Author : Nishant Sirohi

Published on Mar 23, 2022 Updated 0 Hours ago

कोरोना महामारी को लेकर हमें फिर से वैश्विक संस्थानों और उनकी प्रतिबद्धताओं के बारे में सोचने पर मज़बूर होना पड़ रहा है.

हमारी कमज़ोर दुनिया: संघर्ष, महामारी और वैक्सीन उपलब्धता में मौजूद असमानता

कोरोना महामारी अभी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुई है. दुनिया भर में लगभग 2.9 बिलियन लोग अभी भी कोरोना वैक्सीन की पहली डोज़ के लिए अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं. जबकि यूक्रेन में रूस के सैन्य अभियान से उपजे संकट ने जनता का ध्यान थोड़े समय के लिए भटकाया है लेकिन इससे बहुपक्षीय संस्थानों और वैश्विक अंतर्संबंधों पर भारी असर पड़ रहा है. यूक्रेन संकट के चलते काफी मुमकिन है कि पहले से ही कमज़ोर और अप्रभावी वैश्विक प्रतिक्रिया, जो विकासशील देशों को आवश्यक दवाओं और टीकों तक की समान पहुंच को सुनिश्चित करने का जरिया है, उसे और जटिल बना देगी. सार्वजनिक स्वास्थ्य और दवा तक पहुंच को लेकर जो चर्चाएं जारी हैं उसने आश्चर्यजनक ढंग से अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है; हालांकि वैश्विक स्वास्थ्य और कोरोना महामारी की चुनौतियों से निपटने के लिए जो गति पहले बनी थी वह यूक्रेन में जारी शक्ति-संतुलन के संघर्ष के चलते धीमी पड़ सकती है.

वैश्विक स्वास्थ्य और कोरोना महामारी की चुनौतियों से निपटने के लिए जो गति पहले बनी थी वह यूक्रेन में जारी शक्ति-संतुलन के संघर्ष के चलते धीमी पड़ सकती है.

रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण कमज़ोर पड़ते अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, निश्चित रूप से बहुपक्षीय निकायों के कामकाज को अस्थिर कर सकते हैं, जो कोरोना महामारी की प्रतिक्रिया और प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के केंद्र में है. इन मुद्दों में सबसे महत्वपूर्ण वो संकल्प है जो भारत और दक्षिण अफ्रीका के लिए महामारी के दौरान कोरोना टीकों पर बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) को माफ करने के प्रस्ताव से जुड़ा है. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य अक्टूबर 2020 से इस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श कर रहे हैं और जल्द ही एक नया संकल्प सामने आ सकता है. वैश्विक टीकाकरण के लिए एक तेज़ और सस्ता साधन उपलब्ध नहीं होने के चलते दवा कंपनियों ने कोरोना महामारी के टीकों से रिकॉर्ड मुनाफा कमाना जारी रखा है.

एक तरफ कोरोना महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य की आपात स्थितियों से निपटने के लिए दुनिया की अक्षमता को उजागर किया है तो दूसरी ओर यूक्रेन संकट हमें विश्व युद्ध के बाद की नाजुक व्यवस्था और शांति की याद दिला रहा है. इस लेख में तर्क दिया गया है कि जहां दुनिया के सबसे कमज़ोर लोगों को टीका लगाने की कोवैक्स और अन्य व्यवस्थाएं नाकाम हो गईं, वहीं कोरोना महामारी को ख़त्म करने के लिए वैश्विक कोशिशों की ज़रूरत है जो कोरोना टीकों को लेकर असमानता और टीकों तक लोगों की आसान पहुंच को टीआरआईपीएस (ट्रिप्स) में छूट देकर दुरुस्त किया जा सकता है. विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर टीकाकरण को सुनिश्चित किए बिना यह नैरेटिव बनाना कि कोरोना महामारी ख़त्म हो गई है, यह नैतिक तौर तरीक़ों के लिहाज़ से ग़लत है. कोरोना महामारी से लड़ने के लिए विकासशील देशों में कमज़ोर समुदायों का समर्थन करने में विफलता एक और मुश्किल भरे मानवीय संकट को जन्म दे सकता है.

इस लेख में तर्क दिया गया है कि जहां दुनिया के सबसे कमज़ोर लोगों को टीका लगाने की कोवैक्स और अन्य व्यवस्थाएं नाकाम हो गईं, वहीं कोरोना महामारी को ख़त्म करने के लिए वैश्विक कोशिशों की ज़रूरत है जो कोरोना टीकों को लेकर असमानता और टीकों तक लोगों की आसान पहुंच को टीआरआईपीएस (ट्रिप्स) में छूट देकर दुरुस्त किया जा सकता है. 

कोवैक्स की प्रतिबद्धता और इसकी विफलता

अपनी वैश्विक कोरोना महामारी के लिए वैक्सीन रणनीति में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोवैक्स और अन्य गठबंधनों के जरिए जून 2022 तक निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में 70 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण करने का संकल्प लिया है. 31 जनवरी 2022 तक डब्ल्यूटीओ और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का कोविड 19 वैक्सीन ट्रेड ट्रैकर डेटा यह प्रोजेक्ट करता है कि उच्च आय वाले देशों में लगभग 71.4 प्रतिशत आबादी और उच्च-मध्यम आय वाले देशों में 68.7 प्रतिशत आबादी को पूरी तरह से टीका लगाया जा चुका है. इसके विपरीत निम्न-आय वाले देशों में केवल 6 प्रतिशत और निम्न-मध्यम-आय वाले देशों में 39.9 प्रतिशत लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया है. (चित्र 1 देखें).
चित्र 1 : कोरोना 19 वैक्सीनेशन डेटा

Source: Our World in Data

कोवैक्स सुविधा, महामारी की तैयारी के लिए गठबंधन, जीएवीआई की पहल है: द वैक्सीन एलायंस और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ख़ुद को एक वैश्विक वैक्सीन-साझेदार केंद्र के रूप में स्थापित किया है. हालांकि डोनर देशों के राजनीतिक हितों और राजनयिक संघर्षों ने कोवैक्स के बहुपक्षीय ख़ुराक़ की साझेदारी व्यवस्था की प्रभावशीलता पर अंकुश लगाया और इस प्रकार, उनके अधिकांश वैक्सीन के लिए दिए गए दान दूसरे देशों की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहे. अब विकासशील देशों में या तो कोवैक्स या दूसरे माध्यमों के जरिए टीकाकरण को बढ़ावा देने में विकसित देशों की सामूहिक उदासीनता, कोरोना महामारी के ख़िलाफ़ टीकाकरण के लक्ष्य को साल 2024 के अंत तक आगे बढ़ा रही है. मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञ के रूप में ओबियोरा सी काफोर ने कहा है कि, “यह महामारी किसी के लिए भी समाप्त नहीं होगी, जब तक कि यह सभी के लिए समाप्त नहीं हो जाती है”.

मानवाधिकार और अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञ के रूप में ओबियोरा सी काफोर ने कहा है कि, “यह महामारी किसी के लिए भी समाप्त नहीं होगी, जब तक कि यह सभी के लिए समाप्त नहीं हो जाती है”.

विकासशील देशों में टीकाकरण की धीमी रफ़्तार का पहला कारण पेटेंट अधिकारों के माध्यम से उत्पादन पर दवा कंपनियों के एकाधिकार की वजह से टीकों का सीमित उत्पादन रहा है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन कोवैक्स के जरिए जून -2022 के लक्ष्य को सफलतापूर्वक पूरा कर सकता था अगर नेताओं ने कोरोना महामारी के वैक्सीन और आईपीआर बहस के दौरान निजी एकाधिकार के बदले सार्वजनिक स्वास्थ्य का समर्थन किया होता.

पेटेंट, मानवाधिकार और विश्व व्यापार संगठन में गतिरोध

आईपीआर में, विशेष रूप से बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं यानी TRIPS (ट्रिप्स) समझौते और दवा तक पहुंच के तहत पेटेंट अधिकार दायित्व- जो कि विश्व व्यापार संगठन और मानवाधिकार कानून के बीच एक निरंतर संघर्ष का मुद्दा है, वो पिछले दो वर्षों में सबसे अधिक विवादित रहा है. महामारी की शुरुआत से ही आईपीआर धारकों ने विकासशील देशों में निर्माताओं के बड़े समूह के जरिए परीक्षण किट, वेंटिलेटर और आवश्यक दवाओं पर अपनी तकनीक और विनिर्माण ज्ञान को सख्ती से नियंत्रित किया था. दवा कंपनियों के साथ , विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संगठनों के पास कोरोना के चिकित्सीय और टीकों पर रिकॉर्ड संख्या में पेटेंट हैं और ऐसी कंपनियां पेटेंट एकाधिकार से लगातार फायदा उठाती रही हैं. चित्र 2 में कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों में विभिन्न पक्षों द्वारा पंजीकृत पेटेंट की संख्या को दिखाता है.

चित्र 2 : जनवरी 2022 से सितंबर 2021 तक पेटेंट एप्लीकेंट प्रोफ़ाइल

Source: World Intellectual Property Organization

विकासशील देशों के सामने सस्ती कोरोना टीकों तक पहुंच के मामले में मौजूदा मुश्किलें वैसी ही हैं जैसी कि एचआईवी / एड्स महामारी के लिए विकसित देशों द्वारा टीकों पर पेटेंट एकाधिकार के जरिए विकासशील देशों के साथ घोर अन्याय किया गया था. दवा तक आम लोगों की पहुंच में सुधार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव की दवा तक पहुंच पर एक उच्च स्तरीय पैनल ने साल 2016 की एक रिपोर्ट में असंतुलन और अप्रभावी आईपीआर व्यवस्थाओं से निपटने के लिए कई सिफारिशें की थी. हालांकि जीवन रक्षक/आवश्यक दवाओं के स्थानीय उत्पादन पर हुई 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा (डब्ल्यूएचए) के दौरान इन सिफारिशों पर विचार नहीं किया गया था. जबकि मई 2020 के डब्ल्यूएचए संकल्प ने एक वैश्विक वैक्सीन कार्य योजना का वादा किया था, जो विकासशील देशों में स्थायी वैक्सीन आपूर्ति कराने के लिए एक व्यवस्था विकसित करने में नाकाम रहा – जो आईपीआर प्रतिबंधों की वजह से हुआ.

विकासशील देशों के सामने सस्ती कोरोना टीकों तक पहुंच के मामले में मौजूदा मुश्किलें वैसी ही हैं जैसी कि एचआईवी / एड्स महामारी के लिए विकसित देशों द्वारा टीकों पर पेटेंट एकाधिकार के जरिए विकासशील देशों के साथ घोर अन्याय किया गया था.

डब्ल्यूएचए के प्रस्ताव के बाद अक्टूबर 2020 में, भारत और दक्षिण अफ्रीका ने डब्ल्यूटीओ की स्थापना करने वाले मराकेश संधि के अनुच्छेद IX के मुताबिक़, प्रमुख ट्रिप्स अनुबंध नियमों के अस्थायी निलंबन के लिए डब्ल्यूटीओ के सामने एक प्रस्ताव भी भेजा था.

विश्व व्यापार संगठन में सभी निर्णय आम सहमति से होते हैं और यहां तक कि बहुत कम देशों का समूह भी बहुसंख्यकों की इच्छा को विफल कर सकते हैं, यहां तक कि शानदार बहुमत के बावजूद भी. अब 58 देशों की सरकारों द्वारा छूट का प्रस्ताव प्रायोजित है और इसे 100 से अधिक देशों से समर्थन भी मिला है; हालांकि मुख्य रूप से यूरोपीय संघ के कुछ देशों ने प्रस्ताव का विरोध करना अभी भी जारी रखा है. प्रस्ताव के पक्ष में जो देश हैं उनका तर्क है कि पेटेंट छूट के साथ, विकासशील देश कोरोना के टीकों के सस्ते जेनेरिक संस्करण का उत्पादन कर सकेंगे. जबकि विरोधियों का तर्क है कि ट्रिप्स पर विश्व व्यापार संगठन समझौता अनिवार्य लाइसेंस प्रदान करता है जिसका उपयोग विकासशील देशों द्वारा जेनेरिक टीकों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है. हालांकि यह महत्वपूर्ण है कि आविष्कारक द्वारा अन्य उत्पादकों को प्रौद्योगिकी या फिर कारोबारी रहस्य का हस्तांतरण अनिवार्य लाइसेंस के तहत अनिवार्य नहीं है. एक ऐसा नया अनिवार्य तंत्र विकसित करना जो कारोबारी रहस्यों से संबंधित जटिलताओं को दूर करता हो, अभी भी एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा हो सकता है. इसलिए गतिरोध को तोड़ने के लिए कोविड-19 वैक्सीन पर पेटेंट छूट को लेकर एक समझौता बेहद ज़रूरी है. नीचे दिया गया नक्शा (चित्र 3) ट्रिप्स छूट पर देशों की मौजूदा स्थिति को दर्शाता है.

प्रस्ताव के पक्ष में जो देश हैं उनका तर्क है कि पेटेंट छूट के साथ, विकासशील देश कोरोना के टीकों के सस्ते जेनेरिक संस्करण का उत्पादन कर सकेंगे. जबकि विरोधियों का तर्क है कि ट्रिप्स पर विश्व व्यापार संगठन समझौता अनिवार्य लाइसेंस प्रदान करता है जिसका उपयोग विकासशील देशों द्वारा जेनेरिक टीकों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है. 

चित्र 3 : ट्रिप्स छूट को लेकर देशों की स्थिति

Source: Médecins Sans Frontiéres

पोलिटिको की एक रिपोर्ट में बताया गया कि यूरोपीय संघ, भारत, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच कथित तौर पर ट्रिप्स को लेकर छूट के प्रस्ताव पर सहमति बनती दिख रही है. यह व्यापक रूप से बताया गया है कि ट्रिप्स छूट प्रस्ताव के संदर्भ की शर्तें केवल कोरोना के टीकों तक ही सीमित हैं. विचाराधीन मसौदे के तहत कारोबारी रहस्यों, अघोषित क्लिनिकल ट्रायल डेटा और कोरोना महामारी की दवाओं और डॉयग्नोस्टिक उपकरणों पर कोई रियायत शामिल नहीं है. मसौदा प्रस्ताव, जो वर्तमान में चार वार्ताकारों के घरेलू स्तर पर जांच का मामला है, उसे अभी भी विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्यों से सर्वसम्मति से अनुमोदन की आवश्यकता होगी. डब्ल्यूटीओ जून 2022 में अपना 12वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन आयोजित करने वाला है. इसमें संभावना है कि सदस्य राज्यों के व्यापार मंत्री अंतिम समझौते के दौरान कोरोना वैक्सीन पर ट्रिप्स छूट के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श को आगे बढ़ाएंगे. हालांकि, विचाराधीन मसौदा प्रस्ताव के वर्तमान स्वरूप में कई ख़ामियां हैं, फिर भी अगर इसे स्वीकार कर लिया जाता है तो कोरोना टीकों पर ट्रिप्स छूट अपनी तरह का पहला और दवाओं तक समान पहुंच और जीवन रक्षक दवाओं की जद्दोजहद में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.

निष्कर्ष

अभी तक चीन में लगभग 30 मिलियन लोगों को लॉकडाउन में रखा गया है और कोरोना टीकों पर इसे लेकर ट्रिप्स छूट की संभावना है. हाल ही में, विकसित देश जो अपनी आबादी का टीकाकरण करने में सक्षम हो गए हैं, वे इस नैरेटिव को बढ़ावा दे रहे हैं कि वैश्विक महामारी ख़त्म हो गई है और इसलिए अब कोई आपातकालीन प्रतिक्रिया उचित या आवश्यक नहीं रह गई है. इसके विपरीत टीकों का असमान वितरण और यूक्रेन का संकट महामारी को लम्बा खींच रहा है. इस प्रकार वायरस म्यूटेशन का जोख़िम फिर से बढ़ रहा है और महामारी को नियंत्रित करने की क्षमता कम हो रही है.

विकसित देशों को टीके की ख़ुराक़ को जमा करना बंद कर देना चाहिए और सक्रिय रूप से कोरोना टीकों पर ट्रिप्स छूट को अमल में लाने के लिए विश्व व्यापार संगठन में जारी गतिरोध को ख़त्म करना चाहिए.

कोरोना महामारी निश्चित रूप से अभी ख़त्म नहीं हुई है. कम समय में कई कोरोना टीके विकसित करने की उल्लेखनीय चिकित्सा उपलब्धि के बावजूद, विकसित और विकासशील देशों के बीच टीकों की पहुंच और वितरण की अनुपातहीन सीमा वैश्विक असमानताओं को दर्शाती है. विकसित देशों को टीके की ख़ुराक़ को जमा करना बंद कर देना चाहिए और सक्रिय रूप से कोरोना टीकों पर ट्रिप्स छूट को अमल में लाने के लिए विश्व व्यापार संगठन में जारी गतिरोध को ख़त्म करना चाहिए. कोरोना विकासशील देशों की बीमारी नहीं बननी चाहिए क्योंकि मानवता एक बेहतर प्रतिक्रिया की हकदार है और दुनिया को इसे उपलब्ध कराना चाहिए.

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