Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Raisina Debates
Published on Oct 21, 2025 Updated 6 Days ago

जापान की OCEAN योजना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने दृष्टिकोण को असली रूप देने के लिए बनाई गई है. यह रक्षा सहयोग, क्षमता बढ़ाने और समुद्री सुरक्षा में तालमेल जैसे कामों पर ध्यान देती है और दिखाती है कि टोक्यो इस क्षेत्र में सुरक्षा में नेतृत्व निभा रहा है.

OCEAN: हिंद-प्रशांत में समुद्री सहयोग की नई रणनीति

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मई 2025 में सिंगापुर में आयोजित 22वें शांगरी-ला डायलॉग के दौरान जापान के रक्षा मंत्री जनरल नकातानी ने वन कोऑपरेटिव एफर्ट्स अमंग नेशन्स (OCEAN) यानी राष्ट्रों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास की अवधारणा पेश की थी. जापानी रक्षा मंत्री की ओर से प्रस्तुत किए गए प्रस्ताव में बताया गया कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को अलग-अलग नज़रियों से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इनको लेकर एक ही रणनीति बनानी चाहिए. OCEAN का प्रस्ताव नियम-आधारित व्यवस्था के संरक्षण के लिए समान विचारधारा वाले देशों के व्यापक सुरक्षा सहयोग में शामिल होने की ज़रूरत पर भी बल देता है. नकातानी के मुताबिक़ OCEAN सिर्फ़ एक नारा नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक रक्षा फ्रेमवर्क है, जिसे पारदर्शिता, खुलेपन, जवाबदेही और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के प्रति सम्मान जैसे साझा मूल्यों वाले देशों के बीच सहयोग को सशक्त करने के लिहाज़ से बनाया गया है.

  • OCEAN योजना यह बताती है कि समान सोच वाले देशों को मिलकर नियम-आधारित प्रणाली की सुरक्षा और व्यापक सुरक्षा सहयोग में भाग लेना चाहिए.
  • OCEAN की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कितना खुला और शामिल करने वाला है और साझीदार देशों को कितना लाभ देता है.

देखा जाए तो OCEAN का मुख्य मकसद सुरक्षा से जुड़े अलग-अलग क्षेत्रों में सहयोग को प्रोत्साहित करना है. OCEAN में देशों के बीच केवल पारंपरिक सैन्य संबंधों तक सीमित रहने की बात नहीं है, बल्कि इससे आगे बढ़कर लॉजिस्टिक्स, रक्षा प्रौद्योगिकी एवं उपकरण, आपदा राहत, समुद्री सुरक्षा और सूचना के आदान-प्रदान में भी सहयोग को शामिल करने की बात भी कहता है. ज़ाहिर है कि टोक्यो हमेशा कहता रहा है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियां लगातार जटिल और बहुआयामी होती जा रही हैं, जिनमें अवैध समुद्री गतिविधियां और कुछ देशों द्वारा समुद्री क्षेत्र में आक्रामक रवैया अपनाना और जलवायु परिवर्तन व प्राकृतिक आपदाओं से पैदा होने वाले मानवीय संकट शामिल हैं. OCEAN कहीं न कहीं इस सभी चुनौतियों और मुश्किलों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों पर बल देता है. इसके अलावा, OCEAN के ज़रिए जापान खुद को न केवल बहुपक्षीय सुरक्षा सहयोग के संयोजक के रूप में स्थापित करता है, बल्कि अमेरिका-जापान सहयोग, क्वाड और आसियान के नेतृत्व वाले दूसरे समूहों जैसे मौज़ूदा संगठनों के एक प्रबल सहयोगी के रूप में भी पेश करता है.

OCEAN अवधारणा

OCEAN के सबसे अहम लक्ष्यों में आसियान भागीदार देशों के साथ नज़दीकी रिश्ते विकसित करना है. नकातानी ने OCEAN की अवधारणा प्रस्तुत करते हुए यह भी साफ किया था कि इसका मकसद क्षेत्र में मौज़ूद दूसरे संगठनों की जगह लेना नहीं है, बल्कि उन्हें सशक्त करना है. ख़ास तौर पर क्षेत्र में पहले से सक्रिय आसियान के नेतृत्व वाले संगठनों और पहलों जैसे कि वियनतियाने विज़न 2.0 (Vientiane Vision 2.0) और JASMINE (जापान-आसियान मंत्रिस्तरीय उन्नत रक्षा सहयोग पहल) के ज़रिए मज़बूती प्रदान करना है. जापान ने कई व्यावहारिक क़दमों के माध्यम से OCEAN का समर्थन भी किया है. जापान और फिलीपींस के बीच सितंबर 2025 में मनीला में आयोजित द्विपक्षीय वार्ता के दौरान दोनों देशों ने रक्षा उपकरण सहयोग को सशक्त करने और समुद्री क्षेत्र से जुड़ी गतिविधियों में जागरूकता बढ़ाने के लिए OCEAN को एक साझा फ्रेमवर्क बनाने के लिए चर्चा की थी. इसी तरह से सियोल में जापान के रक्षा मंत्री नकातानी ने अमेरिका, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस और जापान के बीच बहुपक्षीय सहयोग प्रोत्साहित करने में OCEAN के महत्व पर ज़ोर दिया था, ताकि इस पहल को व्यापक स्तर पर रीजनल डायलॉग में शामिल किया जा सके.

OCEAN सिर्फ़ एक नारा नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक रक्षा फ्रेमवर्क है, जिसे पारदर्शिता, खुलेपन, जवाबदेही और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के प्रति सम्मान जैसे साझा मूल्यों वाले देशों के बीच सहयोग को सशक्त करने के लिहाज़ से बनाया गया है.

OCEAN रणनीतिक तौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जापान की सुरक्षा से जुड़ी भूमिका में बढ़ोतरी को ज़ाहिर करता है. OCEAN क्षेत्रीय ताक़तों के सामूहिक क्षमता निर्माण और निवारण पर भी बल देता है. इतना ही नहीं, यह प्रदर्शित करता है कि लगातार अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों में आ रही गिरावट, समुद्र में बढ़ती आक्रामकता और मौज़ूदा हालातों को जबरन बदलने की कोशिशों के बारे में टोक्यो रणनीतिक तौर पर कितना चिंतित है. नकातानी ने स्पष्ट किया है कि इन सारी चुनौतियों से निपटने में OCEAN बेहद करागर साबित होगा. इसके अलावा, उन्होंने क्षेत्र में आने वाले सभी देशों से यह भी आग्रह किया है कि वे रीजन में एकतरफा आक्रामक कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ अपनी जवाबी क्षमताओं को मज़बूत करें, ताकि विवादित समुद्री क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों का अमल सुनिश्चित किया जा सके.

देखा जाए तो जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2007 में अपने "दो महासागरों का संगम" शीर्षक वाले भाषण में जिन विचारों को व्यक्त किया था, OCEAN कहीं न कहीं उन्हीं रणनीतिक विचारों में हुई प्रगति की नुमाइंदगी करता है. कहने का मतलब है कि OCEAN शिंजो आबे के साझा भूगोल और मूल्यों वाली दो महासागरों के संगम की अवधारणा को एक विवादित हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा सुरक्षा और क्षमता निर्माण के लिए एक ऐसे फ्रेमवर्क में बदलने का काम करता है, जिसे वास्तविकता में आसानी से लागू किया जा सकता है. शिंजो आबे ने जिस दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया था, उसी ने विचारों की उस मज़बूत नींव को तैयार किया जो बाद में मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत (FOIP) के रूप में सामने आई थी. FOIP ने साफ तौर पर बताया कि प्रशांत और हिंद महासागरों को साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और साझा समुद्री हितों के ज़रिए आपस में जोड़ने को लेकर जापान का रणनीतिक नज़रिया क्या है. रक्षा मंत्री नकातानी की ओर से सुझाए गए OCEAN फ्रेमवर्क में जापान के महासागरों पर केंद्रित इस वैश्विक नज़रिए को न केवल बरक़रार रखा गया है, बल्कि इससे आगे बढ़कर बहुपक्षीय समूहों के भीतर सैन्य और रक्षा-औद्योगिक सहयोग को शामिल करते हुए रक्षा से जुड़े पहलुओं पर ज़्यादा ज़ोर दिया गया है. इस बारे में जापान की पहले की नीतियों को देखा जाए, ख़ास तौर पर प्रधानमंत्री शिंजो आबे के कार्यकाल के दौरान "शांति में सक्रिय योगदान" (2013) को देखें, तो उसमें यह बात प्रमुखता से कही गई थी कि जापान को क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा में, विशेष रूप से क्षमता निर्माण, रक्षा सहयोग और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के पालन के ज़रिए अपनी ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. OCEAN कहीं न कहीं जापान की इसी नीति पर आधारित है और क्षेत्र में जापान को बहुपक्षीय सुरक्षा के एक बड़े अभिनेता के रूप में स्थापित करता है. इसमें सिर्फ़ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए बनाया गया प्रस्ताव नहीं है, बल्कि स्पष्ट तौर पर क्षेत्र में साझा मूल्यों पर आधारित सामूहिक फ्रेमवर्क्स को बढ़ावा देने की भी वक़ालत की गई है.

OCEAN शिंजो आबे के साझा भूगोल और मूल्यों वाली दो महासागरों के संगम की अवधारणा को एक विवादित हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा सुरक्षा और क्षमता निर्माण के लिए एक ऐसे फ्रेमवर्क में बदलने का काम करता है, जिसे वास्तविकता में आसानी से लागू किया जा सकता है.

इस दिशा में जापान की ओर से पहले जो भी सहयोगी समूह और संगठन बनाए गए हैं, OCEAN उनसे अलग है, क्योंकि इसमें सहयोगी रक्षा पहल की पुरज़ोर वक़ालत की गई है, जबकि पहले के संगठनों में ऐसा नहीं था. उदाहरण के तौर पर FOIP की बात की जाए, तो इसमें कूटनीतिक रणनीति को प्रमुखता दी गई थी, जो सदस्यता के मामले में खुली थी और इसमें सुरक्षा के अलावा मूल्यों और विकास को भी बराबर तवज्जो दी गई थी. वहीं OCEAN की बात की जाए तो इसमें रक्षा सहयोग सर्वोपरि है, जो कि लॉजिस्टिक्स, अंतर-संचालन, रक्षा उपकरणों और संसाधनों के आदान-प्रदान एवं देशों के बीच साझा क्षमता निर्माण पर बल दिया गया है. इतना ही नहीं, OCEAN जापान की ख़ास तौर पर आसियान भागीदार देशों के साथ रक्षा कूटनीति को संस्थागत बनाने की अगुवाई करता है.

जापान ने OCEAN के ज़रिए अपनी नीति में बदलाव किया है और साझा मूल्यों के साथ समावेशिता पर फोकस तो किया है, लेकिन वास्तविकता में दूसरे देशों की भागीदारी को इमसें सीमित रखा गया है. लेकिन FOIP में ऐसा नहीं था और इसमें सही मायनों में "समावेशी" नज़रिया अपनाया गया था. यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने पर चीन को भी FOIP में जगह दी गई थी. वहीं OCEAN के प्रस्ताव में नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था को मानने वालों और इस व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने वालों व इसे कमज़ोर करने वाले देशों के बीच साफ अंतर किया गया है. इस हिसाब से देखें, तो OCEAN को भले ही टोक्यो की अगुवाई में तैयार किया गया है, लेकिन इसकी नीति, दिशानिर्देश और दृष्टिकोण कहीं न कहीं क्वाड से मिलते-जुलते हैं, साथ ही इसमें आसियान को केंद्र में रखा गया है.

निष्कर्ष

आख़िर में OCEAN कहीं न कहीं क्षेत्रीय सुरक्षा में जापान की बदलती भूमिका के बारे में बताता है. जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के "शांति में सक्रिय योगदान" जैसे पूर्व के सिद्धांत देखा जाए तो क्षेत्र की सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण थे और अमेरिका-जापान गठबंधन पर बहुत ज़्यादा निर्भर थे. ऐसे में OCEAN क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर जापान के एक स्वतंत्र सुरक्षा नज़रिए को सामने रखने की कोशिश है, जिसमें वाशिंगटन को अग्रणी भूमिका में रखे बगैर अमेरिका, आसियान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और संभावित रूप से भारत को एक सहयोगी फ्रेमवर्क के तहत लाने का प्रयास किया गया है. यह प्रयास देखा जाए तो टोक्यो के आत्मविश्वास को भी प्रदर्शित करता है, यानी दिखाता है कि जापान अपनी शर्तों के मुताबिक़ क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे को आकार देने की हैसियत रखता है.

एक ऐसे दौर में जब महाशक्तियों के बीच होड़ लगातार बढ़ती जा रही है और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था गंभीर ख़तरों से जूझ रही है, तब रणनीतिक दृष्टिकोण के लिहाज़ से OCEAN निश्चित रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था को आकार देने के लिए टोक्यो के मज़बूत संकल्प को ज़ाहिर करता है.

हालांकि, OCEAN की राह इतनी आसान भी नहीं है, क्योंकि इसके सामने कई बड़ी चुनौतियां है. सबसे बड़ी चुनौती है तो यही है कि कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देश जापान की तरह सक्षम नहीं हैं और उनके बीच काफी असमानताएं हैं, जो कि इस फ्रेमवर्क में उनकी भागीदारी में रोड़ा बन सकती हैं. इस चुनौती से निपटने के लिए जापान को इन देशों में प्रशिक्षण, तकनीक़ और संसाधनों में लगातार निवेश करना होगा. इसके अलावा, जापान की घरेलू राजनीति और स्थानीय क़ानून भी इसके लिए एक बड़ी चुनौती हैं. ज़ाहिर है कि जापान एक शांतिप्रिय राष्ट्र है और संवैधानिक रूप से हथियारों के निर्यात को प्रोत्साहित नहीं करता है, इस वजह से क्षेत्रीय ताक़तों से रक्षा उपकरण सहयोग के सीमित रहने की आशंका है. एक अन्य चुनौती यह भी है कि OCEAN को दूसरे सहयोगी फ्रेमवर्क्स जैसे कि AUKUS या क्वाड की नकल या उनसे होड़ करने वाला माना जा सकता है. ज़ाहिर है कि इससे क्षेत्र में तालमेल स्थापित करने में दिक़्क़तें आ सकती हैं और क्षेत्रीय देशों के सामने भी दुविधा की स्थिति पैदा हो सकती हैं.

मौज़ूदा समय में यह माना जाता है कि OCEAN हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा परिदृश्य में न केवल जापान की एक सक्रिय पहल है, बल्कि उसके दख़ल को बढ़ाने वाला और हालात पर नियंत्रण स्थापित करने का गंभीर प्रयास भी है. OCEAN जहां एक ओर जापान की बहुपक्षीय रक्षा सहयोग के कर्ताधर्ता की भूमिका को सशक्त करता है, वहीं यह बताता है कि समुद्री और क्षेत्रीय स्थिरता किसी एक देश की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि सभी देशों की सामूहिक ज़िम्मेदारी है. जहां तक OCEAN की सफलता की बात है, तो वह इस पर निर्भर करेगी कि यह कितना ज़्यादा समावेशी बना रहता है और साझीदार देशों को किस प्रकार से व्यापक फायदा पहुंचाता है. इसके अलावा, इसकी क़ामयाबी इसके व्यावहारिक क़दमों और गतिविधियों पर भी निर्भर करेगी कि यह किस प्रकार सभी को मिलाकर, बगैर किसी विरोधाभास के चुनौतियों से निपटता है. अंत में, एक ऐसे दौर में जब महाशक्तियों के बीच होड़ लगातार बढ़ती जा रही है और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था गंभीर ख़तरों से जूझ रही है, तब रणनीतिक दृष्टिकोण के लिहाज़ से OCEAN निश्चित रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था को आकार देने के लिए टोक्यो के मज़बूत संकल्प को ज़ाहिर करता है.


प्रत्नाश्री बसु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.

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