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धारा 370 को हटाने और भारतीय सुरक्षा बलों के द्वारा आतंकवाद विरोधी रणनीतियों के मामले में सतर्कता बढ़ाने से असहज शांति के दौर के बाद पाकिस्तान अब एक बार फिर से कश्मीर घाटी में समस्या पैदा करने में लग गया है. भारत का ये उत्तर-पश्चिमी पड़ोसी अब जम्मू-कश्मीर की शांति भंग करने के लिए आतंकियों और स्लीपर सेल का इस्तेमाल करने में लग गया है ताकि इस इलाके में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नाकाम किया जा सके.
केंद्र शासित प्रदेश (UT) जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री के रूप में उमर अब्दुल्ला के शपथ लेने के कुछ ही समय के बाद कश्मीर घाटी में कई आतंकी घटनाएं हुईं. 16 अक्टूबर और 7 नवंबर के बीच आतंकवादियों ने कश्मीर में आठ जगहों को निशाना बनाया. पिछले दिनों श्रीनगर शहर में हुए ग्रेनेड धमाके, जिसमें 11 लोग घायल हो गए, और श्रीनगर शहर के बीचो-बीच पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के एक वांटेड कमांडर का ढेर होना संकेत देता है कि आतंकवाद फिर से लौट रहा है और भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान ने अपना छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) तेज़ कर दिया है.
पिछले दिनों श्रीनगर शहर में हुए ग्रेनेड धमाके, जिसमें 11 लोग घायल हो गए, और श्रीनगर शहर के बीचो-बीच पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के एक वांटेड कमांडर का ढेर होना संकेत देता है कि आतंकवाद फिर से लौट रहा है और भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान ने अपना छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) तेज़ कर दिया है.
1 से 9 नवंबर के बीच पूरे कश्मीर रीजन में छह मुठभेड़ के दौरान आठ आतंकवादी मारे गए. इनमें से चार मुठभेड़ उत्तर कश्मीर में हुई. जनवरी 2024 से लेकर 4 दिसंबर तक ऐसी 60 आतंकी घटनाएं हुईं जिनमें किसी की मौत हुई थी. इन आतंकी घटनाओं में 31 आम लोगों, 26 सुरक्षाकर्मियों और 64 आतंकियों की मौत हुई. 2023 की तुलना में इस साल आतंकी हमलों में मरने वाले आम लोगों की संख्या दोगुनी हो गई है जिनमें से ज़्यादातर लोग जम्मू-कश्मीर से बाहर के हैं.
पाकिस्तान का छद्म युद्ध और जम्मू-कश्मीर में विदेशी आतंकवादी
2020 के बाद से आतंकवादी पीर पंजाल पहाड़ी के दक्षिण और जम्मू क्षेत्र में सक्रिय हैं. पिछले दिनों हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में 63.9 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया लेकिन जम्मू-कश्मीर के 20 में से केवल छह ज़िलों में ज़्यादा भागीदारी दिखी- कुलगाम में 3.4 प्रतिशत ज़्यादा, पुलवामा में 2.5 प्रतिशत ज़्यादा, शोपियां में 8.5 प्रतिशत ज़्यादा, श्रीनगर में 2.1 प्रतिशत ज़्यादा और बारामूला में 3.3 प्रतिशत ज़्यादा मतदान हुआ. चुनाव के दौरान कोई आतंकी घटना नहीं हुई. इस तरह अनुच्छेद 370 और 35A को हटाने के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश ने लोकतंत्र की पहली परीक्षा में सफलता हासिल की. यहां तक कि 15 देशों के राजनयिकों ने भी चुनाव प्रक्रिया को देखा और इस केंद्र शासित प्रदेश के जीवंत लोकतंत्र को देखने के लिए बडगाम और श्रीनगर में मतदान केंद्रों का दौरा भी किया.
जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव यहां आतंकी इकोसिस्टम और उससे सहानुभूति रखने वाले लोगों को ज़रा सा भी बर्दाश्त नहीं (ज़ीरो-टॉलरेंस) करने के नज़रिए का नतीजा है. सुरक्षाबलों ने आतंकियों के ओवर ग्राउंड वर्कर (OGW) के नेटवर्क को ध्वस्त किया और गिरफ्तारी, छापेमारी, खाते फ्रीज़ करके और उन्हें सरकारी नौकरियों से निकालकर आतंकी फंडिंग के ख़िलाफ़ कार्रवाई की. इसके अलावा केंद्र सरकार को लेकर युवाओं की धारणा में महत्वपूर्ण सकारात्मक बदलाव ने हिंसा में कमी लाने में योगदान किया. युवाओं को एहसास हुआ कि पाकिस्तान और पाकिस्तान से काम करने वाले आतंकी समूह धर्म का इस्तेमाल समस्या पैदा करने में कर रहे हैं और आतंकवाद की फंडिंग के लिए नारकोटिक्स का सहारा ले रहे हैं. सुरक्षा उपायों में बढ़ोतरी और सकारात्मक बदलावों की वजह से इस साल नवंबर तक केवल चार लोग स्थानीय आतंकी संगठनों में शामिल हुए. 2022 में 113 और 2023 में 22 स्थानीय भर्ती की तुलना में ये महत्वपूर्ण गिरावट थी. इसके नतीजतन 80 विदेशी आतंकियों के मुकाबले लगभग 16 या उससे भी कम स्थानीय उग्रवादी मौजूद हैं.
जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण माहौल में बढ़ोतरी और हाल के दिनों में लोकतंत्र की सफलता के कारण पाकिस्तान और उसके आतंकी समूह ऊपर से नीचे तक जोड़-तोड़ वाली चाल के ज़रिए कट्टरता को प्रेरित करने और आतंकी हिंसा को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. पाकिस्तान ने न केवल नए वर्चुअल आतंकवादी समूहों की स्थापना की बल्कि फेसबुक, एक्स, टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म के साथ-साथ डार्क वेब में भारत विरोधी गतिविधियों को भी तेज़ किया. अक्टूबर 2024 में सुरक्षा एजेंसियों ने 2,000 से ज़्यादा चिंताजनक पोस्ट के बारे में बताया जो कि 2024 में इसी अवधि के दौरान केवल 89 पोस्ट की तुलना में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी है. इन पोस्ट में से 130 आतंकवाद से जुड़े थे, 310 में बुनियादी ढांचे को ख़तरे का ज़िक्र था और 33 में अलगाववाद का समर्थन किया गया था. पाकिस्तान और वहां के आतंकी समूह रणनीतिक रूप से साइबर सक्षम असर पैदा करने वाले अभियान और दुष्प्रचार का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि आतंकवाद और आतंकी हिंसा को लेकर लोगों के बीच आपसी चर्चा को तय किया जा सके.
चार वर्षों के दौरान विदेशी आतंकियों में लगातार बढ़ोतरी देखी गई है. पहले ये विदेशी आतंकी पीर पंजाल के दक्षिण में बढ़े और अब जम्मू के साथ-साथ कश्मीर रीजन में भी. ये विदेशी आतंकी अपनी गतिविधियों के लिए घने जंगलों और मुश्किल इलाके का फायदा उठाते हैं. राजौरी-पुंछ के इलाके में घात लगाकर ख़तरनाक हमलों के बाद जम्मू के छह ज़िलों में आतंकी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है जिसका नतीजा 44 लोगों की मौत के रूप में निकला है जिनमें से 18 सुरक्षाकर्मी और 13 आतंकवादी शामिल हैं.
चुनाव के बाद कश्मीर घाटी, विशेष रूप से बारामूला, कुपवाड़ा, बांदीपोरा और गांदरबल ज़िलों में विदेशी आतंकवादियों की गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है. ये रुझान 2004 से 2016 के दौरान की परेशान करने वाली यादों को ताज़ा करता है जिस समय विदेशी आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में उबाल बनाए रखने के लिए आतंकी गतिविधियों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था.
चुनाव के बाद कश्मीर घाटी, विशेष रूप से बारामूला, कुपवाड़ा, बांदीपोरा और गांदरबल ज़िलों में विदेशी आतंकवादियों की गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है. ये रुझान 2004 से 2016 के दौरान की परेशान करने वाली यादों को ताज़ा करता है जिस समय विदेशी आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में उबाल बनाए रखने के लिए आतंकी गतिविधियों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था. पाकिस्तान की जघन्य गतिविधियों का बुरहान वानी और दूसरे स्थानीय उग्रवादियों ने समर्थन किया जिन्होंने स्थानीय स्तर पर भर्ती को तेज़ करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया.
आगे का रास्ता
भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक हितों के उद्देश्य से आतंकवाद का इस्तेमाल करने की पाकिस्तान की सरकारी नीति की वजह से अफ़ग़ान-पाकिस्तान इलाका आतंकवाद को पालने-पोसने वाला क्षेत्र बन गया है. विदेशी नीति के औज़ार के रूप में आतंकवाद के उपयोग, हदीस की गलत ढंग से व्याख्या, भर्ती के लिए एन्क्रिप्टेड ऐप एवं सोशल मीडिया के इस्तेमाल और पाकिस्तान सरकार एवं दूसरे आतंकी समूहों से समर्थन ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी रणनीतियों को जटिल बना दिया है. आतंकवादियों की मौजूदगी और गतिविधियों के बारे में TECHINT (टेक्निकल इंटेलिजेंस) आधारित सूचना कम हो गई है. इसकी वजह से सुरक्षा एजेंसियों को मजबूर होकर आतंकवादियों के ख़िलाफ़ सफल अभियान के लिए HUMINT (ह्यूमन इंटेलिजेंस) को मज़बूत बनाना पड़ा है.
भारत को अपनी आतंकवाद विरोधी रणनीतियों को मज़बूत बनाना चाहिए और मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) के भीतर तालमेल बढ़ाना चाहिए. भारत के गृह मंत्री ने ये साफ कर दिया है कि देश के सामने मौजूदा सुरक्षा ख़तरों से निपटने और आतंकी नेटवर्क को प्रभावी रूप से ध्वस्त करने के लिए एजेंसियों के बीच अधिक समन्वय की आवश्यकता है.
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और छद्म युद्ध का जवाब सक्रिय होकर और पूरी ताकत से देने के लिए भारत को उत्तर कश्मीर, दक्षिण कश्मीर, राजौरी-पुंछ और जम्मू में बेहतर तालमेल के लिए चार विशेष फ्यूज़न सेंटर स्थापित करने के बारे में सोचना चाहिए. इसमें अलग-अलग एजेंसियों से स्थानीय लोग केंद्र शासित प्रदेश के स्तर पर मल्टी-एजेंसी सेंटर की निगरानी (SMAC) में काम करें. आतंकियों से एक कदम आगे रहने के उद्देश्य से इन फ्यूज़न सेंटर में आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए बड़े स्तर पर आंकड़ों (बिग डेटा), तकनीकी प्रगति और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल को लेकर विभिन्न एजेंसियों के बीच साझा प्रशिक्षण और अभ्यास का आयोजन भी किया जाना चाहिए. यह साक्षा प्रशिक्षण प्राथमिकताओं और अभियान से जुड़ी प्रक्रियाओं को तय करने के लिए भी ज़रूरी है जो जम्मू-कश्मीर में टिकाऊ शांति हासिल करने में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देंगे. वैसे तो MAC के ऊपरी स्तर पर तालमेल प्रशंसनीय है लेकिन मज़बूत इंटेलिजेंस की बेहतर समझ को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र को निचले स्तर पर सहयोग भी बढ़ाना चाहिए.
एजाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
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