Published on Jul 21, 2023 Updated 0 Hours ago
उत्तरी अफ्रीका का अदृश्य भागीदार: क्षेत्र में भारत का राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में राष्ट्रों के बीच बातचीत अक्सर समय के साथ बदलती प्राथमिकताओं और बदलते वैश्विक परिस्थितियों द्वारा निर्देशित होती है. यह भारत और उत्तरी अफ्रीका के बीच संबंधों के लिए भी सच है  जिसमें एक उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है और जो वैचारिक सीमाओं को पार करते हुए अधिक व्यावहारिक और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने से जुड़ा है, जिससे इस क्षेत्र में भारत की राजनयिक मौज़ूदगी बढ़ गई है. जैसे-जैसे भारत का विकास जारी है, उत्तर अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंधों में आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मज़बूत राजनीतिक संबंधों की बुनियाद भी मज़बूत होती जा रही है, जिन पर किसी का ध्यान नहीं गया है लेकिन सहयोग की यह ऐसी क्षमता है जिसका पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाया है.

जैसे-जैसे भारत का विकास जारी है, उत्तर अफ्रीकी देशों के साथ भारत के संबंधों में आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मज़बूत राजनीतिक संबंधों की बुनियाद भी मज़बूत होती जा रही है, जिन पर किसी का ध्यान नहीं गया है लेकिन सहयोग की यह ऐसी क्षमता है जिसका पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाया है. 

रणनीतिक मार्ग प्रशस्त करना : उत्तरी अफ्रीका में भारत की राजनयिक मौज़ूदगी

उत्तरी अफ्रीका के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध की शुरुआत का पता 1955 में बांडुंग सम्मेलन से लगाया जा सकता है, जहां भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उत्तरी अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों के साथ अच्छे संबंध बनाए थे. इस अवधि के दौरान  भारत का लक्ष्य उत्तरी अफ्रीका में जातीय भारतीय समुदायों की स्थिति को संबोधित करना और उपनिवेशवाद विरोधी मुक्ति आंदोलनों के लिए समर्थन मुहैया कराना था. शीत युद्ध की समाप्ति तक आर्थिक जुड़ाव पीछे छूट चुका था और तब भारत ने तकनीक़ी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम के माध्यम से राजनयिक और वित्तीय सहायता बढ़ा दी थी.

हालांकि 1991 में आर्थिक उदारीकरण के साथ भारत की विदेश नीति के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और वैश्विक बाज़ार में एकीकरण पर जोर देते हुए, भारत ने उत्तरी अफ्रीकी देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार करने के लिए संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने और बहुआयामी राजनयिक संबंधों को विकसित करने की ओर ध्यान दिया.

मिस्र, मोरक्को, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और लीबिया के साथ भारत के राजनीतिक रिश्ते उत्तरी अफ्रीका के प्रति इसके विविध दृष्टिकोण को दर्शाते हैं. भारत मिस्र के साथ मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध बनाए रखता है, आतंकवाद विरोधी, क्षेत्रीय स्थिरता और व्यापार संवर्धन पर सहयोग करता है. मोरक्को ने भारत के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों के साथ, राजनयिक संबंधों को भी रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ा दिया है. अल्जीरिया और भारत बहुपक्षीय मंचों पर द्विपक्षीय समर्थन की बात करते हैं और क्षेत्र में समुद्री मौज़ूदगी को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता साझा करते हैं. 1958 में राजनयिक संबंध स्थापित करने के बाद से ट्यूनीशिया और भारत के बीच भी मैत्रीपूर्ण संबंध देखने को मिले हैं. जबकि लीबिया के साथ भारत के संबंधों में उतार-चढ़ाव होता रहा है और लीबिया में राजनीतिक स्थिरता की बहाली तक द्विपक्षीय संबंधों को पुनर्जीवित करने की उम्मीद है.

उत्तरी अफ्रीकी देशों ने भी भारत के वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरने और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी में विविधता लाने की अपनी आवश्यकता की पहचान करते हुए भारत के साथ सहयोग बढ़ाने की मांग की है.

उत्तरी अफ्रीकी देशों ने भी भारत के वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरने और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी में विविधता लाने की अपनी आवश्यकता की पहचान करते हुए भारत के साथ सहयोग बढ़ाने की मांग की है. पश्चिमी सहयोग के अनुदेशात्मक रवैये के विपरीत, भारत का दृष्टिकोण समान साझेदारी, पारस्परिक लाभ और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करने पर आधारित रहता है. साउथ-साउथ सहयोग पर भारत का जोर विशेष रूप से क्षमता निर्माण, ऋण देने, फायदेमंद निर्यात, आर्थिक विकास और अधिक संतुलित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देना है. परिणामस्वरूप, भारत के साथ संबंध विकसित करना उत्तरी अफ्रीकी देशों के लिए एक आवश्यक विदेश नीति लक्ष्य बन गया है.

उत्तरी अफ्रीका में भारत के समृद्ध आर्थिक संबंध

उत्तरी अफ्रीका के साथ भारत की आर्थिक भागीदारी में 2016 के बाद से अहम बदलाव देखे गए हैं, उत्तरी अफ्रीकी देश प्रमुख आर्थिक भागीदार के रूप में सामने आ रहे हैं. भारत के सीमित घरेलू ऊर्जा संसाधनों के संदर्भ में  उत्तरी अफ्रीका से महत्वपूर्ण वस्तुओं की स्थिर और विश्वसनीय आपूर्ति, विशेष रूप से ऊर्जा क्षेत्र में, भारत के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा भारत का लक्ष्य अपने कृषि क्षेत्र को मज़बूत करना और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिससे उत्तरी अफ्रीकी देश इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भागीदार बन सकें.

2022 में उत्तरी अफ्रीका से टॉप 10 भारतीय निर्यात और आयात

Source: Indian Department for Commerce and Industry

भारत के मल्टीनेशनल कारपोरेशन  और सार्वजनिक उद्यमों ने पारंपरिक साझेदारों से परे अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाने की उत्तरी अफ्रीकी देशों की इच्छा का बेहतर ढंग से लाभ उठाया है. इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत ने इस क्षेत्र में अपने आर्थिक प्रभाव का विस्तार किया है. ख़ुद को एक प्रमुख आर्थिक भागीदार के रूप में स्थापित किया है और लगातार शीर्ष छह में अपना स्थान बनाए रखा है. इसके अलावा, भारत की अनुमानित जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए  उत्तरी अफ्रीका में भारत की उपस्थिति इस क्षेत्र के लिए एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार भी मुहैया कराती है.

मिस्र उत्तरी अफ्रीका में भारत के प्राथमिक व्यापारिक भागीदार के रूप में सामने है, जो एक स्थापित व्यापार समझौते के माध्यम से साल 2022 में लगभग 7 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार को सुनिश्चित किया था. मिस्र उत्तरी अफ्रीकी देशों में भारत को कच्चे पेट्रोलियम का पहला प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जबकि भारत मिस्र को मांस, लोहा और इस्पात का निर्यात करता है. इसके अलावा  पूर्वी भूमध्य सागर में मिस्र के प्राकृतिक गैस केंद्र बनने की क्षमता आने वाले दशकों में दोनों देशों के बीच एक मज़बूत और स्थायी आर्थिक साझेदारी की संभावनाओं को जगाती है.

Data Sourced and Organised by the Authors from the Indian Department for Commerce and Industry and UN COMTRADE

मोरक्को में 40 भारतीय कंपनियों की स्थापना के साथ, हाल के वर्षों में मोरक्को के साथ भारत की आर्थिक भागीदारी लगातार बढ़ी है. भारत और मोरक्को के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 3.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जो 2016 में 907 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े से काफी ज़्यादा है. यह बढ़ोतरी भारत के मोरक्को से फॉस्फेट के आयात से प्रेरित है, जो 2022 में उत्तरी अफ्रीका से पहली आयातित वस्तु बन गई. कपड़ा, वाहन, फार्मास्यूटिकल्स और मशीनरी को शामिल करते हुए मोरक्को से निर्यात में भी अब विविधता आई है. रिन्यूएबल  एनर्जी,  पर्यटन, कृषि और रक्षा उद्योग सहित विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त उद्यम और निवेश के अवसरों ने मोरक्को को उत्तरी अफ्रीका में भारत की आर्थिक उपस्थिति के लिए एक प्रमुख भागीदार बना दिया है.

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भारत और अल्जीरिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 2.45 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें भारत ने 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कच्चा तेल आयात करने के साथ ही फार्मास्यूटिकल्स, वाहन और खाद्य उत्पादों का निर्यात किया [1].  अल्जीरिया में भारतीय निवेश में भी बढ़ोतरी हुई है. टाटा, महिंद्रा और किर्लोस्कर ब्रदर्स सहित भारतीय कंपनियां देश में कई तरह के ऑपरेशन स्थापित कर रही हैं. इन कंपनियों ने ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग और ऊर्जा सहित विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त उद्यम स्थापित किए हैं, जो अल्जीरिया के साथ दीर्घकालिक साझेदारी बढ़ाने  के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

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ट्यूनीशिया में भारत की आर्थिक उपस्थिति धीमी गति से बढ़ रही है, 2022 में द्विपक्षीय व्यापार 760 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. भारत ट्यूनीशिया से फॉस्फेट और रसायन आयात करता है, जबकि कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स और इंजीनियरिंग सामान निर्यात करता है. 2017 में भारत-ट्यूनीशिया संयुक्त आयोग की स्थापना ने दोनों देशों को व्यापार और निवेश के लिए नए रास्ते तलाशने के लिए एक मंच प्रदान किया है लेकिन ट्यूनीशिया में मौज़ूदा राजनीतिक संकट ने आर्थिक अनिश्चितता के माहौल को बढ़ा दिया है, जिससे आर्थिक सहयोग का दायरा फिलहाल सीमित नज़र आता है. भविष्य में भारतीय आर्थिक हित के सामान्य रहने की संभावना है.

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लीबिया में, भारत की ऐतिहासिक रूप से तेल और गैस क्षेत्र में एक मज़बूत आर्थिक उपस्थिति थी लेकिन वहां जारी राजनीतिक संकट के कारण  हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में भागीदारी अब सीमित हो गई है.

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दृष्टिकोण

इसमें दो राय नहीं कि उत्तरी अफ्रीका में भारत एक महत्वपूर्ण मौज़ूदगी रखता है, हालांकि इसके प्रभाव का स्तर अन्य बाहरी कारकों के बराबर नहीं हो सकता है. फिर भी  भारत पारस्परिक रूप से लाभप्रद साझेदारी बनाने और क्षेत्र के विकास और समृद्धि में योगदान करने के लिए साउथ-साउथ सहयोग के अपने अद्वितीय दृष्टिकोण का लाभ उठाकर उत्तरी अफ्रीका में अपनी उपस्थिति को और मज़बूत कर सकता है और इसे हासिल करने के लिए  भारत को निम्नलिखित रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए :

  • व्यापार और निवेश को मज़बूत करना : भारत को उत्तरी अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार और निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए, ख़ासकर बुनियादी ढांचे और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसे क्षेत्रों में. मज़बूत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देकर, भारत इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और भागीदारी को बढ़ा सकता है.
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाना : व्यापार मेलों का आयोजन करना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना और भारत और उत्तरी अफ्रीकी देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित कर, आपसी समझ को बढ़ाया जा सकता है और आर्थिक और सामाजिक संबंधों को मज़बूत किया जा सकता है. ये पहल विश्वास और लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते बनाने में योगदान दे सकती हैं.
  • राजनीतिक और राजनयिक संबंधों को मज़बूत करना: मज़बूत राजनीतिक और राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारतीय और उत्तरी अफ्रीकी नेताओं के बीच नियमित उच्च-स्तरीय यात्राएं और बातचीत होना महत्वपूर्ण हैं. इसके अतिरिक्त, अफ्रीकी संघ, अरब लीग [2] और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन जैसे बहुपक्षीय संगठनों में सक्रिय भागीदारी आम क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग और मदद के मौक़े को बढ़ा सकती है.

[1] India Ministry of Commerce and Industry. Algeria and India Trade in 2022. Monitoring Dashboard. Department of Commerce.

[2] India holds observer status.

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