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विश्व के नेता, तकनीकी दिग्गज और AI समर्थक फरवरी, 2025 की 10 और 11 तारीख़ को पेरिस में तीसरे कृत्रिम बुद्धिमत्ता, यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सम्मेलन में शामिल होने के लिए एकजुट हुए. साल 2023 में ब्लेचली (ब्रिटेन) में हुए इसके पहले ‘AI सुरक्षा शिखर सम्मेलन’ और 2024 के ‘AI सियोल शिखर सम्मेलन’ (दक्षिण कोरिया) की तुलना में इस बार ‘AI एक्शन’ पर ज़ोर देना संकेत है कि बुनियादी सुरक्षा चिंताओं से आगे बढ़कर अब AI के क्रियान्वयन की बारीकियों पर ध्यान दिया जा रहा है. निश्चय ही, ‘एक्शन’ पर ध्यान देना काफ़ी ज़रूरी है, लेकिन पेरिस AI शिखर सम्मेलन बताता है कि AI को लेकर दुनिया की मौजूदा प्राथमिकताओं से मनमाफ़िक नतीजे नहीं पाए जा सकते.
AI से जुड़ी चिंताओं के मद्देनज़र ‘एक्शन’ (कार्यवाही) पर ज़ोर देते हुए, शिखर सम्मेलन में रोज़गार, निवेश, नैतिकता, नियमन-नियंत्रण और जनहित वाले AI के बारे में ज़्यादा चर्चा की गई. सम्मेलन में ‘समावेशी और टिकाऊ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ नामक एक गैर-बाध्यकारी घोषणा-पत्र भी जारी किया गया, जिस पर दस्तख़त करने वाले 61 हस्ताक्षरकर्ताओं ने AI के मुक्त, नैतिक, विश्वसनीय और सुरक्षित उपयोग का संकल्प लिया. इस सम्मेलन में 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर के शुरुआती निवेश के साथ ‘जनहित’ साझेदारी पर सहमति बनी और ‘करंट एआई’ नाम से एक पहल शुरू करने की घोषणा की गई, जिसका लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाना है, ताकि भरोसेमंद एआई खिलाड़ियों को डेटाबेस, सॉफ़्टवेयर और उपकरणों की मुफ़्त सुविधा उपलब्ध कराई जा सके.
पेरिस शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता भारत ने की और नई दिल्ली द्वारा ही 2026 के सम्मेलन की मेज़बानी करने की घोषणा करना यह बता रहा है कि विश्व के तमाम खिलाड़ी इसमें अपनी भागीदारी निभाने को इच्छुक हैं.
पेरिस शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता भारत ने की और नई दिल्ली द्वारा ही 2026 के सम्मेलन की मेज़बानी करने की घोषणा करना यह बता रहा है कि विश्व के तमाम खिलाड़ी इसमें अपनी भागीदारी निभाने को इच्छुक हैं. यह AI के मुख्य विमर्शों को अमेरिका-चीन के बीच तकनीकी होड़ तक सिमटे रहने से रोक रहा है. भारत ने ‘एआई फाउंडेशन’ और टिकाऊ AI के लिए एक ‘परिषद’ बनाने का भी प्रस्ताव रखा, ताकि AI टेक्नोलॉजी के विकास में वैश्विक सहयोग को बढ़ाया जा सके. हालांकि, पेरिस शिखर सम्मेलन के घोषणा-पत्र पर अमेरिका और ब्रिटेन ने हस्ताक्षर नहीं किए, जो कहीं अधिक ख़बरों की सुर्खियां बनीं. ब्रिटेन ने जहां वैश्विक व्यवस्था के संदर्भ में AI के महत्व और व्यावहारिक स्पष्टता की कमी के कारण घोषणा-पत्र की आलोचना की, वहीं अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस ने AI के सख़्त नियमों पर ऐतराज़ जताया.
ट्रंप की अस्पष्ट नीति
हालांकि, ट्रंप की AI नीति अब भी स्पष्ट नहीं है. उनके तकनीक-प्रेमी सलाहकारों ने सख़्त नियमों के बजाय अधिक सावधानीपूर्ण नज़रिया अपनाने की बात कही है, क्योंकि इससे नवाचार (इनोवेशन) धीमा हो रहा है. इसने ट्रंप की सोच को प्रभावित किया है.
नवाचार के अवसरों को लेकर अमेरिका भले ही अधीर है, लेकिन शिखर सम्मेलन में यूरोप का रुख़ उससे अलग था. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने AI उद्योग में 109 अरब अमेरिकी डॉलर के निजी निवेश की घोषणा की. आश्चर्य की बात है कि यूरोपीय संघ, जिसने ‘जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन’ (जीडीपीआर) बनाकर डेटा पर नियमन की शुरुआत की और जो 2027 तक अपने एआई अधिनियम को पूरी तरह लागू करने की बात कहता रहा है, अब सख़्त नियमों के खिलाफ़ नरम पड़ता दिख रहा है. यूरोपीय संघ के प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने नवाचार को आगे बढ़ाते हुए जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए संतुलित नियमन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया.
डीपसीक के रूप में चीन को मिली AI सफलता बताती है कि छोटे AI खिलाड़ी भी समान रूप से नवाचार को आगे बढ़ा सकते हैं. यह घटना न सिर्फ AI को लेकर ऊर्जा से भरी वैश्विक भावना को मज़बूत बना रही है, बल्कि बता रही है कि AI विकास का केंद्र बदल रहा है.
डीपसीक के रूप में चीन को मिली AI सफलता बताती है कि छोटे AI खिलाड़ी भी समान रूप से नवाचार को आगे बढ़ा सकते हैं. यह घटना न सिर्फ AI को लेकर ऊर्जा से भरी वैश्विक भावना को मज़बूत बना रही है, बल्कि बता रही है कि AI विकास का केंद्र बदल रहा है. इसने निजी AI उद्योग में निवेश को लेकर यूरोप को किस तरह से प्रेरित किया है, यह साफ़ तौर पर सम्मेलन में दिखा. इससे AI दौड़ में मुकाबले की उम्मीदें बढ़ गई हैं. हालांकि, यूरोपीय नीति-निर्माताओं की यह भी सोच होगी कि नियमों पर उदार रुख़ अपनाने से प्रतिस्पर्धा से जुड़े लाभ में कमी आ सकती है. साथ ही, उनमें अपने पश्चिमी साथियों से पिछड़ जाने की चिंता भी सता रही होगी.
पश्चिमी नेतृत्व जहां चीन की हालिया AI तरक्क़ी से भयभीत दिखे, वहीं चीन ने शिखर सम्मेलन से अलग ‘चाइना एआई सेफ्टी ऐंड डेवलपमेंट एसोसिएशन’ का एक कार्यक्रम आयोजित करके एक बार फिर वैश्विक मंच का उपयोग अपनी एआई उन्नति, संचालन संबंधी नियमों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग संबंधी नज़रिया बताने के लिए किया. हालांकि, शी जिनपिंग इसमें शामिल नहीं हुए, लेकिन चीनी प्रधानमंत्री झांग गुओकिंग के भाषण में ‘मानव जाति के भविष्य को साझा करने वाले समुदाय’ के निर्माण की जिनपिंग की योजना की झलक साफ़-साफ़ दिखी.
सुरक्षा के मानक
AI वैज्ञानिक ‘आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस’ (AGI) के उभरते मॉडलों के बारे में लगातार चेतावनी दे रहे हैं, जिनमें सुपर-ह्यूमन, यानी महामानव स्तर की AI क्षमताए हैं और जिनके अगले पांच वर्षों में सामने आने की उम्मीद है. मगर AI को लेकर होड़ बढ़ी हुई है. इस तरह की चिंताओं को किस तरह नज़रंदाज़ किया जा रहा है, यह वेंस के बयान से पता चलता है, जिन्होंने साफ़ कर दिया है कि ट्रंप प्रशासन विदेशी सरकारों द्वारा ‘अमेरिकी तकनीकी कंपनियों पर शिकंजा कसने’ को कभी भी ‘मान नहीं सकता और न कभी मानेगा’. इस घटनाक्रम को देखते हुए ‘जनहित वाले AI’ की संभावनाएं भी बहुत सफल होती नहीं दिख रहीं, क्योंकि अमेरिका शायद ही इस पहल का समर्थन करेगा. संभव है, उसे यह डर सता रहा होगा कि कहीं इसका चीन की ओर झुकाव न हो जाए.
साल 2025 का AI शिखर सम्मेलन तीन कारणों से उम्मीदों पर पूरी तरह खरा नहीं उतर सका –
पहला, शिखर सम्मेलन में इस बात पर आम राय नहीं बन सकी कि शक्तिशाली और नुकसान पहुंचाने वाले एआई कितनी जल्दी आने वाले हैं. लिहाज़ा, सुरक्षा उपायों पर काम करने के बजाय, यह शिखर सम्मेलन राष्ट्रीय परियोजनाओं और प्राथमिकताओं की घोषणा करने का मंच बनकर रह गया.
AI नियमों को लेकर अमेरिका द्वारा रुख़ बदल लेने से पता चलता है कि ट्रंप प्रशासन कड़े एआई सुरक्षा नियमों वाले भविष्य के बजाय नए प्रकार की तकनीक और नवाचार का नेतृत्व करने को अधिक इच्छुक है.
दूसरा, यूरोपीय संघ के सख़्त नियमों की अमेरिका ने आलोचना की, जिससे मुक्त नज़रिया का समर्थन करने वाले देशों, जिसका नेतृत्व खुद अमेरिका करता है और सख़्त नियमों की वकालत करने वाले देशों के बीच पनप रहे मतभेद सबके सामने आ गए. AI नियमों को लेकर अमेरिका द्वारा रुख़ बदल लेने से पता चलता है कि ट्रंप प्रशासन कड़े एआई सुरक्षा नियमों वाले भविष्य के बजाय नए प्रकार की तकनीक और नवाचार का नेतृत्व करने को अधिक इच्छुक है.
तीसरा, बेशक AI नवाचार को लेकर नए सिरे से उम्मीदें जग रही हैं, लेकिन यह AI से जुड़ी रणनीतियों में एक आक्रामक विकास का संकेत भी देता है, जिसकी क़ीमत हमें AI सुरक्षा पर ठोस सहमति न बन पाने के रूप में चुकानी पड़ रही है.
निश्चित तौर पर, पेरिस AI एक्शन शिखर सम्मेलन इस चर्चा को आगे बढ़ा रहा है, पर कुछ महत्वपूर्ण सवाल अब भी बने हुए हैं. पहला सवाल यही कि क्या सुरक्षा के मौजूदा मानक AI की होड़ के अनुकूल हैं? क्या AI हथियारों की दौड़ से जो तूफ़ान उठेगा, उससे निपटने के लिए AI पारिस्थितिकी तंत्र तैयार हो रहा है? और, इन सबसे भी महत्वपूर्ण सवाल यह कि भू-राजनीतिक टकराव को देखते हुए क्या अगले AI शिखर सम्मेलन में इन सभी चिंताओं का समाधान निकाला जा सकेगा?
(मेधा श्रीवास्तव मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, भारत के भू-राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग में डॉक्टरेट उम्मीदवार हैं)
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