Author : Shashank Mattoo

Published on Jan 12, 2022 Updated 0 Hours ago

अब जबकि हम साल 2022 में प्रवेश कर चुके हैं, तो हमें 2021 की उन घटनाओं और गतिविधियों का एक विश्लेषण करना चाहिए, जो आने वाले कुछ वर्षों के दौरान पूर्वी एशिया की राजनीति पर हावी रहेंगी. 

एक क़दम पीछे, दो क़दम आगे: 2021 में पूर्वी एशिया का मंज़र

एशियाई विकास बैंक ने अनुमान लगाया है कि कोविड-19 महामारी ने क़रीब 8 करोड़ लोगों को भयंकर ग़रीबी की ओर धकेल दिया है. यानी एशिया में साल 2021 में इस महामारी के तबाही वाले असर से हम सब वाकिफ़ हैं. महामारी के चलते पूर्वी एशिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि जापान, ताइवान और दक्षिण कोरिया को भी बहुत गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. जापान में महामारी के संकट से निपटने में नाकाम रहने की छवि और टीकाकरण अभियान की धीमी रफ़्तार के चलते योशिहिडे सुगा को प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. जापान की तुलना में दक्षिण कोरिया और ताइवान ने, महामारी का बेहतर ढंग से सामना ज़रूर किया. लेकिन, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में पड़े ख़लल के चलते, इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को सुस्ती से उबरने में मुश्किलें पेश आ रही हैं. दुनिया के बड़े बंदरगाहों पर लंगर डाले जहाज़ों की तस्वीरें सुर्ख़ियां बटोर रही हैं. तमाम देश कोविड-19 महामारी से उबरने के लिए अर्थव्यवस्था के रफ़्तार पकड़ने की राह तक रहे हैं. ऐसे में साल 2022 में भी आर्थिक सुरक्षा और आपूर्ति श्रृंखलाओं को लेकर चर्चा जारी रहने वाली है.

महामारी के चलते पूर्वी एशिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि जापान, ताइवान और दक्षिण कोरिया को भी बहुत गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. जापान में महामारी के संकट से निपटने में नाकाम रहने की छवि और टीकाकरण अभियान की धीमी रफ़्तार के चलते योशिहिडे सुगा को प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी

पूर्वी एशिया में चीन के बढ़ते प्रभुत्व ने अन्य देशों के नीति नियंताओं को आपूर्ति श्रृंखलाओं के मसले को लेकर उलझन में डाल रखा है. जापान के नए प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने पहले ही अपनी कैबिनेट में आर्थिक सुरक्षा के नाम से नया मंत्रि-पद बना दिया है. सेमीकंडक्टर बनाने वाली ताइवान की बड़ी कंपनियों ने अपने उत्पादन को जापान और बहुत दूर स्थित अमेरिका तक ले जाने की बड़ी योजनाओं का एलान कर दिया है. जब चीन से चिप की आपूर्ति में कमी आने से दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था लगभग ठप हो गई, तो उसने भी अपने विदेशी मामलों के ढांचे में एक नया केंद्र बनाने का ऐलान किया, जो देश की आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने का काम करेगा. वहीं दूसरी तरफ़, उत्तर कोरिया ने दुनिया से अलग थलग रहने की अपनी छवि को एक बार फिर से साबित किया, जब उसने ख़ुद को संक्रमण से बचाने के लिए बाक़ी दुनिया के लिए अपने दरवाज़े पूरी तरह से बंद कर दिए.

पूर्वी एशिया के तेज़ी से बदलते नाटकीय मंज़र में जो एक और अहम बात देखने वाली होगी, वो ये है कि चीन, कॉम्प्रिहेंसिव ऐंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (CPTPP) में शामिल होगा या नहीं. चीन के अलावा, ब्रिटेन, ताइवान, दक्षिण कोरिया और ने भी वर्ष 2022 में इस व्यापार समझौते में शामिल होने का ऐलान किया है. बहुत से लोगों का ये मानना है कि CPTPP अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नियमों के विकास का एक अहम मंच है. ऐसे में चीन की योजना बिल्कुल साफ है. अमेरिका ने ये समझौता होने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की थी. लेकिन, वो अभी इसका हिस्सा बनने का इच्छुक नहीं दिख रहा है. ऐसे में अगर चीन, CPTPP का हिस्सा बनता है, तो वो एशिया के आर्थिक ढांचे में अपने मुख्य प्रतिद्वंदी के कद को और छोटा करने में कामयाब हो जाएगा. हालांकि, इस बात की संभावना काफ़ी ज़्यादा है कि जापान और ऑस्ट्रेलिया, चीन को इस समझौते में शामिल होने से रोकेंगे. ऐसे में साल 2022 में इस मुद्दे पर भी एक बड़ा राजनीतिक संघर्ष छिड़ने की आशंका है. कोविड-19 महामारी के बाद के दौर में आर्थिक विकास को फिर से रफ़्तार देना सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गया है. लेकिन, इस मोर्चे पर भी अमेरिका पूरे मंज़र से नदारद दिख रहा है. बाइडेन प्रशासन ने ‘हिंद प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क’ बनाने को लेकर काफ़ी चर्चाएं ज़रूर छेड़ी थीं. लेकिन, अमेरिका ने इस बारे में अब तक अपनी आगे की योजना को दुनिया के सामने नहीं रखा है. आज जब ये इलाक़ा आर्थिक विकास की रफ़्तार पाने की राह तलाश रहा है, तो ज़ाहिर कि अमेरिका यहां पर सुरक्षा के मुद्दे पर ज़्यादा ज़ोर देने वाली रणनीति अपना रहा है. हो सकता है कि इस साल हम, इस क्षेत्र के लिए अमेरिका की आर्थिक रणनीति को स्पष्ट रूप से सामने आते देखें.

कोविड-19 महामारी के बाद के दौर में आर्थिक विकास को फिर से रफ़्तार देना सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गया है. लेकिन, इस मोर्चे पर भी अमेरिका पूरे मंज़र से नदारद दिख रहा है.

महामारी की परछाई और नये सामरिक गठबंधन

महामारी के चलते जो झटके लगे हैं, जब उन पर तवज्जो देने की ज़रूरत थी, तो पूर्वी एशिया के नेताओं ने इस क्षेत्र के पुराने तनावों और राजनीतिक संघर्ष को नए सिरे से ज़िंदा करने और नई आग फूंकने के लिए ज़रूर समय निकाल लिया. साल 2021 में चीन द्वारा बार बार ताइवान की वायु सीमा के उल्लंघन की ख़बरें सुर्ख़ियां बटोरती रहीं. चीन इस बात को लेकर बहुत चिंतित है कि कहीं ताइवान, अपने लिए उससे अलग एक ख़ास सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान गढ़ने में सफल न हो जाए. अब चूंकि, ताइवान में चीन समर्थकों की राजनीतिक ताक़त कम होती जा रही है, तो चीन ने इस द्वीप के 2 करोड़ तीस लाख बाशिंदों को डरा-धमकाकर उसकी वन चाइना नीति पर सहमत होने की रणनीति पर अमल शुरू कर दिया है. चीन और रूस ने अपने राजनीतिक मतभेद भुलाते हुए साल 2021 में जापान के सुगारू जलसंधि वाले इलाक़े में साझा नौसैनिक अभियान चलाया. साल 2021 में जब एक तरफ़ तो क्वॉड ने आकार लिया, वहीं दूसरी तरफ़ हिंद प्रशांत क्षेत्र में ऑकस नाम का नया सामरिक गठबंधन भी उभरा. ऐसे में रूस और चीन ने अपनी इन गतिविधियों से गहरी होती साझेदारी का ही संकेत दिया है. 

2021 का साल, जापान और दक्षिण कोरिया के रिश्तों की संभावनाओं को गंवाने का भी रहा. 2018 में जब दक्षिण कोरिया पर जापान के साम्राज्यवादी क़ब्ज़े को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद छिड़ा, तो उसके बाद से ही उनके रिश्तों में लगातार गिरावट आती जा रही है. दोनों के साझा दोस्त देशों ने बहुत कोशिश की कि पूर्वी एशिया के ये दो बड़े खिलाड़ी फिर अच्छे दोस्त बन जाएं. मगर ऐसा हो न सका. यहां तक कि पिछले साल जून में हुई G-7 देशों की बैठक में भी जापान और दक्षिण कोरिया ने एक दूसरे पर खुलकर निशाने साधे थे. अगर मार्च 2022 में होने वाले चुनाव में दक्षिण कोरिया की जनता रूढ़िवादी नेता यून सियोक यिओल को अपना राष्ट्रपति चुनती है, तो शायद जापान के साथ रिश्तों में कुछ बदला आए. यून और उनकी कोरिया पीपुल पावर पार्टी के नेताओं ने जापान के साथ तनाव कम करने की इच्छा जताई है. चूंकि, चीन से निपटने की अमेरिका की किसी भी कोशिश में जापान और दक्षिण कोरिया की भूमिका अहम हो जाती है. ऐसे में ये साल दोनों देशों के रिश्तों के लिहाज़ से भी काफ़ी अहम हो सकता है. साल 2021 में उत्तर कोरिया ने अमेरिका के दूत से मिलने से इनकार करके कोरियाई प्रायद्वीप पर तनाव का स्तर ऊंचा बनाए रखा था. जब जो बाइडेन राष्ट्रपति बने तो उन्होंने उत्तर कोरिया को लेकर डॉनल्ड ट्रंप की निजी रिश्तों पर आधारित नीति से परहेज़ कर लिया और अब वो पारंपरिक कूटनीति पर ज़ोर दे रहे हैं. ऐसे में अमेरिका और उत्तर कोरिया के रिश्ते एक बार फिर से तनाव के दौर में पहुंच गए हैं.

एशिया में इस वक़्त जो हालात हैं, वो हथियारों की एक चिंताजनक नई होड़ की तरफ़ इशारा कर रहे हैं. वैसे तो, वैश्विक नीति नियंताओं की नज़र में सबसे अहम ख़बर तो चीन का हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण करने की रही थी. 

एशिया में इस वक़्त जो हालात हैं, वो हथियारों की एक चिंताजनक नई होड़ की तरफ़ इशारा कर रहे हैं. वैसे तो, वैश्विक नीति नियंताओं की नज़र में सबसे अहम ख़बर तो चीन का हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण करने की रही थी. लेकिन, बाक़ी का उत्तरी पूर्वी एशिया भी कोई ख़ास पीछे नहीं है. अपनी आदत के मुताबिक़, उत्तर कोरिया ने जो बाइडेन के अमेरिका के राष्ट्रपति पद संभालने का स्वागत नई क्रूज़ मिसाइलों का परीक्षण करके किया था. इन मिसाइलों में परमाणु हथियार ले जाने की बेहतर क्षमता है. 2021 के बाद के महीनों में भी उत्तर कोरिया ने अपने हथियारों के ज़ख़ीरे की इसी तरह नुमाइश की थी. अपने लड़ाकू पड़ोसी उत्तर कोरिया की इन हरकतों के जवाब में दक्षिण कोरिया ने भी पनडुब्बी से लॉन्च की जा सकने वाली एक बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया. इसके अलावा, अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने दक्षिण कोरिया के लंबी दूरी की मिसाइलों पर लंबे समय से लगे दूसरे प्रतिबंध भी हटा लिए. इससे इस बात की संभावना बढ़ गई है कि साल 2022 में दक्षिण कोरिया की सेना अपनी आक्रमण करने की पूरी ताक़त के साथ उभरकर सामने आएगी. साल 2022 में दक्षिण कोरिया में कट्टरपंथी राजनीतिक दलों और प्रगतिशील नेताओं के बीच राष्ट्रपति चुनाव का भी कड़ा मुक़ाबला होना है. अगर इस चुनाव में कोई रूढ़िवादी नेता राष्ट्रपति का चुनाव जीतता है, तो चीन का मुक़ाबला करने के लिए दक्षिण कोरिया, अमेरिका से और राजनीतिक और कूटनीतिक नज़दीकी बढ़ा सकता है. ऐसे में संभावना इसी बात की है कि दक्षिण कोरिया अपनी सैन्य क्षमताओं का आगे भी विस्तार करता रहेगा.

पूर्वी एशिया को लेकर ब्रिटेन की बढ़ती सक्रियता

इस होड़ में कहीं पीछे न छूट जाए, इसलिए जापान ने भी पिछले कुछ सालों से अपने सैन्य और सुरक्षा के मामलों को सरकार के नीति निर्माण का अहम हिस्सा बना लिया है. साल 2021 के आख़िर में जापान ने 2023 से अगले पांच साल के लिए 264 अरब डॉलर के रक्षा बजट का ऐलान किया है. रक्षा बजट में बढ़ाई गई इस रक़म का इस्तेमाल जापान अपने लिए F-35 लड़ाकू विमान ख़रीदने, घरेलू रक्षा निर्माण को मज़बूती देने और अपनी साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष की क्षमताओं को बढ़ाने में करेगा. वर्ष 2022 में हमें जापान की घरेलू राजनीति पर भी गहरी नज़र बनाए रखनी होगी. पिछले साल हुए चुनावों के बाद जापान में एक ऐसे ताक़तवर गठबंधन ने सरकार बनाई है, जिसके पास जापान के नरमपंथी संविधान में बदलाव की राजनीतिक ताक़त भी है और इसमें उसके सियासी हित भी छुपे हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि जापान की सरकार के लिए देश के संविधान का सुधार करना बहुत बड़ी चुनौती होगी. लेकिन, इस राजनीतिक प्रक्रिया को देखना दिलचस्प होगा.

पूर्वी एशिया से लंबे समय से दूरी बनाए रखने के बाद, ब्रिटेन एक बार फिर से इस इलाक़े में गतिविधियां बढ़ा रहा है. साल 2021 में यूरोपीय संघ ने हिंद प्रशांत के लिए अपनी रणनीति भी दुनिया के सामने रखी.

और आख़िर में, साल 2021 में हमने नई बोतल में पुरानी शराब की तरह, पूर्वी एशिया के उथल-पुथल भरे माहौल में नए जंगी जहाज़ों की आमद को भी देखा. ब्रिटेन की सरकार अपने ‘ग्लोबल ब्रिटेन’ अभियान के तहत अपने एयरक्राफ्ट कैरियर एचएमस क्वीन एलिज़ाबेथ को पूर्वी एशिया भेजा था, जिसने जापान के बंदरगाह पर लंगर डाला था. ब्रिटेन की नौसेना की ये लड़ाकू टुकड़ी अमेरिकी जंगी बेड़े के साथ आई थी और उसने घर वापसी से पहले जापान के सैन्य बलों के साथ युद्धाभ्यास भी किया. अगर हम इसमें ब्रिटेन के CPTPP में शामिल होने के ऐलान और ऑकस समझौते का हिस्सा होने को भी जोड़ दें तो साफ़ हो जाता है कि पूर्वी एशिया से लंबे समय से दूरी बनाए रखने के बाद, ब्रिटेन एक बार फिर से इस इलाक़े में गतिविधियां बढ़ा रहा है. साल 2021 में यूरोपीय संघ ने हिंद प्रशांत के लिए अपनी रणनीति भी दुनिया के सामने रखी. यूरोपीय संघ ने इस क्षेत्र में मूलभूत ढांचे के विकास के प्रोजेक्ट के लिए आर्थिक मदद बढ़ाने का ऐलान किया. जिसके लिए उसे जापान जैसे तजुर्बेकार देश के सहयोग की ज़रूरत होगी. इसके अलावा, यूरोपीय संघ ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी सुरक्षा और व्यापार संबंधी मौजूदगी को भी बढ़ाने का वादा किया है. चूंकि, यूरोपीय संघ में अकेले फ्रांस ही है, जिसके पास काफ़ी नौसैनिक ताक़त है. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या क्वॉड के सदस्य और इलाक़े के अन्य देश इस देश की रक्षा संबंधी ज़िम्मेदारी का बोझ उठाने में यूरोपीय संघ से सहयोग की उम्मीद करते हैं. इन बातों से इतर, विकास और जलवायु परिवर्तन से निपटने और सामरिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास (हाल ही में घोषित अरबों डॉलर वाले ग्लोबल गेटवे प्रोजेक्ट) में यूरोपीय संघ के और अधिक पैसे ख़र्च करने से इस क्षेत्र का आर्थिक संतुलन बनाने में काफ़ी मदद मिलेगी.

2021 के साल ने उन्हीं गतिविधियों पर मुहर लगाई है, जिनकी आशंका थी. पूर्वी एशिया में होड़ बनी रहेगी. वैसे तो पूरी दुनिया साल 2022 में अमन चैन की उम्मीद कर रही है. लेकिन, इस उम्मीद पर शायद ही कोई दांव लगाने को तैयार हो.

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