इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको (जोकोवी) विडोडो का कार्यकाल ख़त्म होने के कगार पर होने और इंडोनेशिया के चुनाव आयोग के द्वारा फरवरी 2024 में हुए चुनाव में प्रबोवो सुबियांतो की जीत की पुष्टि के बाद अब समय ये देखने का है कि प्रबोवो प्रशासन के तहत भारत-इंडोनेशिया का संबंध क्या रूप लेता है. प्रबोवो इस साल अक्टूबर में जोकोवी की जगह देश का शीर्ष नेतृत्व संभालने वाले हैं. ये पहला मौका होगा जब इंडोनेशिया एक ही राजनीतिक गठबंधन के दो प्रशासनों के बीच सत्ता के परिवर्तन का साक्षी बनेगा. जोकोवो ने इस साल के राष्ट्रपति चुनाव में प्रबोवो और उपराष्ट्रपति के रूप में जिब्रान रकाबूमिंग रका की उम्मीदवारी का समर्थन किया था. इस बात की तरफ ध्यान दिलाया गया है कि “अगला प्रशासन वास्तव में जोकोवी के तीसरे कार्यकाल की तरह लग रहा है या कम-से-कम निरंतरता का प्रतिनिधित्व कर रहा है”. इसलिए सवाल ये खड़ा होता है कि क्या हम न केवल घरेलू राजनीति और मुद्दों में बल्कि विदेश नीति में भी प्रबोवो के पूर्ववर्ती की नीतियों के जारी रहने और उनका पालन करने को देखेंगे? प्रबोवो के नेतृत्व में इंडोनेशिया की विदेश नीति क्या रूप लेगी और इसमें भारत की जगह कहां होगी?
प्रबोवो का नीतिगत ध्यान
अपने चुनाव अभियान के दौरान ज़्यादातर समय प्रबोवो ने मौजूदा राष्ट्रपति जोकोवो की नीतियों को जारी रखने का भरोसा दिलाया. प्रबोवो इंडोनेशिया की विदेश नीति पर ज़ोर देने वाले लंबे समय से प्रतिष्ठित स्वतंत्र एवं सक्रिय (बेबास डैन अक्तिफ) सिद्धांतों और गुटनिरपेक्षता को बढ़ाएंगे. लेकिन जोकोवी की तरह उनकी विदेश नीति के केंद्र में मुख्य रूप से आर्थिक कूटनीति रहती है या नहीं, ये देखा जाना अभी बाकी है. कई विश्लेषकों की ये राय है कि प्रबोवो प्रशासन की विदेश नीति की धारा “अर्थशास्त्र से भरी कूटनीति” नहीं होगी बल्कि इसके बदले प्रबोवो वैश्विक मामलों में इंडोनेशिया के द्वारा एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करने की दिशा में काम करना चाहेंगे. इसके साथ-साथ आर्थिक, रक्षा और सुरक्षा मुद्दों पर उसी तरह ध्यान दिया जाएगा. अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया कि इंडोनेशिया एक गुटनिरपेक्ष देश है और वो दूसरे देशों के साथ साझेदारी और दोस्ती कायम करना चाहता है. लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि “सैन्य शक्ति से देश को ताकत मिलती है. सैन्य ताकत के बिना मानव सभ्यता का इतिहास हमें ये सबक देगा कि मौजूदा समय के गज़ा की तरह किसी देश को कुचल दिया जाएगा.” इसलिए ये उम्मीद की जा सकती है कि प्रबोवो के नेतृत्व में इंडोनेशिया की विदेश नीति सुरक्षा पर ज़्यादा केंद्रित होगी. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में समान विचार वाले देशों के साथ सुरक्षा और रक्षा साझेदारी करना इस प्रशासन के लिए एक प्राथमिकता होगी.
प्रबोवो प्रशासन की विदेश नीति की धारा “अर्थशास्त्र से भरी कूटनीति” नहीं होगी बल्कि इसके बदले प्रबोवो वैश्विक मामलों में इंडोनेशिया के द्वारा एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करने की दिशा में काम करना चाहेंगे.
ये स्थिति भारत को इंडोनेशिया के साथ अपनी सामरिक और सुरक्षा साझेदारी मज़बूत करने का एक अवसर प्रदान करती है. भारत ने अपने रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने की कोशिश के तहत पिछले दिनों फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल की पहली खेप डिलीवर की. भारत ने 2022 में भी वियतनाम को 12 हाई-स्पीड गश्ती नाव (पेट्रोल बोट) मुहैया कराई, उसके साथ पारस्परिक साजो-सामान साझा करने का एक समझौता किया और दोनों देशों ने 2030 तक के लिए रक्षा संबंधों को लेकर एक विज़न स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर किए. भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी सामरिक और रक्षा साझेदारी को मज़बूत करने पर ध्यान दे रहा है. इस दिशा में फिलीपींस और वियतनाम के साथ शुरुआती कदम पहले ही उठा लिए गए हैं. ये वैश्विक किरदार और ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) में एक मज़बूत आवाज़ के रूप में उभरने की भारत की बढ़ती महत्वाकांक्षा के मुताबिक है. अब समय आ गया है कि भारत इंडोनेशिया के साथ भी इसी तरह के रक्षा ख़रीद समझौतों पर विचार करे जो न सिर्फ हिंद महासागर में भारत का पड़ोसी है बल्कि जिसे आसियान के भीतर भी सबसे असरदार माना जाता है. प्रबोवो ने जुलाई 2020 में भारत की यात्रा की थी जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी को बढ़ाना था. दोनों देशों ने 2018 में एक व्यापक सामरिक साझेदारी की थी और 2018 से द्विपक्षीय नौसैनिक युद्ध अभ्यास समुद्र शक्ति में शामिल रहे हैं. दोनों देशों ने 2018 में ‘इंडो-पैसिफिक में भारत-इंडोनेशिया समुद्री सहयोग के साझा दृष्टिकोण’ की पुष्टि की थी. अब समय आ गया है कि भारत द्विपक्षीय संबंध को और आगे ले जाए.
प्रबोवो की सैन्य पृष्ठभूमि और रक्षा मंत्री के रूप में उनके मौजूदा कार्यकाल को देखते हुए उनके प्रशासन के तहत इंडोनेशिया की विदेश नीति में बदलाव देखने की उम्मीद की जाती है. 2019 से इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री के रूप में प्रबोवो ने कई देशों जैसे कि लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (लाओ PDR), फ्रांस, मलेशिया और अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग समझौते किए और आने वाले महीनों में ऑस्ट्रेलिया के साथ भी इस तरह का समझौता करने वाले हैं. उन्होंने अमेरिका, तुर्किए, फ्रांस, दक्षिण कोरिया और यूनाइटेड किंगडम के साथ ख़रीद के समझौतों पर हस्ताक्षर किए. प्रबोवो ने एक रक्षा आधुनिकीकरण कार्यक्रम को भी पूरा किया जिसकी वजह से 2020 में रक्षा खर्च में 15.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और ये 9.4 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया. 2022 में रक्षा खर्च बढ़कर 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया. ये उम्मीद की जाती है कि 2024-2029 की अवधि के दौरान मुख्य रूप से उपकरणों की ख़रीद और घरेलू रक्षा उद्योग के निर्माण पर 46.6 अरब अमेरिकी डॉलर और खर्च होने वाले हैं. प्रबोवो द्वीप समूहों से बने इंडोनेशिया की समुद्री रक्षा क्षमता को मज़बूत करने के लिए इंडोनेशिया की नौसेना और वायुसेना को बेहतर बनाकर रक्षा आधुनिकीकरण कार्यक्रम को जारी रखेंगे. इंडोनेशिया की नौसेना की क्षमता को बढ़ाने के मामले में प्रबोवो नई गश्ती नाव और युद्धपोत ख़रीद कर बेड़े को बेहतर बना सकते हैं. इससे निगरानी की क्षमता मज़बूत होगी और देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र के भीतर ज़्यादा समुद्री मौजूदगी की सुविधा मिलेगी. सुरक्षा ख़तरों पर नज़र रखने और उनका जवाब देने के लिए आधुनिक रडार सिस्टम, समुद्री निगरानी एयरक्राफ्ट और एरियल ड्रोन की तैनाती के ज़रिए समुद्री क्षेत्र में जागरूकता बढ़ाई जा सकती है. विवादित साउथ चाइना सी में फिलीपींस जैसे दूसरे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ चीन के ज़िद्दी व्यवहार में बढ़ोतरी को देखते हुए इंडोनेशिया की समुद्री रक्षा क्षमता को बढ़ाना ज़रूरी है. नतूना सागर में इंडोनेशिया और चीन भी एक ही क्षेत्र पर दावा करते हैं.
ये कहा गया है कि उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य रक्षा तकनीक और उपकरणों के ट्रांसफर के लिए 2021 के सुरक्षा समझौते को अपडेट करना था.
चुनाव के बाद प्रबोवो की पहली विदेश यात्रा अप्रैल में जापान, चीन और मलेशिया की थी. इसलिए ये भी साफ है कि प्रबोवो इंडोनेशिया में बुनियादी ढांचे के विकास में योगदान के उद्देश्य से आर्थिक लाभ हासिल करने के लिए चीन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहेंगे. जकार्ता को बांडुंग से जोड़ने वाली वूश हाई-स्पीड रेल लाइन को 700 किलोमीटर और बढ़ाने की संभावना को लेकर बातचीत जारी है. वहीं, इंडोनेशिया के विश्लेषकों का मानना है कि प्रबोवो के सत्ता में आने के साथ इंडोनेशिया की साउथ चाइना सी से जुड़ी नीति में बदलाव आने की उम्मीद की जा सकती है. ये कहा गया है कि “प्रबोवो नतुना द्वीप के इर्द-गिर्द समुद्र में प्रतिरोध के रूप में नौसैनिक बल बनाने पर ध्यान देना चाहेंगे क्योंकि यहां चीन के मछली पकड़ने वाले जहाज़ों और गश्ती नावों के द्वारा नियमित रूप से अतिक्रमण किया जा रहा है. साथ ही इंडोनेशियाई नौसेना की रक्षा और समुद्री क्षमताओं के विस्तार पर ध्यान होगा. इस तरह की रणनीति के साथ प्रबोवो उत्तर नतुना सागर में एक अधिक निर्भीक नीति को लागू करेंगे. उनका जापान और चीन- दोनों देश जाना दर्शाता है कि प्रबोवो जापान को चीन की तरह ही एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखते हैं”. ये कहा गया है कि उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य रक्षा तकनीक और उपकरणों के ट्रांसफर के लिए 2021 के सुरक्षा समझौते को अपडेट करना था. उन्होंने जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और भारत जैसे देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने की अपनी इच्छी भी जताई. इंडोनेशिया समुद्री रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका जैसे देशों के साथ काम कर सकता है.
भारत-इंडोनेशिया रक्षा संबंध
भारत-इंडोनेशिया के बीच कूटनीतिक संबंधों की 75वीं सालगिरह के मौके पर भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय, भारत के दूतावास और इंडोनेशिया गणराज्य के रक्षा मंत्रालय के द्वारा 30 अप्रैल 2024 को जकार्ता में पहली बार “भारत-इंडोनेशिया रक्षा उद्योग प्रदर्शनी-सह-सेमिनार” का आयोजन किया गया. इस आयोजन में भारत के रक्षा क्षेत्र की 12 सार्वजनिक कंपनियों (DPSU या SOE) समेत 36 प्रमुख रक्षा कंपनियों ने भाग लिया. वहीं इंडोनेशिया की तरफ से इंडोनेशिया के रक्षा क्षेत्र के सरकारी स्वामित्व वाले कई उद्यमों और प्राइवेट रक्षा प्रतिष्ठानों के साथ-साथ 25 प्राइवेट कंपनियां शामिल हुईं. ये वास्तव में सही दिशा में एक कदम है. लेकिन दोनों देशों के सशस्त्र बलों, रक्षा मंत्रालयों और मंत्रियों के बीच मौजूदा भारत-इंडोनेशिया साझा रक्षा समिति की नियमित बैठकों और चर्चाओं के अलावा ‘रक्षा विकास के लिए सहयोगात्मक दृष्टिकोण’ पर चर्चा करने के उद्देश्य से दोनों देशों के सरकारी एवं प्राइवेट सेक्टर के रक्षा उद्योगों के बीच भी चर्चा की आवश्यकता है. ऐसा लगता है कि भारत और इंडोनेशिया के लिए भविष्य में 2+2 मीटिंग की मेज़बानी की संभावना पर विचार करने का ये सही समय है.
भविष्य में इस तरह की रक्षा प्रदर्शनियों और सेमिनार में भारत और इंडोनेशिया- दोनों देशों की समुद्री और जहाज़ बनाने वाली कंपनियों को भी शामिल करना चाहिए.
भविष्य में इस तरह की रक्षा प्रदर्शनियों और सेमिनार में भारत और इंडोनेशिया- दोनों देशों की समुद्री और जहाज़ बनाने वाली कंपनियों को भी शामिल करना चाहिए. प्रबोवो प्रशासन के तहत भारत-इंडोनेशिया संबंधों को और मज़बूत करने में समुद्री सहयोग, समुद्री संपर्क और समुद्री क्षमता निर्माण मुख्य प्रेरक होने चाहिए. जैसा कि ऊपर बताया गया है, इंडोनेशियाई रक्षा बलों, विशेष रूप से नौसैनिक बल, का आधुनिकीकरण प्रबोवो प्रशासन के द्वारा अपनाई जाने वाली मुख्य नीतियों में से एक होने की उम्मीद है. इसलिए इस लक्ष्य को हासिल करने में इंडोनेशिया की मदद करने के लिए भारत की तरफ से बहुत ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है. ऐसी ख़बरें आई हैं कि वायुसेना के लिए उसके आधुनिकीकरण लक्ष्य का 51 प्रतिशत और थल सेना एवं नौसेना के लिए क्रमश: 60 प्रतिशत और 76 प्रतिशत पूरा कर लिया गया है. ‘सामूहिक समुद्री सुरक्षा की स्थिति’ को मज़बूत करने के लिए साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत है. इंडोनेशिया के साथ रक्षा संबंधों को मज़बूत करने से भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया में एक उभरते सामरिक, रक्षा एवं सुरक्षा किरदार के रूप में देखे जाने में भी भी मदद मिलेगी. हाल के दिनों के सर्वे से पता चला है कि भारत इस पहलू को लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया में पिछड़ रहा है और उसे इस क्षेत्र में सामरिक रूप से सबसे कम महत्वपूर्ण किरदारों में से एक के रूप में देखा जा रहा है. इसके अलावा, ये भारत को 2030 तक अग्रणी रक्षा निर्यातकों में से एक बनने के अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने में भी मदद करेगा.
प्रेमेशा साहा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
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