Published on Jun 24, 2022 Updated 0 Hours ago

घरेलू गैस की उपलब्धता में कमी के कारण भारत में प्राकृतिक गैस की खपत में कमी देखी जा रही है.

भारत में प्राकृतिक गैस की खपत: इससे जुड़े दो क्षेत्रों की ताज़ा स्थिति

2013 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (पीएनजीआरबी) द्वारा प्राकृतिक गैस के बुनियादी ढांचे पर विज़न 2030 रिपोर्ट जारी किया गया जिसमें कहा गया कि प्राकृतिक गैस के लिए “यथार्थवादी मांग” साल 2020-21 तक 6.8 प्रतिशत की सीएजीआर (मिश्रित औसत वृद्धि दर) से बढ़कर 516.97 एमएमएससीएमडी (मीट्रिक मिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रति दिन) हो जाएगी. गैस की मांग में गैस आधारित उत्पादन को लगभग 46 प्रतिशत का योगदान देना था, जबकि उर्वरक क्षेत्र की हिस्सेदारी 2013 में 25 प्रतिशत से गिरकर 2021 में लगभग 20 प्रतिशत होने की उम्मीद थी. इसी अवधि में सीजीडी (सिटी गैस वितरण) का हिस्सा 6 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 9 प्रतिशत होने की उम्मीद थी, जबकि उद्योग को साल 2020-21 में लगभग 7 प्रतिशत की हिस्सेदारी देनी थी. साल 2021-21 तक पेट्रोकेमिकल्स को 15 प्रतिशत, जबकि आयरन एंड स्टील को क़रीब 2 प्रतिशत योगदान देना था. रिपोर्ट के मुताबिक़ “यथार्थवादी मांग” ने उन सीमित कारकों पर ही विचार किया जो विकास को बाधित कर सकते थे. साल 2020 की शुरुआत में वास्तविकता इससे ज़्यादा अलग नहीं हो सकती थी.

प्राकृतिक गैस की खपत मुख्य रूप से घरेलू गैस की उपलब्धता में कमी की वज़ह से साल 2011-12 के स्तर से नीचे गिर गई. खपत केवल साल 2015-16 में फिर से बढ़ी, क्योंकि तब तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) अपेक्षाकृत सस्ती थी और आयात के आंकड़े में तेज़ी देखी थी.

प्राकृतिक गैस की खपत मुख्य रूप से घरेलू गैस की उपलब्धता में कमी की वज़ह से साल 2011-12 के स्तर से नीचे गिर गई. खपत केवल साल 2015-16 में फिर से बढ़ी, क्योंकि तब तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) अपेक्षाकृत सस्ती थी और आयात के आंकड़े में तेज़ी देखी थी. प्राकृतिक गैस की खपत का आंकड़ा साल 2011-12 में 176.58 एमएमएससीएमडी था जो केवल साल 2019-20 के 175.74 एमएससीएमडी की खपत के आंकड़े के साथ मेल खाती है. हालांकि कोरोना महामारी से संबंधित लॉकडाउन की पाबंदियों के ख़त्म होने के बाद खपत की मात्रा बढ़ने लगी है लेकिन यह कहीं भी अनुमानित स्तर के क़रीब नहीं है. अनुमानों में एक और बड़ा अंतर उन क्षेत्रों को देखने पर पता चलता है जिन्हें विकास में योगदान देना था. उर्वरक क्षेत्र मौज़ूदा वक़्त में प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है जो कुल खपत का लगभग 30 प्रतिशत इस्तेमाल में लाता है. बिजली क्षेत्र जिससे गैस के सबसे बड़े उपभोक्ता होने की उम्मीद लगाई जा रही थी, यह क्षेत्र साल 2021-22 में खपत का केवल 15 प्रतिशत भागीदार रहा और खपत को लेकर यह तीसरे स्थान पर आ गया, जबकि सीजीडी जिससे खपत में केवल 9 फ़ीसदी हिस्सेदारी की उम्मीद थी, साल 2021-22 में खपत में उसकी भागीदारी 20 प्रतिशत की रही और वह दूसरे स्थान पर चला आया. विभिन्न कारकों ने उर्वरक और सीजीडी में प्राकृतिक गैस की खपत की बढ़ोतरी को प्रभावित किया है क्योंकि इन दोनों सेक्टरों की कुल खपत में हिस्सेदारी 50 फ़ीसदी की है.

उर्वरक क्षेत्र

गैस आवंटन नीति में उर्वरक क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाती है, जो दुर्लभ घरेलू प्राकृतिक गैस की राशनिंग व्यवस्था है. इस तरह की प्राथमिकता अभी भी दी जा रही है लेकिन घरेलू गैस की मात्रा जिसे उर्वरक उद्योग (और अन्य प्राथमिकता वाले उद्योगों) को आवंटित किया जा सकता है, उसमें तेज़ी से गिरावट दर्ज़ की जा रही है क्योंकि प्राकृतिक गैस के उत्पादन में कमी आई है. साल 2012-13 में उर्वरक उद्योग द्वारा खपत की गई कुल गैस का 76 प्रतिशत से अधिक हिस्सा घरेलू स्तर पर उत्पादित किया गया था. इसके विपरीत, साल 2021-22 में उर्वरक के उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली प्राकृतिक गैस का 68 प्रतिशत से अधिक एलएनजी आयात किया गया था.

गैस आवंटन नीति में उर्वरक क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाती है, जो दुर्लभ घरेलू प्राकृतिक गैस की राशनिंग व्यवस्था है. इस तरह की प्राथमिकता अभी भी दी जा रही है लेकिन घरेलू गैस की मात्रा जिसे उर्वरक उद्योग (और अन्य प्राथमिकता वाले उद्योगों) को आवंटित किया जा सकता है, उसमें तेज़ी से गिरावट दर्ज़ की जा रही है क्योंकि प्राकृतिक गैस के उत्पादन में कमी आई है.

किसानों को खाद इसके उत्पादन लागत पर 70 फ़ीसदी की छूट पर बेचा जाता है और जो अंतर इसमें पाया जाता है वह उर्वरक उद्योग को सब्सिडी के तौर पर सरकार देती है. साल 2015 तक उर्वरक उद्योग को प्रशासनिक मूल्य तंत्र (एपीएम) के तहत 4.2/एमएम बीटीयू अमेरिकी डॉलर (शुद्ध कैलोरी मानक आधार) की क़ीमत पर घरेलू प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की जाती थी लेकिन जब सरकार ने साल 2015 में घरेलू प्राकृतिक गैस के लिए एक नए मूल्य निर्धारण फॉर्मूले को अपनाया, तो उर्वरक उद्योग को आपूर्ति की जाने वाली घरेलू गैस की क़ीमत लगभग 4.66 / एमएम बीटीयू  अमेरिकी डॉलर (सकल कैलोरी मानक आधार पर) तक बढ़ गई लेकिन फिर यह मार्च 2022 में करीब 2.99/ एमएम बीटीयू  अमेरिकी डॉलर तक नीचे गिर गई. इसके बाद से ही घरेलू गैस के लिए फॉर्मूला-आधारित मूल्य 10/एमएम बीटीयू अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा दिया गया और आयातित एलएनजी की क़ीमत 20-35/एमएमबीटीयू अमेरिकी डॉलर के आसपास मंडरा रही है. क्योंकि कृषि क्षेत्र के लिए खाद का उत्पादन बेहद अहम है, गैस की क़ीमतों में वृद्धि को सरकार सब्सिडी देकर नियंत्रित करती है. उर्वरक उद्योग के लिए गैस की क़ीमतों (घरेलू और आयातित) की पूलिंग सभी खाद कारखानों के लिए एक समान क़ीमत पर की जाती है,चाहे किसी भी खाद कारखाने द्वारा एलएनजी कितनी मात्रा में इस्तेमाल किया जा रहा हो.

इसके अतिरिक्त, बंद पड़े खाद कारखानों को फिर से शुरू करने के लिए लगभग 500 बिलियन रुपये का निवेश, 2650 किलोमीटर लंबी जगदीशपुर-हल्दिया और बोकारो-धामरा प्राकृतिक गैस पाइपलाइन में निवेश, जिसे ‘प्रधान मंत्री ऊर्जा गंगा‘ के रूप में सरकार ‘दूसरी हरित क्रांति’ बताती है, वह भी प्राकृतिक गैस की खपत को लगातार बढ़ावा दे रही है. कई खाद कारखाने जो ऐतिहासिक रूप से नेफ्था  को फीडस्टॉक के रूप में इस्तेमाल करते थे, वो अब या तो प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर ये बदलाव जल्द अपनाने वाले हैं, जिससे गैस की खपत में भारी तेज़ी आई है. विश्लेषकों ने आयातित एलएनजी क़ीमतों में बढ़ोतरी के कारण खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी में हुई वृद्धि को रेखांकित किया है और ज़्यादा से ज़्यादा हरित विकल्पों को इस्तेमाल में लाने की अपील करते हैं लेकिन उत्पादन की जटिल प्रकृति को देखते हुए निकट भविष्य में ऐसे बदलाव की उम्मीद करना फिलहाल बेमानी होगी.

शहरी गैस वितरण क्षेत्र

साल 2007 में पीएनजीआरबी (पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड) ने परिवहन के लिए सीएनजी (कंप्रेस्ड नैचुरल गैस) और घरों और उद्योगों के लिए पाइप्ड नैचुरल गैस (पीएनजी) कनेक्शन की आपूर्ति के लिए भारत के 30 से लेकर 3000 से अधिक शहरों में सीजीडी नेटवर्क का विस्तार करने की योजना बनाई. अक्टूबर 2015 में, भारत में कुल 1026 सीएनजी स्टेशन और 30 लाख से अधिक पीएनजी कनेक्शन थे. मार्च 2022 में 4013 सीएनजी स्टेशन (जीएजीआर 21.51 प्रतिशत) और 9 मिलियन से अधिक पीएनजी कनेक्शन (सीएजीआर 17.16 प्रतिशत) थे. राष्ट्रीय गैस ग्रिड को मौज़ूदा 20,000 किमी से बढ़ाकर लगभग 35,000 किमी किया जाना है. 11वीं सीजीडी नीलामी के पूरा होने के बाद भारत की 96 प्रतिशत आबादी और इसके भौगोलिक क्षेत्र का 86 प्रतिशत सीजीडी नेटवर्क के तहत आने की उम्मीद है. दावा है कि 86 प्रतिशत आबादी जो सीजीडी के तहत कवर की गई है, वो केवल संभावित पहुंच से जुड़ा है ना कि वास्तविक उपयोग से इसका कोई लेना देना है. 90 मिलियन (या लगभग 3 प्रतिशत) पीएनजी कनेक्शन की तुलना में 300 मिलियन एलपीजी कनेक्शन हैं.

उपभोक्ताओं पर एलएनजी आयात लागत में बढ़ोतरी का भार नहीं पड़े इसके लिए सीजीडी ऑपरेटरों की क्षमता को सीमित की जाती है. औद्योगिक उपभोक्ता भी क़ीमत के प्रति संवेदनशील होते हैं और अगर प्रदूषण के नियमों को लागू नहीं किया जाता है तो वे सस्ते विकल्पों की तरफ रूख़ कर सकते हैं.

साल 2021-22 में, सीजीडी खपत का 48 प्रतिशत एलएनजी आयात से प्राप्त किया गया था. उर्वरक उद्योग के विपरीत, सीजीडी उद्योग, सैद्धांतिक रूप में उपभोक्ताओं के लिए गैस की क़ीमत में वृद्धि कर सकता है. हालांकि पीएनजी के घरेलू उपभोक्ता, इसकी क़ीमत के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं, लिहाज़ा उपभोक्ताओं पर एलएनजी आयात लागत में बढ़ोतरी का भार नहीं पड़े इसके लिए सीजीडी ऑपरेटरों की क्षमता को सीमित की जाती है. औद्योगिक उपभोक्ता भी क़ीमत के प्रति संवेदनशील होते हैं और अगर प्रदूषण के नियमों को लागू नहीं किया जाता है तो वे सस्ते विकल्पों की तरफ रूख़ कर सकते हैं.

मुद्दे


ऊर्जा और पर्यावरण संबंधी चिंताओं की वज़ह से उर्वरक क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की खपत में वृद्धि देखी जा रही है. हरित क्रांति के समय से ही, खाद का घरेलू उत्पादन उन नीतियों से लाभान्वित हुआ है जो खाद्य सुरक्षा और किसान आय के संरक्षण के दोहरे लक्ष्यों का समर्थन करती हैं. इसका मतलब यह है कि उर्वरक उद्योग के लिए प्राकृतिक गैस की उपलब्धता, उर्वरक उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण इनपुट, और उर्वरकों की क़ीमत को सीमित करने के लिए प्राकृतिक गैस की क़ीमत को सब्सिडी देना जारी रखना होगा. उर्वरक क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की खपत, चाहे क़ीमत कुछ भी हो, इस उम्मीद से प्रेरित होती है कि सरकार से मिलने वाली सब्सिडी क़ीमतों के अंतर को पाट देगी. हालांकि उर्वरक उद्योग की यह शिकायत रही है कि सरकारी गारंटियां अभी भी पर्याप्त नहीं हैं और समय पर पूरी नहीं होती हैं. यह एक भरोसेमंद आश्वासन जैसा ही है कि उद्योग परोक्ष रूप से इस पर निर्भर करता है. अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों में नैतिक जोख़िम के तौर पर इसे बताया गया है और यह किसी तरह की गारंटी नहीं है जिसे सभी गैस खपत वाले क्षेत्रों को दिया जा सके.

सीजीडी के मामले में, जो चीज़ें खपत को बढ़ावा देती हैं वो ऊर्जा और पर्यावरण से संबंधित हैं. शुरुआत में इसकी खपत तरल परिवहन ईंधन के कारण शहरी प्रदूषण को लेकर चिंताएं और प्राकृतिक गैस जैसे विकल्पों का उपयोग करने के लिए अदालत द्वारा लागू जनादेश, जो प्रदूषण के स्तर को कम करने की बात पर टिकी थी, उससे जुड़ी हुई थी. बाद में घरों में भोजन तैयार करने के लिए सब्सिडी वाली बोतलबंद एलपीजी की जगह लेने की संभावना ने पीएनजी कनेक्शन के विस्तार को हवा दी. इससे ना केवल एलपीजी पर सब्सिडी का बोझ कम हुआ बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में वितरण के लिए एलपीजी सिलेंडर भी उपलब्ध हुए जो राजनीतिक रूप से काफी अहम साबित हुए. परिवहन ईंधन के रूप में गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की दूसरी वज़ह तेल के विकल्पों से इसकी क़ीमत को लेकर प्रतिस्पर्द्धा थी. पेट्रोल और डीज़ल जैसे भारी कर वाले पेट्रोलियम उत्पादों के मुक़ाबले गैस पर कम टैक्स लगने से यह परिवहन के लिए ईंधन के रूप में सस्ता विकल्प बन गया. कोयले और पेटकोक जैसे सस्ते विकल्पों पर औद्योगिक इस्तेमाल के लिए प्राकृतिक गैस को पर्यावरण से संबंधित जनादेश द्वारा बढ़ावा दिया जाता है.

परिवहन ईंधन के रूप में गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की दूसरी वज़ह तेल के विकल्पों से इसकी क़ीमत को लेकर प्रतिस्पर्द्धा थी. पेट्रोल और डीज़ल जैसे भारी कर वाले पेट्रोलियम उत्पादों के मुक़ाबले गैस पर कम टैक्स लगने से यह परिवहन के लिए ईंधन के रूप में सस्ता विकल्प बन गया

इन वज़हों ने सीजीडी क्षेत्र में गैस की खपत में बढ़ोतरी तो ज़रूर की है लेकिन ये लंबी अवधि में टिकाऊ नहीं हो सकते हैं. प्रतिस्पर्द्धी ईंधन के रूप में गैस कम मूल्यवान हो सकता है, क्योंकि सीजीडी में महंगे आयातित एलएनजी की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है. घरेलू कनेक्शन से अपर्याप्त रिटर्न भी सीजीडी के विस्तार को बाधित कर सकता है. जबकि सीजीडी में लेन-देन की लागत, जैसे ग्राहक अधिग्रहण की क़ीमत अधिक है. सघन आबादी वाले शहरों में यह प्रति ग्राहक 15,000 रुपये जितना अधिक है और कम घनी आबादी वाले शहरों में यह और अधिक महंगा हो सकता है. रास्ते तक पहुंच और परिवहन के लिए रास्ते का अधिकार भी पीएनजी पाइपलाइन नेटवर्क के विस्तार को काफी हद तक बाधिक करता है. प्रतिस्पर्द्धी सीएनजी आपूर्तिकर्ताओं को पाइपलाइनों में खुली पहुंच प्रदान करने की नीति सीजीडी नेटवर्क में निवेश की मात्रा को कम कर सकता है. हालांकि, सीजीडी क्षेत्र में कम समय में विकास की गति के बरक़रार रहने की संभावना है, ख़ास कर तब तक जब तक कि पेट्रोलियम से इसकी प्रतिस्पर्द्धा बनाए रखी जाती है.

स्रोत – पीपीएसी

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Authors

Akhilesh Sati

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Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

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Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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