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ये लेख निबंध श्रृंखला “बुडापेस्ट एडिट” का हिस्सा है.
2025 में वैश्विक परिदृश्य को तकनीक, भू-राजनीति और जलवायु के क्षेत्र में आ रहे बदलावों का संगम आकार दे रहा है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णायक नेतृत्व और सहयोग वाले ढांचे की ज़रूरत होगी, जो नीतियों को वास्तविक कार्रवाई में तब्दील कर सके.
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) द्वारा अर्थव्यवस्थाओं और प्रशासन को नए सिरे से गढ़ने का सिलसिला जारी है. लेकिन, इसका बेलगाम विस्तार समता और अनैतिक दुरुपयोग से जुड़ी चिंताओं को भी जन्म दे रहा है. आधार और एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) समे डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारत का अनुभव समावेश और विस्तारित उपयोग के बीच संतुलन के सबक़ सिखाता है. दुनिया भर के नीति निर्माताओं को चाहिए कि वो AI के सरहदों के आर-पार इस्तेमाल को सुगम बनाने के साथ ही साथ जोखिम कम करने के लिए AI के नैतिक इस्तेमाल की प्रशासनिक व्यवस्था बनाने को भी तरज़ीह दें.
दुनिया भर के नीति निर्माताओं को चाहिए कि वो AI के सरहदों के आर-पार इस्तेमाल को सुगम बनाने के साथ ही साथ जोखिम कम करने के लिए AI के नैतिक इस्तेमाल की प्रशासनिक व्यवस्था बनाने को भी तरज़ीह दें.
आर्थिक सहनशक्ति के मामले में बिखरी हुई आपूर्ति श्रृंखलाओं पर नए सिरे से ध्यान देने की आवश्यकता है. भारत की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाएं, मैन्युफैक्चरिंग के केंद्रों में विविधता लाने और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने का एक आकर्षक उदाहरण पेश करती हैं. ऐसी पहलों का विस्तार सेमीकंडक्टर और हरित तकनीक जैसे अहम सेक्टरों में करने से संस्थागत झटकों के प्रति वैश्विक सहनशक्ति विकसित की जा सकती है.
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पूंजी जुटाने की चुनौती सबसे फौरी और बड़ी है. संयुक्त राष्ट्र के दुबई (COP28) और बाकू (COP29) में हुए जलवायु सम्मेलनों में बड़े बड़े वादे तो किए गए. पर, जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन के लिए आवश्यक पूंजी जुटाने में प्रगति आधी अधूरी ही रही. भारत जैसे देशों द्वारा पूंजी जुटाने के लिए शुरू की गई ग्रीन बॉन्ड और मिले-जुले वित्त जैसी नई व्यवस्थाएं बड़े पैमाने पर संसाधन जुटाने के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हैं. इन मॉडलों को लागू करने के लिए वैश्विक सहमति की ज़रूरत है, जिसमें निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश के बीच इस तरह तालमेल बिठाया जाए, जिसका प्रभाव मापा जा सके.
दुनिया की वित्तीय व्यवस्था में भी नए और अहम समीकरण बन रहे हैं.
दुनिया की वित्तीय व्यवस्था में भी नए और अहम समीकरण बन रहे हैं. देशों के केंद्रीय बैंकों की डिजिटल करेंसी (CBDC) के उभार और इसे लेकर द्विपक्षीय समझौते ये दिखाते हैं कि अब बहुत से देश क्षेत्रीय व्यापार के लिए आपसी मुद्राओं का इस्तेमाल कर। रहे हैं. एशियन क्लीयरिंग यूनियन (ACU) जैसे मंच, व्यापार की स्थिरता बनाए रखते हुए परिवर्तन को आगे बढ़ा सकते हैं.
2025 का साल एक निर्णायक मोड़ लेकर आया है. तकनीक, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के विभाजन की खाई को पाटने के लिए ऐसे बहुपक्षीय तालमेल की ज़रूरत है, जो लचीलेपन और समता पर आधारित हो
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