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Published on Jan 06, 2025 Updated 0 Hours ago

हालांकि भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित ज़मीनी युद्ध इंजनों को बनाने में कुछ तरक्की की है लेकिन सरकार को अनुसंधान और विकास (R&D) और इंजन उत्पादन में निवेश बढ़ाना चाहिए.

भारत की स्वदेशी टैंक परियोजनाओं में प्रगति; इंजनों में सुधार बना कारण

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भारत को स्वदेशी हवाई वाहन, टैंक और रॉकेट इंजन बनाने में हमेशा संकटों का सामना करना पड़ा है. फिर चाहे वो मानवयुक्त और मानवरहित हवाई वाहन हों या फिर टैंकों और स्पेस लॉन्च व्हीकल (एसएलवी) सीरीज़ के इंजन. इन्हें बनाने में भारतीय वैज्ञानिकों को काफ़ी चुनौतियों ने जूझना पड़ा था. क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन के मामले में तो भारत को पूरी तरह से महारत हासिल करने बहुत मुश्किल हुई. लेकिन अब जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल MK-III (LVM3) के विकास में कुछ सीमित सफलता मिली है. हालांकि इस आंशिक कामयाबी के बावजूद, हम सिर्फ 4 से 8 टन सैटेलाइट पेलोड को ही लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में रख सकते हैं. भारत में रिसर्च एंड डेवलपमेंट(R&D) पर अभी बहुत काम होना बाकी है. अलग-अलग प्लेटफार्मों पर इंजनों के उत्पादन से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

स्वदेशी टैंक इंजन की ज़रूरत क्यों?

भारत में इस वक्त कई तरह के इंजनों पर काम चल रहा है. हालांकि एसएलवी और एयरो-इंजन को रणनीतिक, रक्षा और वैज्ञानिक संस्थानों के भीतर ज़्यादा चर्चा और हिस्सेदारी मिलती है, लेकिन हाल के दिनों में कुछ विश्लेषण हुए हैं, जो ये बताते हैं कि भारत ने जमीनी लड़ाकू वाहनों, विशेष रूप से टैंकों के लिए इंजन के विकास काफ़ी कामयाबी पाई है. इनके विकास के रास्ते में आने वाले संघर्षों पर भारत कैसे काबू पा रहा है. ऐसा नहीं है कि इंजन पूरी तरह विकसित हो गए हैं लेकिन कुछ प्रगति ज़रूर दिखाई दे रही है.

इंडियन एयरफोर्स के हल्के लड़ाकू विमान तेजस Mk-1A को बिजली देने के लिए अमेरिकी एफ-404 इंजन की खरीद में बाधा आ रही थी. इंजन की डिलीवरी सप्लाई चेन में रुकावट की एक वजह तो ये थे कि जर्मन एरो इंजन कंपनी एमटीयू अपना संचालन बंद कर रही थी. 

सबसे पहले अर्जुन मार्क-1 (एमके-1) की बात कर लेते हैं. इस मुख्य युद्धक टैंक में हाल तक जर्मनी में बना 1,400 हॉर्स पावर (एचपी) का MTU MB 838 Ka-V10 डीजल इंजन लगा था. चूंकि अर्जुन टैंकों के लिए भारत इसी इंजन पर निर्भर था, इसलिए जर्जर दशा और अनुपयोगी होने के बावजूद इसी इंजन को टैंक में लगाया जा रहा था. ये बहुत ज़ोखिम वाला काम था. इंडियन एयरफोर्स के हल्के लड़ाकू विमान तेजस Mk-1A को बिजली देने के लिए अमेरिकी एफ-404 इंजन की खरीद में बाधा आ रही थी. इंजन की डिलीवरी सप्लाई चेन में रुकावट की एक वजह तो ये थे कि जर्मन एरो इंजन कंपनी एमटीयू अपना संचालन बंद कर रही थी. अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक की F-404 इंजनों की डिलीवरी पर भी संशय है. इसमें पहले ही डेडलाइन से 2 साल की देरी हो चुकी है. Mk-1A के लिए जो स्वदेशी एयरोइंजन विकसित किया जा रहा था, उसमें भी खास प्रगति नहीं दिख रही है. यही वजह है कि टैंकों के लिए जो स्वदेशी इंजन विकसित किए जा रहे हैं, उसके लिए फिलहाल बहुत ज़्यादा आशावादी होना ठीक नहीं होगा.  

दो देशी इंजनों के प्रोटोटाइप के विकास पर पहले से ही काम चल रहा है. अगर डैट्रान 1500 एचपी इंजन पर चल रहा काम सफल हो जाता है तो ये इंजन भारत के दो मुख्य युद्धक टैंक - अर्जुन एमबीटी के दो संस्करण - को शक्ति प्रदान करेगा. अर्जुन के ये दो एडिशन हैं एमके-1 और एमके-2, और फ्यूचर रेडी कॉम्बैट व्हीकल (एफआरसीवी). अगर ऐसा होता है तो रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) तारीफ़ के हक़दार होंगे क्योंकि यही दोनों संस्थान इस इंजन को विकसित कर रहे हैं. 20 डैट्रान 1500 एचपी इंजन विकसित करने के लिए बीईएमएल को अनुबंधित किया गया है. अगर ये इंजन विकसित हो भी जाते हैं तब भी अर्जुन एमबीटी पर इनका परीक्षण जारी रहेगा. अभी भारतीय सेना के पास भविष्य के लिए तैयार युद्धक वाहनों के तहत टी-72 और टी-90 टैंक हैं. अर्जुन टैंकों का वजन इनसे ज़्यादा है. विशेष रूप से एफआरसीवी की बात करें तो इसमें दो अलग-अलग प्रोटोटाइप शामिल होंगे. इनके लिए आगामी रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल (आरएफपी) में प्रतिक्रियाएं दिए जाने की उम्मीद है. इंजनों का मानकीकरण सुनिश्चित करने के लिए दोनों एफआरसीवी को एक जैसे समान डैट्रान 1500 एचपी इंजन के साथ एकीकृत किया जाएगा. इससे ये फायदा होगा कि भविष्य में लॉजिस्टिक हैंडलिंग में आसानी होगी. 

टैंक इंजन का निर्माण बड़ी चुनौती क्यों?

इंजनों के एकीकरण की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में इसका पहला परीक्षण 2023 में किया गया था. इस बात की पूरी संभावना है कि इसे अर्जुन टैंक में लगा दिया जाएगा लेकिन पहले इसे गतिशीलता परीक्षणों (मोबिलिटी टेस्ट्स)से गुज़रना होगा. मार्च 2024 में, बीईएमएल ने डैट्रान 1500 एचपी इंजन का एक और सफल परीक्षण पूरा किया. रक्षा सचिव गिरिधर अरामाने ने इस  "90 प्रतिशत भारतीय इंजन" घोषित किया था. अभी इसके और भी टेस्ट किए जाएंगे. कुल 20 इंजनों के परीक्षण की योजना है. हर चरण में सफल और कठोर परीक्षणों के एक सेट के बाद ही इस बात को माना जाएगा कि ये इंजन एफआरसीवी प्रोटोटाइप से लैस और उन्हें शक्ति प्रदान करने वाले हैं. हालांकि अर्जुन टैंक ही इन इंजनों को टेस्ट करने वाले प्रारंभिक प्रोटोटाइप माने जाएंगे. जब यहां परीक्षण सफल होंगे, उसके बाद ही इन्हें भारतीय सेना और एफआरसीवी द्वारा संचालित किसी भी एमबीटी में एकीकरण के लिए मंजूरी मिलेगी. इनका विकास ही स्वदेशी घरेलू इंजनों के निर्माण की दिशा में भारत की प्रगति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक होगा, खासकर बख्त़रबंद गाड़ियों के संदर्भ में. 

इन इंजनों को बनाना इसलिए भी चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि इन्हें ना सिर्फ सैन्य परिस्थितियों के हिसाब से विश्वसनीय होना होता है बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण पर भी खरा उतरना होता है.

इन इंजनों को बनाना इसलिए भी चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि इन्हें ना सिर्फ सैन्य परिस्थितियों के हिसाब से विश्वसनीय होना होता है बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण पर भी खरा उतरना होता है. डैट्रान 1500 एचपी इंजन पूरी तरह विकसित हो जाने के बाद एक उच्च शक्ति-से-भार अनुपात (हाई पावर टू वेट रेश्यो) उत्पन्न करेगा. इसस ये इंजन एफआरसीवी और दूसरे टैंकों को ज़्यादा एक्सीलिरेशन, गतिशीलता और सहनशक्ति प्रदान करेगा. इतना ही नहीं इसमें कुछ और विशेषताएं भी होंगी. जैसे कि इसका फिल्टर अपनी सफाई खुद कर सकता है. इससे रख-रखाव में कम मेहनत लगेगी और टैंक की ऑपरेशनल रेडीनेस बढ़ेगी.


डैट्रान 1500 एचपी इंजन को कॉमन रेल डायरेक्शन इंजेक्शन (सीआरडीआई) सिस्टम के साथ भी एकीकृत किया जाएगा. इसमें इलेक्ट्रॉनिक रूप से निर्धारित ईंधन इंजेक्शन भी शामिल है. इससे ईंधन की खपत के मामले में इंजन को उच्चतम स्तर की शक्ति और कुशलता मिलती है. फिर ये इंजन -45 डिग्री सेल्सियस से लेकर +55 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर प्रभावी ढंग से काम कर सकता है. इतना ही नहीं तपते रेगिस्तान हों या 5,000 मीटर की ऊंचाई वाले बर्फीले पहाड़, हर तरह की बदलती परिस्थितियों में ये पूरी कुशलता से काम करेगा. हालांकि, इस इंजन के विकास में कुछ कामयाबी मिली है लेकिन यहां पर ये बात भी ध्यान रखने वाली है कि भारतीय सेना अपने युद्धक उपकरणों में जिस उच्च स्तर के मानकों और बेंचमार्क का ध्यान रखती है, उसे पूरा करने में अभी वक्त लगेगा. 

इंजन के कई स्तर के परीक्षण और पूरी तरह से विकसित होने से लेकर उत्पादन के चरण में प्रवेश करने तक कई बाधाओं को दूर करना होता है. सबसे पहले अर्जुन टैंक के इंजन कंपार्टमेंट में बदलाव की ज़रूरत होगी. कंपार्टमेंट में बदलाव की ज़रूरी इसलिए होगा क्योंकि डैट्रान 1500 एचपी इंजन का आकार ज़्यादा कॉम्पैक्ट यू-शेप के जर्मन-डिज़ाइन से अलग है, जिसे एमटीयू ने बनाया है. इन बदलावों में कम से कम 2 साल का वक्त लगेगा. दूसरा, अर्जुन टैंक को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि इसमें जर्मन में बना MTU MB 838 Ka-501 V10 लिक्विड टर्बोचार्ज्ड इंजन फिट हो सके. एमटीयू ने इस इंजन की डिलीवरी में चार साल की देरी की. यही कारण है कि डीआरडीओ और उसके उद्योग भागीदारों ने इस इंजन के स्वदेशी संस्करण बढ़ाने की ज़रूरत महसूस की. उसके बाद ही डैट्रान 1500 एचपी इंजन का विकास और परीक्षण किया जा रहा है. अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो तब भी संशोधित अर्जुन में इंजनों के टेस्ट और ट्रायल में दो और साल लगेंगे. ये मामला इसलिए और भी ज़्यादा जटिल है क्योंकि इस इंजन का 2027-28 से भारतीय सेना के टी-90 टैंकों में भी परीक्षण किया जाएगा और उसके साथ एकीकरण करने के लिए भी इसमें कुछ बदलाव किए जाएंगे. 

अगर DRRO और मोदी सरकार इंजन विकास के लिए अलग-अलग मंचों और संस्थाओं के लिए एक ठोस योजना बनाएगी तो ये भविष्य के लिए काफ़ी मददगार साबित हो सकता है.

निष्कर्ष

हालांकि, इंजन के विकास की दिशा में सकारात्मक संकेत मिल रहा हैं, लेकिन अभी भी इस पूरी प्रक्रिया को सावधानी के साथ देखा जाना चाहिए. डीआरडीओ, बीईएमएल और उनके औद्योगिक भागीदार इंजन विकसित करने में सेना की मदद कर रहे हैं. इसके बावजूद ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि भारत के बख्तरबंद बलों को इनकी डिलीवरी करना एक बड़ी चुनौती है. सरकार को ये बात समझनी होगी कि इंजनों की समय पर और विश्वसनीय आपूर्ति के लिए इंजन टेक्नोलॉजी की दिशा में अनुसंधान और विकास में बड़े पैमाने पर निवेश की ज़रूरत है. इंजन तकनीकी बहुत जटिल होती है. वही लोग इस पर काम कर सकते हैं, जिनकी विज्ञान की पढ़ाई और  इंजीनियरिंग बैकग्राउंड ठोस हो, लेकिन भारत अभी इस क्षेत्र में उतना मज़बूत नहीं है. ऐसे में अगर DRRO और मोदी सरकार इंजन विकास के लिए अलग-अलग मंचों और संस्थाओं के लिए एक ठोस योजना बनाएगी तो ये भविष्य के लिए काफ़ी मददगार साबित हो सकता है. एक और ज़रूरी बात, ज़मीनी लड़ाकू वाहनों के लिए इंजनों के विकास पर भी उतना ही ध्यान देना होगा, जितना एसएलवी के लिए एयरो-इंजन का निर्माण पर दिया जाता है. अगर इन्हें भी प्राथमिकता दी जाए तो ग्राउंड वॉरफेयर व्हीकल के लिए इंजन विकसित करना आसान हो सकता है. सच तो ये है कि लड़ाकू विमान और भारी एसएलवी के लिए क्रायोजेनिक इंजन की तुलना में ज़मीनी युद्धक वाहनों के इंजन को विकसित करना आसान है.


कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.

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