Author : Sushant Sareen

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

अब जबकि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान की तारीख़ आ गई है, तो ऐसा लगता है कि इमरान ख़ान के तरकश के सारे तीर ख़त्म हो चुके हैं.

इमरान सरकार का आख़िरी मंज़र: चरम पर पहुंचेगा या तबाही लाएगा?
इमरान सरकार का आख़िरी मंज़र: चरम पर पहुंचेगा या तबाही लाएगा?

अपने पूरे सियासी करियर के दौरान इमरान ख़ान ने हमेशा ही क्रिकेट के जुमलों का इस्तेमाल राजनीतिक बयानबाज़ी में किया है. ऐसा करके वो ख़ुद को अक़्लमंद दिखाने की कोशिश भी करते रहे हैं और अवाम से उसकी ज़ुबान में जुड़ने का प्रयास भी करते रहे हैं. शायद यही कारण है कि आज इमरान ख़ान की हुकूमत जिस मुश्किल में फंसी है और जिससे निकल पाना उसके लिए कम-ओ-बेश नामुमकिन सा लग रहा है, उस हालात के लिए क्रिकेट की ज़ुबान में बात करना ज़्यादा मुफ़ीद होगा: इमरान ख़ान की पारी का आख़िरी ओवर है. सिर्फ़ पांच गेंदें बची हैं और उन्हें जीत के लिए 36 रन चाहिए. ज़ाहिर है कि इमरान के लिए ये सियासी मैच जीत पाना क़रीब-क़रीब नामुमकिन है. हां, कोई चमत्कार ही हो जाए, तो शायद उनकी सरकार बच जाए- जैसे कि विपक्षी टीम एक या इससे ज़्यादा नो बॉल फेंक दे, या फिर अंपायर (जज) कोई बड़ा विवादास्पद फ़ैसला दे दें, या आख़िरी वक़्त में ऊपरवाला ही कोई करिश्मा कर दे.

इमरान ख़ान की पारी का आख़िरी ओवर है. सिर्फ़ पांच गेंदें बची हैं और उन्हें जीत के लिए 36 रन चाहिए. ज़ाहिर है कि इमरान के लिए ये सियासी मैच जीत पाना क़रीब-क़रीब नामुमकिन है.

वैसे तो इमरान हुकूमत का खेल लगभग ख़त्म हो चुका है. लेकिन, वो अभी भी आख़िरी गेंद तक मुक़ाबला करने की बातें कर रहे हैं. शायद वो अपनी बल्लेबाज़ी का औसत सुधारना चाहते हैं (आज के संदर्भ में जिसका मतलब यही होता है कि वो: ख़ुद को सियासी शहीद बताकर अपनी सरकार को ये कहते हुए क़ुर्बान कर दें कि भ्रष्टाचारियों ने नाक़ाबिल विपक्ष से हाथ मिला लिया है). ये भी हो सकता है कि इस सियासी खेल में विपक्ष की चाल नाकाम करने के लिए इमरान ख़ान पिच को ही खोद डालें. या फिर अवाम को ही इस क़दर भड़का दे कि वो सत्ता के प्रतिष्ठान पर हमला कर दे (अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से एक दिन पहले यानी 27 मार्च को हुई इमरान की अम्र बिल मारूफ़ रैली का मक़सद तो यही लगता है). ये भी हो सकता है कि वो विपक्षी नेताओं पर सीधा ही हमला कर दें और विपक्षी दलों के सांसदों को गिरफ़्तार करा लें और विरोधी खेमे के कुछ सांसदों को वोट देने से रोकने की कोशिश करें, जिससे कि मैच रद्द कर दिया जाए और थर्ड अंपायर (यानी पाकिस्तान की फौज) को इस मामले में दख़ल देने को मजबूर होना पड़े. दूसरे लफ़्ज़ों में कहें तो इमरान ख़ान वो सब कुछ कर सकते हैं, जो अक्सर छोटे बच्चे तब करते हैं, जब वो मैच हारने लगते हैं: मसलन, वो विकेट उखाड़ लें. विरोधियों से गेंद और बल्ला छीन लें और मैदान से भाग जाएं.

इमरान ख़ान की योजना

इस वक़्त तो इमरान ख़ान अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव (NCM) में जीत का दम भर रहे हैं. वो दावा कर रहे हैं कि उनके तरकश में अभी ऐसे कई तीर बचे हैं, जो विपक्षी दलों को चारों खाने चित कर देंगे. लेकिन, पाकिस्तान के ज़्यादातर विश्लेषकों को इस बात का यक़ीन है कि इमरान ख़ान बस दिखावा कर रहे हैं और न सिर्फ़ विपक्षी दलों बल्कि अपने समर्थकों के साथ भी छलावा कर रहे हैं. पाकिस्तान की संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली (NA) में बहुमत निश्चित रूप से सत्ताधारी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (PTI) के ख़िलाफ़ है. संविधान के मुताबिक़, अविश्वास प्रस्ताव पास कराने और इमरान सरकार को गिराने के लिए विपक्षी दलों को नेशनल असेंबली की कुल संख्या (342) के बहुमत यानी 172 सांसदों का समर्थन चाहिए. इमरान ख़ान की एक असली उम्मीद इस बात पर टिकी है कि किसी तरह से न्यायपालिका उनकी तरफ़ मदद का हाथ बढ़ा दे, जिससे कि उनकी पार्टी के सांसद, अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दौरान उनके पक्ष में वोट देने को मजबूर हो जाएं. उनकी हुकूमत ने संविधान की दल बदल रोकने की धारा (आर्टिकल 63A) पर सुप्रीम कोर्ट से स्थिति स्पष्ट करने की गुहार लगाई है. कुछ न्यायाधीशों ने टिप्पणी की है कि उनके सामने जो मामला है वो इस बात का नहीं है कि बाग़ी सांसदों के वोट अविश्वास प्रस्ताव में गिने जाएंगे या नहीं, बल्कि कोर्ट को ये तय करना है कि पार्टी से अलग होने वाले सांसदों की सदस्यता कितने समय के लिए निरस्त की जाएगी.

संविधान के मुताबिक़, अविश्वास प्रस्ताव पास कराने और इमरान सरकार को गिराने के लिए विपक्षी दलों को नेशनल असेंबली की कुल संख्या (342) के बहुमत यानी 172 सांसदों का समर्थन चाहिए. इमरान ख़ान की एक असली उम्मीद इस बात पर टिकी है कि किसी तरह से न्यायपालिका उनकी तरफ़ मदद का हाथ बढ़ा दे

अदालत की तरफ़ से आए इन बयानों से साफ़ है कि जजों ने संविधान की ऐसी ग़लत व्याख्या करने का विकल्प खुला रखा है, जिससे सरकार को फ़ायदा हो जाए. संविधान के मुताबिक़, अविश्वास प्रस्ताव के दौरान नेशनल असेंबली के जो सदस्य अपनी पार्टी के ख़िलाफ़ वोट देते हैं, उन्हें सदन से हटाया जा सकता है. उनकी सदस्यता निरस्त नहीं की जा सकती है. बाग़ी सांसदों को पद से हटाने जाए के दाग़ के साथ रहना शायद मंज़ूर हो. लेकिन अगर उनकी सदस्यता रद्द की जाती है, तो हो सकता है कि वो सरकार के पक्ष में मतदान के लिए मजबूर हो जाएं. ये सदस्यता उम्र भर के लिए भी रद्द की जा सकती है और मौजूदा कार्यकाल के लिए भी. इमरान ख़ान अदालत से ऐसे ही फ़ैसले की उम्मीद कर रहे होंगे. लेकिन, अगर पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट, उनकी सरकार के हक़ में फ़ैसला दे भी देता है, तो इससे भी इमरान को कोई ख़ास मदद नहीं मिल पाएगी. इसके बाद भी विपक्षी दल, इमरान हुकूमत के गठबंधन के साथियों की मदद से अविश्वास प्रस्ताव को पारित करा सकते हैं. यही वजह है कि इमरान ख़ान के वफ़ादार नेता, अपने गठबंधन के साझीदारों को मनाने में जी-जान से जुटे हैं, ताकि सरकार को बचाया जा सके. लेकिन, फिलहाल तो वो अपनी कोशिश में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं.

वोटिंग 31 मार्च को ही हो पाएगी और अगर देर की गई तो मतदान की तारीख़ 4 अप्रैल तक जा सकती है. लेकिन, ऐसी ख़बरें भी आ रही हैं कि स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान तब तक टालने की फ़िराक़ में हैं

अब जबकि पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट, इमरान सरकार की अर्ज़ी पर विचार कर रहा है, तो ख़ुद इमरान और उनके चापलूसों की फ़ौज (जिसमें नेशनल असेंबली के स्पीकर भी शामिल हैं), अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान टालने के लिए हर तरह का नुस्खा आज़माने में जुटे हुए हैं. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए नेशनल असेंबली की बैठक 21 मार्च से शुरू हो जानी चाहिए थी. लेकिन, स्पीकर ने सदन की बैठक 25 मार्च को बुलाई. उस दिन ही उन्होंने सदन को 28 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया. अगर विपक्षी दल अविश्वास प्रस्ताव 28 मार्च को ले आते हैं, और इस पर जल्द से जल्द मतदान कराया जाता है, तो भी वोटिंग 31 मार्च को ही हो पाएगी और अगर देर की गई तो मतदान की तारीख़ 4 अप्रैल तक जा सकती है. लेकिन, ऐसी ख़बरें भी आ रही हैं कि स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान तब तक टालने की फ़िराक़ में हैं, जब तक सुप्रीम कोर्ट इमरान सरकार की अर्ज़ी पर अपनी राय नहीं सुना देता है. ऐसा पक्षपाती और असंवैधानिक क़दम निश्चित रूप से पाकिस्तान को अराजकता और उथल-पुथल की ओर धकेल देगा और ये अराजकता सिर्फ़ सदन तक नहीं सीमित रहेगी. पाकिस्तान की सड़कों तक फैल जाएगी.

इमरान ख़ान का दांव 

27 मार्च को इमरान ख़ान ने राजधानी इस्लामाबाद में अपनी अम्र बिल मारूफ़ रैली की. जिसमें उनके दस लाख की भीड़ जुटने के दावे से बहुत कम लोग जमा हुए. इसके मुक़ाबले में 28 मार्च को विपक्षी जम्हूरी मूवमेंट (PDM) ने इस्लामाबाद पहुंचने के लिए लॉन्ग मार्च का एलान किया है. असल में 27 मार्च की रैली में भीड़ जुटाकर इमरान ख़ान पार्टी छोड़ने वालों को अपनी लोकप्रियता और सियासी ताक़त से ख़ौफ़ज़दा करना चाहते थे. रैली में भीड़ जुटाने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी की ताक़त झोंक दी गई थी. ये वही दांव था, जो इससे पहले भी सत्ता से बेदख़ल किए गए लोगों ने आख़िरी मौक़े पर चला था. हालांकि, ऐसी रैलियों से पहले के पाकिस्तानी नेताओं की कुर्सियां भी नहीं बच पायी थीं, और उम्मीद नहीं है कि इससे इमरान ख़ान भी अपनी सरकार बचा सकेंगे. इस वक़्त पाकिस्तान में इमरान ख़ान समर्थकों और विपक्षी दलों के समर्थकों के बीच ज़बरदस्त तनातनी और झड़पों की ख़बरें आ रही हैं. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान में पूरी तरह से अराजकता फैलने का डर है. वैसे हालात बने तब पाकिस्तान की फौज के लिए पर्दे के पीछे से अपनी सियासी कठपुतलियों का नाच जारी रख पाना मुमकिन नहीं रहेगा.

इस वक़्त पाकिस्तान में इमरान ख़ान समर्थकों और विपक्षी दलों के समर्थकों के बीच ज़बरदस्त तनातनी और झड़पों की ख़बरें आ रही हैं. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान में पूरी तरह से अराजकता फैलने का डर है.

इमरान ख़ान ने अपनी सरकार बचाने के लिए एक और दांव भी खेला है. उनकी सरकार दक्षिणी पंजाब के नाम से एक और सूबा बनाने के लिए संविधान संशोधन का प्रस्ताव ले आई है. ज़ाहिर है कि ये हताशा में उठाया गया क़दम है, जिस पर हंसा ही जा सकता है. इमरान ख़ान अपनी मौजूदा मुश्किल से निकलने के लिए भविष्य का दांव खेल रहे हैं. चूंकि इमरान ख़ान के पास तो नेशनल असेंबली में सामान्य बहुमत भी नहीं है. ऐसे में वो नया सूबा बनाने के लिए ज़रूरी ये प्रस्ताव पास कराने के लिए अवामी असेंबली, सीनेट और पंजाब विधानसभा में दो तिहाई बहुमत कहां से जुटा पाएंगे. इमरान ख़ान के फेंके इस हास्यास्पद सियासी पत्ते के दबाव में विपक्षी दल तो नहीं आने वाले हैं. 

इमरान की बीवी की जादुई ताक़तें

इस्लामाबाद में एक और अफ़वाह बड़ी तेज़ी से फैल रही है. कहा जा रहा है कि इमरान ख़ान की ‘भविष्य देख पाने वाली बीवी’- पिंकी पीरनी- ने कुंडली देखकर ये बताया है कि अगर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान को अप्रैल महीने तक टाल दिया जाए, तो हालात इमरान ख़ान के पक्ष में बदल सकते हैं. पिछले साल अक्टूबर में अपनी बीवी पिंकी पीरनी की सलाह पर ही इमरान ख़ान ने, पेशावर के मौजूदा कोर कमांडर जनरल फ़ैज़ हमीद के तबादले की फाइल को काफ़ी दिनों तक रोक रखा था. फ़ैज़ हमीद उस वक़्त ISI के मुखिया थे. ये पाकिस्तानी फ़ौज के सब्र का इम्तिहान था. इसके बाद से ही फ़ौज ने अपने ‘सेलेक्टेड’ प्रधानमंत्री का समर्थन करना बंद कर दिया. पाकिस्तान के राजनेता परवेज़ इलाही के तंज़िया लफ़्ज़ों में कहें, तो: ‘अब पोतड़े बदले जाने बंद कर दिए गए’, और बच्चे को अपनी सफ़ाई ख़ुद से करने को कह दिया गया.

कहा जा रहा है कि इमरान ख़ान की ‘भविष्य देख पाने वाली बीवी’- पिंकी पीरनी- ने कुंडली देखकर ये बताया है कि अगर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान को अप्रैल महीने तक टाल दिया जाए, तो हालात इमरान ख़ान के पक्ष में बदल सकते हैं.

इससे पहले पाकिस्तान की फ़ौज ने इमरान हुकूमत को कम से कम दो मौक़ों पर मुश्किल से निकाला था. 2019 में मौलाना फ़ज़्लुर रहमान के आज़ादी मार्च के दौरान और फिर मार्च 2021 में जब सीनेट में इमरान ख़ान के प्रत्याशी हार गए थे और उन्हें संसद से विश्वास मत हासिल करना पड़ा था. उस वक़्त ये दावा किया गया था कि इमरान ख़ान ने अपने वफ़ादार नेताओं को ये बताया था कि जो लोग (फ़ौज) उन्हें सत्ता में ले आए, वही ये बात सुनिश्चित करेंगे कि वो हुकूमत में बने रहें. क्योंकि उनके पास कोई और चारा है नहीं. लेकिन, पिछले साल अक्टूबर में फ़ौज में जनरलों के तबादले और आला अधिकारियों की तैनाती को लेकर हुई तनातनी के बाद पाकिस्तानी फ़ौज ने ख़ुद को ‘खेल से अलग’ कर लिया है. इमरान के लिए और बुरी बात ये हुई कि फ़ौज ने विपक्षी दलों से संवाद करना शुरू कर दिया. इमरान की बीवी की जादुई ताक़तें जिस तरह उस वक़्त बेअसर रही थीं. वैसे में अगर अभी भी वो पिंकी पीरनी के मशविरों पर अमल करके अपने सियासी दांव चल रहे हैं, तो फिर वो अपनी क़िस्मत को दांव पर लगा रहे हैं.

क्या कोई बैक-अप प्लान है?

पाकिस्तान में ऐसी भी अटकलें चल रही हैं कि इमरान ख़ान अपने आख़िरी दांव के रूप में ब्रह्मास्त्र चलाते हुए, आर्मी चीफ़ जनरल क़मर जावेद बाजवा को बर्ख़ास्त कर सकते हैं और उनकी जगह अपने पसंदीदा फ़ैज़ हमीद को नया आर्मी चीफ़ बना सकते हैं. लेकिन, इस्लामाबाद में फैली अफ़वाहों के मुताबिक़, इमरान ख़ान को ऐसा सियासी स्टंट करने से बाज़ आने का मशविरा दिया गया है. फ़ौज़ इमरान ख़ान को इसकी क़तई इजाज़त नहीं देगी. अगर इमरान ऐसा दांव चलते हैं तो पाकिस्तान की फ़ौज इमरान को ऐसा सबक़ सिखाएगी, जो ख़ुद इमरान ही नहीं, मुल्क के हर सियासी लीडर के लिए एक मिसाल बन जाएगी. ऐसा लगता है कि फ़ौज का ये इशारा इमरान ख़ान तक पहुंच चुका है. इमरान ख़ान ख़ुद को ऐसी ख़बरों से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी हुकूमत आर्मी चीफ़ जनरल बाजवा को बर्ख़ास्त करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने मीडिया में अपने कुछ अंध भक्तों को ये बताया है कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है. लेकिन इस मकाम पर आकर अगर वो फ़ौज की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ा भी रहे हैं, तो इससे इमरान अपनी हुकूमत की क़िस्मत नहीं बदल पाएंगे. ख़ास तौर से तब और जब इमरान और उनकी पार्टी की ट्रोल आर्मी, लगातार फ़ौज और ISI के प्रमुख को निशाना बना रही है.

अब विकल्प क्या बचा है?

पाकिस्तान में अभी जो हालात हैं, उनमें इमरान ख़ान के पास बहुत ज़्यादा विकल्प नहीं बचे हैं. जो हैं भी वो मुफ़ीद नहीं हैं. वो एक ऐसा सियासी समझौता करने की कोशिश कर सकते हैं, जिससे सत्ता में बने रहें. लेकिन इसके लिए उन्हें जल्दी यानी सितंबर तक चुनाव कराने का वादा करना होगा. हालांकि, विपक्षी दल इसके लिए तैयार होंगे, ऐसा लगता नहीं. इस बात की उम्मीद भी नहीं है कि इमरान ख़ान विपक्षी दलों से बात करेंगे. क्योंकि वो तो सभी दलों को ख़ुद से कमतर बताते आए हैं. फ़ौज भी दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने में मदद नहीं करने वाली है. इमरान के सामने दूसरा विकल्प अपनी इज्ज़त के साथ विदाई का है: वो दीवार पर लिखी इबारत पढ़ लें और अविश्वास प्रस्ताव में हारने के बाद पद से हटाया जाने वाला पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बनने के बजाय, प्रस्ताव मतदान से पहले ही इस्तीफ़ा दे दें. मगर, छोटे किरदारों के लोग अगर ऊंची पायदान पर पहुंच जाते हैं, तो आम तौर पर वो अपनी इज़्ज़त के बारे में नहीं सोचते. वैसे भी इमरान ख़ान पद से हटने के बजाय लड़ते लड़ते सियासी शहीद बनने के विकल्प को तरज़ीह देंगे. तीसरा विकल्प ये है कि वो किसी न किसी तरीक़े से सत्ता में बने रहें. ये विकल्प भी लंबे समय तक उनकी सरकार नहीं बचा सकेगा. क्योंकि अगर हालात बिगड़े, जो कि बिगड़ने तय हैं, तो फिर न ही फ़ौज और न ही पाकिस्तान की न्यायपालिका ही उन्हें बचाने आएगी. विपक्षी दल तो ख़ैर उन्हें क़तई कोई मौक़ा नहीं देने वाले हैं. अगर इमरान ख़ान ऐसे बेलगाम होते हैं, तो हालात ख़ुद उनके लिए और उनके अंध भक्तों वाली पार्टी के लिए भी बहुत ख़तरनाक होंगे.

इमरान ख़ान के पास आख़िरी विकल्प ये है कि वो अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होने दें और अवामी असेंबली में अपनी क़िस्मत आज़माएं. वो इसमें हार जाएंगे, मगर कम से कम अगली सियासी लड़ाई लड़ने लायक़ बचे रहेंगे.

इमरान ख़ान के पास आख़िरी विकल्प ये है कि वो अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होने दें और अवामी असेंबली में अपनी क़िस्मत आज़माएं. वो इसमें हार जाएंगे, मगर कम से कम अगली सियासी लड़ाई लड़ने लायक़ बचे रहेंगे. चूंकि विपक्ष में रहते हुए उन पर गंभीर आरोप लगेंगे- मसलन विदेशी फंडिंग का मामला और फ़र्ज़ी टैक्स रिटर्न दाख़िल करने के आरोप- ऐसे में इमरान ख़ान के राजनीतिक भविष्य पर बड़ा सवालिया निशान लग गया है.

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Sushant Sareen

Sushant Sareen

Sushant Sareen is Senior Fellow at Observer Research Foundation. His published works include: Balochistan: Forgotten War, Forsaken People (Monograph, 2017) Corridor Calculus: China-Pakistan Economic Corridor & China’s comprador   ...

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