1998 में भारत और पाकिस्तान ने अपनी अपनी परमाणु शक्तियों का खुलकर इज़हार कर दिया था. उसके बाद से ही भारतीय उपमहाद्वीप परमाणु हथियारों के भयावह साये तले जी रहा है. ऐतिहासिक कारणों और क्षेत्रीय विवादों की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंदिता ने दोनों देशों के एटमी रिश्तों पर भी असर डाला है. वैसे तो परमाणु हथियार हासिल करने से दोनों ही देशों की कमान में एक नया और घातक तीर आ गया है. लेकिन, पाकिस्तान द्वारा छोटे परमाणु हथियार (TNWs) बना लेने की वजह से दोनों देशों के पहले से ही अस्थिर चले आ रहे रिश्तों में ख़तरों का एक नया आम और जुड़ गया है. पाकिस्तान अपनी संरचनात्मक, संस्थागत और सैन्य कमज़ोरी की वजह से भारत को अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा मानता है. इन्हीं कारणों से पाकिस्तान ने 1947, 1965, 1971 और 1999 में दुस्साहसिक क़दम उठाते हुए भारत के साथ युद्ध छेड़ा. लेकिन, इन सभी युद्धों में अपना मक़सद हासिल कर पाने में नाकामी के बाद पाकिस्तान एक व्यापक सामरिक निष्कर्ष पर पहुंचा है कि तेज़ आर्थिक विकास और तकनीकी तरक़्क़ी की वजह से भारत अपनी सेना का तेज़ी से आधुनिकीकरण कर रहा है, जिससे वो पाकिस्तान से पारंपरिक सैन्य क्षमता के मामले में बहुत आगे निकल गया है. पारंपरिक सैन्य मामले में भारत की बढ़त और उसको निष्क्रिय करने की ख़्वाहिश पूरी करने के लिए ही पाकिस्तान ने छोटे परमाणु हथियार विकसित किए हैं. ये सब मिलकर ही पाकिस्तान की रक्षा पंक्ति और उसकी एटमी नीति का निर्माण करने वाले कारक हैं.
तनाव बढ़ने की स्थिति में संघर्ष की एक और ‘पायदान’ जोड़ने वाले पाकिस्तान के छोटे परमाणु हथियारों के बारे में माना जाता है कि इससे भारत को पाकिस्तान पर कोई पारंपरिक हमला करने में सावधानी बरतने पर मजबूर किया जा सकता है.
पाकिस्तान के टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपंस (TNWs) कार्यक्रम को लेकर एक विवादास्पद परिचर्चा चल रही है. छोटे परमाणु हथियारों के समर्थक इनको भारत के पारंपरिक फौजी अभियान चलाने या पाकिस्तान में घुसकर वार करने की किसी आशंका से निपटने का एक अहम हथियार मानते हैं. तनाव बढ़ने की स्थिति में संघर्ष की एक और ‘पायदान’ जोड़ने वाले पाकिस्तान के छोटे परमाणु हथियारों के बारे में माना जाता है कि इससे भारत को पाकिस्तान पर कोई पारंपरिक हमला करने में सावधानी बरतने पर मजबूर किया जा सकता है. क्योंकि उसको डर होगा कि युद्ध बड़ी तेज़ी से परमाणु संघर्ष में तब्दील हो सकता है. सैद्धांतिक रूप से ये विचार एक नाज़ुक मगर दुश्मन को भयभीत रखने वाली स्थिरता बनाने वाला है. हालांकि, आलोचक पुरज़ोर तरीक़े से इस विचार को चुनौती देते हैं. उनका कहना है कि छोटे परमाणु हथियार, परमाणु युद्ध होने छिड़ने का ख़तरा बढ़ा देते हैं, और इनकी वजह से कोई ग़लत क़दम उठ सकता है. या फिर, अनजाने में टकराव खड़ा हो सकता है. पाकिस्तान की TNW नीति के असर को समझने में इस विचार की अहम भूमिका है. ये विचार इस बात पर निर्भर करता है कि क्या छोटे परमाणु हथियारों से ताक़त का जो संतुलन बनाने की बात कही जा रही है, वो वास्तव में स्थिरता को बढ़ावा देता है या फिर इससे अनजाने में परमाणु संघर्ष छिड़ने का ख़तरा, किसी संभावित लाभ को नकार देने वाला है.
रणनीतिक पैमाने पर भारी तबाही
परमाणु हथियारों के बारे में माना जाता है कि इनसे भयानक तबाही मचती है. इनकी सफलता की संभावना अधिक होती है. परमाणु हथियारों से पैदा होने वाले विकिरण और दूसरे नुक़सानों का असर लंबे वक़्त तक बना रहता है. हालांकि. छोटे या रणनीतिक परमाणु हथियार बनाने के पीछे चार प्रमुख कारण बताए जाते हैं. पहला किसी एटम बम का दायरा और उसे गिराने वाले साधन की रेंज. दूसरा छोटे परमाणु हथियार की ताक़त. तीसरा किसी छोटे परमाणु हथियार को तैनात करने और गिराने वाला इलाक़ा और चौथा इनका कमांड और कंट्रोल.
इस मुद्दे की सैद्धांतिक रूपरेखा समझने के लिए हमें पहले ये समझना होगा कि आख़िर पाकिस्तान को छोटे परमाणु हथियार हासिल करने की ज़रूरत क्यों पड़ी.
इस मुद्दे की सैद्धांतिक रूपरेखा समझने के लिए हमें पहले ये समझना होगा कि आख़िर पाकिस्तान को छोटे परमाणु हथियार हासिल करने की ज़रूरत क्यों पड़ी. इसको लेकर दो बड़े विचार हैं. एक तो फौरी रणनीतिक नज़रिया है, जो कहता है कि ये भारतीय सेना की ‘कोल्ड स्टार्ट’ की रणनीति का मुक़ाबला करने के लिए है, जिसके तहत पाकिस्तान के हमला करने से पहले ही उसकी सीमा के भीतर घुसकर तेज़ फौजी हमला करना, ताकि दुश्मन को भारी नुक़सान पहुंचाया जा सके. कोल्ड स्टार्ट का सिद्धांत 2002 और 2003 में ऑपरेशन पराक्रम के बाद उभरकर सामने आया था.
डराने के लिए छोटे परमाणु हथियार: असंतुलन से मुक़ाबला करने का प्रयास
आज़ादी के बाद के पिछले सात दशकों से भी ज़्यादा वक़्त से पाकिस्तान की विदेश नीति और इसकी व्यापक सुरक्षा नीति, इस सवाल के इर्द गिर्द विकसित हुई है कि भारत के ख़तरे से कैसे संतुलन बनाया जाए, मुक़ाबला किया जाए और भारत से संभावित ख़तरे को कैसे समाप्त किया जाए. जानकारों ने इस दुविधा से निपटने के लिए तीन तरीक़े अपनाए हैं: उच्च स्तर की रक्षा क्षमताएं हासिल करने के लिए बड़ी ताक़तों के साथ गठबंधन, आतंकवाद और छद्म युद्ध और परमाणु बम से डराने की सोच, पाकिस्तान की रणनीति का अटूट हिस्सा रही है. हालांकि, ज़्यादा टिकाऊ विकल्प परमाणु हथियारों का है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच सामरिक समीकरणों को और नाज़ुक बना देते हैं. सच तो ये है कि पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रह चुके जी. पार्थसारथी के मुताबिक़ तो पाकिस्तान ने परमाणु हथियार इसलिए नहीं हासिल किए कि भारत के पास भी एटमी हथियार थे. बल्कि उसका मक़सद भारत की पारंपरिक सैन्य बढ़त से संतुलन बनाना था. पाकिस्तान की चहुंमुखी परमाणु चक्रव्यूह बनाने की प्रतिबद्धता का मतलब है कि, छोटे परमाणु हथियारों (TNWs) का इस्तेमाल उसका अटूट अंग हैं.
पाकिस्तान इन (TNW) का इस्तेमाल कब करेगा और उनके इस्तेमाल की लक्ष्मण रेखा क्या है? पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की कमान और कंट्रोल पर नियंत्रण रखने वाली पाकिस्तानी फौज की स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीज़न (SPD के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल ख़ालिद किदवई ने दावा किया था कि परमाणु हथियारों (चाहे वो छोटे हों या सामरिक) का इस्तेमाल उसी सूरत में किया जाएगा, जब ‘पाकिस्तान के अस्तित्व पर ख़तरा हो’. जनरल क़िदवई ने आगे ये भी बताया है कि अगर एटमी हथियार होने का भय जब दुश्मन से ख़त्म हो जाए तो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की रूप-रेखा क्या होगी.
ऐसा तब होगा, जब भारत
- पाकिस्तान पर हमला करके उसके एक बड़े हिस्से (ज़मीन या अंतरिक्ष की सीमा) पर क़ब्ज़ा कर ले.
- अगर पाकिस्तानी फौज उसकी वायुसेना या नौसेना के एक बड़े हिस्से को तबाह कर दिया जाए (सैन्य लक्ष्मण रेखा)
- अगर आर्थिक रूप से पाकिस्तान का गला घोंटने की कोशिश हो (आर्थिक लक्ष्मण रेखा)
- अगर पाकिस्तान को अंदरूनी मतभेद पैदा करके राजनीतिक अस्थिरता की तरफ़ धकेला जाए या फिर अंदरूनी विघटन हो (घरेलू लक्ष्मण रेखा)
TNWs: ग़लत क़दम उठाने की आशंका ज़्यादा
पारंपरिक युद्ध क्षेत्र में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से आशंकाएं बढ़ जाती हैं. अमेरिकी विशेषज्ञ पीटर आर. लेवॉय कहते हैं कि पाकिस्तान ने छोटे एटमी हथियार इस्तेमाल करने की जो दो आख़िरी लक्ष्मण रेखाएं यानी आर्थिक और घरेलू अस्थिरता को तय किया है, वो स्पष्ट नहीं हैं और ये किसी पारंपरिक युद्ध की पूर्व स्थिति होती हैं. पाकिस्तान द्वारा छोटे परमाणु हथियार विकसित करके उन्हें तैनात करने से एटम बम के उपयोग की आशंका बढ़ जाती है. पाकिस्तान ने जो लक्ष्मण रेखाएं तय की हैं, वो स्पष्ट नहीं हैं जिनसे उसके लिए भारत के ख़िलाफ़ छोटे मोटे परमाणु हमले करने का रास्ता खुल जाता है. चूंकि सामरिक परमाणु अस्त्र कुछ हद तक दो बड़ी एटमी ताक़तों के बीच किसी बड़े युद्ध की आशंका को काफ़ी हद तक कम कर देते हैं. ऐसे में ये हथियार छोटे और सीमित संघर्षों की आशंका को बढ़ा देते हैं. पाकिस्तान के TNW की वजह से संबंधों में एक अस्थिर माहौल पैदा होता है. चूंकि पाकिस्तानी फ़ौज की अघोषित नीति से पहले एटमी हथियार इस्तेमाल करने की है. ऐसे में लंबे वक़्त से पाकिस्तान ये मानता आया है कि चूंकि वो भारत की तुलना में कमज़ोर है, तो किसी पारंपरिक युद्ध में वो इसकी भरपाई छोटे एटमी हथियारों के इस्तेमाल से कर सकता है. पाकिस्तान द्वारा एटमी हथियारों का पहले इस्तेमाल करने से निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच पारंपरिक युद्ध बढ़कर, एटमी जंग में तब्दील हो सकता है. पाकिस्तान के जानकार एक और पहलू की अनदेखी करते हैं कि भारत की परमाणु नीति में ज़बरदस्त पलटवार का विकल्प है. अगर पाकिस्तान पारंपरिक युद्ध के दौरान भारत के ख़िलाफ़ TNWs का इस्तेमाल करता है, तो हो सकता है कि भारत का ज़बरदस्त पलटवार शायद सीमित क्षेत्र तक न रुके और दोनों देशों के बीच सामरिक परमाणु हमला शुरू हो सकता है. लेकिन, बड़ा सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या पाकिस्तान के पास वो राजनीतिक इच्छाशक्ति होगी कि वो संघर्ष का दायरा बढ़ाए?
TNWs: राजनीतिक संकेत देने का एक औज़ार?
बर्नार्ड ब्रोडी के मुताबिक़ परमाणु हथियारों के आविष्कार के बाद देशों का मुख्य मक़सद शायद युद्ध जीतना नहीं, बल्कि उनसे बचना होता है. युद्ध को टालने का मतलब है कि दुश्मन देशों को ऐसे सक्रिय प्रयास करना होगा कि वो युद्ध में न उलझें. पर साथ ही साथ युद्ध न जीतने देने का मतलब ये कहना भी होगा कि वो युद्ध करने के लिए तैयार हैं. पर कोई निर्णायक का ठोस नतीजे हासिल नहीं करने हैं. दुश्मन को डराकर रखने के सिद्धांत की बुनियाद दो दुश्मन देशों की ‘सुनिश्चित तबाही (MAD)’ का वादा है. ऐसे में कोई दो परमाणु शक्ति संपन्न देश अगर युद्ध में उनका इस्तेमाल करते हैं, तो वो कभी भी दूसरे पर निर्णायक जीत हासिल नहीं कर सकेंगे. बड़े परमाणु हथियार इस्तेमाल हों, या छोटे, तबाही दोनों देशों में मचेगी. इसी वजह से परमाणु शक्ति से लैस दुश्मन देश ज़्यादा से ज़्यादा दूसरों को भयभीत करने की ताक़त ही जुटा सकते हैं, ताकि किसी तरह का पारंपरिक या एटमी युद्ध न छिड़ सके.
अगर पाकिस्तान पारंपरिक युद्ध के दौरान भारत के ख़िलाफ़ TNWs का इस्तेमाल करता है, तो हो सकता है कि भारत का ज़बरदस्त पलटवार शायद सीमित क्षेत्र तक न रुके और दोनों देशों के बीच सामरिक परमाणु हमला शुरू हो सकता है.
हो सकता है कि पाकिस्तान के छोटे परमाणु हथियार, पारंपरिक युद्ध में अपनी सैन्य बढ़त का इस्तेमाल करके भारत को उसके इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने से रोक दें. छोटे स्तर पर भी परमाणु युद्ध छिड़ने का ख़तरा होगा तो भारत किसी भी संभावित संघर्ष में बहुत सावधानी से क़दम उठाएगा. हालांकि, अगर सच में TNWs का इस्तेमाल हुआ, जो टकराव इस क़दर बढ़ेगा, जो नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा और इसके भयावह मानवीय नतीजे निकलेंगे. इसीलिए, पाकिस्तान का छोटे एटमी हथियारों का कार्यक्रम विश्वसनीय संकेतों के ज़रिए भारत को रोकने के लिए है, न कि युद्ध में वास्तविक रूप से इस्तेमाल करने वाला हथियार है.
हालांकि, दक्षिणी एशिया में सामरिक स्थिरता में आने वाले लंबे समय तक ख़लल पड़ने की ज़्यादा आशंका दोनों देशों की पारंपरिक सैन्य की बढ़ती असमानता और सामरिक बलों के आधुनिकीकरण की वजह से ज़्यादा होगी. कुल मिलाकर, सामरिक स्थिरता दोनों देशों की एक दूसरे की धमकी से निपटने की इच्छाशक्ति दिखाने का जोखिम मोल लेने पर भी निर्भर करेगी. इसकी क़ीमत भारी होगी, क्योंकि अगर पाकिस्तान छोटे परमाणु हथियारों वाला युद्ध शुरू करता है, तो फिर ये आगे चलकर पूरी तबाही वाली जंग में भी तब्दील हो सकता है.
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