Published on Jan 01, 1970 Updated 0 Hours ago

पश्चिम से बढ़ते दबाव के बावजूद यूक्रेन संकट पर भारत अपने दृष्टिकोण पर क़ायम है.

अंतरराष्ट्रीय संबंध: रूस और पश्चिम के बीच भारत की व्यवहार-कुशलता सफलतापूर्वक जारी है!

यूक्रेन में रूसी सैन्य अभियान के एक और महीने में प्रवेश करने पर, पश्चिम द्वारा भारत समेत गैर-पश्चिमी देशों को बार-बार बाध्य किया जा रहा है कि वे रूस को इस संकट की अतिरिक्त क़ीमत चुकाने और नतीजे भुगतने के लिए मजबूर करें. हाल ही में, जी-7 शिखर सम्मेलन में भारत की मौजूदगी के संबंध में, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा समन्वयक जॉन किर्बी ने कहा कि हालांकि अमेरिका भारत के साथ एक गहरी साझेदारी चाहेगा, लेकिन वॉशिंगटन यूक्रेन को लेकर रूस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी चाहता है.

बाइडेन प्रशासन में अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र के लिए पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह ने भारत को चेताया था कि अगर उसने रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी प्रतिबंधों को किसी भी तरह से कमज़ोर करने का फ़ैसला किया तो इसके ‘नतीजे’ होंगे.

बीते कुछ महीनों में भारत पर लगातार दबाव रहा है. पहले, जो बाइडेन ने नरेंद्र मोदी से कहा था कि रूसी तेल ख़रीदना भारत के हित में नहीं होगा, वहीं बाइडेन प्रशासन में अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र के लिए पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह ने भारत को चेताया था कि अगर उसने रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी प्रतिबंधों को किसी भी तरह से कमज़ोर करने का फ़ैसला किया तो इसके ‘नतीजे’ होंगे. इसके पूर्व, भारत को रूस के साथ हथियार सौदे के लिए काट्सा (CAATSA) के तहत अमेरिकी प्रतिबंधों की धमकी भी झेलनी पड़ी है. फिर भी, अनिश्चितता के मंडराते बादलों के बावजूद, भारत पश्चिम के साथ अपने राजनयिक संबंधों को बहुत कुशलता से आगे बढ़ाता नज़र आता है, जबकि रूस के साथ समय की कसौटी पर खरी अपनी उस रणनीतिक साझेदारी को भी नहीं भुलाया है जो आज़ादी के समय से है और अब भी लाभकारी बनी हुई है.

रूस-यूक्रेन युद्ध पर स्पष्ट रुख़

यूक्रेन में सैन्य अभियान के संबंध में भारत की स्थिति शुरू से ही स्पष्ट रही है: नयी दिल्ली ने आक्रमण पर आंखें मूंदे बिना शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान किया. लेकिन, रूस के साथ अपने दीर्घकालिक और मज़बूत रिश्ते को देखते हुए, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा महासभा में रूस के ख़िलाफ़ मतदान में हिस्सा नहीं लिया. पश्चिम और रूस के बीच भारत द्वारा हिसाब-किताब लगाकर बिठाये गये संतुलन ने भारत को अमेरिका और रूस दोनों से फ़ायदा दिलाया है. 

यूक्रेन मुद्दे पर भारत की स्थिति की पश्चिम द्वारा मुखर अस्वीकृति के बावजूद, ऐसी रिपोर्ट है कि अमेरिका भारत के साथ सुरक्षा संबंध गहरे करने के लिए 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का सैन्य सहायता पैकेज तैयार कर रहा है. यह क़दम भारत को इज़राइल और मिस्र के बाद इस तरह के पैकेज के सबसे बड़ा प्राप्तकर्ताओं में शामिल करेगा. भारत ने हाल ही में अमेरिका से क़रीब से जुड़े देश, इज़राइल के साथ भी अपना मौजूदा रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए एक फ्रेमवर्क अंगीकार किया.

ऐसी रिपोर्ट है कि अमेरिका भारत के साथ सुरक्षा संबंध गहरे करने के लिए 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का सैन्य सहायता पैकेज तैयार कर रहा है. यह क़दम भारत को इज़राइल और मिस्र के बाद इस तरह के पैकेज के सबसे बड़ा प्राप्तकर्ताओं में शामिल करेगा.

रूस के साथ अपने तेल व्यापार के चलते भारत बीते कुछ महीनों में तीख़ी आलोचना झेलता रहा है. इसके बावजूद, रूस मई महीने में भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया, और वह सिर्फ़ इराक से पीछे था. मई में, भारतीय तेल शोधकों ने मोटामोटी 8,19,000 बैरल रूसी तेल प्रतिदिन (जो किसी भी महीने में सर्वाधिक है) प्राप्त किया, जबकि अप्रैल में यह लगभग 2,77,000 बैरल था. 2021 में, भारत ने अपने कुल तेल आयात का केवल लगभग 2 फ़ीसद (1.2 करोड़ बैरल) रूस से ख़रीदा था. भारत के तीन शीर्ष आपूर्तिकर्ता पश्चिम एशियाई देश थे, जिनके बाद अमेरिका और नाइजीरिया का स्थान था. लेकिन इस साल आंकड़े जिस तरह आगे बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए लगता है कि पिछले साल रूस से भारत को हुई तेल आपूर्ति काफ़ी पीछे छूट जायेगी.

भारतीय प्रतिनिधियों ने अपने रुख़ को यह कहकर जायज़ ठहराया है कि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के 80 फ़ीसद से ज़्यादा का बाहर से आयात करता है. रूस जैसे भरोसेमंद साझेदार से अत्यधिक छूट वाली क़ीमतों (30 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल या ज़्यादा) पर तेल जैसी अनमोल जिन्स के व्यापार का परित्याग करना भारत के राष्ट्रीय हित में नहीं होगा.

साझा रणनीतिक हित

विदेश मंत्री डॉ एस. जयशंकर भी पहले यह इंगित करते हुए चीज़ों को परिप्रेक्ष्य में रख चुके हैं कि भारत जितना तेल रूस से एक महीने में ख़रीदता है उससे ज़्यादा यूरोप एक दुपहरी में ख़रीदता है. इसके अलावा, रूस द्वारा फरवरी में यूक्रेन में यह सैन्य अभियान शुरू करने के बाद से, यूरोपीय संघ में पंप किये जाने वाले तेल की मात्रा, रिपोर्टों के मुताबिक़, बढ़ रही थी. अर्गस मीडिया ने प्रकाशित किया कि जनवरी और अप्रैल के बीच तेल की आपूर्ति 7,50,000 से बढ़कर 8,57,000 बैरल प्रतिदिन हो गयी, जो 14 फ़ीसद की वृद्धि थी. लिहाज़ा, भारत जैसे विकासशील, ऊर्जा पर निर्भर देश की अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने की कोशिश के लिए आलोचना करना पाखंड होगा.

अपने मज़बूत संबंधों को जारी रखने के दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित करते हुए, भारत और रूसी बैंकों ने एक द्विपक्षीय भुगतान प्रणाली का रास्ता निकालने के लिए चर्चा शुरू की है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यापार प्रवाह अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन न करे.

इसके अलावा, अपने मज़बूत संबंधों को जारी रखने के दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित करते हुए, भारत और रूसी बैंकों ने एक द्विपक्षीय भुगतान प्रणाली का रास्ता निकालने के लिए चर्चा शुरू की है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्यापार प्रवाह अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन न करे. दोनों तरफ़ के बैंक लोरो या नोस्ट्रो खातों जैसे समाधानों को तलाशेंगे. पहला एक तृतीय-पक्ष खाता है, जिसमें एक बैंक देश में दूसरे बैंक के लिए खाता रखता है. दूसरे में, एक बैंक दूसरे देश में दूसरे बैंक में खाता रखता है.

इसमें कोई शक नहीं कि साझा रणनीतिक हितों के चलते भारत बीते दो दशकों में अमेरिका के क़रीब खिसका है, लेकिन रूस के साथ भारत का रिश्ता इतना महत्वपूर्ण है कि उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. भारत की आज़ादी के शुरुआती वर्षों के दौरान, तत्कालीन सोवियत संघ भारत के साथ व्यापार करने और भारतीय रुपये के रूप में भुगतान स्वीकार करने को तैयार था. शीत युद्ध के दौरान भारत की गुट-निरपेक्षता की आधिकारिक स्थिति ने द्विपक्षीय रिश्तों का और ज़्यादा फलना-फूलना संभव बनाया. रक्षा व्यापार इस रिश्ते का एक बड़ा स्तंभ बना. कश्मीर, क्राइमिया और यूक्रेन जैसे अत्यधिक विवादित मुद्दों पर रूस और भारत ने महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक दूसरे की खुल्लमखुल्ला आलोचना से परहेज़ भी किया है. शीत युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने भारत के शत्रुतापूर्ण पड़ोसी पाकिस्तान के साथ बेहद क़रीबी गठजोड़ बना लिया था, तब सोवियत संघ ही वह महाशक्ति थी जिसने भारत का पक्ष लिया.

इसके साथ ही साथ, चीनी विस्तारवाद पर दोनों देशों के एक जैसे आकलन को देखते हुए भारत अमेरिका को अपना विरोधी बनाने का बोझ नहीं उठा सकता. इसी सिलसिले में दोनों देश क्वॉड का हिस्सा भी हैं. भारत अमेरिका के राजनीतिक समर्थन को दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति के रूप में भी महत्व देता है और ऐसे कई मोर्चों पर भारत के साथ ठोस व्यापारिक संबंध रखता है जो भारतीय हितों के लिए अपृथक्करणीय रूप से बेहद अहम हैं. इसलिए, भारत को दबावों के बीच संतुलन बनाये रखने की ज़रूरत है, और यह फ़िलहाल ठीक काम करता दिख रहा है.

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