Author : Nandan Dawda

Published on Feb 29, 2024 Updated 1 Hours ago

शहरी विकास के बीच शहरों को सबसे बेहतरीन, लागत के मामले में कुशल और प्रभावी मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम से सज्जित करना अनिवार्य है.

भारतीय शहरों में व्यापक मोबिलिटी प्लान की खामियों से निपटना

2021 में भारत में शहरीकरण की दर 1.34 प्रतिशत रिकॉर्ड की गई जो साल-दर-साल 1.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दिखाता है. भारत में शहरों की आबादी मौजूदा समय में 45.5 करोड़ होने का अनुमान है. 2050 तक इसमें 41.6 करोड़ और लोगों के जुड़ने की उम्मीद है. 1 लाख से ज़्यादा आबादी वाले भारत के 475 शहर देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 63 प्रतिशत योगदान करते हैं और 2030 तक ये आंकड़ा बढ़कर 75 प्रतिशत होने का अनुमान है

शहरों का अनुमानित विकास जनसंख्या में होने वाली बढ़ोतरी को समायोजित करना, औद्योगिक एवं वाणिज्यिक विकास का प्रबंधन करना और अपने आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सेवा के केंद्र के तौर पर शहरों की बदलती भूमिका को मान्यता देना आवश्यक बनाता है. 

इस तरह भारत के निरंतर आर्थिक विकास के लिए इन शहरी क्षेत्रों का ठीक ढंग से काम करना बहुत ज़रूरी है. शहरों का अनुमानित विकास जनसंख्या में होने वाली बढ़ोतरी को समायोजित करना, औद्योगिक एवं वाणिज्यिक विकास का प्रबंधन करना और अपने आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सेवा के केंद्र के तौर पर शहरों की बदलती भूमिका को मान्यता देना आवश्यक बनाता है. शहरों को सबसे बेहतरीन, लागत के मामले में कुशल और प्रभावी मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (MRTS) मुहैया कराना ज़रूरी है

शहर और सार्वजनिक परिवहन

जीवन स्तर में बेहतरी और अलग-अलग आमदनी वाले वर्गों के बीच परिवहन के व्यक्तिगत साधनों को ख़रीदने की क्षमता में बढ़ोतरी ने निजी गाड़ियों की संख्या में बढ़ोतरी में योगदान दिया है. निजी गाड़ियों में बढ़ोतरी के नतीजतन परिवहन से जुड़ी कई चुनौतियां पैदा हुई हैं- ट्रैफिक जाम, सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी, पीक आवर्स (व्यस्त समय) के दौरान यात्रा का अच्छा अनुभव नहीं होना और पर्यावरण पर ख़राब असर उनमें से कुछ हैं

ऐतिहासिक रूप से भारत में सतत परिवहन पर ज़ोर में साफ तौर पर कमी देखी गई है, वहीं सक्षम जन परिवहन (मास ट्रांसपोर्टेशन) की कीमत पर निजी वाहनों की आवाजाही को प्राथमिकता देने वाली रणनीतियां अक्सर बनाई गई. इस मौजूदा मानक की वजह से निजी गाड़ियों के इस्तेमाल को अनावश्यक बढ़ावा मिला है. इस तरह परिवहन से जुड़ी परेशानियों को कम करने में सक्षम एक सफल विकल्प के रूप में एक मज़बूत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की संभावित क्षमता से ध्यान हट गया

हालांकि निर्णायक टर्निंग प्वाइंट 2006 में राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति (NUTP) की शुरुआत के साथ आया. इसमें पहली बार शहरी परिवहन से जुड़े मुद्दों के समाधान की कोशिश की गई. इसका मक़सद रोज़गार, शिक्षा, मनोरंजन और दूसरी आवश्यक सेवाओं के लिए शहर जाने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के लिए सुरक्षित, किफायती, तेज़, आरामदायक, भरोसेमंद और सतत परिवहन सुनिश्चित करना था. NUTP ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (JNNURM), जिसकी शुरुआत एक साल पहले की गई थी और जिसका प्राथमिक उद्देश्य शासन व्यवस्था से जुड़े सुधारों को बढ़ावा देना और योजनाबद्ध शहरी विकास को तेज़ करना था, पर ध्यान देकर इसके कार्यान्वयन को तेज़ किया. मिशन ने शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी क्षमता को बढ़ाने, सेवाओं को पहुंचाने के तौर-तरीकों में सुधार लाने, लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देने और नागरिकों के प्रति शहरी स्थानीय निकायों (ULB) एवं सार्वजनिक उद्यमों की जवाबदेही को बढ़ाने पर रणनीतिक रूप से ध्यान दिया.

शहरों की CMP को संस्थागत रूप देना

JNNURM की रूपरेखा में मिशन में शामिल सभी शहरों के द्वारा व्यापक गतिशीलता योजना (कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान या CMP) तैयार करना शामिल था. CMP की परिकल्पना एक रणनीतिक परिवहन ब्लूप्रिंट के रूप में की गई थी जो शहर की भौगोलिक विकास योजना (DP) या मास्टर प्लान (MP) के साथ जुड़ी हो ताकि शहरी क्षेत्र के भीतर लोगों और सामानों के लिए दीर्घकालीन पहुंच और मोबिलिटी पैटर्न को परिभाषित किया जा सके. इसने लोगों की कुशल गतिशीलता को प्राथमिकता दी और सार्वजनिक परिवहन, पैदल चलने वालों और नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट (NMT) की सुविधाओं समेत मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के उचित इस्तेमाल की सुविधा दी. 500 शहरों के द्वारा विकसित की जाने वाली CMP में पैरा-ट्रांज़िट (बिना तय समय और रूट के व्यक्तिगत सवारी प्रदान करने वाला ट्रांसपोर्ट) एवं सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की परिचालन क्षमता, नेटवर्क पूर्णता हासिल करना, शहर की पैदल सवारी केंद्रित विशेषता का संरक्षण, शहर के फैलाव पर अंकुश लगाना और पर्यावरण से जुड़े नुकसान को कम करना शामिल है. इस तरह के दृष्टिकोण ने ज़मीन के उपयोग और परिवहन विकास के एकीकरण को आवश्यक बनाया. CMP तैयार करने में ULB की मदद के लिए आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने 2008 में एक टूलकिट तैयार की जिसे 2014 में संशोधित किया गया. 2016 में भारत की जलवायु प्रतिबद्धता के अनुरूप इसने कम कार्बन वाली गतिशीलता योजना की तैयारी के लिए टूलकिट जारी किया

भारतीय CMP के परिदृश्य को आगे बढ़ाना 

ज़्यादातर शहरों ने जहां MoHUA की गाइडलाइन का पालन किया वहीं योजना बनाने की प्रक्रिया और इन योजनाओं की मूल सामग्री के बीच काफी अधिक अंतर है. योजना बनाने की प्रक्रिया के दौरान हितधारकों और लोगों के बीच सहयोग में कमी के अलावा योजना के दृष्टिकोण और उद्देश्य को परिभाषित करने में स्पष्टता की भी कमी थी. अधिकतर CMP में आकांक्षापूर्ण शर्तें जैसे किसमावेशी”, “सुरक्षित”, “भरोसेमंद”, “एकीकृत”, “सततऔरकार्य-कुशलशामिल की गई औरसार्वजनिक ट्रांज़िट को प्राथमिकता”, “कम कार्बन गतिशीलता”, “यात्रा से जुड़ी मांग की कमी”, “नॉन-मोटराइज़्ड ट्रांसपोर्ट (NMT) इंफ्रास्ट्रक्चर की मज़बूतीऔरभरोसेमंद मल्टी मॉडल परिवहन प्रणाली की स्थापनापर ध्यान दिया गया. हालांकि इन स्पष्ट लक्ष्यों के बावजूद योजना ख़ुद को पूरा करने के लिए व्यावहारिक रूप से अमल में लाई जाने वाली रणनीतियां मुहैया कराने में नाकाम है

सूरत विकास प्राधिकरण के द्वारा तैयार डेवलपमेंट प्लान 2035 और CEPT यूनिवर्सिटी के द्वारा शहर के लिए तैयार कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान 2046 को अलग-अलग दस्तावेज़ों के तौर पर पेश किया जाता है.

इसके अलावा शहर अन्य नियोजन दस्तावेज़ों जैसे कि 20 साल के मास्टर प्लान और डेवलपमेंट प्लान के साथ CMP का संपर्क, रणनीतिक गठबंधन और एकीकरण स्थापित करने में नाकाम रहे. उदाहरण के लिए, सूरत विकास प्राधिकरण के द्वारा तैयार डेवलपमेंट प्लान 2035 और CEPT यूनिवर्सिटी के द्वारा शहर के लिए तैयार कंप्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान 2046 को अलग-अलग दस्तावेज़ों के तौर पर पेश किया जाता है. इसका नतीजा उनके प्रस्तावों में विसंगति के रूप में निकलता है. तालमेल में ये कमी व्यापक शहरी विकास की पहल के साथ परिवहन की रणनीतियों के निर्बाध (सीमलेस) एकीकरण के संबंध में चिंता पैदा करती है

CMP की ये क्षेत्रवार पड़ताल बताती है कि कैसे सभी शहर NMT के लिए ज़रूरी संस्थागत व्यवस्था और बुनियादी ढांचे के प्रावधान की सिफारिश करने में नाकाम रहे हैं. वो हॉकर को भी नज़रअंदाज़ करती है जो कि सड़क किनारे के बुनियादी ढांचे का एक अभिन्न अंग हैं

CMP महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे कि उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा, हर किसी तक उपलब्धता, मौजूदा पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की क्वालिटी में सुधार, पब्लिक और पारा-ट्रांज़िट सिस्टम का एकीकरण, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की उपलब्धता में बेहतरी, मोबिलिटी सॉल्यूशंस में इंफॉर्मेशन और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (ICT) को बढ़ावा, पार्किंग मैनेजमेंट और ईंधन के सतत स्रोतों की तरफ बदलाव का या तो पूरी तरह से समाधान नहीं करती है या पूरी तरह से इन्हें छोड़ देती है

आगे का रास्ता 

CMP किसी शहर के भीतर परिवहन के लिए एक दूरदर्शी रूप-रेखा के तौर पर काम करती है. शहरी परिवहन के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए वो संभावित रणनीतियों और परियोजनाओं की रूप-रेखा प्रस्तुत करती है. हालांकि शहरी परिवहन प्रणाली के सभी क्षेत्रों तक इसकी पहुंच की व्यापकता निर्णायक है. ये व्यक्तिगत उप-व्यवस्थात्मक योजनाओं (इंडिविजुअल सब-सिस्टेमिक प्लान) जैसे कि NMT, पार्किंग मैनेजमेंट, परिवहन के इर्द-गिर्द केंद्रित विकास (ट्रांज़िट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट), शहरों में माल ढुलाई की गतिशीलता (अर्बन फ्रेट मोबिलिटी), इत्यादि के अनुरूप विशिष्ट योजनाओं का विकास अनिवार्य बनाता है. ये सब-सिस्टेमिक प्लान प्रस्तावित रणनीतियों को प्रभावी ढंग से शुरू करने के लिए आवश्यक विशिष्ट हस्तक्षेपों के बारे में बारीक समझ के लिए ज़रूरी हैं

इसके अलावा इन योजनाओं के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के उद्देश्य से मौजूदा चुनौतियों को समझने और प्रस्तावित रणनीतियों को शहरी परियोजनाओं में बदलने के लिए ULB की विशेषज्ञता की ज़रूरत होती है. इसलिए नगर निकाय के अधिकारियों के लिए क्षमता-निर्माण और प्रशिक्षण से जुड़ी पहल की एक गंभीर आवश्यकता पैदा होती है ताकि उन्हें वास्तविक शहरी संदर्भ में प्रस्तावित उपायों को लागू करने की पेचीदगियों से पार पाने के लिए ज़रूरी जानकारी और हुनर से लैस किया जा सके

 ULB को नियमित तौर पर आसानी से समझने योग्य दस्तावेज़ों और ब्रोशर में योजना से जुड़ी उचित जानकारी का प्रचार करना चाहिए ताकि अलग-अलग उपयोगकर्ता समूहों (यूज़र ग्रुप) की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की जा सके.

शहरी योजना की प्रक्रिया के असर को बढ़ाने के लिए शहरों को लोगों और विशेषज्ञों- दोनों के साथ अधिक व्यापक भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए. इस तरह के भागीदारी वाले दृष्टिकोण में योजना बनाने और उन पर अमल के अलग-अलग चरणों में ग्रुप डिस्कशन को ज़रूर शामिल करना चाहिए. इसके अलावा ULB को नियमित तौर पर आसानी से समझने योग्य दस्तावेज़ों और ब्रोशर में योजना से जुड़ी उचित जानकारी का प्रचार करना चाहिए ताकि अलग-अलग उपयोगकर्ता समूहों (यूज़र ग्रुप) की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. इस तरह शहर की परिवहन योजना को लेकर एक अधिक समावेशी और समझदार बातचीत को बढ़ावा मिल सकेगा

CMP दूसरी सभी उचित योजनाओं, नीतियों और रणनीतियों के साथ पेचीदा तौर पर जुड़ी होनी चाहिए ताकि अलग-अलग काम से परहेज किया जा सके और शहर के लिए व्यापक विज़न में अच्छी तरह से योगदान किया जा सके. इसके अलावा नियमित और एक समान अंतराल पर सतत परिवहन के अंतिम उद्देश्य की तरफ शहर की प्रगति का व्यवस्थित रूप से पता लगाने के लिए CMP की समीक्षा ज़रूरी है. अंत में, CMP की प्रक्रियात्मक रूप-रेखा को विधायी और कानूनी समर्थन होना चाहिए ताकि उसका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके और शहरी गतिशीलता के लिए एक सतत राह को बढ़ावा दिया जा सके


नंदन दावड़ा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अर्बन स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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