-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
खाद्य सुरक्षा की समस्या एक जटिल मसला है और ये सिर्फ़ अनाज की उपलब्धता से नहीं जुड़ा है. खाद्य सुरक्षा अक्सर उस राजनीति और नीतिगत मसलों से जुड़ी होती है, जो किसी देश की सरकार संचालित करती है
अगर किसी देश के राजनीतिक और सामाजिक आर्थिक हालात किसी क़ुदरती आफ़त के असर को कम करने के बजाय उसे बढ़ाने का काम करते हैं, तो खाद्य संकट बहुत भयंकर हो जाता है. ये संकट बार-बार आता है और दूसरे देशों से मदद न मिलने पर खाने-पीने का ये संकट स्थायी बन जाता है. अनाज के उत्पादन के लिए विपरीत परिस्थितियां पैदा करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण को नुक़सान, मज़दूरों की उपलब्धता या आपूर्ति श्रृंखलाओं में बाधा, संघर्ष, आर्थिक प्रतिबंध, संसाधनों की कमी या फिर महामारियों के कारण सेहत को लगने वाले झटके शामिल हैं. लेकिन, कई बार बिना किसी क़ुदरती आपदा के भी खाद्य संकट पैदा हो सकता है. इसकी वजह संस्थागत समस्याएं हो सकती हैं. इनमें खेती को सही प्रोत्साहन न मिलना, बाज़ार की कमी और आयात निर्यात की नीतियां और खेती के लंबे समय तक न अपनाए जा सकने वाले उपायों जैसी समस्याएं शामिल हैं.
हम अनाज के उत्पादन से जुड़े ऐसे संकट उत्तर कोरिया में बार-बार पैदा होते देखते रहे हैं. ये संकट कितना बड़ा है, इसे आप ऐसे समझें कि इस समय उत्तर कोरिया में 13.5 लाख टन अनाज की कमी है. 1990 के दशक के दौरान भी उत्तर कोरिया ने अनाज के ऐसे संकट का सामना कई बार किया था, जिसके चलते देश में अकाल पड़े थे. मौजूदा हालात उस दौर से बेहतर नहीं लगते. दुनिया में ऐसे बहुत से देश हैं, जो अपनी जनता की कैलोरी की ज़रूरत पूरी करने भर का अनाज नहीं पैदा करते. लेकिन, दुनिया के अन्य देशों में पैदा होने वाले ज़रूरत से ज़्यादा अनाज ने ये सुनिश्चित किया है कि वो बाज़ार से अपनी ज़रूरत भर का खाद्यान्न ख़रीद सकें. लेकिन, उत्तर कोरिया एक तानाशाही देश है, जिसने दुनिया के लिए अपने दरवाज़े बंद किए हुए हैं और पर्दे के पीछे बहुत सी बातें छुपाता रहा है. इसकी अड़ियल सैन्य नीतियों ने समस्या को और जटिल बना दिया है.
दुनिया में ऐसे बहुत से देश हैं, जो अपनी जनता की कैलोरी की ज़रूरत पूरी करने भर का अनाज नहीं पैदा करते. लेकिन, दुनिया के अन्य देशों में पैदा होने वाले ज़रूरत से ज़्यादा अनाज ने ये सुनिश्चित किया है कि वो बाज़ार से अपनी ज़रूरत भर का खाद्यान्न ख़रीद सकें.
आज उत्तर कोरिया बाक़ी दुनिया से पूरी तरह अलग थलग है और कोई देश उस पर भरोसा नहीं करता. अपने ऊपर लगे कई आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों के चलते, उत्तर कोरिया की पहुंच विश्व के बाज़ारों तक नहीं है और इसके गिने चुने व्यापारिक साझीदार देश भी आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से उससे कन्नी काट रहे हैं. वर्ष 2019 में उत्तर कोरिया में अनाज का उत्पादन 46.4 लाख टन रहा था. पिछले साल इसमें थोड़ी गिरावट आई थी और ये घटकर 44 लाख टन ही रह गया था. जबकि देश को हर साल अपनी जनता का पेट भरने के लिए क़रीब 60 लाख टन अनाज चाहिए. उत्तर कोरिया में बहुत से ज़रूरी सामान, जैसे कि दवाओं की क़िल्लत हो गई है. महामारी के चलते उत्तर कोरिया को अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार चीन के साथ लगने वाली अपनी सीमा को बंद करना पड़ा है.
उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था दुनिया से अलग-थलग और सख़्ती से नियंत्रित की जाने वाली है. इसका मौजूदा खाद्य संकट भयंकर बाढ़, कोरोना वायरस की महामारी और अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र के लगाए आर्थिक प्रतिबंधों के चलते पैदा हुआ है. उत्तर कोरिया पर ये पाबंदियां उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम के चलते लगाई गई हैं. उत्तर कोरिया की सरकार देश को रक्षा पर आधारित अर्थव्यवस्था बनाना चाहती है. इसके चलते विकास और अनाज के उत्पादन पर नए हथियार और मिसाइलें विकसित करने को तरज़ीह दी जाती है. देश के क़ीमती संसाधन, उत्तर कोरिया के सैनिक औद्योगिक संस्थानों को दे दिए जाते हैं. इससे देश में रहन-सहन का स्तर बहुत गिर गया है. देश की एक बड़ी आबादी पर ऐसी मुश्किलें सहने का दबाव तभी बनाया जा सकता है, जब उन पर अत्याचार हों और उन्हें बुनियादी मानव अधिकारों से वंचित रखा जाए. इन कारणों से उत्तर कोरिया के समाज को अपने अनाज के संकट का सामना करने में और भी दिक़्क़तें आती हैं.
इन हालात में एक के बाद एक आने वाली क़ुदरती आपदाओं ने लोगों के कष्ट को और भी बढ़ा दिया है. पिछले साल आए एक समुद्री तूफ़ान से देश में अनाज का उत्पादन 8,60,000 टन घटने का अनुमान लगाया गया है. ये देश में लगभग दो महीने के अनाज की ज़रूरत के बराबर है. अनाज के उत्पादन को ये झटका उस वक़्त लगा, जब देश में पहले ही खाद्यान्न की क़िल्लत थी. पिछले साल देश में क़रीब दस लाख टन अनाज की कमी का आकलन किया गया था. इसका मतलब ये हुआ कि एक औसत उत्तर कोरियाई नागरिक, संयुक्त राष्ट्र द्वारा सुझाए गए प्रतिदिन की 2100 कैलोरी के खाने से हर दिन 445 कैलोरी कम ले रहा था. उत्तर कोरिया में खेती के कम उत्पादन को 20-30 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है. लेकिन, इसके लिए देश में उचित राजनीतिक और सामाजिक आर्थिक माहौल होना चाहिए. इस छोटे से देश के लिए स्थायी विकास के लक्ष्य 2 और भुख़मरी का ख़ात्मा, खाद्य सुरक्षा, लोगों का पोषण बढ़ाना और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने जैसे उसके अन्य लक्ष्य हासिल करना संभव है. लेकिन, इसके लिए शर्त यही है कि उत्तर कोरिया के राजनीतिक हालात ऐसे बनें जिससे वो वैश्विक समुदाय से ख़ुद को जोड़े और अपने व्यापारिक साझीदार बढ़ाए. अगर उत्तर कोरिया अपने दरवाज़े बाहरी दुनिया के लिए खोलता है, नई तकनीक़ हासिल करता है और खेती के नए तौर-तरीक़े अपनाता है, तो ये सब कर पाना मुमकिन होगा.
पिछले साल देश में क़रीब दस लाख टन अनाज की कमी का आकलन किया गया था. इसका मतलब ये हुआ कि एक औसत उत्तर कोरियाई नागरिक, संयुक्त राष्ट्र द्वारा सुझाए गए प्रतिदिन की 2100 कैलोरी के खाने से हर दिन 445 कैलोरी कम ले रहा था.
हालांकि, उत्तर कोरिया की मौजूदा स्थिति वैसी नहीं है, जिसकी उसे ज़रूरत है. कृषि एवं खाद्य संगठन (FAO) और सीलैक (CELAC 2020) के मुताबिक़, ‘कोई भी आदमी खाने-पीने की उपलब्धता से असुरक्षित है अगर उसके पर्याप्त रूप से पोषक और सुरक्षित खाना हासिल करने की राह में सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक परेशानियां खड़ी हैं.’ फिर वो अपने लिए ज़रूरी पोषक तत्वों और पसंद का खाना हासिल नहीं कर सकेगा और न ही वो एक सक्रिय और सेहतमंद ज़िंदगी जी सकेगा.
अनाज के अपर्याप्त उत्पादन और ज़मीन की कमी, कच्चे माल की क़िल्लत, मशीनों और ईंधन की कमी, ख़राब बुनियादी ढांचा, लगातार एक जैसी फ़सल उगाने और बार-बार पैदा होने वाली जलवायु संबंधी आपदाओं से निपटने की सीमित क्षमता के चलते उत्तर कोरिया की 40 प्रतिशत आबादी अनाज की भयंकर कमी और कुपोषण का शिकार है और उसे फ़ौरन मदद की ज़रूरत है. इसके अलावा कम उत्पादन वाली एक जैसी फ़सलों की साल दर साल खेती की वजह से अनाज के उत्पादन और खाद्यान्न की ज़रूरत के बीच हर साल लगभग दस लाख टन का अंतर रहता है. ज़रूरी सामान के दामों में बेहिसाब बढ़ोत्तरी ने हालात और बिगाड़ दिए हैं और बहुत से लोगों के लिए इन्हें हासिल कर पाना लगभग नामुमकिन हो गया है. ये स्थिति ठीक वैसी ही है, जिसका ज़िक्र नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने अधिकारों वाले नज़रिए के रूप में किया है. इसके तहत खाद्य संकट के अनाज की कमी के बजाय उसे हासिल करने की क्षमता को अहमियत दी जाती है. खाद्य के अधिकार का मतलब है, ‘अनाज के ऐसे विकल्प जो किसी भी समाज में कोई व्यक्ति किसी संकट के दौरान अपने अधिकार और अवसरों के रूप में हासिल कर सकता है.’ अकाल अक्सर तभी पड़ते हैं, जब लोग अपने अधिकारों में भयंकर गिरावट आते देखते हैं. इसका संबंध फ़सल की तबाही से जुड़ा भी हो सकता है और नहीं भी.
उत्तर कोरिया की 40 प्रतिशत आबादी अनाज की भयंकर कमी और कुपोषण का शिकार है और उसे फ़ौरन मदद की ज़रूरत है. इसके अलावा कम उत्पादन वाली एक जैसी फ़सलों की साल दर साल खेती की वजह से अनाज के उत्पादन और खाद्यान्न की ज़रूरत के बीच हर साल लगभग दस लाख टन का अंतर रहता है.
हालांकि, हक़ीक़त में खाद्य सुरक्षा की समस्या एक जटिल मसला है और ये सिर्फ़ अनाज की उपलब्धता से नहीं जुड़ा है. खाद्य सुरक्षा अक्सर उस राजनीति और नीतिगत मसलों से जुड़ी होती है, जो किसी देश की सरकार संचालित करती है. बॉब क्यूरी के शब्दों में कहें, तो ‘लोगों की खाद्य सुरक्षा अनाज की उपलब्धता पर भी निर्भर है; और उस अनाज पर लोगों के अधिकार पर भी निर्भर करता है. लोगों को ये अधिकार अक्सर उनकी ख़रीदने की क्षमता पर निर्भर करता है.’ बॉब क्यूरी आगे कहते हैं कि खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में अनाज के वितरण का तौर-तरीक़ा भी बेहद अहम हो जाता है. अकाल और खाद्य असुरक्षा आर्थिक झटकों के साथ साथ राजनीतिक संकट भी होते हैं.
बढ़ती आबादी की खाद्यान्न की ज़रूरत और उनमें पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए उत्तर कोरिया को ज़्यादा टिकाऊ खाद्य व्यवस्था और विविधता वाली खेती की ओर क़दम बढ़ाना होगा. अनाज पैदा करने के लिए उसे ऐसी टिकाऊ तकनीकें अपनानी होंगी, जिससे खेती बाड़ी पर पर्यावरण और जलवायु के संकटों का कम से कम असर हो. इससे देश की खाद्य व्यवस्था में लचीलापन आएगा, जो आपूर्ति की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिहाज़ से बहुत अहम है. और आख़िर में जब हम उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों की बात करते हैं, तो उत्तर कोरिया के हित में यही होगा कि वो सीमाओं पर नियंत्रण में ढील दे और बाहरी मदद के ज़रिए अपने लिए पर्याप्त अनाज की व्यवस्था करे. लेकिन, ये देखना अहम होगा कि बाहर से मिलने वाली मदद का उत्तर कोरिया में वितरण किस तरह से होता है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Preeti Kapuria was a Fellow at ORF Kolkata with research interests in the area of environment development and agriculture. The approach is to understand the ...
Read More +