्टाफ ख़ुद अपने विभाग के प्रस्ताव के समर्थन में आगे आए हैं. उनके मुताबिक़ इन प्रस्तावों का लक्ष्य “मोर्चे पर तैनात सक्षम सैनिक, जो असली कठिनाइयों का सामना करते हैं और जिनकी हिम्मत और बहादुरी के दम पर हम सभी मज़े में रहते हैं, की भलाई” करना है.

सेवा और पेंशन की शर्तों में अचानक और सख़्त बदलाव से नैतिक सवाल तो उठते ही हैं, साथ ही प्रस्ताव की सबसे साफ़ चुनौती ये है कि इस तरह के बदलाव सैन्य मामलों के विभाग के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं.

सैन्य मामलों के विभाग का प्रस्ताव सैनिकों की औसत उम्र को भी बिगाड़ देगा. सेना में काम कर रहे एक अधिकारी ने ध्यान दिलाया, “हमारा इरादा सेना को नौजवान रखना है.” दूसरों ने कहा कि इतने वर्षों तक सेना को “नौजवान और युद्ध के लिए फिट” रखने के जो उपाय किए गए हैं, वो कमज़ोर होंगे. इन प्रस्तावों को लागू करने का ये भी मतलब होगा कि सेना में ऊपर के पदों पर तैनात अधिकारी अपने पदों पर लंबे वक़्त तक बने रहेंगे और इसकी वजह से नीचे के अधिकारियों का प्रमोशन रुक जाएगा. इससे उन अधिकारियों की दिक़्क़त और बढ़ेगी जिनका प्रमोशन नहीं होना है. उन्हें पूरी पेंशन पाने के लिए अपने मौजूदा पद पर और ज़्यादा समय तक काम करना पड़ेगा. निचले पदों पर भर्ती और सैनिकों को नौकरी में बनाए रखने पर भी बुरी तरह असर पड़ेगा. कई लोग सवाल करेंगे कि आधी पेंशन के लिए वो 20 या उससे ज़्यादा वर्षों तक नौकरी करने की परेशानी क्यों उठाएं.

अगर कुल मैनपावर लागत को कम करने का लक्ष्य है तो सीधा तरीक़ा होना चाहिए कुल सैनिकों की संख्या को घटाना. उदाहरण के लिए आउटसोर्सिंग के ज़रिए वेतन और पेंशन की ज़िम्मेदारी कम की जा सकती है. असंवेदनशील क्षेत्रों में गैर-महत्वपूर्ण कामों जैसे सामानों और दूसरी चीज़ों का परिवहन, उपकरणों की देखरेख और मरम्मत का काम ठेके पर दिया जा सकता है. ऐसा करने से सेना को इन ज़रूरतों के लिए बड़े और विशेष कैडर रखने की ज़रूरत नहीं होगी. भारतीय नौसेना के पास आउटसोर्सिंग का कुछ अनुभव पहले से है. वहां संचालन की ज़रूरतों जैसे जहाज़ की मरम्मत और जांच, इंजीनियरिंग, टेक्निकल सपोर्ट, आईटी, ड्रेजिंग और इसी तरह के दूसरे काम आउटसोर्स किए गए हैं. ऐसा करने से रोज़गार में कोई कमी नहीं आई है. वेतन और ट्रेनिंग का ख़र्च कम नहीं होगा तो बढ़ेगा भी नहीं लेकिन पेंशन पूरी तरह से ख़त्म हो जाएगी.

अगर कुल मैनपावर लागत को कम करने का लक्ष्य है तो सीधा तरीक़ा होना चाहिए कुल सैनिकों की संख्या को घटाना. उदाहरण के लिए आउटसोर्सिंग के ज़रिए वेतन और पेंशन की ज़िम्मेदारी कम की जा सकती है.

क्या है शॉर्ट सर्विस सिस्टम

एक और विकल्प जिसको अलग से या साथ में आज़माया जा सकता है, वो है शॉर्ट सर्विस सिस्टम में बदलाव ताकि ज़्यादा सैनिकों को इसमें शामिल किया जा सके. इस सिस्टम में रिटायरमेंट लाभ कंट्रीब्यूटरी होता है, शायद नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) या इससे मिलती-जुलती किसी सैन्य योजना के तहत. पांच, सात या 10 साल की असली ‘शॉर्ट’ सर्विस के बाद सैनिक कोई अच्छा रोज़गार तलाशने में सक्षम रहेंगे. उन्हें कंट्रीब्यूटरी पेंशन या ग्रैच्युटी का फ़ायदा भी होगा. शॉर्ट सर्विस सिस्टम को और आकर्षक बनाने से सेना, ख़ास तौर पर थल सेना, को अपनी मैनपावर में कमी की समस्या का समाधान करने में मदद मिलेगी.

मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य में ये बहुत महत्वपूर्ण है कि सैन्य आधुनिकीकरण के लिए आवंटित फंड में बढ़ोतरी हो लेकिन महत्वपूर्ण ये भी है कि ऐसा करने के लिए जो प्रस्ताव हों वो वास्तविकता के क़रीब हों, ऐसे प्रस्तावों के असर को भी ध्यान में रखा जाए और सेना की रीढ़ यानी सैनिकों की दीर्घकालीन सेहत और कल्याण को प्राथमिकता दी जाए.

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