Published on Jun 23, 2022 Updated 0 Hours ago

आर्थिक गुण के लिहाज़ से अग्निपथ योजना में कुछ कसर रह सकती है, लेकिन यह रेजीमेंट प्रणाली में बड़ा सामाजिक बदलाव ला सकती है.

अग्निपथ योजना से जुड़े सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों की पड़ताल

ये लेख निबंध श्रृंखला अग्निपथ योजना: बड़ा सुधार या तर्कहीन? का भाग है. 


सभी सैन्य प्रतिष्ठानों में आरंभिक स्तर के सैनिकों के लिए इस साल 14 जून को घोषित अग्निपथ योजना के सात फ़ायदे गिनाये गये हैं. किसी नुक़सान को सूची में नहीं रखा गया है, लेकिन सोशल मीडिया और राय देने वाले लेखों में सेवानिवृत्त अधिकारियों व ‘दूसरे वर्गों’ की भावावेशपूर्ण, प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं इन्हें लेकर मुखर हैं. इस तरह की प्रतिक्रियाओं के आलोक में, हक़ीक़त को जांचना तो बनता ही है.

राजकोषीय सुधार नहीं है यह

अग्निपथ अगले 18 महीनों में 46,000 अग्निवीरों की भर्ती करेगा, जिनके लिए चार साल का कार्यकाल अनिवार्य होगा. आख़िर में, उनमें से 11,500 (25 फ़ीसद) को सेना के एक उपयुक्त खंड में शामिल कर लिया जायेगा. बाकी 75 फ़ीसद (34,500) को नागरिक जीवन में लौट जाने के लिए 11.7 लाख रुपये के बर्ख़ास्तगी पैकेज के साथ छुट्टी दे दी जायेगी. यह बर्ख़ास्तगी कोष आंशिक रूप से स्व-वित्तपोषित होगा. मासिक वेतन, जो पहले साल में 30,000 रुपये से बढ़ते हुए चौथे साल में 40,000 रुपये हो जायेगा, से 30 फ़ीसद की अनिवार्य कटौती होगी. सरकार भी इस कटौती के बराबर राशि का योगदान देगी, जिस पर ब्याज (दर ज्ञात नहीं) जुड़ेगा.

अग्निपथ अगले 18 महीनों में 46,000 अग्निवीरों की भर्ती करेगा, जिनके लिए चार साल का कार्यकाल अनिवार्य होगा. आख़िर में, उनमें से 11,500 (25 फ़ीसद) को सेना के एक उपयुक्त खंड में शामिल कर लिया जायेगा. बाकी 75 फ़ीसद (34,500) को नागरिक जीवन में लौट जाने के लिए 11.7 लाख रुपये के बर्ख़ास्तगी पैकेज के साथ छुट्टी दे दी जायेगी

आर्थिक लाभ के आकलन के लिए, हम मान लेते हैं कि इसी वेतनमान पर 19 (4+15) सालों तक भर्ती चलती रहेगी. चौथे साल से, 184,000 (46,000X4) नौजवान, अस्थायी रूप से नियुक्त अग्निवीरों/सैनिकों/सिपाहियों का एक फ्लोटिंग पूल (ज़रूरत पड़ने पर काम के लिए उपलब्ध लोगों का समूह) होगा, जो कुल सैनिक संख्या के 15 फ़ीसद के बराबर होगा. उनका नकद भुगतान समस्या नहीं है, क्योंकि यह नियमित सिपाही को मिलने वाले वेतन के समतुल्य ही है.

असल समस्या यह है कि पांचवें साल से 34,500 (46,000 का 75 फ़ीसद) व्यक्तियों की छुट्टी की जायेगी. उनके बर्ख़ास्तगी पैकेज की सालाना लागत 4,036.5 करोड़ रुपये (स्थिर मूल्यों पर) आती है. यह 2022-23 के वेतन बजट का 2.5 फ़ीसद है. एक बार की बात करें, तो यह सैनिक संख्या में 15 फ़ीसद वृद्धि का बोझ उठाने लायक है. एक दीर्घकालिक नीति के रूप में, इसका कोई तुक नहीं दिखता.

अब मान लीजिए कि सरकार इसके बजाय, इतनी ही संख्या में नियमित सिपाहियों को भर्ती करती है. 15 साल (एक सिपाही की सामान्य सेवा अवधि) पूरे होने पर भुगतान न किये गये/बचत किये गये सेवानिवृत्ति लाभ का संचित मूल्य, आठ फ़ीसद ब्याज के साथ, 70,017 करोड़ रुपये (प्रति सिपाही 2.03 करोड़ रुपये) होगा. किसी की पेंशन और मेडिकल लाभ के लिए यह पर्याप्त कोष (कॉर्पस) लगता है. साफ़ तौर पर, यहां प्रेरणा राजकोषीय या पेंशन सुधार नहीं है. दरअसल, उक्त फ्लोटिंग पूल, जिसके पूर्व सदस्यों की संख्या 2042 तक 5 लाख होगी, को समर्थन देने के लिए अतिरिक्त लागत के बारे में सोचा गया है.

एक बड़े सामाजिक बदलाव की राह तैयार

यह भर्ती नीति में आमूलचूल बदलाव है, जो सबसे ज्यादा थलसेना और उसमें भी पैदल सेना (इन्फैंट्री) को प्रभावित करेगा जो औपनिवेशिक रेजीमेंट प्रणाली के तहत संगठित है. सबसे बड़ा संभावित परिवर्तन सामाजिक-राजनीतिक है. केवल ‘लड़ाकू नस्लों’ से सिपाही भर्ती करने के अब भी जारी औपनिवेशिक चलन के ख़िलाफ़ जंग छिड़ गयी है. आज, प्राय: इसका आशय लड़ाकू जातियों- जाट, सिख, मराठा, राजपूत और गोरखा से है, क्योंकि रेजिमेंटल परंपराएं और पूर्वाग्रह बहुत गहरे हैं. ये सब इस तथ्य की वजह से क़ायम है कि सेना अपनी भर्ती ख़ुद करती है, जो जजों की नियुक्ति के मामले पर भी बीस है. ग़ौरतलब है कि सेना अनुसूचित जातियों (एससी) या अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए जाति आधारित आरक्षण का पालन नहीं करती.

यह भर्ती नीति में आमूलचूल बदलाव है, जो सबसे ज्यादा थलसेना और उसमें भी पैदल सेना (इन्फैंट्री) को प्रभावित करेगा जो औपनिवेशिक रेजीमेंट प्रणाली के तहत संगठित है. सबसे बड़ा संभावित परिवर्तन सामाजिक-राजनीतिक है. केवल ‘लड़ाकू नस्लों’ से सिपाही भर्ती करने के अब भी जारी औपनिवेशिक चलन के ख़िलाफ़ जंग छिड़ गयी है

इसके उलट, अग्निवीरों के लिए ‘अखिल भारतीय, सर्व वर्गीय’ भर्ती ऑनलाइन है और कोई भी अर्हताधारी भारतीय आवेदन कर सकता है. समय के साथ, यह पैदल सेना रेजीमेंटों की जातीय एवं क्षेत्रीय संरचना और उनके पूर्वाग्रहों को हल्का करेगा. यह भी ग़ौर करना अहम है कि जारी प्रेस नोट रेजीमेंटों की जातीय संरचना में इतने बड़े संभावित सामाजिक परिवर्तन को अनदेखा करता है, शायद इसलिए कि यही बदलाव है जो सबसे ज़्यादा आलोचित है.

सिपाहियों की प्रेरणा में कमी आयेगी?

रेजीमेंटल संरचना के साथ छेड़छाड़ को लेकर चिंता यह है कि रेजीमेंट के भीतर के क़रीबी सांस्कृतिक और जातीय जुड़ाव छीन  सकते हैं, जिसका नतीजा जीवन का सर्वोच्च बलिदान देने की प्रेरणा की कमी के रूप में सामने आ सकता है. औपनिवेशिक काल से, सिपाही अपनी जान के ख़तरे का सामना उस ठसक के साथ करते आ रहे हैं, जो उनके गांव, जाति या क्षेत्र के नायकों की शान के अनुरूप हो. जंग में तपे अधिकारियों और जूनियर कमीशन्ड ऑफिसर्स का मानना है कि यह अपने पुरखों के सम्मान की रक्षा का जोश है, जो भारतीय जवानों को उत्कृष्टता के लिए प्रेरित करता है. प्रशिक्षण के ज़रिये ग्रहण की गयी प्रेरणा तथा किसी भी क़ीमत पर देश की रक्षा के लिए आगे बढ़कर नेतृत्व करने वाले अपने अधिकारियों का व्यक्तिगत उदाहरण, अतिरिक्त उत्प्रेरक हैं.

अग्निवीर उत्कृष्टता हासिल करने तथा शीर्ष 25 फ़ीसद में जगह बनाने और सेना में शामिल होने के अपने दृढ़संकल्प से प्रेरित हो सकते हैं. सेना में शामिल हुए ये अग्निवीर दोहरी ‘अग्निपरीक्षा’ (एक बार भर्ती के लिए और दूसरी बार अपने बैच के शीर्ष एक-चौथाई में शामिल होने के लिए) से गुज़रने के कारण एक विशेष दर्जा भी हासिल कर सकते हैं.

यह चिंता जायज़ है, लेकिन यह ज़्यादा सामान्य क़िस्म के प्रेरकों की अनदेखी करती है. अग्निवीर उत्कृष्टता हासिल करने तथा शीर्ष 25 फ़ीसद में जगह बनाने और सेना में शामिल होने के अपने दृढ़संकल्प से प्रेरित हो सकते हैं. सेना में शामिल हुए ये अग्निवीर दोहरी ‘अग्निपरीक्षा’ (एक बार भर्ती के लिए और दूसरी बार अपने बैच के शीर्ष एक-चौथाई में शामिल होने के लिए) से गुज़रने के कारण एक विशेष दर्जा भी हासिल कर सकते हैं.

नयी प्रबंधन चुनौतियां

प्रेस नोट यह भी ऐलान  करता है कि यह योजना देश की सेवा के लिए नौजवानों को एक अनोखा अवसर देती है. यह सच है क्योंकि पहले शॉर्ट सर्विस कमीशन केवल अधिकारियों के लिए था, सैनिकों के लिए नहीं. एक चिंता यह है कि हर साल के लिए ज़रूरी न्यूनतम सिपाही भर्ती में अग्निवीर सेंधमारी करेंगे क्योंकि कुल वार्षिक भर्ती में कोई वृद्धि नहीं की गयी है. इसके अलावा, चार साल पूरे होने पर मिलने वाली मोटी रकम (केंद्रीय पुलिस सेवाओं में तरजीही भर्ती समेत) मौक़ापरस्तों को आकर्षित कर सकती है, जो ख़ुद को देश की हिफ़ाजत के लिए समर्पित करने (जैसा कि नियमित सिपाहियों ने पीढ़ियों से किया है) के बजाय चार साल के बाद की ज़िंदगी में दिलचस्पी रखते हों. ज़्यादा मूल बात यह है कि, गहरे तक प्रतिबद्ध जवानों के साथ ‘मौक़ापरस्तों’ का घालमेल भारतीय पैदल सेना के लिए बिलकुल नयी प्रबंधन चुनौती है.

यह योजना, वास्तव में, सेना के सांख्यिकीय एज प्रोफाइल को घटायेगी. लेकिन असल सवाल यह है कि क्या कम उम्र के लोगों को वो पद मिलेंगे जो मायने रखते हैं. डर यह है कि रेजीमेंट के कमांडर नियमित सिपाहियों के मुक़ाबले अग्निवीरों (30 सैनिकों के प्रति प्लाटून पर लगभग पांच) की उपेक्षा करेंगे, और उन्हें हाशिये की भूमिकाओं में लगायेंगे.

प्रेस नोट सेवा शर्तों को आकर्षक कहकर ठीक ही विज्ञापित करता है – मासिक वेतन के साथ ही चार साल पूरे होने पर 11.7 लाख की करमुक्त राशि, वह भी महज़ 22 से 26 साल की उम्र में और दूसरी नौकरी की संभावना के साथ. कोई आश्चर्य नहीं कि, इस क़दम का निजी क्षेत्र के सुरक्षा प्रदाताओं द्वारा स्वागत किया गया है. उन्हें पूर्व-प्रशिक्षित और कुशल कर्मियों की उपलब्धता बढ़ने की उम्मीद है.

कुछ सिफ़ारिशें

अग्निवीर इतने अधिक रोल मॉडल बन सकते हैं कि अभ्यर्थी 15 साल के लिए नियमित सिपाही बनने के ज़्यादा कठिनाई भरे कार्य से मुंह मोड़ना शुरू कर सकते हैं. कुछ संशोधन इस दोष को दूर करने में मदद कर सकते हैं.

सबसे पहले, शीर्ष 25 फ़ीसद के लिए नियमित सिपाही के रूप में प्रोन्नति को वैकल्पिक बनाएं. यह ‘मौक़ापरस्तों’ से छुटकारा दिलायेगा और उन दूसरे लोगों को मौक़ा देगा जो सूची में नीचे हैं, लेकिन सिर्फ़ चयनित होने के बजाय लंबी सेवा देने की प्रतिबद्धता से लैस हैं. बीच में छोड़ने वालों (ड्रॉपआउट्स) का ऊंचा अनुपात यह भी दिखायेगा कि योजना कुछ ज़्यादा ही आकर्षक है और इन्सेंटिव कम किये जा सकते हैं.

अग्निवीर योजना की घोषणा सितंबर 2023 तक 10 लाख सरकारी पद भरे जाने के लक्ष्य के साथ तालमेल बिठाते हुए की गयी है. इसे देखते हुए, यह सरकार में रिक्त कौशल की पूर्ति के लिए लक्षित भर्ती के बजाय एक कल्याणकारी कार्यक्रम ज़्यादा लगता है. राजनीतिक रूप से प्रेरित कार्यक्रमों की उम्र ज़्यादा नहीं होती और वे सरकार के काम करने के तरीक़े में गैरज़रूरी व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैं

दूसरा, गेमर्स (शौकिया अग्निवीरों) को प्रेरित करने के लिए – जो बस तब तक समय काट रहे हैं जब तक उन्हें उनके लाभ हासिल नहीं हो जाते – हर बैच के सबसे निचले 25 फ़ीसद अग्निवीर केवल घटे हुए सेवानिवृत्ति पैकेज के योग्य हो सकेंगे, जिसमें केवल उनके व्यक्तिगत योगदान की रकम ब्याज के साथ शामिल होगी, सरकारी योगदान की नहीं.

अग्निवीर योजना की घोषणा सितंबर 2023 तक 10 लाख सरकारी पद भरे जाने के लक्ष्य के साथ तालमेल बिठाते हुए की गयी है. इसे देखते हुए, यह सरकार में रिक्त कौशल की पूर्ति के लिए लक्षित भर्ती के बजाय एक कल्याणकारी कार्यक्रम ज़्यादा लगता है. राजनीतिक रूप से प्रेरित कार्यक्रमों की उम्र ज़्यादा नहीं होती और वे सरकार के काम करने के तरीक़े में गैरज़रूरी व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैं. आर्थिक सिद्धांतों के आधार पर अग्निपथ का कोई ख़ास तुक नहीं लगता, लेकिन एक सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन की राह यह खोल सकता है.

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