आम तौर पर प्रशांत द्वीपीय समूह के देश मुख्यधारा की दुनिया से अलग-थलग और ख़बरों की सुर्खियों से बाहर रहते हैं, लेकिन भारत, दक्षिण कोरिया, और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ शिखर सम्मेलनों के कारण ये देश चर्चा के केंद्र में हैं. राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने हाल ही में (24-29 जुलाई) प्रशांत द्वीपीय समूह के स्वतंत्र देशों जैसे पापुआ न्यू गिनी और वानुअतु और फ्रांसीसी क्षेत्रों का दौरा किया, जो किसी भी फ्रांसीसी राष्ट्रपति की क्षेत्र में फ्रांस के अधिकार में आने वाले राज्यों से इतर दूसरे देशों की यात्रा करने का यह पहला मौका था. राष्ट्रपति मैक्रॉन की इस यात्रा का उद्देश्य क्षेत्र में फ़्रांस को एक वैकल्पिक साझेदार के रूप में पेश करना था. महान शक्तियां अक्सर अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने का प्रयास करती हैं. लोग नए सिरे से इस क्षेत्र में दिलचस्पी ले रहे हैं, जिसकी तुलना अमेरिकी जनरल डगलस मैकआर्थर ने एंग्लो–सैक्सन लेक से की थी. आखिरी बार ऐसा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान देखने को मिला था, जब सक्रिय नौसैनिक युद्ध के कारण इस क्षेत्र को रणनीतिक और सैन्य महत्व दिया गया था. बाद में परमाणु हथियारों की होड़ ने अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK) और फ्रांस के लिए इन द्वीपों के महत्व को और बढ़ा दिया, जहां इस क्षेत्र को परमाणु परीक्षण स्थल के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा.
इस लेख में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की बढ़ती भूमिका और इससे होने वाले संभावित रणनीतिक लाभों पर विचार किया गया है.
फ्रांस यूरोपीय संघ (EU) का एकमात्र ऐसा देश है, जो इस क्षेत्र में क्षेत्रीय पहुंच रखता है. राष्ट्रपति मैक्रॉन ने 2018 में फ्रांस को ‘हिंद–प्रशांत क्षेत्र की एक बड़ी शक्ति’ कहा था, और इसके बाद पेरिस ने इस क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को बढ़ाते हुए एक हिंद-प्रशांत नीति को जारी किया. इस लेख में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की बढ़ती भूमिका और इससे होने वाले संभावित रणनीतिक लाभों पर विचार किया गया है.
प्रशांत द्वीपीय समूह में फ्रांस की मज़बूत स्थिति
फ्रांस के अधिकार क्षेत्र में न्यू कैलेडोनिया, फ्रेंच पोलिनेशिया, वालिस और फ़्यूचूना और क्लिपर्टन द्वीप हैं, इसके कारण प्रशांत क्षेत्र में इसकी भौगोलिक उपस्थिति पहले से ही मज़बूत है. फ्रांस के अधिकार क्षेत्र में कुल 10,911,921 वर्ग किमी समुद्री भूमि विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के अंतर्गत आती है, जिनमें से 6,932,775 वर्ग किमी समुद्री भूमि प्रशांत क्षेत्र में स्थित है, यानी कि यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र है. अकेले फ्रेंच पॉलिनेशिया क्षेत्र फ्रांस के कुल EEZ का 44 प्रतिशत है. न्यू कैलेडोनिया और फ्रेंच पोलिनेशिया में 2900 सैन्य कर्मी तैनात किए गए हैं, और इस तरह से फ्रांस दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थाई सैन्य मौजूदगी को बनाए रखता है. पेरिस इस क्षेत्र में अपनी राजनयिक उपस्थिति को भी मज़बूत बनाए हुए है, जहां कैनबरा, वेलिंगटन, पोर्ट मोरेस्बी, सुवा और पोर्ट विला में फ्रांसीसी दूतावास स्थित हैं (यूरोपीय संघ के अन्य देश की तुलना में इस क्षेत्र में सबसे अधिक फ्रांस के दूतावास हैं).
फ्रांस से इस क्षेत्र को मिलने वाला लाभ
फ्रांस की हिंद-प्रशांत नीति दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की मौजूदगी की रूपरेखा तैयार करती है. इसी क्रम में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी इस रणनीति के महत्त्वपूर्ण अंग हैं, जो फ्रांस को एक सॉफ्ट पॉवर देश के रूप में स्थापित करते हैं. प्रशांत क्षेत्र में अनुसंधान संस्थानों और विकास एजेंसियों की मौजूदगी से पूरे क्षेत्र को लाभ होता है. इनसे जैव विविधता संरक्षण, समुद्री संसाधन, स्वास्थ्य देखभाल और कृषि के मुद्दों पर सहयोग को बढ़ावा मिलता है. फ्रांस न्यू कैलेडोनिया के नौमिया में स्थित पैसेफिक कम्युनिटी का संस्थापक देश है, जो क्षेत्र का सबसे बड़ा वैज्ञानिक और तकनीकी संगठन है और क्षेत्र के विकास की दिशा में काम करता है.
टेबल 1: प्रशांत क्षेत्र में फ्रांसीसी वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान
Research Institute |
Location |
Area of Research/Work |
Louis Malarde Institute |
Papeete |
Biomedical, marine biotoxins, medical entomology, infectious disease |
New Caledonian Agricultural Institute |
Nouméa |
Sustainable agriculture, agroecology, biodiversity, climate change and adaptation |
Centre for Island Research and Environmental Observatory |
Moorea |
Coral reefs |
Pasteur Institute |
Nouméa |
Medical entomology, arboviruses, leptospirosis, epidemiology |
Research Institute for Development |
Nouméa |
Achieving Sustainable Development Goals |
French Research Institute for Exploitation of the Sea |
Tahiti |
Marine and digital infrastructure, biological and physical resources oceanography and deep-sea ecosystems |
स्रोत: लेखक द्वारा संकलित आंकड़े
फ्रांसीसी विकास एजेंसी या एजेंस फ़्रैन्काइज़ डी डेवलपमेंट (AFD) विकास उद्देश्यों के लिए वित्त सहयोग प्रदान करने में सबसे आगे है. 2018 में, एजेंसी ने जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के अनुकूलन के लिए प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय परियोजनाओं से जुड़े अपने नियमों में विस्तार किया, जिसमें 2021 में संशोधन किया गया ताकि एजेंसी द्विपक्षीय परियोजनों में भी हिस्सा ले सके. फ्रेंच मिनिस्ट्री ऑफ यूरोप एंड फॉरेन अफेयर्स का लक्ष्य विशेष रूप से क्षेत्र के लिए AFD परियोजना अनुदान प्राधिकरण का न्यूनतम 1 प्रतिशत यानी सालाना 5 से 10 मिलियन यूरो की राशि आवंटित करना है.
जलवायु संकट के कारण द्वीपीय देशों के अस्तित्व पर मंडरा रहे ख़तरे को देखते हुए फ्रांस ने किवा पहल की शुरुआत की है. यह एक बहु-दाता कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति प्रशांत द्वीपीय समूह के राज्यों की क्षमता का विकास करना है, जिसका प्रबंधन और कार्यान्वयन AFD द्वारा किया जाता है. इस पहल में फ्रांस का योगदान सबसे ज्यादा है, जिसने इस पहल में 1.8 करोड़ यूरो का अतिरिक्त निवेश किया है, जिससे कुल निवेश बढ़कर 7.5 करोड़ यूरो हो गया है.
इन वैज्ञानिक और आर्थिक पहलों के अलावा, फ्रांस क्षेत्रीय सुरक्षा फोरम साउथ पैसिफिक डिफेंस मिनिस्टर्स मीटिंग का एक सदस्य है. 2017 में इस फोरम में दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के सुरक्षा प्रभाव पर एक समन्वित अध्ययन का प्रस्ताव रखा गया था. फ्रांस बहुराष्ट्रीय अभ्यास ‘Croix du Sud‘ का नेतृत्व भी करता है, जो मानवीय सहायता एवं आपदा राहत से जुड़ा एक प्रमुख क्षेत्रीय अभ्यास है.
विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के व्यापक विस्तार और उचित निगरानी के अभाव में इन द्वीपीय राज्यों में अवैध और अनियमित ढंग से मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों की संभावनाएं काफ़ी बढ़ जाती हैं, जो न केवल उनके समुद्री संसाधनों का दोहन करता है बल्कि उनकी संप्रभुता का भी उल्लंघन करता है. फ्रांस ने ऐसी अवैध गतिविधियों को रोकने की बार-बार कोशिश की है. 2016 में फ्रांसीसी सेना ने वियतनामी मछुआरों के खिलाफ़ कार्रवाई की क्योंकि वे “समुद्री खीरे” के लिए न केवल कैलेडोनिया बल्कि सोलोमन द्वीप के EEZ क्षेत्र में घुस आए थे.
फ्रांस का कार्रवाई आधारित सहयोग
फ्रांसीसी विदेश नीति के विशेषज्ञ एंटोनी बोंडाज़ हिंद-प्रशांत में फ्रांस की भागीदारी को ‘puissance d’initiatives‘ यानी पहल की शक्ति कहा है. वास्तव में, फ्रांसीसी कार्यक्रमों ने द्वीपीय देशों को विकल्प प्रदान किया है, जिससे उनकी पारंपरिक भागीदारों पर निर्भरता कम हुई है. यह अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा के कारण पैदा हुए तनावों को कम करने में भी योगदान देता है.
इस तरह की घटनाओं ने फ्रांस की भूमिका और उसकी पहुंच को प्रशांत द्वीपीय समूह तक सीमित कर दिया है. हालांकि, उम्मीद है कि पेरिस इस बात का पूरा लाभ उठाएगा कि क्षेत्र में स्थित देश क्षेत्र की स्थिरता को बनाए रखना चाहते हैं.
2018 में, राष्ट्रपति मैक्रोन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को केंद्र में रखते हुए पेरिस–दिल्ली–कैनबेरा संपर्क मार्ग का विचार दिया था ताकि आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके. जिसके परिणामस्वरूप 2020 में भारत–फ्रांस–ऑस्ट्रेलिया (IFA) के बीच त्रिपक्षीय वार्ता की शुरुआत हुई. हालांकि, इन प्रयासों में अस्थाई रुकावट आई क्योंकि 2021 में फ्रांसीसी नौसेना समूह और ऑस्ट्रेलिया के बीच पनडुब्बी सौदा रद्द हो जाने के कारण कैनबरा और पेरिस के बीच मतभेद की स्थिति पैदा हो गई थी. अब इस वार्ता को दुबारा शुरू कर दिया गया है और जून 2023 में इसके दूसरे चरण का आयोजन भी किया गया. ऑस्ट्रेलिया के साथ गठजोड़ से दक्षिण प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को 2018 के बो घोषणापत्र की शर्तों के अनुरूप और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.
फ्रांस ने 1992 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ हस्ताक्षरित FRANZ त्रिपक्षीय समझौते के माध्यम से क्षेत्रीय आपदा राहत प्रयासों में योगदान दिया है. जनवरी 2022 में टोंगा में ज्वालामुखी विस्फोट के बाद FRANZ (जिसकी अध्यक्षता तब फ्रांस के पास थी) के तहत आपातकालीन प्रतिक्रियाओं का संचालन किया गया. इसके अलावा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और फ्रांस का चतुर्भुज रक्षा समन्वय समूह भी है, जो अवैध मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों को रोकने के लिए प्रशांत द्वीप देशों को समुद्री निगरानी में सहायता प्रदान करता है.
भारत–जापान–फ्रांस के बीच मज़बूत त्रिपक्षीय गठजोड़ और समुद्री सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने से क्षेत्र में फ्रांस को और मज़बूती मिली है. यह स्पष्ट है क्योंकि भारत एक रणनीतिक साझेदार है और इस क्षेत्र से जापान के रणनीतिक हित भी जुड़े हुए हैं. जापान का विदेशी सुरक्षा सहायता (OSA) कार्यक्रम इस त्रिपक्षीय भागीदारी को और मज़बूत करता है. संभावना है कि फिजी इस कार्यक्रम का पहला लाभार्थी होगा. इतना ही नहीं, 2017 में जब जापानी डिस्टेंट वाटर फ्लीट ने शीर्ष दस द्वीपीय देशों का दौरा किया था, उसमें प्रशांत द्वीपीय समूह के 6 देश शामिल थे.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि प्रशांत क्षेत्र में पेरिस के लिए सब कुछ अच्छा है. उदाहरण के लिए, इस क्षेत्र में फ्रांस की उपस्थिति उसके औपनिवेशिक अतीत के कलंक से जुड़ी हुई है. वास्तव में, कुछ लोग मैथ्यू और हंटर द्वीपों पर फ्रांस के कब्ज़े को फ्रांसीसी उपनिवेशवाद की निरंतरता के रूप में देखते हैं. फ्रांस के नियंत्रण के कारण वानुअतु के साथ क्षेत्रीय विवाद भी पैदा हो गया है. इसके अलावा, क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी के कारण फ्रांस पर दबाव भी बढ़ गया है. यह क्षेत्र स्वयं परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जैसा कि 2021 में पांच माइक्रोनीशियाई द्वीपीय राज्यों के पैसेफिक आइलैंड फोरम से बाहर आने पर पैदा हुए तनाव से स्पष्ट था. इस तरह की घटनाओं ने फ्रांस की भूमिका और उसकी पहुंच को प्रशांत द्वीपीय समूह तक सीमित कर दिया है. हालांकि, उम्मीद है कि पेरिस इस बात का पूरा लाभ उठाएगा कि क्षेत्र में स्थित देश क्षेत्र की स्थिरता को बनाए रखना चाहते हैं और वह आपसी सहयोग की संभावना वाले क्षेत्रों की तलाश करेगा और उसके बाद उन्हें बड़े भूराजनीतिक संघर्षों में मोहरों की तरह इस्तेमाल करेगा.
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