9 मई को पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए वार्षिक बजट पेश करेंगे. बजट को पाकिस्तान के इतिहास की संभवतः सबसे कठिन परिस्थितियों में पारित किया जाएगा. देश के रईस, मशहूर और ताकतवर अभिजात वर्ग की जीवनशैली को देखते हुए कोई भी यह नहीं कह सकता कि यह पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का सबसे मुश्किल दौर है, जो महीनों से बीमार हालत में है और अब तो बची-खुची सांसें भी उखड़ रही हैं.
पाकिस्तान के आर्थिक प्रबंधकों के सामने एक बड़ी समस्या यह है कि अर्थव्यवस्था अब इतनी गंभीर स्थिति में है कि उसमें स्थिरता लाने के जो भी उपाय किए जा सकते हैं, उन्हें लागू करना अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधार जितना ही कठिन हो गया है.
मौजूदा आर्थिक संकट का कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा है, ख़ासकर इसके समानांतर चल रहे राजनीतिक संकट, इमरान खान बनाम पाकिस्तानी राज्य, के कारण यह संकट और ज्यादा बढ़ गया है. साल के आखिर में अक्टूबर में होने वाले आम चुनावों के कारण यह मामला बजट निर्माताओं के लिए और जटिल हो गया है. मौजूदा पदाधिकारी अगस्त के दूसरे सप्ताह में पद छोड़ देंगे, जिसके बाद एक कार्यवाहक सरकार चुनाव होने तक प्रशासन की ज़िम्मेदारी उठाएगी. इसका मतलब यह है कि सरकार पर राजकोषीय ज़िम्मेदारियों के निर्वहन का कोई दबाव नहीं है क्योंकि एक बार जब वे पद छोड़ देंगे तो अर्थव्यवस्था का सारा भार कार्यवाहक सरकार और उसकी सूत्रधार, पाकिस्तानी सेना, पर होगा.
चुनावी साल में बजट
सामान्यतः, चुनावी साल में बजट काफ़ी विस्तृत और खर्चीले होते हैं. डार और उनके सहयोगियों की समस्या यह है कि वे वोट जीतने के लिए राजकोष पर ज्यादा भार नहीं डाल सकते. लेकिन, सत्ताधारी नेताओं को अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने के लिए अपनी राजकोषीय ज़िम्मेदारियों को भूलना होगा. इसका मतलब यह हुआ कि इशाक डार को अपने सहयोगियों की चुनावी मजबूरियों और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और अन्य ऋणदाताओं की अपेक्षाओं के बीच संतुलन बनाना होगा. यह करने के लिए उन्हें आंकड़ों में रचनात्मक तरीके से हेर-फेर करते हुए आर्थिक सुधार की एक तस्वीर पेश करनी होगी. एक कुशल चार्टर्ड अकाउंटेंट होने के नाते डार आंकड़ों की ऐसी हेर-फेर में माहिर हैं. वह मुश्किल आर्थिक परिस्थितियों का सामना कर रहे लोगों को अच्छा महसूस कराने का प्रयास करेंगे, जबकि इनमें से ज्यादातर परेशानियां उनके आर्थिक कुप्रबंधन का ही नतीजा है.
डार भविष्य की आशाजनक तस्वीर दिखाने के लिए लोगों को इस बात के लिए मनाने की कोशिश करेंगे कि सबसे बुरा दौर बीत चुका है (जबकि यह अभी आना बाकी है) और अर्थव्यवस्था में स्थिरता आ गई है और आने वाले महीनों में इसमें सुधार होगा. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं दूसरे ऋणदाताओं और वित्तीय बाजारों को नाराज किए बिना उन्हें ऐसा करना होगा. अंतर्राष्ट्रीय वित्त की कठोर दुनिया में कोई भी इस वुडू अर्थव्यवस्था के पाकिस्तानी संस्करण (जिसे डारोनॉमिक्स के नाम से भी जाना जाता है) से प्रभावित नहीं होगा. डार की अपनी साख इतनी कम है कि उन्हें अब IMF के साथ बैठकों में भी शामिल होने की अनुमति नहीं है. IMF ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि बजट को देखकर और डार द्वारा पेश किए गए आंकड़ों को जांचने के बाद ही कार्यक्रम को फिर से बहाल किया जाएगा.
वित्तीय वर्ष यानी 2024 के लिए उपलब्ध अनुमानों के मुताबिक संघीय सरकार का ऋण दायित्व उसके राजस्व की तुलना में लगभग 1 लाख करोड़ रुपए अधिक होगा. दूसरे शब्दों में, पाकिस्तान को न केवल रक्षा खर्च, विकास व्यय, सब्सिडी और नागरिक सरकार चलाने में लिए उधार लेना होगा, बल्कि ऋण चुकाने के लिए भी उसे नए सिरे से उधार लेना पड़ेगा.
पाकिस्तान के आर्थिक प्रबंधकों के सामने एक बड़ी समस्या यह है कि अर्थव्यवस्था अब इतनी गंभीर स्थिति में है कि उसमें स्थिरता लाने के जो भी उपाय किए जा सकते हैं, उन्हें लागू करना अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधार जितना ही कठिन हो गया है. अगर कोई उम्मीद बची है तो वह यह है कि इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ पार्टी (PTI) के नेस्तनाबूद हो जाने से पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (PMLN) के नेतृत्व वाली सत्तासीन गठबंधन सरकार के पास अब मौका है कि वह अर्थव्यवस्था में थोड़े फेर-बदल के जरिया उसे पूरी तरह मंद पड़ जाने से रोक ले. लेकिन गठबंधन के भीतर राजनीतिक उठा-पटक को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह अवसर भी हाथ से निकल जाएगा. आर्थिक संकट के लिए PMLN को सारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, जबकि उसके सहयोगी दल तुलनात्मक रूप से इस स्थिति से बच निकलने में कामयाब रहे हैं. अब PMLN के लिए अपनी खोई राजनीतिक ज़मीन को फिर से हासिल करना ज़रूरी हो गया है, भले ही इसके लिए उसे कुछ वित्तीय जोखिम उठाना पड़े. यह राजनीतिक तौर पर भी ज़रूरी है क्योंकि अगली सरकार बनाने में पाकिस्तानी सेना PMLN का कितना समर्थन करेगी, इस बात को लेकर पार्टी के भीतर सवाल खड़े हो रहे हैं. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और PTI से अलग हुए लोग भी सेना का समर्थन हासिल करने के लिए पूरा ज़ोर लगा रहे हैं ताकि वे अगली सरकार बना सकें.
कर्ज़ के जाल में
यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि जो भी अगली सरकार बनाएगा उसके सिर पर न सिर्फ़ कांटों का ताज होगा, बल्कि उसे गले में बमों का हार पहनकर बारूदी सुरंग से भी गुजरना होगा जो कभी भी फट सकता है. जैसा कि अनुमान है, अगर कार्यवाहक सरकार लंबे समय तक बनी भी रहती है, तब भी लोगों को होने वाली आर्थिक कठिनाइयों का ठीकरा सेना के माथे पर ही फोड़ा जाएगा. आसान शब्दों में कहें तो पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में सुधार लाना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है. देश दिवालिया हो चुका है, लेकिन उसने इसकी अभी तक घोषणा नहीं की है और ‘रिसीवरशिप‘ में चला गया है (रिसीवरशिप की स्थिति में देश की कमान ऐसे हाथों में चली जाएगी जो ऋणदाताओं के हित में देश की आर्थिक संपदाओं का संरक्षण एवं वितरण करेगा). देश ऋण के जाल में बुरी तरह फंस गया है, जिससे बाहर निकलने के लिए या तो बड़े पैमाने पर ऋण का पुनर्गठन करना होगा या फिर खुद को दिवालिया घोषित करना होगा, और दोनों सूरतों में इसके घातक परिणाम देखने को मिलेंगे. अगले वित्तीय वर्ष यानी 2024 के लिए उपलब्ध अनुमानों के मुताबिक संघीय सरकार का ऋण दायित्व उसके राजस्व की तुलना में लगभग 1 लाख करोड़ रुपए अधिक होगा. दूसरे शब्दों में, पाकिस्तान को न केवल रक्षा खर्च, विकास व्यय, सब्सिडी और नागरिक सरकार चलाने में लिए उधार लेना होगा, बल्कि ऋण चुकाने के लिए भी उसे नए सिरे से उधार लेना पड़ेगा.
चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर महज़ 0.29 प्रतिशत रही है. ऐसा माना जा रहा है कि यह संख्या डार के आंकड़ों में रचनात्मक हेर-फेर का नतीज़ा है क्योंकि स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी में लगभग 1-2 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि का आकलन पेश किया है. वित्तीय वर्ष 2024 के लिए, पाकिस्तान 3.5 प्रतिशत की विकास दर का लक्ष्य बना रहा है; इसका मतलब है कि वह अपने बजट का विस्तार करने वाला है. रिपोर्टों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2024 में बजट का आकार 14 लाख करोड़ रुपए होगा, जो कि 2023 के बजट से आश्चर्यजनक रूप से 50 प्रतिशत ज्यादा है. यह देखते हुए कि IMF ऋण कार्यक्रम जारी नहीं रहने वाला है, इसका मतलब यह है कि विदेशी सहायता काफ़ी कम हो जाएगी. ऐसे में इस बजट के लिए पैसा कहां से आएगा? कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि पाकिस्तान यूरो बांड के ज़रिए 2 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का इरादा रखता है. अगर किसी को लगता है कि ऐसा मुमकिन है तो वह ज़रूर किसी दूसरी दुनिया में रहता है क्योंकि पाकिस्तानी बॉन्ड यील्ड अभी डिफ़ॉल्ट दरों पर है. किसी भी हाल में, वित्तीय वर्ष 2024 में पाकिस्तान पर 25 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण दायित्व होगा और अगर वह यूरो बांड के ज़रिए 2 अरब अमेरिकी डॉलर की उगाही कर लेता है और मित्र देशों से मिली सहायता राशि के अलावा कुछ दूसरे वित्तीय स्रोतों से भी धन जुटाता है, तो भी यह पर्याप्त नहीं होगा.
पाकिस्तान को 3.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने के लिए आयात पर लगाई गई सीमा को ख़त्म करना होगा. इसका मतलब यह हुआ कि चालू खाता घाटा बहुत बढ़ जाएगा जिसके कारण अगले वित्तीय वर्ष में विदेशी मुद्रा की आवश्यकता बढ़ जाएगी. यानी पाकिस्तान को अपने ऋण दायित्वों को पूरा करने के लिए न सिर्फ़ 25 अरब अमेरिकी डॉलर की ज़रूरत होगी बल्कि चालू खाता घाटे को पूरा करने के लिए अतिरिक्त 6-7 अरब अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी. वित्तीय वर्ष 2023 में, आयात प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप औद्योगिक उत्पादन में भारी गिरावट आई. सीमा शुल्क कम होने से राजस्व संग्रह पर भी असर पड़ा. पाकिस्तानी रुपया खुले बाजार में 300 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर के स्तर को पहले ही पार कर चुका है, अभी ये और कमजोर होगा. कोई नहीं जानता कि ये कब स्थिर होगा. लेकिन यह देखते हुए कि प्रति डॉलर 290 रुपये के विनिमय दर के आधार पर वित्तीय वर्ष 2024 के लिए बजट का निर्धारण किया गया है, इसलिए यह स्पष्ट है कि इस काल्पनिक दर पर आधारित सभी गणनाएं गलत होंगी. रुपया कितना कमज़ोर होता जायेगा, महंगाई उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी. वित्त वर्ष 2023 में, महंगाई स्तर 40 प्रतिशत के आंकड़े को पार गया जहां ज़रूरी उपभोक्ता उत्पादों की क़ीमत लगभग 50 प्रतिशत के दर को छू रही थी. वित्त वर्ष 2024 में सरकार को उम्मीद है कि औसत महंगाई दर 20 प्रतिशत के आसपास रहेगी. लेकिन रुपए के कमज़ोर होने और ईंधनों के दाम बढ़ने पर इन दरों में बढ़ोतरी हो सकती है.
अगर सेना वित्त वर्ष 2023 के रक्षा बजट के स्तर पर रहने पर सहमत हो जाती है तो भी यह पाकिस्तान के लिए बड़ी बात होगी. लेकिन बढ़ते सुरक्षा ख़तरों के मद्देनजर, जहां तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान एक बार से सिर उठा रहा है और भारत के साथ संबंध अभी भी तल्ख़ हैं, रक्षा व्यय में कटौती करना मुश्किल होगा.
ऊर्जा अर्थव्यवस्था की पहले ही कमर टूट चुकी है. बिजली क्षेत्र में सर्कुलर ऋण 2.5 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर चुका है. यहां तक कि तेल क्षेत्र में सर्कुलर ऋण 5 खरब रुपये से ज्यादा हो गया है. पाकिस्तान सॉवरेन बांड के चलते स्वतंत्र बिजली उत्पादकों के अनुबंधों को बदलने के लिए मजबूर है. इसके अलावा, भुगतान दायित्वों को पूरा न कर पाने की स्थिति (इसमें चीनी बिजली कंपनियां भी शामिल हैं, जिन पर लगभग 1 अरब अमेरिकी डॉलर का बकाया है) के कारण निवेश का माहौल ख़राब हो गया है. कोई भी विदेशी निवेशक पाकिस्तान आने को तैयार नहीं है, यहां तक कि चीनी भी पाकिस्तान में निवेश के प्रति अनिच्छुक हैं. इससे भी बुरी बात यह है कि घरेलू निवेश भी गिरकर लगभग 13.5 प्रतिशत रह गया है. इस बीच, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लेकिन इससे छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं है क्योंकि एक तो इसके लिए राजनीतिक विचारधारा ज़िम्मेदार है, वहीं दूसरी ओर निजीकरण की प्रक्रिया काफ़ी जटिल है, जिसे कई बाधाओं (न्यायपालिका सहित) से गुजरना पड़ता है, इसके अलावा एक और कारण यह भी है कि इन उद्यमों का कोई खरीदार नहीं है. रक्षा व्यय में कटौती की संभावना लगभग शून्य है. अगर सेना वित्त वर्ष 2023 के रक्षा बजट के स्तर पर रहने पर सहमत हो जाती है तो भी यह पाकिस्तान के लिए बड़ी बात होगी. लेकिन बढ़ते सुरक्षा ख़तरों के मद्देनजर, जहां तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान एक बार से सिर उठा रहा है और भारत के साथ संबंध अभी भी तल्ख़ हैं, रक्षा व्यय में कटौती करना मुश्किल होगा. और इसका एक कारण यह भी है कि सरकार अपने अस्तित्व के लिए सेना पर निर्भर है.
समस्याओं के स्तर और पाकिस्तान की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की जटिलता को देखते हुए, पेश किए गए बजट का कोई ख़ास मतलब नहीं है. संभावना है कि डार हर किसी को अपने झांसे में लेने की कोशिश करेंगे लेकिन कोई भी, न तो IMF, न ही पाकिस्तानी जनता उनकी किसी चाल से प्रभावित होगी. लेकिन इस प्रक्रिया में, वह अर्थव्यवस्था के लिए ऐसी मुश्किलें खड़ी कर देंगे, जिससे पार पाना अगले सरकार के लिए लगभग असंभव होगा.
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