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बलूचिस्तान में उग्रवाद की लपटें दिनों दिन भयावह होते हालात का संकेत दे रही हैं और ये बात पिछले कई वर्षों से सबको नज़र आ रही थी. लेकिन, क्षेत्रफल के लिहाज से पाकिस्तान के सबसे बड़े इस सूबे के भयंकर हालात का, इस्लामाबाद में सत्ता के गलियारों पर कोई असर नहीं दिख रहा है. पाकिस्तान की राजधानी में जो सिर्फ़ एक बात मायने रखती है, वो सरकार के संस्थानों को नियंत्रित करने, उनको तोड़ मरोड़कर फौज की बनाई उस हाइब्रिड हुकूमत का अस्तित्व बचाने की है, जिसे जनरल आसिम मुनीर ने खड़ा किया है और जिसका चेहरा प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ को बनाया गया है. बलूचिस्तान, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा, सिंध और पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) से उठती बग़ावत की लपटों का पाकिस्तान के मीडिया में बस नाममात्र का ज़िक्र होता है. ज़्यादातर परिचर्चा इस बात के इर्दगिर्द घूम रही है कि जेल में क़ैद इमरान ख़ान ने क्या कहा और वो किन मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और इमरान ख़ान ने जो लोकप्रियता बना ली है, जो नैरेटिव खड़ा किया है, उसका सरकार और फ़ौज की तरफ़ से क्या जवाब दिया जा रहा है. बलूचिस्तान तो वैसे भी इस्लामाबाद और लाहौर से इतना ज़्यादा दूर है कि उस उथल-पुथल भरे सूबे में क्या हो रहा है, इसकी किसी को परवाह नहीं है.
अभी पिछले महीने, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता मौलाना फ़ज़्ल-उर-रहमान ने नेशनल असेंबली में अपनी तक़रीर में कहा था कि, ‘बलूचिस्तान के पांच से सात ज़िले अब ख़ुद को पाकिस्तान से आज़ाद करने का एलान करने की स्थिति में पहुंच गए हैं’, और ‘जैसे ही वो ऐसा करते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र उन्हें तुरंत मान्यता भी दे देगा.’ मौलाना फ़ज़्ल-उर-रहमान के इस बयान के बाद पाकिस्तान की जनता और दूसरे लोगों को बलूचिस्तान के तेज़ी से बिगड़ते हालात का एहसास हुआ और उन्होंने इसकी तरफ़ ध्यान देना शुरू किया. हालांकि, मौलाना हालात बयान करने की रौ में कुछ ज़्यादा ही बहक गए थे और कह दिया था कि संयुक्त राष्ट्र, बलूचिस्तान को आज़ाद मुल्क के तौर पर मान्यता दे देगा. लेकिन, इसमें कोई दो राय नहीं कि मौलाना फ़ज़्ल-उर-रहमान की बलूचिस्तान सूबे के ज़मीनी हालात पर अच्छी पकड़ है और उन्हें इस बात का अच्छी तरह से अंदाज़ा है कि वहां के हालात किस क़दर बिगड़ चुके हैं. मौलाना फ़ज़्ल-उर-रहमान के बाद नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता उमर अयूब ने भी कहा था कि बलूचिस्तान के आधा दर्जन ज़िलों में पाकिस्तानी हुकूमत का कोई अस्तित्व नहीं बचा है. उमर अयूब के मुताबिक़ इन ज़िलों में अब पाकिस्तान का झंडा नहीं लहराता है.
बलूचिस्तान की बग़ावत
ऐसा नहीं है कि हाइब्रिड हुकूमत के लिरोद में खड़े लोग ही बलूचिस्तान के बिगड़ते हालात की तरफ़ इशारा कर रहे थे. प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के नज़दीकी सलाहकारों में से एक और पाकिस्तान के पूर्व गृह मंत्री राना सनाउल्लाह ने भी चेतावनी दी थी कि हथियारबंद संगठन पहाड़ों से नीचे आकर बलूचिस्तान पर अपना क़ब्ज़ा जमा लेंगे. शुरुआत में तो बलूचिस्तान की हुकूमत ने इस बात से इनकार किया कि हालात उसके हाथ से बाहर निकल रहे हैं. लेकिन, आख़िरकार सूबे के मुख्यमंत्री सरफ़राज़ बुगती ने ये माना कि स्थिति बेहद ख़तरनाक है. हालांकि, उग्रवादी सूबे के किसी भी इलाक़े पर अपना नियंत्रण कुछ घंटों से ज़्यादा नहीं रख पा रहे हैं. अगर उग्रवादी किसी बड़े हाइवे या छोटे क़स्बे पर हमला करके वहां कुछ घंटों के लिए भी अपना क़ब्ज़ा बरक़रार रख पा रहे हैं, तो इसको भी कोई ज़िम्मेदार प्रशासक हल्के में नहीं लेगा. बलूच उग्रवादियों द्वारा एक के बाद एक, कई बड़े बड़े हमले किए जाने से हुकूमत की हैसियत और ताक़त को गहरी चोट पहुंची है. इससे भी बुरी बात ये है कि उग्रवादियों के बढ़ते हमलों से इस क़दर अनिश्चितता फैल गई है कि इसने मूलभूत ढांचे के विकास और खनन की परियोजनाओं के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करने की महत्वाकांक्षी योजना पर भी पानी फेर दिया है.
इन्हीं परिस्थितियों में चार उग्रवादी संगठनों बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF), बलूचिस्तान रिपब्लिकन गार्ड (BRG) और सिंधुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी (SRA) के संयुक्त संगठन बलूच राजी आजोई संगार (BRAS) ने एकीकृत कमान में एक बलूच नेशनल आर्मी बनाने का एलान किया और कहा कि अब वो बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए ‘अलग अलग छोटे मोटे हमले करने के बजाय संगठित होकर आपस में तालमेल के साथ निर्णायक ताक़त के रूप में लड़ेंगे.’ BRAS ने एलान किया कि वो पाकिस्तान और उसके सबसे बड़े संरक्षक चीन के ख़िलाफ़ अपनी जंग तेज़ करेंगे और अपने गुरिल्ला अभियानों को और ज़्यादा घातक बनाएंगे. पाकिस्तान और चीन को सबसे ज़्यादा चोट पहुंचाने के लिए BRAS ने फ़ैसला किया कि वो ‘बलूचिस्तान के सभी प्रमुख हाइवे की नाकेबंदी करेंगे ताकि बाहर से आकर सूबे पर क़ब्ज़ा करने वालों की आवाजाही के साथ उनके आर्थिक और सैन्य हितों को चोट पहुंचा सकें.’
BRAS ने अपना अभियान तेज़ करने की घोषणा की, तो उसके कुछ ही दिनों के भीतर गुरिल्ला लड़ाकों ने सामरिक रूप से अहम कोस्टल हाइवे को निशाना बनाकर हमला किया और छह गैस टैंकरों और पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. पाकिस्तान के सुरक्षाबलों और बलूचिस्तान में उनकी मदद करने वालों के ख़िलाफ़ IED धमाकों और आत्मघाती हमलों में भी अचानक तेज़ी आ गई. बलूचिस्तान के जितने विशाल भूभाग में ये हमले हुए, वो बहुत ध्यान देने वाली बात है. कालात शहर में आत्मघाती हमला हुआ, क्वेटा में IED से धमाका हुआ और खुज़दार में सरकार समर्थक एक क़बीलाई नेता के ख़िलाफ़ भी बम धमाका किया गया इसके अलावा ज़ेहरी में दो मौलानाओं को मार दिया गया. ये वही क़स्बा है जहां पिछली जनवरी में 100 उग्रवादियों ने एक साथ हमला किया था और कई घंटों तक इस क़स्बे पर उनका नियंत्रण रहा था. साउथ एशिया टेररिज़्म पोर्टल द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक़ 2025 के पहले नौ हफ़्तों के दौरान ही, बलूचिस्तान में उग्रवाद की 70 वारदातें हो चुकी हैं, जिनमें पाकिस्तान के लगभग 135 सुरक्षाकर्मी मारे गए, जबकि मारे गए आतंकवादियों/उग्रवादियों की तादाद सिर्फ़ 66 थी. इससे पता चलता है कि 2 सुरक्षा बल मारे गए, तो एक आतंकवादी की मौत हुई. इस आंकड़े से ही हालात की गंभीरता का सबूत मिल जाता है.
2025 के पहले नौ हफ़्तों के दौरान ही, बलूचिस्तान में उग्रवाद की 70 वारदातें हो चुकी हैं, जिनमें पाकिस्तान के लगभग 135 सुरक्षाकर्मी मारे गए, जबकि मारे गए आतंकवादियों/उग्रवादियों की तादाद सिर्फ़ 66 थी. इससे पता चलता है कि 2 सुरक्षा बल मारे गए, तो एक आतंकवादी की मौत हुई. इस आंकड़े से ही हालात की गंभीरता का सबूत मिल जाता है.
उग्रवाद की नई लहर
इनमें से कुछ उग्रवादी हमलों से पाकिस्तान के सुरक्षा बलों को भारी नुक़सान हुआ है. पिछली फरवरी की शुरुआत में उग्रवादियों ने कालात में सैनिकों को ले जा रही एक वैन पर घात लगाकर हमला किया था, जिसमें पाकिस्तान के 17 सैनिक मारे गए थे. इसके दो हफ़्ते बाद ही मंद इलाक़े में पाकिस्तानी सेना की एक चौकी और एक काफ़िले पर हुए हमले में फिर से 17 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे. उग्रवादियों ने हरनाई में खदान मज़दूरों को ले जा रही एक बस को भी निशाना बनाया था, जिसमें 11 लोग मारे गए थे. वैसे तो पाकिस्तानी मीडिया ने इसे उग्रवादियों द्वारा चलाए जा रहे फिरौती के रैकेट की करतूत के तौर पर पेश किया था. लेकिन, उग्रवादियों ने इस आर्थिक हमला बताया और कहा कि उन्होंने बलूचिस्तान के संसाधनों का पंजाब द्वारा किए जा रहे दोहन के विरोध में ये अटैक किया, उससे ये हमला उनकी नज़र में वैध था. इसी तरह बलूचिस्तान में बसे पंजाबी कारोबारियों और आम लोगों को निशाना बनाने को उग्रवादी ये कहकर उचित ठहराते हैं कि ये सब हुकूमत के जासूस और सहयोगी हैं. ये भी पाकिस्तानी हुकूमत के ख़िलाफ़ बलूच उग्रवादियों की रणनीति का ही एक हिस्सा है.
बलूच उग्रवादियों ने सबसे भयानक हमला शायद अगस्त 2024 में किया था, जब उन्होंने ऑपरेशन हेरोफ शुरू किया था. इस ऑपरेशन के दौरान उन्होंने पूरे बलूचिस्तान सूबे में आपसी तालमेल के साथ हमले किए थे. अकेले 2024 में ही उग्रवादियों ने बलूचिस्तान में 900 से ज़्यादा हमले किए थे. इनमें से अधिकतर हमले बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट और BRAS के झंडे तले किए गए थे. उत्तरी बलूचिस्तान के पठानों के दबदबे वाले ज़िलों को छोड़ दें तो बलूच उग्रवादी, सूबे के लगभग हर ज़िले में सक्रिय हैं. ये बलूचिस्तान में पहले चलाए गए उग्रवादी अभियानों की तुलना में बहुत बड़ा बदलाव है. पहले लड़ाई कुछ ज़िलों और क़बीलों तक ही सीमित रहा करती थी. लेकिन, अब उग्रवाद की लपटें पूरे बलूचिस्तान सूबे से उठ रही हैं और इसने तमाम क़बीलाई, भाषाई और लैंगिक विभेद को ख़त्म कर दिया है.
वैसे तो पाकिस्तानी मीडिया ने इसे उग्रवादियों द्वारा चलाए जा रहे फिरौती के रैकेट की करतूत के तौर पर पेश किया था. लेकिन, उग्रवादियों ने इस आर्थिक हमला बताया और कहा कि उन्होंने बलूचिस्तान के संसाधनों का पंजाब द्वारा किए जा रहे दोहन के विरोध में ये अटैक किया, उससे ये हमला उनकी नज़र में वैध था.
जहां बलूच उग्रवादियों ने अपना अभियान तेज़ कर दिया है. अब उनके हमले ज़्यादा घातक, बार बार और ज़बरदस्त सांगठनिक क्षमता को दिखाते हैं. वहीं, पाकिस्तान की हुकूमत या यूं कहें कि पाकिस्तानी फौज, इस चुनौती के मुक़ाबले में उतनी फुर्ती से अपनी रणनीति नहीं विकसित कर पा रही है. आज भी पाकिस्तानी फौज का रवैया वही है, जो पिछले कई दशकों से चला आ रहा है: आम लोगों का दमन बढ़ा देना, क़बीले के सरदारों को रिश्वत देकर ख़रीदना, विरोध के हर सुर को दबा देना, मीडिया पर कठोर नियंत्रण रखना और लोकतंत्र की आड़ में अपने पसंदीदा मोहरों को सत्ता में बिठाकर पर्दे के पीछे से हुकूमत चलाना. लेकिन, अब इसका उल्टा असर हो रहा है, और पाकिस्तान की फौज अपना ज़ुल्म जितना बढ़ा रही है, उतना ही उग्रवादियों का समर्थन बढ़ता जा रहा है और उनके संगठन में नए रंगरूट भर्ती हो रहे हैं. यहां तक कि पढ़े लिखे तबक़ों की महिलाएं और कम उम्र के बच्चे भी शामिल हो रहे हैं.
नैरेटिव की जंग में ख़ुद को हारते देख, पाकिस्तानी फौज ने फिर से वही रवैया अख़्तियार किया है, जो वो पहले करती आई है. उसने विश्वविद्यालयों में छापे मारकर बलूच छात्रों को अगवा किया, उन्हें अवैध रूप से कस्टडी में रखा और कई बार तो उन्हें मारकर उनकी लाशों को सड़क के किनारे या जंगलों में फेंक दिया. इस साल के पहले कुछ हफ़्तों के दौरान ही बलूचिस्तान से 250 से ज़्यादा छात्र लापता हो चुके हैं. ज़बरन लापता किए गए लोगों की ये बढ़ती संख्या पाकिस्तानी हुकूमत के ख़िलाफ़ लोगों के ग़ुस्से को भड़का रही है और जनता को सरकार से दूर करती जा रही है. ये एक ऐसा मसला है, जिसके नाम पर बलूच अवाम में ज़बरदस्त एकजुटता है. बलूचिस्तान के नागरिकों के बर्बर दमन के अलावा पाकिस्तानी फौज नैरेटिव की जंग जीतने के लिए वही नुस्खे अपना रही है, जो घिस-पिट चुके हैं.
मिसाल के तौर पर अधिकारी अक्सर ‘आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों’ की नुमाइशी परेड कराती है और वो मीडिया के सामने वही रटा-रटाया बयान देते हैं. कमांडरों पर लालच का इल्ज़ाम लगाते हैं. दावा करते हैं कि उनको भारत से फंड मिलता है और ये उग्रवादी आक़ा बलूचिस्तान के हितों के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं. इसके बाद पाकिस्तान का मीडिया इन कहानियों का ज़ोर-शोर से प्रचार करता है. लेकिन, शायद पंजाब को छोड़ दें तो बमुश्किल ही कोई और होगा जो पाकिस्तानी फौज के इस नैरेटिव पर यक़ीन करता होगा. इसी तरह उग्रवादियों के ख़िलाफ़ पाकिस्तानी फौज के अभियानों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है. ये बताया जाता है कि फौज ने किस तरह आतंकियों और उनके अड्डों का सफ़ाया कर दिया. हालांकि, इन बातों का किसी पर असर नहीं होता. ज़्यादातर मामलों में पाकिस्तानी फौज मारे गए उग्रवादियों की तादाद को बढ़ा-चढ़ाकर सिर्फ़ इसलिए पेश करती है जिससे वो ये साबित कर सके कि वो उग्रवाद के ख़िलाफ़ पूरी ताक़त से अभियान चला रही है.
पाकिस्तानी फौज ने फिर से वही रवैया अख़्तियार किया है, जो वो पहले करती आई है. उसने विश्वविद्यालयों में छापे मारकर बलूच छात्रों को अगवा किया, उन्हें अवैध रूप से कस्टडी में रखा और कई बार तो उन्हें मारकर उनकी लाशों को सड़क के किनारे या जंगलों में फेंक दिया.
बलूच राजी आजोई संगार (BRAS) द्वारा अपने संगठन के पुनर्गठन और अपने अभियान को तेज़ करने की घोषणा ये दिखाती है कि उग्रवादियों की नज़र में बलूचिस्तान में उनका संघर्ष एक निर्णायक दौर में दाख़िल हो चुका है. राजनीतिक नैरेटिव पर बलूच यकजहती काउंसिल (BYC) के युवा नेताओं जैसे कि मज़बूत इरादों वाली माहरंग बलूच या सम्मी दीन बलूच और दूसरे सदस्यों का दबदबा है, जो पूरे सूबे में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई कर रहे हैं. विधानसभा के सदस्य और सूबे की ‘चुनी हुई’ सरकार तो बस सियासी बौने बनकर रह गए हैं, जो सिर्फ़ इस वजह से सत्ता में हैं क्योंकि पाकिस्तानी फौज ने उन्हें बलूचिस्तान के अवाम के ऊपर थोप दिया है. बलूचिस्तान में राजनीतिक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया बेकार हो चुकी है क्योंकि वहां के चुनाव में पाकिस्तानी फौज पूरी धांधली करती है. इन सभी वजहों से बलूचिस्तान में आज़ादी के सुर तेज़ होते जा रहे हैं.
इस बात को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं हैं कि बलूच उग्रवादी अपने अभियानों से क्या हासिल कर पाएंगे. क्योंकि बलूचिस्तान में, पाकिस्तान की कुल 25 करोड़ आबादी के पांच फ़ीसद से भी कम लोग रहते हैं.
फौजी तौर पर बलूच उग्रवादियों ने दिखा दिया है कि वो कितनी दूर तक, कितनी ज़बरदस्त क्षमता और साहस के साथ बेहद पेचीदा हमले कर सकते हैं. हालांकि, इस बात को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं हैं कि बलूच उग्रवादी अपने अभियानों से क्या हासिल कर पाएंगे. क्योंकि बलूचिस्तान में, पाकिस्तान की कुल 25 करोड़ आबादी के पांच फ़ीसद से भी कम लोग रहते हैं. लेकिन, उग्रवादियों को लगता है कि उनके पास पाकिस्तानी हुकूमत पर जीत हासिल करने के लिए पर्याप्त समर्थन है. अगर उनके पास पर्याप्त मात्रा में जनसमर्थन नहीं है, तो इसकी भरपाई वो ख़ैबर पख़्तूनख़्वा सूबे में भड़कते तालिबानी उग्रवाद के साथ हाथ मिलाकर कर लेते हैं. तालिबान के हमलों ने भी पाकिस्तानी फौज को बहुत बुरी तरह उलझाकर रखा हुआ है. वहीं, अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान हुकूमत के साथ भी पाकिस्तान के रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं. ऐसा लगता है कि तालिबान, बलूच उग्रवादियों को इस उम्मीद में समर्थन दे रहे हैं कि इससे उन्हें पाकिस्तानी फौज पर दबाव बनाने में मदद मिलेगी. अफग़ान तालिबान को आशंका है कि पाकिस्तान अब इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISK) के साथ संपर्क बढ़ा रहा है, ताकि अफ़ग़ान हुकूमत को चोट पहुंचाई जा सके. ईरान के सिस्तान बलूचिस्तान सूबे के हालात भी पाकिस्तान में बलूच उग्रवादियों के लिए मुफ़ीद होते जा रहे हैं.
आग की लपटों में फंसा पाकिस्तान
बलूचिस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा हमलों में आ रही तेज़ी और उनकी भायावहता और इस सूबे की उथल पुथल से निपटने के पाकिस्तानी हुकूमत के नाकाम हो चुके ढर्रे को देखते हुए, पाकिस्तानी फौज के पास विकल्प बेहद सीमित ही हैं. या तो वो वही करती रहे, जो पिछले 25 साल से करती आ रही है, जब से बलूचिस्तान में ये पांचवीं बग़ावत शुरू हुई है और शायद अपनी दमनकारी नीति को और भी तेज़ करे. लेकिन, इसके नतीजे में कोई तब्दीली आने की उम्मीद नहीं है. पाकिस्तानी फौज ये फ़ैसला भी कर सकती है कि वो बलूचिस्तान पर अपनी पूरी ताक़त लगा दे और उग्रवादियों का चुन-चुनकर सफ़ाया कर दे. लेकिन, ऐसे अभियान के सियासी सैन्य और कूटनीतिक नतीजों से निपट पाना फौज के लिए तबाही भरा होगा. तीसरा विकल्प मान मनौव्वल का है. हालांकि, ये एक लंबा और मुश्किल रास्ता है, जो पाकिस्तान के पंजाबी फौजी शासक वर्ग की बौद्धिक क्षमता से परे की बात है. क्योंकि ये उनके सब कुछ नियंत्रित करने की औपनिवेशिक मानसिकता के ख़िलाफ़ होगा. लेकिन, पाकिस्तान कोई भी रणनीति अपनाए, आने वाले लंबे वक़्त तक बलूचिस्तान के हालात ऐसे ही बिगड़े रह सकते हैं. वैसे तो बलूचिस्तान के ‘ग़ुलामी की बेड़ियों से आज़ाद होने (इमरान ख़ान द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला जज़्बाती जुमला)’ की उम्मीद लगाना जल्दबाज़ी होगी. लेकिन ये तो तय है कि बलूचिस्तान, पाकिस्तान के गले की ऐसी हड्डी बना रहेगा, जिसको वो उगल सकता नहीं और निगलने की जद्दोजहद को जारी रखेगा.
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