Author : Anchal Vohra

Published on Aug 28, 2021 Updated 0 Hours ago

लेबेनान के नागरिक अब ये सवाल कर रहे हैं कि आख़िर वो कौन सी वजह है जिसके कारण उस घातक विस्फोटक को आवासीय क्षेत्र के नज़दीक बंदरगाह मे रखा गया था

बेरूत ब्लास्ट के एक साल: न्याय की मांग करते शोक में डूबे लेबनान के नागरिक

आज से ठीक एक साल पहले अगस्त 2020 को बेरूत बंदरगाह में हुए बम ब्लास्ट मे मारे गए 200 लोगों, हज़ारों की संख्या में हुए घायल, और बेघर हुए लाखों परिवार के साथ खड़े होने के मक़सद से उस घटना की पहली सालगिरह  मनाने के लिए हज़ारों की संख्या में लोग एकत्रित हुए. विरोध प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारी न्याय की मांग करते हुए इन विशेष राजनीतिक अभिजात वर्ग के खिलाफ़ नारे लगाते  हुए, उन्हें ठग और हत्यारा कहकर पुकार रहे थे.

नवंबर 2013 में, हजारों टन घातक विस्फोटक अमोनियम नाइट्रेट से लदी मॉलदोव झंडे के तले एम.व्ही.रोजस नामक मालवाहक जहाज़, जो मोज़ाम्बिक की ओर जा रही थी, जहाज़ मे आयी तकनीकी खामी की वजह से उसे मजबूरन बेरूत बंदरगाह के डॉक पर खड़ा करना पड़ा था. परंतु वो घातक विस्फोटक बेरूत से कभी आगे नही जा पाया और ना ही उसे किसी सुरक्षित जगह पर सावधानी से रखा गया. सात साल के बाद, उस रखे गए अमोनियम नाइट्रेट में हुए भयंकर विस्फोट ने उस ऐतिहासिक शहर के काफी बड़े हिस्से को हमेशा के लिये बर्बाद कर दिया.

सात साल के बाद, उस रखे गए अमोनियम नाइट्रेट में हुए भयंकर विस्फोट ने उस ऐतिहासिक शहर के काफी बड़े हिस्से को हमेशा के लिये बर्बाद कर दिया.

लेबेनान के नागरिक अब ये सवाल कर रहे हैं कि आख़िर वो कौन सी वजह है जिसके कारण उस घातक विस्फोटक को आवासीय क्षेत्र के नज़दीक बंदरगाह मे रखा गया था, और उससे होने वाले संभावित ख़तरे की जानकारी होने के बावजूद भी अधिकारियों ने उसे वहां से हटाया क्यों नहीं?

लेबेनान के अधिकारी ज़िम्मेदार

(एचआरडब्लू) या ह्यूमन राइट्स वॉच जो की एक अंतरराष्ट्रीय पहरेदार की भूमिका निभाने वाली संस्था है, उसने अपने एक जारी किए गये रिपोर्ट में, जिसका शीर्षक था, “उन्होंने हमे भीतर से मार दिया.’ अगस्त 4, बेरूत ब्लास्ट, एक जांच-पड़ताल”  में लिखा है-  पहली नज़र में सबूतों के मुताबिक वरिष्ठ लेबेनानी अधिकारी को 4 अगस्त 2020, को बेरूत मे मारे गए 218 लोगों के लिए दोषी पाये गये हैं, लेकिन लेबेनान के न्यायिक और राजनीति व्यवस्था में व्याप्त कमियां उन्हे दोष सिद्ध करने मे बाधक साबित हो रहे हैं.”

HRW की लामा फकीह़ ने कहा, “इस विषय से संबंधित पर्याप्त सबूत है जो बतलाते हैं कि, अगस्त 2020 मे बेरूत बंदरगाह़ में हुए विस्फोट, वरिष्ट लेबेनानी अधिकारियों की लापरवाही का नतीजा था, जहां उन्होंने अमोनियम नाइट्रेट जैसे घातक विस्फोटक से संभावित खतरों की जटिलता को जानते हुए भी, लापरवाही बरतते हुए उसे बेहद ही असुरक्षित तरीके से एक जगह जमा करके रखा, और आमलोगों की जानें बचाने में असफ़ल रहे.” साथ ही फकीह़ ने ये भी कहा कि, “साल भर बाद, शहर मे आज भी लोगों के मन में इस घटना से उपजे जख्म़ भरे नहीं है, और इसमें बचे हुए लोग और उनके परिवार को आज भी इस सवाल के जवाब का इंतेज़ार है.”

अब तो ये सवाल भी पूछा जा रहा है कि कहीं ये विस्फोटक बेरूत में इस मक़सद से तो इकट्ठा नहीं किया गया था, कि 2013 मे पड़ोसी देश सीरिया में, जहां गृह-युद्ध अपने चरम पर था, वहाँ इसका इस्तेमाल किया जा सके. लेबनानी फिल्मकार और खोजी पत्रकार फेरस हटौम ने एक खुलासे मे बताया कि सीरिया के तीन प्रमुख व्यवसाई, जो की शेल्फ कंपनियां चलाते थे, उनका सावारो लिमिटेड नाम की कंपनी से सीधा संबंध था, जिसने वे विस्फोटक खरीदे थे. ये व्यापारी सीरियाई-रूसी नागरिक थे और माना जाता है कि ये सीरिया की सरकार के काफ़ी क़रीबी थे.

अब तो ये सवाल भी पूछा जा रहा है कि कहीं ये विस्फोटक बेरूत में इस मक़सद से तो इकट्ठा नहीं किया गया था, कि 2013 मे पड़ोसी देश सीरिया में, जहां गृह-युद्ध अपने चरम पर था, वहाँ इसका इस्तेमाल किया जा सके.

जज द्वारा भेजे गए समन के खिलाफ़, लेबेनानी राजनीतिज्ञों द्वारा राजनीतिक प्रतिरक्षा का दावा पेश किए जाने की वजह से इस दुर्घटना से संबंधित जांच पड़ताल आगे नही बढ़ पायी है. हालांकि, पिछले सप्ताह, कुछ शीर्ष नेताओं ने कहा कि वे प्रतिरक्षा के अधिकार को छोड़ने को तैयार हैं, पर ये नही कहा कि वे ऐसा कब करेंगे.

नबीह़ बेरी – जो कि   ये नही कहा कि वेवारोंाइट्रे संसद के स्पीकर के साथ-साथ अमाल आंदोलन के नेता भी हैं, जो की एक शिया राजनीतिक दल है और ईरान द्वारा समर्थित हिजबुल्लाह की सहयोगी है, उन्होंने कहा,  “संसद की प्राथमिकता पहले भी और अब भी न्यायपालिका के साथ सहयोग करना ही था.” पूर्व प्रधानमंत्री और सुन्नी समुदाय के वरिष्ठ नेता साद हारीरी ने भी प्रतिरक्षा के अधिकार को ख़त्म किए जाने की वक़ालत की है.

किन्तु लेबेनानी कार्यकर्ता उलझन में हैं. वे अपने राजनीतिज्ञों पर बिल्कुल भी भरोसा नही करते है, और कहते हैं कि प्रतिरक्षा के अधिकार कानून को निरस्त किए जाने की सूरत में उनके उपर लगाये गये भ्रष्टाचार के मामले भी खुल जायेंगे और इसी वजह सें एक बड़ा राजनीतिक तबका इस कानून चिपका हुआ है और किसी भी सूरत में उससे अलग नहीं होना चाहता.

इस बीच, आर्थिक रूप से लेबेनान लगातार पिछड़ता जा रहा है. वहाँ की मुद्रा कीमत 150 प्रतिशत से भी ज्य़ादा गिर चुकी है और आम नागरिकों के लिये अपनी बुनियादी ज़रूरतों को भी पूरा कर पाना मुश्किल हो रहा है.

राजनीतिक बेईमानी और बदनीयती

फ्रांस की अगुवायी में, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मांग की है कि पहले, देश के अभिजात्य वर्ग वहां राजनीतिक और आर्थिक सुधार कार्यक्रमों की शुरआत करें, तभी वैश्विक संगठन अपनी जेबें ढीली करेंगे और लेबनान को आर्थिक गरीबी से उबारने के लिए आर्थिक मदद देंगे और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को भी उन्हें आर्थिक मदद देने के लिये अनुमति देंगे. वो ये सुनिश्चित करना चाहते हैं, कि राहत के लिए दिए गए पैसे इन राजनीतिज्ञों की जेबें भरने में न चला जाये लेकिन देश का राजनीति वर्ग अब भी पीछे नहीं हट रहा है. वे अब भी मंत्रालयों के लिए आपस मे लड़ाई लड़ रहे हैं और देश मे सुधार लाने और आईएमएफ़ से कोष संबंधी बात करने के लिए ज़रूरी सरकार भी बना पाने में असफ़ल साबित हो रहे हैं. इसके विपरीत, फ्रांस को लेबनान के ग़रीब नागरिकों के पोषण के लिए ज़रूरी फंड की व्यवस्था करने के लिये मजबूरन आगे आना पड़ा.

एक अंतरराष्ट्रीय डोनर कॉफ्रेंस में बोलते हुए मेक्रॉन  ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि लेबनानी नेता राहत कोष को रोकने की रणनीति पर दांव लगा रहे हैं, ऐसा करते हुए वे बाधा पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, जो एक ऐतिहासिक घटना है और जिसकी मै निंदा करता हूँ और मानता हूँ की ये एक राजनीतिक और नैतिक विफलता है. लेबनानी राजनीतिक व्यवस्था के लिए किसी भी प्रकार के ब्लैंक चेक जारी नही किए जाएंगे. क्यूंकि इस संकट की शुरुआत से लेकर आजतक जो भी समस्या वहां खड़ी हो रही है उसके लिए वहां की राजनीतिक व्यवस्था ज़िम्मेदार है.”

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मांग की है कि पहले, देश के अभिजात्य वर्ग वहां राजनीतिक और आर्थिक सुधार कार्यक्रमों की शुरआत करें, तभी वैश्विक संगठन अपनी जेबें ढीली करेंगे और लेबनान को आर्थिक गरीबी से उबारने के लिए आर्थिक मदद देंगे 

हालांकि, लेबनान की आर्थिक व्यवस्था के पूरी तरह से ध्वस्त होने से बचाने और समाज के ग़रीब वर्ग की सहायता के लिए, फ्रांस ने 370 मिलियन यूएस डॉलर का राहत कोष जुटाया है. लेबेनान मे अगला चुनाव मई 2022 के वसंत  में होना तय हुआ है, पर तब तक, लेबनान के नागरिकों को न तो ब्लास्ट केस मे न्याय मिलने की उम्मीद है न ही देश की अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार के सुधार की गुंजाइश ही दिख रही है.

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