Author : Shoba Suri

Published on Jul 16, 2022 Updated 0 Hours ago

महामारी और यूक्रेन युद्ध जैसी वैश्विक चुनौतियों ने हाल के वर्षों में खाद्य संकट को और बदतर बना दिया है.

विश्व जनसंख्या दिवस 2022: वैश्विक खाद्य संकट यानी सिर पर मंडराता ख़तरा!

ये लेख वर्ल्ड पॉपुलेशन डे सीरीज़ का हिस्सा है.


संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के मुताबिक “यूक्रेन में जारी युद्ध ने वैश्विक स्तर पर भुखमरी का अभूतपूर्व संकट” पैदा कर दिया है. पहले से ही दुनिया के करोड़ों लोग जलवायु परिवर्तन, कोरोना वायरस महामारी और असमानता के चलते पैदा रुकावटों की मार झेलते आ रहे थे. यूक्रेन युद्ध ने इन तकलीफ़ों को और संगीन बना दिया है. 

महंगाई की चपेट में दुनिया 

दुनिया के कई देश बढ़ती खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. इससे दशकों की मेहनत से हासिल फ़ायदों पर पानी फिरता दिख रहा है. 2030 तक सतत विकास के लक्ष्य हासिल करने के मक़सद से पिछले दशकों में ये क़वायद हुई थी. महामारी की आमद से पहले ही ग़रीबी और भुखमरी का संकट तेज़ी से बढ़ने लगा था. जलवायु परिवर्तन, आपदाओं, टिड्डियों के हमलों और संघर्ष की परिस्थितियों के चलते पहले से ही ऐसे हालात बने हुए थे. पिछले 2 वर्षों में लॉकडाउन के चलते आजीविका के नुक़सान और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट से परिस्थितियां और बिगड़ गईं. यूक्रेन युद्ध ने बढ़ती खाद्य असुरक्षा और खाद्य संकट से जुड़ी आशंकाओं को और बढ़ा दिया है. मूल्य में बढ़ोतरी और खाद्य आपू्र्ति श्रृंखला में बाधा से करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं. 

महामारी और युद्ध ने दुनिया भर में महंगाई बढ़ा दी है. इससे खाद्य और ईंधन का गहरा संकट पैदा हो गया है. विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया के सभी देशों (चाहे उनकी आय कुछ भी हो) पर 5 फ़ीसदी से ज़्यादा मूल्य वृद्धि की मार पड़ी है. सबसे ज़्यादा प्रभाव निम्न आय वाले 94 प्रतिशत देशों पर पड़ा है. ऊंची आय वाले 70 फ़ीसदी देश भी इस संकट से बच नहीं पाए हैं.

महामारी और युद्ध ने दुनिया भर में महंगाई बढ़ा दी है. इससे खाद्य और ईंधन का गहरा संकट पैदा हो गया है. विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया के सभी देशों (चाहे उनकी आय कुछ भी हो) पर 5 फ़ीसदी से ज़्यादा मूल्य वृद्धि की मार पड़ी है. सबसे ज़्यादा प्रभाव निम्न आय वाले 94 प्रतिशत देशों पर पड़ा है. ऊंची आय वाले 70 फ़ीसदी देश भी इस संकट से बच नहीं पाए हैं. 2022 के कॉमोडिटी मार्केट्स आउटलुक के मुताबिक युद्ध ने व्यापार, उत्पादन और उपभोग के रुझान बदल डाले हैं. इससे मूल्य वृद्धि हुई है और खाद्य असुरक्षा और महंगाई के हालात और संगीन हो गए हैं. दरअसल ऊर्जा की क़ीमतों में बढ़ोतरी से कृषि और उत्पादन की लागत बढ़ती है. इससे खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ जाते हैं. 

खाद्य संकट का बुरा मंज़र

विश्व खाद्य क़ीमतों में साल दर साल के हिसाब से 20.7 प्रतिशत का उछाल आया है. इससे महंगाई बढ़ गई है. युद्ध ने खाद्य क़ीमतों में 40 प्रतिशत तक का उछाल ला दिया है. महामारी, जलवायु परिवर्तन और युद्ध के मिले-जुले प्रभावों के चलते भुखमरी और कुपोषण में गिरावट के वैश्विक रुझान पलटने लगे हैं. पहले से ही सूखे और अकाल की मार झेल रहे इलाक़ों में मूल्य वृद्धि और खाद्य संकट का सबसे बुरा मंज़र सामने है. यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका जैसे ऊंची आय वाले खाद्य सुरक्षित देशों में भी खाद्य असुरक्षा के चलते लागत से जुड़ी महंगाई का प्रभाव साफ़ दिख रहा है. हालात 2007-08 के विश्व खाद्य संकट जैसे ही हैं, जिसके नतीजे के तौर पर आर्थिक अस्थिरता, भोजन सामग्रियों की किल्लत और मूल्य में बढ़ोतरी देखने को मिली थी. 

खाद्य संकटों पर 2022 के वैश्विक रिपोर्ट से भुखमरी के ख़तरनाक हालात का पता चलता है. संघर्षों, आर्थिक दुश्वारियों और मौसम के चरम रुख़ के चलते 19.3 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं.

खाद्य संकटों पर 2022 के वैश्विक रिपोर्ट से भुखमरी के ख़तरनाक हालात का पता चलता है. संघर्षों, आर्थिक दुश्वारियों और मौसम के चरम रुख़ के चलते 19.3 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं.

 

बढ़ती जनसंख्या खाद्य सुरक्षा के सामने एक और ख़तरा बन गई है. फ़िलहाल दुनिया की आबादी 7.6 अरब है. 2050 तक इसके 9.8 अरब और 2100 तक 11.2 अरब का आंकड़ा छू लेने का अनुमान है. खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के मुताबिक ‘जनसंख्या में बेहिसाब बढ़ोतरी से दुनिया में खाद्य आपूर्ति को ख़तरा है’. 2027 के आसपास विश्व में भोजन की मांग के हिसाब से आपूर्ति के कहीं पीछे छूट जाने की आशंका है. 

2022 में विश्व बैंक द्वारा 83 देशों में फ़ोन पर किए गए त्वरित सर्वेक्षण से महामारी के दौरान परिवारों में कैलोरी के ज़रूरत से कम उपभोग और पोषण के स्तर में गिरावट आने का ख़ुलासा हुआ था. खाद्य असुरक्षा का बच्चों की सेहत और मानसिक विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है. इस संकट ने खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर दिया है. इससे खाद्य उत्पादन प्रभावित हुआ है. साथ ही संसाधन दुर्लभ और महंगे होते चले गए हैं. 

ये बात जगज़ाहिर है कि दुनिया भुखमरी को पूरी तरह से मिटाने से जुड़े सतत विकास लक्ष्य 2 को हासिल करने के रास्ते से भटक चुकी है. 2030 तक दुनिया में तक़रीबन 84 करोड़ लोगों के भुखमरी से प्रभावित होने की आशंका है.

भोजन की किल्लत, नवजात बच्चों के पोषण से जुड़ी ख़ामियों, बचपन में होने वाली बीमारियों और स्वच्छता और साफ़ पीने के पानी के अभाव के चलते खाद्य संकट का सामना कर रहे देशों में बच्चों के कुपोषण का स्तर काफ़ी ऊंचा है. UNICEF के मुताबिक संकटग्रस्त देशों में वैश्विक भुखमरी के चलते हरेक मिनट एक बच्चा गंभीर कुपोषण के मकड़जाल में फंसता जा रहा है. यूक्रेन युद्ध और महामारी के आर्थिक प्रभावों से बढ़ती क़ीमतों के चलते बच्चों में गंभीर कुपोषण की समस्या विनाशकारी स्तर तक पहुंच गई है. 

वैश्विक खाद्य व्यवस्था की ख़ामियां 

ये बात जगज़ाहिर है कि दुनिया भुखमरी को पूरी तरह से मिटाने से जुड़े सतत विकास लक्ष्य 2 को हासिल करने के रास्ते से भटक चुकी है. 2030 तक दुनिया में तक़रीबन 84 करोड़ लोगों के भुखमरी से प्रभावित होने की आशंका है. महामारी के चलते वैश्विक खाद्य व्यवस्था की ख़ामियां और कमज़ोरियां बढ़ती जा रही हैं. इससे भोजन के उत्पादन, वितरण और उपभोग पर असर पड़ रहा है. 2020 से अतिरिक्त 4 करोड़ लोगों के सामने खाद्य असुरक्षा का संकट पैदा हो गया है. ये एक चिंताजनक रुझान है. खाद्य संकट से निपटने के लिए ग़रीबी और असमानता के बुनियादी निर्धारकों का निपटारा किए जाने की ज़रूरत है. 

हालात बेहद गंभीर हैं. लिहाज़ा जीवन और आजीविका बचाने के लिए उसी पैमाने पर कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है. खाद्य संकट, जलवायु संकट और महामारी के प्रभावों से निपटने के लिए एकीकृत रुख़ अपनाना होगा.

खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की दरों के डरावने स्तर से वैश्विक खाद्य व्यवस्थाओं की कमज़ोरियां खुलकर सामने आ गई हैं. प्राकृतिक आपदाओं, महामारी, बढ़ते संघर्ष और असुरक्षा और खाद्य महंगाई ने इस संकट को और विकराल बना दिया है. यूक्रेन संघर्ष ने दुनियाभर में खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे करोड़ों लोगों की मौजूदा चुनौतियों को और गंभीर बना दिया है. काला सागर बंदरगाह से यूक्रेन और रूस द्वारा निर्यात किए जाने वाली खाद्य सामग्रियों पर असर पड़ने से खाने-पीने के सामानों की किल्लत और गहरा गई है. रूस और यूक्रेन दुनिया में गेहूं और मक्के के निर्यात में क्रमश: 30 और 18 प्रतिशत का योगदान देते हैं. 

टिकाऊ खाद्य व्यवस्थाओं में निवेश की दरकार

संघर्ष और अस्थिरता दुनिया के देशों को पीछे धकेलती हैं. इससे विकास से जुड़े फ़ायदे नष्ट हो जाते हैं और आजीविका तबाह हो जाती है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 76वें सत्र में वैश्विक खाद्य संकट के निपटारे के लिए “वैश्विक खाद्य सुरक्षा से जुड़े हालात” पर एक प्रस्ताव पारित किया है. वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकारों, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी, सिविल सोसाइटी, निजी क्षेत्र और परोपकारी संगठनों के साझा प्रयासों की दरकार है. मसलन G7 के नेताओं  ने कमज़ोर वर्गों को भुखमरी से बचाने और वैश्विक खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है. हालात बेहद गंभीर हैं. लिहाज़ा जीवन और आजीविका बचाने के लिए उसी पैमाने पर कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है. खाद्य संकट, जलवायु संकट और महामारी के प्रभावों से निपटने के लिए एकीकृत रुख़ अपनाना होगा. हालात बदलने की क्षमता विकसित करने और संकट से बाहर निकलने की क़वायद सुनिश्चित करने के लिए टिकाऊ खाद्य व्यवस्थाओं में निवेश की दरकार है. 

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