Author : Rumi Aijaz

Published on Jun 30, 2023 Updated 0 Hours ago
लचीले और टिकाऊ शहरों की ओर ले जाने वाले रास्ते!

शहरों के प्रशासकीय संस्थानें विशाल और अनंतहीन तरीकों से बढ़ती आबादी की वजह से काफी दबाव में है. विभिन्न नागरिक गतिविधियों के प्रदर्शन और ज़रूरतों की पूर्ति के क्रम में यह बात सामने आती है. विशाल शहरी आबादी की मांगें काफी हैं, और विभिन्न वजहों के कारण, ये संस्थानें इन उम्मीदों पर खरा उतर पाने में पीछे रह रहे हैं. जिसके परिणामस्वरूप, ज्य़ादातर शहरों में अनियमितता और खराब गुणवत्ता वाली जीवनशैली अब भी उपलब्ध है. 

इस लेख में, चिंता के दो विषयों पर बात की जा रही है. पर्यावरण और अर्थव्यवस्था. इस परिप्रेक्ष्य में, भारतीय शहर अनेकों प्रकार की विसंगतियाँ का प्रदर्शन करते हैं, जिसमें सुधार आवश्यक है.

 

इस लेख में, चिंता के दो विषयों पर बात की जा रही है. पर्यावरण और अर्थव्यवस्था. इस परिप्रेक्ष्य में, भारतीय शहर अनेकों प्रकार की विसंगतियों का प्रदर्शन करते हैं, जिसमें सुधार आवश्यक है. इसके अनुसार, ये लेख इस बात पर ज़ोर देती है कि उचित विषयों के उचित प्रबंधन द्वारा शहरों को जीने योग्य बनाया जा सकता है. स्वच्छ वातावरण बेहतर स्वास्थ्य की गारंटी है और जैव-विविधता का संरक्षण करती है. उसी तरह से, सुदृढ़ शहरी अर्थव्यवस्था, एक सुधरी हुई गुणपरक जीवन प्रदान करने में सहायक होती है.    

इस आर्टिकल के लिए, उनके विभिन्न कारकों की वजह जैसे, वायु गुणवत्ता, ग्रीन कवर, सरफेस वॉटर बॉडीज़, ड्रेनेज, और सैनिटेशन समेत, पर्यावरण की विवेचना की जाती है. जबकि, आर्थिक स्थिति का अवलोकन, शहरी प्रशासन की वित्तीय कार्यपद्धति और ज़रूरतमंद आबादी के लिए ज़रूरी रोज़गार के अवसरों के सृजन की क्षमता से की जाती है.   

पर्यावरण का प्रबंधन 

उदाहरण के लिए, वायु क्वॉलिटी बरकरार रखने के लिए, इको-फ़्रेंडली, किफ़ायती, और सुविधाजनक पद्धति, लोगों को अपने रोज़मर्रा के कामों और अन्य गतिविधियों को करने के लिए, उपलब्ध कराए जाने चाहिए, और नगरीय एजेंसियों को, इन प्रक्रिया को अपनाने के लिए लोगों को सहयोग प्रदान करना चाहिए. ऐसे उपाय वायु प्रदूषण जैसे गंभीर परेशानी को कम करने में सहायक सिद्ध होंगे. ट्रांसपोर्ट, उद्योग और पॉवर सेक्टरों में ऊर्जा की ज़रूरत पूरी करने के लिये ये ज़रूरी है कि वे स्वच्छ या हरित उर्जा की तरफ बढ़ें. निर्माण और सैनिटेशन सेक्टरों में बेहतर प्रबंधन तक़नीक और नियमों के अम्लीकरण की आवश्यकता है. सांस्कृतिक पटल पर, कुछेक त्योहारों में पटाखे फोड़ने आदि की समस्या को भी समुदायों के साथ के बातचीत कर सुलझाया जाना ज़रूरी है.     

हरी परत (पेड़, पौधे आदि) से आच्छादित शहरों में तापमान कम और बेहतर वायु क्वॉलिटी होती है. हालांकि, शहरों के पक्कीकरण (भवनों का ढांचागत निर्माण) और अनियोजित/अवैध निर्माण (आवास, दुकानों) में वृद्धि की वजह से भी पेड़ पौधों में कमी के बढ़ते उदाहरण उपलब्ध हैं. शहरों का बाहरी स्थानिक विस्तार आदि के परिणामस्वरूप कृषि योग्य जमीनों और खुले क्षेत्रों में भी कमी आयी है. मौजूदा पेड़ पौधों की रक्षा और इसे योजनाबद्ध तरीके से विस्तारित करना आवश्यक है क्योंकि पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने और वायुमंडल में ऑक्सीजन छोड़ने में मदद करते हैं. पेड़, और पौधे भी विभिन्न गतिविधियों और परिवहन सेक्टर के ज़रिए उत्पन्न होने वाली गर्मी को कम करने में मदद करते हैं.    

सतही जल निकाय जैसे कि नदियां, झील, और तालाब आवश्यक जल की ज़रूरत और इकोसिस्टम और वायु गुणवत्ता को बनाए रखने में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं. इन्हें अनुपचारित अपशिष्ट जलों के प्रवेश, औद्योगिक अपशिष्ट, और कूड़ा-कर्कट के अवशेषों से सुरक्षित रखा जाना चाहिए. जल निकायों की उचित निगरानी, उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ़ सख्त़ कार्रवाई और अपशिष्ट जल प्रबंधन के लिए पर्यावरण अनुकूल तरीकों को अपनाने में समुदायों की मदद, समस्या को नियंत्रित करने में उपयोगी कदम हो सकते हैं.

मौजूदा पेड़ पौधों की रक्षा और इसे योजनाबद्ध तरीके से विस्तारित करना आवश्यक है क्योंकि पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने और वायुमंडल में ऑक्सीजन छोड़ने में मदद करते हैं.

  

बारिश के मौसम में जल जमाव/बाढ़ आम बात है और इसे होने से रोका जाना चाहिए. आम लोगों के सहूलियतों में बाधा पैदा करने के अलावा, ये स्थिति मच्छरों के प्रजनन के लिए भी काफी उपयुक्त होते हैं. ऐसी जगहों को ढूंढा जाना चाहिए और शहरी योजना और विकास की मदद से इसमें सुधार किया जाना चाहिए. इनमें ड्रेनेज/जल निकासी की कमी, जल निकासी  के रख-रखाव, और वर्षा के जल के संचयन और उसके मुताबिक सुविधाओं का प्रावधान आदि भी शामिल है. शहरों के सभी हिस्सों को ऐसे अंडरग्राउंड ड्रेनेज नेटवर्क से ढका जाना चाहिए जिसमें उचित मात्रा में जल-संचयन क्षमता हो और जो वर्षा/तूफान के पानी को री-साइक्लिंग संयंत्रों और सतही जल निकायों में स्थानांतरित करने में मदद कर सकते हैं. 

शहरों में, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन काफी चिंतनीय मुद्दा बन चुका है. काफी बड़ी मात्रा में अपशिष्ट रोज तैयार हो रहे हैं, परंतु उसके संग्रह और निपटान की दिशा में प्रशासनिक क्षमता में भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. अतः सड़क किनारे, खुले नालों और खाली पड़े ज़मीनों पर कूड़ों का जमाव देखा जाना आम बात है. लैंडफ़ील (जहां शहर भर से बटोरे गए कूड़ों को नगरपालिका द्वारा डंप किया जाता है) स्थानों पर, पर्यावरण की स्थिति काफी बुरी है. इसलिए, नगरीय निकायों को एक टिकाऊ अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल, विकसित करना चाहिए. शहर-विशिष्ट अपशिष्ट उत्पादन विशेषताओं के आधार पर मॉडल को स्रोत पर, अपशिष्ट अलगाव से संबंधित पहलुओं, उसके पुनः इस्तेमाल और सुरक्षित निपटान, को संबोधित करने में सक्षम होना चाहिए.    

अर्थव्यवस्था का प्रबंधन 

अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में, शहरी प्रशासन की वित्तीय अवस्था, उसके कर्तव्यों को पूरा करने में और मास्टर प्लान में नामित ढांचागत सभी योजनाओं के अम्लीकरण के संदर्भ में उनकी क्षमता सुनिश्चित करती है. अक्सर, काफी कम फंड उपलब्ध होता है और, इसलिए, कमी होना सामान्य बात है. स्थानीय प्रशासन के संसाधन को बढ़ाने की क्षमता के सुदृढ़ीकरण के जरिये स्थिति में सुधार किए जाने की आवश्यकता है. नगरपालिका टैक्स और यूज़र चार्जेज़ में सुधार के साथ-साथ, अप्रयुक्त क्षमता का पता लगाया जाना चाहिएसार्वजनिक-निजी-सामुदायिक भागीदारी के ज़रिये बुनियादी ढांचा सेवा वितरण, भूमि मूल्य निर्धारण, और और फर्श-क्षेत्र अनुपात (एफएआर) में वृद्धि करके भूमि स्थानों के घनत्व को फिर से परिभाषित करने जैसे कुछ विकल्प शामिल हैं, जो प्रयोग में लाया जा सकता है.   

अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में, शहरी प्रशासन की वित्तीय अवस्था, उसके कर्तव्यों को पूरा करने में और मास्टर प्लान में नामित ढांचागत प्रोजेक्टों के अम्लीकरण के संदर्भ में उनकी क्षमता सुनिश्चित करती है.

अन्य महत्वपूर्ण आर्थिक पहलु है नगर नियोजन प्रोफाइल. रोज़गार से ही आर्थिक उन्नति और विकास के रास्ते तय होते हैं, जबकि बेरोज़गारी न केवल आर्थिक आउट्पुट को घटाती है, बल्कि लोगों पर भी उसके नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं. बेरोज़गार लोगों के आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने की ज्य़ादा गुंजाइश होती है. 2021-21 के दिल्ली के आधिकारिक आँकड़ों में बेरोज़गारी दर 6.3 प्रतिशत दिखता है; बेरोज़गारों की कुल 19 प्रतिशत संख्या स्नातक और उनसे ऊपर थी. चंडीगढ़ नें 7.5 प्रतिशत बेरोज़गारी दर अंकित किए. उपलब्ध रोज़गार के अवसर, उनके कौशल का विकास, और रोज़गार ढूंढने में उनकी सहायता, और विशाल अवसर का सृजन जैसे उपायों से इस समस्या से निपटा जा सकता है. खासकर, नगर प्रशासन को चाहिए कि वे झुग्गी झोपड़ी और अनाधिकृत कॉलोनियों में व्याप्त बेरोज़गारी की समस्या, और अनौपचारिक आर्थिक गतिविधियों में लगे श्रमिकों की ज़रूरतों पर ध्यान दें.     

इसलिए, शहरों को लचीला और टिकाऊ बनाने के लिए उचित क्रम में पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के उपरोक्त निर्धारकों को बनाये रखने की आवश्यकता है. भारत से यह उम्मीद की जा रही है कि, वह शहरीकरण करेगा और इस स्थिति के समुचित प्रबंधन के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि शासकीय संस्थानों की क्षमतायें न सिर्फ़ मज़बूत हो बल्कि और ज़्यादा कुशल भी.  

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