Author : Sangeet Jain

Published on Jul 08, 2020 Updated 0 Hours ago

कोरोना वायरस महामारी कैसे दुनिया भर के देशों को अभूतपूर्व ढंग से काम-काज के तौर-तरीक़ों में बदलाव के लिए मजबूर कर रही है, उस पर पांच भागों की सीरीज़ की ये दूसरी समीक्षा है. ये सीरीज़ आगे दूसरी बातों के अलावा क्लासरूम के भविष्य, सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत और विशेष ढंग की पढ़ाई के विषय पर भी खोजबीन करेगी. यहां पहला हिस्सा पढ़िए

कोविड-19 के बाद कितना बदल जाएगा हमारे कामकाज का तरीका: भविष्य की परिकल्पना

काफ़ी कम लोगों के पास दफ़्तर के लिए कुछ अच्छा कहने को होता है. लेकिन आज जब दुनिया में ज़्यादातर लोगों को घर पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, ऐसे वक़्त में उन्हें दफ़्तर में काम-काज की याद आ रही है. अचानक दफ़्तर से दूर रहकर काम करने की वजह से लोग ये सोच रहे हैं कि आगे क्या होगा. क्या घर से काम करने की सहूलियत के कारण कंपनियां दफ़्तर को बीती हुई बात समझने लगेंगी, गैर-ज़रूरी ख़र्च मानने लगेंगी? या फिर दफ़्तर बने रहेंगे और शायद किसी अलग रूप में दिखेंगे? कोरोना वायरस की वजह से लगाए गए लॉकडाउन से दुनिया के उबरने के बाद हम जैसा दफ़्तर आज देखते हैं, वो बिल्कुल बदल सकता है.

जब महामारी ने हमला किया तो दुनिया भर में दफ़्तरों से लोगों का सामूहिक पलायन हुआ क्योंकि कंपनियों ने तेज़ी से अपने सभी कर्मचारियों को घर से काम करने को कह दिया. इनमें से ज़्यादातर उद्योगों के लिए दफ़्तरों के ख़त्म होने का दावा कोई नई बात नहीं थी

महामारी ने हमारे श्रम बाज़ार की बनावट में मौजूद असमानता को ज़ाहिर कर दिया है. इसका असर बेहद गहरा रहा है. ज़्यादातर काम-काज बंद हो गए हैं. जो क़िस्मत वाले काम कर रहे हैं, उनके लिए भी दफ़्तर से दूर होकर काम करने की संभावना मुश्किल हो गई है. दुनिया के ज़्यादातर लोगों को अभी भी दफ़्तर जाकर काम करना पड़ रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि, जैसा कि हाल के एक वेबिनार में MIT की एलिज़ाबेथ रेनॉल्ड्स ने संक्षेप में कहा: हम दफ़्तर जाने वाले लोगों के लिए दफ़्तर को कैसे सुरक्षित बना सकते हैं और जो लोग दफ़्तर नहीं जाते हैं उनके लिए बाहर से काम को कैसे असरदार बना सकते हैं.

जब महामारी ने हमला किया तो दुनिया भर में दफ़्तरों से लोगों का सामूहिक पलायन हुआ क्योंकि कंपनियों ने तेज़ी से अपने सभी कर्मचारियों को घर से काम करने को कह दिया. इनमें से ज़्यादातर उद्योगों के लिए दफ़्तरों के ख़त्म होने का दावा कोई नई बात नहीं थी. ये रुझान पिछले कुछ समय से दिख रहा था क्योंकि शहरों में दफ़्तरों का किराया आसमान पर होने और डिजिटल क्रांति की वजह से घर से काम करना एक संभावना बन गया था. महामारी ने इस रुझान की रफ़्तार बढ़ा दी और इस प्रक्रिया में कई के लिए दफ़्तर के ज़रूरी होने के मिथक को तोड़ दिया. इस सवाल का जवाब तय नहीं हो पाया है कि क्या दफ़्तर अभी भी रखना चाहिए. ये जवाब तय करेगा कि क्या इन कंपनियों को आगे बढ़ने के लिए तेज़ी से महंगे होते दफ़्तरों पर ख़र्च करना चाहिए या नहीं.

कोविड-19 की वजह से आई मंदी कंपनियों पर ख़र्च कम करने के लिए ज़बरदस्त दबाव डाल सकती है और इसका एक तरीक़ा महंगी संपत्तियों से छुटकारा पाना हो सकता है. फूड सेक्टर की बड़ी कंपनी मोंडेलेज़ और इन्वेस्टमेंट बैंक मॉर्गन स्टैनली ने पहले ही इस इरादे के संकेत दे दिए हैं कि वो दफ़्तरों में अपनी मौजूदगी कम करेंगे. सैविल्स के CEO मार्क रिडले के मुताबिक़ कुछ कंपनियों के अपनी संपत्ति को छोड़ने की वजह से सेकेंडरी रियल-एस्टेट बाज़ार में हम कुछ परेशानी देख सकते हैं लेकिन जितना डर दिखाया जा रहा है उतना है नहीं. वास्तव में इस हालात में भी उम्मीद की जा सकती है क्योंकि पहले के मुक़ाबले ज़्यादा जगह की ज़रूरत भी हो सकती है.

यहां तक कि सबसे पहले घर से काम करने की नीति बनाने वाली तकनीकी कंपनियां भी पूरी तरह से ऑफिस कैंपस से छुटकारा नहीं पाना चाहती हैं. इस मामले में काफ़ी सोच-समझकर फ़ैसला लेने की उम्मीद है क्योंकि कंपनियों के लिए अभी भी दफ़्तर का काफ़ी महत्व है क्योंकि यहां कर्मचारी जमा होते हैं और एक मक़सद के लिए साथ मिलकर काम करते हैं. महामारी ने ये भी साफ़ कर दिया है कि कई कर्मचारियों के लिए घर से काम करना एक तकलीफ़देह समझौता है. ख़ासतौर पर उन महिलाओं के लिए जिनके बच्चे छोटे हैं और जिन्हें बार-बार बच्चों की देखभाल करनी पड़ती है. इसी तरह उन लोगों के लिए भी जिनके घर में दफ़्तर की तरह जगह नहीं है. ट्विटर और स्लैक जैसी कंपनियों ने तो घर से काम करने वाले अपने कर्मचारियों को दफ़्तर ख़र्च देना भी शुरू कर दिया है.

कंपनियां अब काम-काज के हाइब्रिड मॉडल को अपना सकती हैं जिसमें दफ़्तर और दफ़्तर से बाहर काम करने वालों की अलग-अलग टीम को मिलाया जाएगा. हम बंटे हुए काम-काज की भी उम्मीद कर सकते हैं जिसमें कंपनियां अलग-अलग दफ़्तर से काम करेंगी ताकि किसी संकट की वजह से एक दफ़्तर के बंद होने पर दूसरे दफ़्तर से काम हो सके. कुछ कंपनियां पहले से को-वर्किंग स्पेस मुहैया कराने वालों को अलग-अलग शहरों में दफ़्तर दिलाने के लिए कह रही हैं. महामारी को-वर्किंग इंडस्ट्री के लिए भी उबड़-खाबड़ रास्ता है और फिलहाल ये साफ़ नहीं है कि इसका बिज़नेस मॉडल कैसे बदलेगा. को-वर्किंग को उन कंपनियों से बढ़ावा मिल सकता है जो कम ख़र्च पर अपने कर्मचारियों को दफ़्तर मुहैया कराना चाहते हैं. लेकिन ये इस बात पर निर्भर करता है कि को-वर्किंग ऑफिस स्पेस मुहैया कराने वाले ख़ुद को कैसे बदलते हैं. उनके लिए ये ज़रूरी होगा कि भीड़-भाड़ वाली जगह के बदले सैनिटाइज़्ड, खुली जगह मुहैया कराएं जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग को बरकरार रखा जा सके. इन शर्तों की वजह से छोटी कंपनियों के लिए ख़ुद को बचाना आर्थिक रूप से मुश्किल होगा. लेकिन जो कंपनियां इन शर्तों को पूरा करेंगी वो इस बाज़ार पर कब्ज़ा कर लेंगी.

कंपनियां अब काम-काज के हाइब्रिड मॉडल को अपना सकती हैं जिसमें दफ़्तर और दफ़्तर से बाहर काम करने वालों की अलग-अलग टीम को मिलाया जाएगा.

कोविड के बाद हम जिन दफ़्तरों में लौटेंगे वो पहले के दफ़्तरों से काफ़ी अलग दिखाई देंगे. सुरक्षा को सबसे ज़्यादा तवज्जो देने की वजह से दफ़्तरों के डिज़ाइन और लेआउट में काफ़ी बदलाव दिखेगा. दफ़्तर की इमारत में दाखिल होने पर कर्मचारियों की थर्मल स्क्रीनिंग हो सकती है और उन्हें अनिवार्य रूप से मास्क और प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट पहनना पड़ सकता है. इमारतों को समय-समय पर डिसइन्फैक्ट करना होगा और वो भी कर्मचारियों के सामने ताकि चिंतित कर्मचारी निश्चिंत हो सकें. तेज़ी से संक्रमण की आशंका के कारण ज़्यादातर कंपनियों को नियमित अंतराल पर बड़ी संख्या में कर्मचारियों का टेस्ट कराना पड़ेगा. कर्मचारियों को ज़्यादा हवादार दफ़्तर मिल सकता है. UV एयर फिल्ट्रेशन सिस्टम और हवा की नमी को कम करने वाले उपकरणों पर किया गया ख़र्च कर्मचारियों की सेहत और उनकी उत्पादकता के मामले में फ़ायदा दिलाएगा.

पिछले कुछ दशकों के दौरान शहरों में बनी ऊंची-ऊंची इमारतों के लिए महामारी जल्द घातक साबित हो सकती है क्योंकि इस तरह की इमारतें सोशल डिस्टेंसिंग की ज़रूरतों के लिए चुनौती खड़ा करती हैं. एलिवेटर रोगाणुओं के अड्डे हैं और ऐसे में ऊंची इमारतों में लोगों को काम पर बुलाना सुरक्षित नहीं है. इसकी वजह से दफ़्तरों के आर्किटेक्चर में समझौता करना पड़ सकता है. इससे भी बड़ा बदलाव ये होगा कि खुली जगह में दफ़्तर का आइडिया ख़त्म हो जाएगा. महामारी की वजह से कंपनियां अचानक कर्मचारियों के बीच में दीवार खड़ी करने के लिए उत्सुक हैं. ऐसे में कर्मचारियों के डेस्क के बीच कांच की दीवार या छींक से बचाने वाले पार्टिशन की मांग बढ़ गई है. तरह-तरह के आविष्कारी उपाय पहले से दिखने लगे हैं. कुशमैन एंड वेकफील्ड अलग-अलग ज़ोन की हदबंदी के लिए रंगीन कार्पेट टाइल्स का इस्तेमाल कर रही है. कई कंपनियां कर्मचारियों को एक-दूसरे से मिलने-जुलने से रोकने के लिए दफ़्तर के भीतर वन-वे लेन का इस्तेमाल कर रही हैं. बिना किसी कॉन्टैक्ट के एंट्री, कम जगह लेने वाले फर्नीचर और बड़ी मीटिंग के बदले दफ़्तर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए मुलाक़ात अब सामान्य बातें हो सकती हैं. दफ़्तर में कैफेटेरिया भी जल्द अलग अंदाज़ में दिख सकते हैं. दफ़्तरों में कॉफी मशीन, फूड कोर्ट और माइक्रोवेव बीते दिनों की बात हो सकती है.

एलिवेटर रोगाणुओं के अड्डे हैं और ऐसे में ऊंची इमारतों में लोगों को काम पर बुलाना सुरक्षित नहीं है. इसकी वजह से दफ़्तरों के आर्किटेक्चर में समझौता करना पड़ सकता है. इससे भी बड़ा बदलाव ये होगा कि खुली जगह में दफ़्तर का आइडिया ख़त्म हो जाएगा

वर्कप्लेस डिज़ाइन का भविष्य भले ही थोड़ा तकलीफ़देह हो लेकिन आम तौर पर अच्छा है. लेकिन महामारी के कारण एक परेशान करने वाला रुझान भी ख़ासतौर पर दिखाई दे रहा है. ये रुझान है काम-काज की जगह पर निगरानी में बढ़ोतरी. दफ़्तर से दूर काम करने की नई दुनिया से अंजान कंपनियां नतीजा सुनिश्चित करने के लिए निगरानी के औज़ारों पर काफ़ी ज़ोर दे रही हैं. ये उन कंपनियों के लिए कुछ ज़्यादा ही हैं जिन्हें लगता था कि दफ़्तर में मौजूदगी से ही काम-काज को मापा जा सकता है. इंटरगार्ड और हबस्टाफ जैसे दखल देने वाले टूल्स के बढ़ते इस्तेमाल से कर्मचारी के हौसले पर नुक़सानदेह असर पड़ सकता है और इसकी वजह से असंतोष बढ़ सकता है और कर्मचारी बेचैन हो सकते हैं. निगरानी बढ़ने से कर्मचारियों के अधिकार और निजी ज़िंदगी पर भी असर पड़ सकता है.

कर्मचारियों की गतिविधि पर नज़र रखने वाले सॉफ्टवेयर और कॉन्टैक्क-ट्रेसिंग ऐप्स का इस्तेमाल पहले ही कंपनियों के बीच तेज़ी से स्वीकार्यता बना चुका है. आगे आने वाले दिनों में कंपनियां कर्मचारियों की सेहत का रिकॉर्ड मांग सकती हैं और उनकी गतिविधि पर नज़र रखने के लिए फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी पर भरोसा कर सकती हैं. बेसकैंप और सीमेंस जैसी कई कंपनियों ने इस रुझान की कड़ी निंदा की है और इसकी जगह कर्मचारियों को ख़ुद नियमों के दायरे में रहने की आज़ादी दी है. सीमेंस ने एक ऐसा ऐप विकसित किया है जिसमें कर्मचारी ख़ुद किसी लक्षण के बारे में बता सकते हैं और कुछ ही लोगों की दफ़्तर तक पहुंच होती है. दीर्घकालीन उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों में भरोसा बेहद महत्वपूर्ण है. ख़ासतौर पर अनिश्चितता के वक़्त.

दफ़्तरों का भविष्य बताने के लिए संक्षेप में एक शब्द कहा जा सकता है: लचीलापन. कंपनियां पाएंगी कि काम-काज के अनिश्चित भविष्य से गुज़रने के लिए फुर्ती की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होगी. ये कांपने वाला बदलाव होने की उम्मीद है क्योंकि इन रुख़े उपायों और निवारक डिज़ाइन होने से कर्मचारी और कंपनियां सही संतुलन पता लगाने की कोशिश करेंगी. लेकिन दूसरी तरफ़ कर्मचारियों को ज़्यादा स्वायत्तता और लचीलापन मिल सकता है क्योंकि महामारी के कारण कर्मचारियों को डिजिटल टूल ऑपरेट करने में क्रैश कोर्स का मौक़ा मिल गया है ताकि दूर से बिना किसी दिक़्क़त के काम कर सकें. इस मौक़े का इस्तेमाल दफ़्तर भी ख़ुद को आकर्षक बनाने में कर सकते हैं. दफ़्तर ख़ुद को रोज़ाना के नीरस काम की जगह मंथन के केंद्र में बदल सकते हैं. वास्तव में महामारी ने दफ़्तरों पर कृपादृष्टि बरसायी है. महामारी की वजह से दफ़्तर की क़ीमत का पता चला है.

लेकिन कॉफी मशीन के पास बातचीत को लोग बुरी तरह याद करेंगे.

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