Author : Vivek Mishra

Published on Oct 06, 2023 Updated 0 Hours ago
कनाडा की नादानी: सत्ता संचालन का मज़ाक

कनाडा की घरेलू राजनीति में लगातार एक दुर्भावनापूर्ण पैटर्न रहा है जो कि अब बेकाबू होकर भारत के साथ उसके संबंधों को प्रभावित कर रहा है. इसकी प्रमुख वजह कनाडा में ऐसी गतिविधियों को प्रोत्साहन, राजनीतिक संरक्षण और जान-बूझकर इससे इनकार करना है. कनाडा में ये ख़ास तौर पर लिबरल पार्टी की विशेषता रही है. भारत और कनाडा के रिश्ते संभवत: दुनिया में किसी भी दो देशों के बीच प्रवासियों के मामले में सबसे मज़बूत संबंध की मिसाल हैं जिसका इस्तेमाल सांस्कृतिक और आर्थिक पुल बनाने में किया जा सकता था. लेकिन तात्कालिक घरेलू राजनीति और भविष्य के फायदों के लिए ये संबंध धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा है. कनाडा में रहने वाले प्रवासी भारतीय वैसे तो अलग-अलग हैं लेकिन इनमें एक वर्ग ऐसा भी है जो भारत विरोधी खालिस्तान आंदोलन के साथ अपनी पहचान रखता है. ऊपर से राजनीतिक समर्थन के साथ खालिस्तान आंदोलन के अलग-अलग गुटों को अब एक राजनीतिक ज़मीन मिल गई है. साथ ही उन्हें फंड और लोगों को जुटाते समय भारत के ख़िलाफ़ अपनी चिंता को ज़ाहिर करने का अधिकार भी मिल गया है. इन गुटों को अक्सर महत्वपूर्ण सांगठनिक और संस्थागत समर्थन मिलता है. ये ऐसी चीज़ है जो अभी तक कनाडा के घरेलू परिदृश्य में नहीं देखी गई थी. 

भारत और कनाडा के रिश्ते संभवत: दुनिया में किसी भी दो देशों के बीच प्रवासियों के मामले में सबसे मज़बूत संबंध की मिसाल हैं जिसका इस्तेमाल सांस्कृतिक और आर्थिक पुल बनाने में किया जा सकता था.

कनाडा के राजनीतिक परिदृश्य में ये उभरता असर कनाडा के बाहर भी कई रूपों में दिखा है. ध्यान देने की बात है कि अलग-अलग देशों जैसे कि अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम (UK) और ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तान समर्थक समूह राजनीतिक ज़ोर के दम पर अब सामने आया है. दो सबसे प्रमुख समूह हैं “सिख फॉर जस्टिस” और “खालिस्तान टाइगर फोर्स” और इन दोनों की कनाडा में मज़बूत पकड़ है. गौर करने वाली बात ये है कि इनकी फंडिंग, संस्थागत समर्थन और लोगों को जुटाने के पैटर्न में तेज़ी आई है. कनाडा में एक काल्पनिक खालिस्तान के अलग होने के समर्थन में नियमित तौर पर जनमत संग्रह (रेफरेंडम) आयोजित करना भी एक हद तक सरकार की मिलीभगत की तरफ इशारा करता है. 

राजनीतिक पैंतरेबाज़ी

जस्टिन ट्रूडो का राजनीतिक अस्तित्व नज़दीकी रूप से न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के समर्थन से जुड़ा है जिसकी अगुवाई जगमीत सिंह करते हैं. इसकी वजह से हालात की जटिलता और बढ़ती है. पिछले चुनाव के समय से विपक्षी कंज़र्वेटिव पार्टी के ऊपर ट्रूडो की लिबरल पार्टी की बढ़त बेहद मामूली है. ऐसे में NDP के समर्थन को बरकरार रखना ट्रूडो के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम है. इसमें हैरानी की बात नहीं है कि कनाडा की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) ने खुलकर खालिस्तानी तत्वों का साथ दिया है. इसी तरह लिबरल पार्टी के भीतर के लोगों ने भी खालिस्तानी तत्वों का समर्थन किया है. ये राजनीतिक पैंतरेबाज़ी विशेष घरेलू हितों के काम तो आ सकती है लेकिन भारत के साथ कनाडा के संबंधों के लिए ये ठीक नहीं है. भारत विरोधी गतिविधियों में बढ़ोतरी फंड जुटाने से नज़दीकी रूप से जुड़ा है. फंड जुटाने का ये काम हरदीप सिंह निज्जर जैसे लोग संदिग्ध वित्तीय तरीकों और संस्थानों के इस्तेमाल से कर रहे थे. फंड जुटाने का काम अक्सर उचित निगरानी और ऑडिट के बिना होता है. ये हालात इन समूहों के एजेंडे और मक़सदों को काबू में करना चुनौतीपूर्ण बनाते हैं. 

पिछले चुनाव के समय से विपक्षी कंज़र्वेटिव पार्टी के ऊपर ट्रूडो की लिबरल पार्टी की बढ़त बेहद मामूली है. ऐसे में NDP के समर्थन को बरकरार रखना ट्रूडो के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम है.

पूरी तरह से खालिस्तानी गतिविधियों में शामिल हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत के कथित तौर पर शामिल होने को लेकर कनाडा और भारत के बीच इस मौजूदा संकट ने कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है जो कि भारत की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता से आगे तक जाती हैं. सबसे पहले, इस घटना ने कनाडा के इमिग्रेशन सिस्टम की कमियों के बारे में बताया है जिसके तहत विवादित पृष्ठभूमि वाले लोगों को नागरिक बनने की अनुमति मिल जाती है और फिर वो कनाडा का नागरिक बनने के बाद दूसरे देशों को टारगेट करते हैं. ये स्थिति आज की एक-दूसरे से जुड़ी दुनिया में मज़बूत द्विपक्षीय संबंध को बरकरार रखने के मामले में एक महत्वपूर्ण चुनौती है. दूसरी बात, वर्तमान मुद्दे पर कनाडा का रवैया इस तथ्य को वैधता प्रदान करने और यहां तक कि सामान्य बनाने का है कि ये किसी सरकार का विवेक है कि वो उदारवादी लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों को बचाने की आड़ में बाहर के तत्वों को अलगाववादी गतिविधियां करने दे. इस मामले में कनाडा को अपने ही प्रांत क्यूबेक के बारे में देश के भीतर मज़बूत घरेलू राजनीतिक एजेंडे की सूची का इंतज़ार करना चाहिए. ज़्यादातर फ्रेंच बोलने वाले लोगों के प्रांत क्यूबेक की संप्रभुता की मांग करने वाली पार्टी ब्लॉक क्यूबेकवा का उभरना एक ध्यान देने वाली बात है क्योंकि ये कनाडा के भीतर ही अलगाववाद के एक दबे हुए रूप की तरह है. कल्पना कीजिए कि अगर भारत ने कनाडा में एक प्रांत को अलग करने की मांग का समर्थन करने वाले ग्रुप को अपने यहां गतिविधियों की इजाज़त दी होती तो क्या होता. इस तरह के हालात सकारात्मक द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखने में मददगार नहीं होते. इसके विपरीत, भारत ने संकीर्ण घरेलू राजनीतिक फायदों के ऊपर बाहरी संबंधों को प्राथमिकता दी है, यहां तक कि अतीत में चीन के साथ भी. 

मौजूदा विश्व व्यवस्था

इसके अलावा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बैनर तले जिन भारत विरोधी गतिविधियों को सही बताया जा रहा है वो वास्तव में इस मूलभूत लोकतांत्रिक सिद्धांत को तोड़ना-मरोड़ना है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है लेकिन ज़्यादातर लोकतांत्रिक देशों में ये काफी हद तक औचित्य की चेतावनी के साथ मिलती है जिसमें स्वाभाविक रूप से इस बात को सुनिश्चित किया जाता है कि बेबुनियाद और तनाव बढ़ाने वाली बयानबाज़ी देश के आंतरिक समन्वय और बाहरी संबंधों को नुकसान न पहुंचाए. लोकतांत्रिक देशों में मिली इन शक्तियों का इस्तेमाल करते समय ये नेताओं के ऊपर है कि वो शासन की कला दिखाएं. 

 ये नेतृत्व और शासन कला है जो संतुलन बरकरार रखने के लिए बाध्य है और इसके बावजूद वो दूसरे पक्ष को अपनी गहरी चिंताओं के बारे में इस तरह से बताए कि संतुलन पर असर नहीं पड़े.

भारत और कनाडा के बीच मौजूदा तनाव इस बात को रेखांकित करता है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दिखने वाले मज़बूत और स्थायी संबंधों की स्थिरता अक्सर द्विपक्षीय संबंधों में नाज़ुक और संवेदनशील मुद्दों के संतुलन पर ही टिकी होती है. ये नेतृत्व और शासन कला है जो संतुलन बरकरार रखने के लिए बाध्य है और इसके बावजूद वो दूसरे पक्ष को अपनी गहरी चिंताओं के बारे में इस तरह से बताए कि संतुलन पर असर नहीं पड़े. साफतौर पर इसके विपरीत काम किया गया जब कनाडा के प्रधानमंत्री ने न सिर्फ निज्जर की हत्या में भारत के शामिल होने का आरोप लगाया बल्कि एक भारतीय राजनियक को भी बाहर करने का फैसला लिया. अगर किसी को फैसला लेना था तो वो भारत था जिसे उस वक़्त एहतियाती कदम उठाते हुए कनाडा में अपने दूतावास और कॉन्सुलर ऑफिस को बंद कर देना था जब कनाडा, UK और अमेरिका में उसके राजनयिकों को जान से मारने की धमकी दी गई थी. लेकिन भारत ने आवश्यक धैर्य के साथ काम किया. 

ये हैरानी की बात है कि ट्रूडो के राजनीतिक फैसले पारंपरिक शासन कला में एक सबक के मामले में ठीक नहीं हैं. ये स्थिति उस वक्त है जब कनाडा में नेतृत्व के मामले में दूसरे नेताओं के मुकाबले उन्हें पीढ़ीगत लाभ हासिल है – उनके पिता पियरे ट्रूडो 1968 से 1979 और 1980 से 1984 के दौरान कनाडा के प्रधानमंत्री थे. ब्रिटिश राजनेता हेरॉल्ड निकोल्सन ने इस बात की तरफ ध्यान दिलाया था कि शासन कला के लिए सिर्फ़ कूटनीति से बढ़कर ज़्यादा समझदारी की आवश्यकता है. ये रणनीति बनाने और उन पर अमल का मेल है ताकि राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित किया जा सके. एक ही झटके में ट्रूडो ने ख़ुद के बारे में ज़ाहिर कर दिया कि वो इन गुणों के मामले में गंभीर रूप से कमी रखते हैं. 

जैसे-जैसे भारत आर्थिक शक्ति और राजनीतिक असर के मामले में आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मौजूदा विश्व व्यवस्था की दरार और बढ़ रही है और बचने का रास्ता पहले के मुकाबले छोटा हो रहा है.

अंत में, कनाडा के साथ द्विपक्षीय संकट भारत की कूटनीति के लिए भी एक परीक्षा है. जस्टिन ट्रूडो के द्वारा राजनयिकों को निष्कासित करना एक दुर्भाग्यपूर्ण कदम है जिसकी वजह से भारत को भी जवाब देना पड़ा. वैसे तो इस तरह की असाधारण परिस्थितियां भारत के द्वारा निर्णय लेने को चुनौती देती हैं लेकिन भारत को सोच-समझकर फैसला लेना चाहिए. जैसे-जैसे भारत आर्थिक शक्ति और राजनीतिक असर के मामले में आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे मौजूदा विश्व व्यवस्था की दरार और बढ़ रही है और बचने का रास्ता पहले के मुकाबले छोटा हो रहा है. ऐसे में इन मुश्किल फैसलों, जो ‘सॉफ्ट स्टेट’ के रूप में भारत की राष्ट्रीय हदों को धक्का देते हैं, को बार-बार लेने की नौबत आ सकती है.


विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research interests include America in the Indian Ocean and Indo-Pacific and Asia-Pacific regions, particularly ...

Read More +

Related Search Terms