जब जोसफ़ नाइ ने ‘सॉफ्ट पावर’ शब्द को गढ़ा तो इसे लोगों ने काफ़ी ग़लत ढंग से समझा क्योंकि इस शब्द के अलग-अलग मायने हैं. सॉफ्ट पावर की धारणा को सिर्फ़ “गैर-व्यावसायिक ताक़त जैसे कि सांस्कृतिक और व्यावसायिक सामान” के रूप में देखा गया. आज के समय में सॉफ्ट पावर विदेश नीति के परंपरागत औज़ारों को हटाती है और उनकी जगह ऐसे विचारों को लाती है जिसमें सोच का निर्माण कर, अंतर्राष्ट्रीय प्रासंगिकता के नियमों को स्थापित कर और देश के संसाधनों की तरफ़ ध्यान आकर्षित कर, उन्हें दुनिया के लिए जैविक रूप से लाभदायक बनाकर “असर” को फैलाया जाता है. वैसे तो वैश्विक मंच को सॉफ्ट पावर का सही मतलब समझने में समय लगा लेकिन जल्द ही ये विदेश नीति का सबसे ज़्यादा पहले से मौजूद लेकिन इसके बावजूद ग़ैर-मान्यता प्राप्त मूल सिद्धांत के रूप में समझी जाने लगी. पश्चिम और यूरोप के कुछ देशों ने हॉलीवुड, ब्लू जींस फ़ैशन या एक वैश्विक बाज़ार के ज़रिए अपनी संस्कृति का प्रसार करके ‘सॉफ्ट पावर’ को लेकर घिसा-पिटा रुख़ अपनाया. चीन जैसे कुछ देश इस मामले में देर से आए लेकिन तब भी वो आश्चर्यजनक रूप से प्रासंगिक हैं.
आज के समय में सॉफ्ट पावर विदेश नीति के परंपरागत औज़ारों को हटाती है और उनकी जगह ऐसे विचारों को लाती है जिसमें सोच का निर्माण कर, अंतर्राष्ट्रीय प्रासंगिकता के नियमों को स्थापित कर और देश के संसाधनों की तरफ़ ध्यान आकर्षित कर, उन्हें दुनिया के लिए जैविक रूप से लाभदायक बनाकर “असर” को फैलाया जाता है.
चूंकि पश्चिमी देशों की संस्कृति बाक़ी दुनिया के लिए आदर्श बन गई और पूरी दुनिया में “सामान्य” या “आधुनिक” के रूप में स्वीकार्य हो गई, ऐसे में चीन ने इसका मुक़ाबला करने के लिए चीनी पद्धति की आधुनिक दवाओं, हर्बल चाय, कन्फ्यूशियस से जुड़े संस्थानों, ऐतिहासिक समृद्धि और अपनी भाषा की लोकप्रियता को सॉफ्ट पावर की कूटनीति के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.
नाइ ने सॉफ्ट पावर की जो परिभाषा दी थी, उसकी बुनियादी ज़रूरतों- संस्कृति, मान्यताएं और नीतियों- को पूरा करने में चीन को अक्सर अविश्वास की नज़रों से देखा जाता है. अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया से अलग चीन विदेशों में अपनी प्रतिष्ठा को दिखाने में नाकाम है. उस वक़्त से लेकर अभी तक बहुत कुछ बदल गया है और चीन ने अपने सॉफ्ट पावर का शानदार इस्तेमाल किया है. आज के समय मे चीन एक ऐसे देश का प्रमुख उदाहरण है जो कि अपने “स्मार्ट पावर” की क्षमता के साथ खड़ा है. दुनिया भर में कन्फ्यूशियस से जुड़े संस्थानों की स्थापना से लेकर आज के समय की वैक्सीन कूटनीति के ज़रिए चीन ने साबित किया है कि वो दुनिया भर, ख़ास तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया, में ड्रैगन है.
वैक्सीन कूटनीति और सॉफ्ट पावर
दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्र में राजनीतिक फ़ायदा उठाने के साथ-साथ चीन इस अवसर का इस्तेमाल वैक्सीन के बंटवारे के ज़रिए अपनी औषधीय और आर्थिक ताक़त को बढ़ाने में कर रहा है.
चीन-आसियान लोक स्वास्थ्य सहयोग पहल के लागू होने से (आसियान-चीन संवाद के तहत 2005-2010, 2011-2015 और 2016-2020 की अवधि के लिए) आसियान मेडिकल इमरजेंसी मेडिकल मैटेरियल रिज़र्व को समर्थन में बढ़ोतरी हुई जिससे इस क्षेत्र में लोगों के स्वास्थ्य को लेकर क्षमता निर्माण में भी मज़बूती आई. 2020 में सार्स-कोव-2 के प्रसार को विश्व समुदाय के द्वारा मुख्य रूप से चीन की ग़लती या फिर वुहान की एक प्रयोगशाला से फैलने के रूप में देखा गया. वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से सार्स-कोव-2 वायरस के लीक होने की अटकलों को काफ़ी मज़बूती मिली. वर्तमान में चीन के द्वारा सॉफ्ट पावर बढ़ाने की कोशिशों को उस वक़्त तगड़ा झटका लगा जब मीडिया में सार्स-कोव-2 वायरस को “वुहान वायरस” के रूप में कहे जाने की शुरुआत हो गई.
महामारी का संकट चीन के लिए दुनिया भर में अपनी ताक़त दिखाने का न सिर्फ़ एक मौक़ा बना बल्कि इसका इस्तेमाल चीन ने अपनी मौजूदा सॉफ्ट पावर की पहल को मज़बूत करने और उसका फ़ायदा उठाने में भी किया. दक्षिण-पूर्व एशिया में भेजी गई वैक्सीन चीन के लिए इस क्षेत्र में एक बार फिर अपना असर दिखाने और अपनी सॉफ्ट पावर का पूरी तरह इस्तेमाल करने का तरीक़ा था.
लेकिन जल्द ही ये विमर्श चीन के पक्ष में चला गया क्योंकि उसने महामारी का इस्तेमाल न सिर्फ़ अपनी प्रतिष्ठा में आई चोट को ठीक करने में किया बल्कि वैक्सीन, किट और स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी दूसरी ज़रूरतों की आपूर्ति करने में सबसे आगे रहने के अवसर के रूप में भी किया. चीन ने वैक्सीन कूटनीति वाली सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल वायरस की उत्पति को लेकर दुनिया भर के लोगों का ध्यान बंटाने में करने का फ़ैसला किया. अपने देश में कोविड के मामलों को नियंत्रित करने में चीन ने फ़ौरन और असरदार क़दम उठाए ताकि वो बाहर की तरफ़ देखे और संकट की इस घड़ी में उभर सके. साथ ही इस मौक़े का इस्तेमाल जनसंपर्क की रणनीति के रूप में कर सके. महामारी का संकट चीन के लिए दुनिया भर में अपनी ताक़त दिखाने का न सिर्फ़ एक मौक़ा बना बल्कि इसका इस्तेमाल चीन ने अपनी मौजूदा सॉफ्ट पावर की पहल को मज़बूत करने और उसका फ़ायदा उठाने में भी किया. दक्षिण-पूर्व एशिया में भेजी गई वैक्सीन चीन के लिए इस क्षेत्र में एक बार फिर अपना असर दिखाने और अपनी सॉफ्ट पावर का पूरी तरह इस्तेमाल करने का तरीक़ा था.
जुलाई 2020 में चीन की वैक्सीन का पहला ट्रायल ब्राज़ील में हुआ और इसके साथ ही वैक्सीन कूटनीति की शुरुआत हो गई. इसके तुरंत बाद नवंबर 2020 में चीन ने अपने देश में बनी वैक्सीन के निर्यात के लिए ज़्यादातर मध्यम और निम्न-मध्यम देशों की कंपनियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए. मिस्र उन कुछ शुरुआती देशों में से था जिसने चीन की सरकारी वैक्सीन कंपनी सिनोफार्म की वैक्सीन को स्वीकार किया.
चीन की वैक्सीन कूटनीति के दो अलग-अलग तरह के नतीजे निकले हैं. चीन की वैक्सीन के असर को लेकर सवाल ज़रूर खड़े हुए हैं लेकिन सच्चाई ये है कि चीन उस वक़्त मदद के लिए आगे आया जब पश्चिमी देश तैयार नहीं थे.
नाइ की ये परिभाषा कि “हर कोई नतीजों को पाने के लिए दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता ज़बरदस्ती या भुगतान के बदले अपनी तरफ़ आकर्षित करने के ज़रिए चाहता है” के मुताबिक़ चीन के लिए वैक्सीन कूटनीति अपनी स़ॉफ्ट पावर को दिखाने का एक शक्तिशाली औज़ार है. चीन ने कुल मिलाकर 102 देशों को वैक्सीन और दूसरी सहायता भेजी है. लगभग 476.8 मिलियन वैक्सीन डोज़ में से आधी से ज़्यादा डोज़ एशिया-पैसिफिक में भेजी गई. आसियान ने महामारी का जवाब देने के लिए अप्रैल 2020 में कोविड-19 क्षेत्रीय कोष की स्थापना की. चीन ने इस फंड में 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का दान किया.
चीन की पहल को दक्षिण-पूर्व एशिया में बाधाओं का सामना भी करना पड़ा और सबसे बड़ी बाधा कोविड-19 का डेल्टा वेरिएंट बना. मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम में डेल्टा वेरिएंट के रोज़ाना के मामले बहुत ज़्यादा थे लेकिन सिनोवैक और सिनोफार्म की वैक्सीन वायरस के इस स्ट्रेन का मुक़ाबला करने में ज़्यादा असरदार नहीं थी.
सारणी 1: चीन की वैक्सीन कूटनीति का संक्षिप्त विवरण
देश |
वैक्सीन |
वितरण |
कुल डोज़ |
इंडोनेशिया |
सिनोवैक, सिनोफार्म, कैनसिनो |
ख़रीद |
126,000,000;15,000,00; 15,000,000 |
वियतनाम |
सिनोफार्म |
ख़रीद |
500,000 |
म्यांमार |
सिनोवैक |
ख़रीद/दान |
500,000 |
कंबोडिया |
सिनोफार्म |
दान |
10,000,000 |
लाओस |
सिनोफार्म |
दान |
11,00,000 |
मलेशिया |
सिनोवैक, सिनोफार्म, कैनसिनो |
ख़रीद |
12,000,000; 20,000,000; 3,5000,000 |
थाईलैड |
सिनोवैक |
ख़रीद |
20000000 |
फिलीपींस |
सिनोवैक |
ख़रीद और दान |
25,0600,000 (600,000 + 25,000,000) |
स्रोत: 24 मार्च 2021 को द डिप्लोमैट में इवाना करासकोवा और वेरोनिका ब्लाब्लोवा का छपा लेख “द लॉजिक ऑफ चाइनाज़ वैक्सीन डिप्लोमैसी”
निष्कर्ष
25 फरवरी 2021 के ग्लोबल सॉफ्ट पावर इंडेक्स के मुताबिक़ चीन पांचवें पायदान से खिसककर आठवें नंबर पर आ गया. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि “चीन के नीचे आने की संभावित वजह वुहान शहर में कोविड-19 के मामलों की वैश्विक मीडिया कवरेज है. ये स्थिति तब है जब वुहान के प्रशासन ने इस संकट का बेहद कुशलता से समाधान किया और चीन दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से है जिसने इस महामारी को नियंत्रण में कर लिया है और 2020 के अंत में सकारात्मक जीडीपी विकास दर दर्ज किया है”. वैसे, जहां तक बात दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों की है तो उनके पास चीन पर निर्भर रहने के अलावा कोई और विकल्प क़रीब-क़रीब नहीं बचा है. बहुत समय के बाद जब पश्चिम और यूरोप के देशों में मामले नियंत्रित हो गए तब जाकर उन्होंने वैक्सीन के निर्यात पर ध्यान दिया.
चीन की वैक्सीन कूटनीति के दो अलग-अलग तरह के नतीजे निकले हैं. चीन की वैक्सीन के असर को लेकर सवाल ज़रूर खड़े हुए हैं लेकिन सच्चाई ये है कि चीन उस वक़्त मदद के लिए आगे आया जब पश्चिमी देश तैयार नहीं थे. आसियान और क्षेत्रीय सुरक्षा के फ़ायदों के ज़रिए चीन पहले से ही दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्र में फ़ायदे की स्थिति में है. चीन की इन कोशिशों में महामारी ख़राब स्थिति में भी वरदान साबित हुई है और इसने एक बार फिर इस क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को साबित किया है.
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