Published on Sep 12, 2022 Updated 0 Hours ago

विभिन्न राज्यों में पार्टिकुलेट मैटर के लिए पायलट ईटीएस योजना शुरू करने के साथ कार्बन बाजार स्थापित करने का फैसला लेकर भारत ने सही राह पकड़ी है.

#Air Pollution: कार्बन बाज़ार स्थापित करके वायु प्रदूषण से मुकाबला

भारत में करोड़ों लोग बेहद प्रदूषित हवा को भीतर खिंचते हैं, जिसमें पीएम 2.5 पार्टिकल्स यानी कणों के साथ ही जहरीली गैस जैसे, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डायऑक्साइड और नाइट्रोजन डायऑक्साइड का समावेश होता है. आईक्यू एयर के अनुसार वर्ष 2021 में भारत में पीएम 2.5 स्तर था, जो डब्ल्यूएचओ के मार्गदर्शक मूल्य से 11 गुना ज्यादा है. वर्ष 2021 में भारत दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित देश था. विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 63 शहर तो दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित स्थानों में काफी ऊपर हैं. इसमें भी 10 भारतीय शहर तो टॉप 15 शहरों में आते हैं. यूनिवर्सिटी  ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी  इन्स्टीट्यूट के डाटा के अनुसार यदि डब्ल्यूएचओ के मार्गदर्शक स्तर के हिसाब से पीएम 2.5 के स्तर को कम कर दिया गया तो  दिल्ली में रहने वाले लोगों की जिंदगी में दस वर्ष और जुड़ जाएंगे.  इतना ही नहीं लैंसेट कमिशन की ओर से प्रदूषण और स्वास्थ्य पर की गई एक स्टडी ने पाया गया कि वर्ष 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से 16.7 लाख मौतें हुई हैं.  यह उस वर्ष हुई कुल मौतों का लगभग 17.8 प्रतिशत है.

वर्ष 2021 में भारत दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित देश था. विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 63 शहर तो दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित स्थानों में काफी ऊपर हैं. इसमें भी 10 भारतीय शहर तो टॉप 15 शहरों में आते हैं.

सभी आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि भारत का पीएम 2.5 का स्तर बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि इसका प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था, कार्यबल के साथ हमारे नागरिकों के जीवन स्तर पर भी पड़ रहा है. इस मसले का मुकाबला करने के लिए भारत में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण विशेषत: पीएम 2.5 पार्टिकल्स फैलाने वाले कारणों को लेकर एक सूक्ष्म विश्लेषण जरूरी है. सेंट लुई स्थित वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के अध्ययनकर्ताओं ने भारत समेत विभिन्न देशों में पीएम 2.5 एक्सपोजर तथा पीएम 2.5 में होने वाले क्षेत्रीय योगदान को रिकार्ड करने के लिए एक अध्ययन किया. उसके विश्लेषण ने यह खुलासा किया कि भारत में घरेलू और व्यावसायिक खाना पकाना, प्रकाश व्यवस्था और गर्म करने की पद्धति ही पीएम 2.5 कण का मुख्य स्त्रोत थे. 2017 में पीएम 2.5 स्तर होने से कुल 28 प्रतिशत का योगदान इनका ही पाया गया था. भारत के वातावरण में पीएम 2.5 कण का लगभग 15 प्रतिशत योगदान देकर औद्योगिक गतिविधियां दूसरे स्थान पर थीं. इसके साथ ही औद्योगिक प्रक्रियाओं की वजह से ही नाइट्रोजन और सल्फर जैसे घातक कम्पाउंड्स भी हवा में पहुंचते हैं, जिसकी वजह से अल्पावधि और दीर्घकालीन परिणाम होते हैं. नतीजतन, औद्योगिक क्षेत्र की ओर से प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्षित हस्तक्षेप, भारत का वायु प्रदूषण कम करने की दिशा में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है.

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स्त्रोत: https://urbanemissions.info/india-air-quality/india-satpm25/


भारत की सरकार ने हाल ही में सही दिशा में कदम उठाए हैं. लोकसभा में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा संरक्षण कानून (ईसीए), 2001 में संशोधन करना है. इस विधेयक को आठ अगस्त 2022 को मंजूरी दी गई. इसका उद्देश्य 2070 तक भारत को नेट-जीरो अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में परिवर्तन की कोशिशों को समर्थन देकर उसकी निरंतरता पर ध्यान केंद्रित करना है. इस कानून में भारत को डीकार्बनाइज करने के अनेक प्रावधान हैं. इसमें सबसे अहम है कि यह कानून भारत की सरकार (जीओआई) को भारत में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम स्थापित करने का अधिकार प्रदान करता है ताकि भारत के सबसे पहले स्वीकृत कार्बन ट्रेडिंग मार्केट का कानूनी ढांचा तैयार किया जा सके. इस फैसले का भारत के औद्योगिक क्षेत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा और इसकी वजह से औद्योगिक उत्सर्जन में कमी आने के साथ ही स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के साथ निजी क्षेत्र की कंपनियों में ऊर्जा दक्षता भी बढ़ सकेगी.

भारत की सरकार ने हाल ही में सही दिशा में कदम उठाए हैं. लोकसभा में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा संरक्षण कानून (ईसीए), 2001 में संशोधन करना है.


उत्सर्जन बाजार क्या है?

लोगों पर हानिकारक गैसों जैसे CO2, N2आदि के पड़ने वाले नकारात्मक बाहरी प्रभाव को आंतरिक करने के लिए उत्सर्जन व्यापार प्रणाली यानी एमिशन ट्रेडिंग सिस्टम्स् (ईटीएस) के मूल में इन गैसों के उत्सर्जन पर एक मूल्य लगाया गया है. अन्य शब्दों में अपनी औद्योगिक प्रक्रियाओं के दौरान जो प्रतिष्ठान इन गैसों का उत्सर्जन करते हैं, उन्हें इस उत्सर्जन की वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए उन पर टैक्स लगाया जाता है. इस प्रणाली की वजह से औद्योगिक इकाइयों को अपनी व्यवस्था में सुधार करने और स्वच्छ, पर्यावरणपूरक औद्योगिक प्रक्रियाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि आम जनता के लिए साफ- सुथरी हवा उपलब्ध हो और सरकार को भी अच्छा खासा राजस्व मिल सकें. यह प्रणाली सभी का भला करती है.


उत्सर्जन बाजार का सबसे आम रूप जो चलन में है उसमें ‘कैप एंड ट्रेड’ मॉडल अपनाया जाता है, जहां सरकार विशेष औद्योगिक क्षेत्र के लिए कुल उत्सर्जन की समग्र ‘कैप’ (उच्चतम सीमा) निर्धारित कर देती है. सरकार इसके बाद नियंत्रित प्रतिष्ठानों को या तो परमिट्स आवंटित करती है या नीलाम करती है, ताकि उन प्रतिष्ठानों को एक निश्चित मात्रा में प्रदूषक उत्सर्जित करने का अधिकार दिया जा सके. इन परमिट्स को बाद में पर्यावरण शेयर बाजार में खरीदा और बेचा जा सकता है. इस शेयर बाजार में आपूर्ति और मांग को देखते हुए बाजार की शक्तियां ही इन परमिट्स का एक निर्धारित मूल्य तय करती है. यदि कोई प्रतिष्ठान अपनी निर्धारित सीमा से अधिक उत्सर्जन करता है तो उसे भारी जुर्माना भरना पड़ता है. समय के साथ सरकार उत्सर्जन की उच्चतम सीमा को घटाती है, ताकि कुल उत्सर्जन भी घटाया जा सके.

ईटीएस उपक्रम को दुनिया में काफी पहले से लागू किया जा रहा है. 2005 में ही ईयू-ईटीएस योजना के साथ दुनिया का पहला कार्बन बाजार स्थापित हो गया था. वर्तमान में 32 ईटीएस उपक्रम कार्यरत हैं, जिसमें 38 नेशनल तथा 31 सब-नेशनल अधिकार क्षेत्र शामिल हैं.


अत: उत्सर्जन बाजार प्रोत्साहन और दंडित, जिसे कैरट एंड स्टिक कहा जाता है, की नीति अपनाकर हरित अर्थव्यवस्था की दिशा में परिवर्तन को उत्प्रेरित करता है :


  1. इन प्रतिष्ठानों को उत्सर्जन के लिए यह परमिट्स खरीदने को मजबूर करते हुए सरकार इन प्रतिष्ठानों के लागत मूल्य को बढ़ा देती है. ऐसे में जो प्रतिष्ठान स्वच्छ उत्पादन प्रक्रिया को अपनाते हैं, वे अपने लागत मूल्य में कमी लाकर स्पर्धात्मक फायदा सुरक्षित कर सकते हैं. 
  1. इतना ही नहीं जो प्रतिष्ठान यह परिवर्तन जल्दी करने में सफल होते हैं, वे ज्यादा मुनाफा भी सुनिश्चित करते हैं, क्योंकि वे अपने अनुपयोगी परमिट्स को शेयर बाजार में बेचकर अतिरिक्त राजस्व जुटा सकते हैं. 

ईटीएस उपक्रम को दुनिया में काफी पहले से लागू किया जा रहा है. 2005 में ही ईयू-ईटीएस योजना के साथ दुनिया का पहला कार्बन बाजार स्थापित हो गया था. वर्तमान में 32 ईटीएस उपक्रम कार्यरत हैं, जिसमें 38 नेशनल तथा 31 सब-नेशनल अधिकार क्षेत्र शामिल हैं. उल्लेखनीय है कि दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक चीन ने भी 2021 से अपने यहां अपना अनिवार्य ईटीएस उपक्रम लागू किया है और फिलहाल वहां दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन बाजार है.

ईटीएस और वायु प्रदूषण


ईटीएस उपक्रमों का मुख्य उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करते हुए ग्लोबल वार्मिंग से निपटना है, लेकिन वे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मार्ग अपनाकर वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने में भी अहम भूमिका अदा कर सकते हैं. ईटीएस योजना की वजह से स्वच्छ हवा हासिल करने के कुछ प्रमुख तरीके यह भी हो सकते हैं.:


  1. ईटीएस उपक्रमों के माध्यम से प्रतिष्ठानों को ऐसी पर्यावरण पूरक प्रक्रियाओं को विकसित करने और अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना जो ग्रीनहाउस गैसेस, जहरीले उत्सर्जन आदि, प्रदूषक कम मात्रा में उत्सर्जित करते हो. उदाहरण के तौर पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) में जब से ईयू-ईटीएस योजना लागू की गई है, तब से 2005 से 2016 के बीच वहां 188 से ज्यादा क्लीनटेक पेटेंट्स फाइल किए गए हैं, जो विनियमित प्रतिष्ठानों की ओर से होने वाली पेटेंटिंग में 8.1 प्रतिशत की वृद्धि दिखाती है.

    2. यह भी देखा गया है कि स्वच्छ औद्योगिक प्रक्रियाओं की दिशा में परिवर्तन को उत्प्रेरित करते हुए ईटीएस उपक्रमों ने उद्योगों के पीएम 5 उत्सर्जन को भी कम करने में सहायता की है और प्रदूषण में भी कमी ला दी है. चीनी ईटीएस उपक्रमों की ओर से की गई एक स्टडी में देखा गया है कि 2005 से 2017 के बीच इन उपक्रमों की वजह से पीएम 2.5 स्तर में 4.8 प्रतिशत की कमी आयी. चीन ईटीएस की वजह से पीएम 2.5 सघनता में आयी कमी की वजह से 23,363 लोगों की जान बची और जीडीपी में 41.38 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सालाना बचत हुई. इतना ही नहीं इसका लाभ पड़ोस के क्षेत्र और शहरों को भी मिलता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों को जो विनियमित औद्योगिक इकाइयों के हवा के रुख की दिशा में बसे होते हैं. 
  1. कार्बन बाजारों की वजह से सल्फर एवं नाइट्रोजन कम्पाउंड्स जैसे अन्य हानिकारक प्रदूषकों के उत्सर्जन में भी सहक्रियाशील कमी देखी गई है. एक स्टडी में पाया गया कि चीन की कार्बन उत्सर्जन व्यापार नीति की वजह से SOके उत्सर्जन की मात्रा में कमी आई और इसकी तीव्रता भी घटी है. यह हरित अर्थव्यवस्था की दिशा में परिवर्तन के प्रयासों के लिए सहायक साबित हुए हैं.


    4. कार्बन बाजार की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि देश भर में मॉनिटरिंग, वेरिफिकेशन तथा रिपोर्टिग (एमआरवी) प्रक्रिया को पुख्ता किया जाए, ताकि होने वाले उत्सर्जन पर नजर रखी जा सकें. बेहतर एमआरवी सिस्टम हानिकारक उत्सर्जन पर अधिक सटीक, रीयल-टाइम डाटा प्रदान करेगा, जो सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में हानिकारक उत्सर्जन को कम करने के लिए बेहतर-अनुरूप, प्रभावी कार्यक्रम शुरू करने में सहायक साबित होगा.

    5. ईटीएस उपक्रम, केवल कार्बन परमिट्स व्यापार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे अन्य हानिकारक प्रदूषकों एवं पार्टिकुलेट मैटर तक विस्तारित किया जा सकता है. कार्बन बाजार स्थापित करने से SOand NOपरमिट्स के शेयर बाजार का बुनियादी ढांचा भी बनेगा, जिसकी वजह से इनके उत्सर्जन में सीधी कमी आ सकेगी. यूएस का एसिड रेन प्रोग्राम बाजार आधारित कैप एंड ट्रेड सिस्टम का एक उदाहरण है, जिसकी वजह से ऊर्जा क्षेत्र के हानिकारक सल्फर तथा नाइट्रोजन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. अन्य कार्यक्रमों के साथ, एसिड रेन प्रोग्राम की वजह से SO उत्सर्जन में 93 प्रतिशत से अधिक वार्षिक कटौती और NOX उत्सर्जन में 87 प्रतिशत से अधिक वार्षिक कमी देखी गई. इसे एक बड़ी सफलता कहा जा सकता है.

    पार्टिकुलेट में कमी लाने के उद्देश्य से ईटीएस पायलट्स भारत में शुरू हो गए हैं और इसके परिणाम भी उत्साहजनक हैं. गुजरात में, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण मंडल (जीपीसीबी) ने अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब (जेपीएएल) के अध्ययनकर्ताओं और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो स्थित द एनर्जी इन्स्टीट्यूट के साथ मिलकर 2019 में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम10) के लिए दुनिया की सबसे पहली ईटीएस योजना आरंभ की है. इस प्रयोग की वजह से विनियमित इकाइयों से मिलने वाली प्रदूषण संबंधी जानकारी से पता चलता है कि इनमें से 90 प्रतिशत इकाइयों के पीएम10 प्रदूषण में 24 प्रतिशत की कमी आई हैगुजरात में इस पायलट की सफलता को देखकर पंजाब समेत अन्य क्षेत्रों में भी इस तरह के पायलट्स आयोजित किए जा रहे हैं. 


ईयू-ईटीएस योजना ने 2005 से कार्बन उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कमी ला दी है, जिससे साफ है कि ईटीएस उपक्रम कार्बन उत्सर्जन कम करने में प्रभावी साबित हुए हैं. हालांकि इन योजनाओं के अन्य लाभ जैसे जहरीली गैस के उत्सर्जन में कमी और पर्यावरण पूरक नवाचार को मिलने वाली उत्प्रेरणा की ओर अक्सर अनदेखी की जाती है. इसके अलावा इसी तरह के ढांचे का उपयोग पार्टिकुलेट मैटर के लिए करते हुए सरकार वायु प्रदूषण से एक नई और प्रभावी प्रक्रिया के माध्यम से निपट सकती है.

ईयू-ईटीएस योजना ने 2005 से कार्बन उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कमी ला दी है, जिससे साफ है कि ईटीएस उपक्रम कार्बन उत्सर्जन कम करने में प्रभावी साबित हुए हैं.


यहां उल्लेखनीय है कि अकेले ईटीएस उपक्रम के दम पर भारत अपनी वायु प्रदूषण की समस्या को हल नहीं कर सकता. औद्योगिक इकाइयों से होने वाले उत्सर्जन से निपटने में यह उपयोगी साधन हो सकते हैं, लेकिन ऐसी योजनाओं से कृषि उपज को जलाने, घरेलू ईंधन की खपत तथा परिवहन क्षेत्र जैसे अन्य स्त्रोत से होने वाले प्रदूषण का हल नहीं निकाला जा सकता. सरकार को मौजूदा वायु प्रदूषण में कमी लाने वाले कार्यक्रमों, जैसे राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के लिए वित्त पोषण बढ़ाने और इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए अधिक लक्षित हस्तक्षेप शुरू करने की आवश्यकता पर विचार करना चाहिए. हालांकि भारत में कार्बन बाजार की स्थापना की राह खोलकर और विभिन्न राज्यों में पार्टिकुलेट मैटर के लिए ईटीएस योजनाओं का पायलट शुरू कर भारत ने यह दिखा दिया है कि वह अपनी वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए सही दिशा में जा रहा है.

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