-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
इमरान ख़ान ने जिस तरीके से और जिस अंदाज में आसिम मुनीर के साथ अपने विवाद को व्यक्तिगत स्वरूप देते हुए उन्हें निशाना बनाया है, ऐसे में यह उम्मीद करना बेमानी होगा कि आसिम मुनीर उन्हें माफ़ कर देंगे.
यह आलेख पाकिस्तान: द अनरेवेलिंग श्रृंखला का हिस्सा है.
क्या पाकिस्तान की राजनीति में इमरान ख़ान की पारी ख़त्म हो गई है या वे फिर एक मर्तबा कमबैक किड यानी शानदार वापसी के नायक साबित होंगे? वैसे राजनीति में किसी को भी, और विशेषकर पाकिस्तान की राजनीति में हमेशा के लिए ख़ारिज नहीं किया जा सकता. नवाज़ शरीफ़ लगभग दो मर्तबा गुमनामी के अंधेरे में खो गए थे. और फिलहाल ऐसे हालात बन रहे है कि शायद वे प्रधानमंत्री के रूप में अपना चौथे कार्यकाल को हासिल करते हुए वापसी कर सकते हैं. जितनी बार उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा, लोगों ने यही सोचा कि शायद वे अब वापसी नहीं करेंगे. लेकिन नवाज़ शरीफ़ ने हर बार धमाकेदार वापसी की. बेनजीर भुट्टो के साथ भी कुछ ऐसा ही था. यदि उनकी हत्या नहीं हुई होती, तो वे 2008 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार थीं. पाकिस्तान में सैन्य प्रतिष्ठान के साथ संबंध ख़राब होने के बावजूद अनेक राजनीतिक नेताओं और पार्टियों ने, या तो खुशामद करते हुए या जुगाड़ करते हुए हमेशा पाकिस्तानी राजनीति के केंद्र में वापसी की है.
नौ मई की घटनाओं ने शायद पाकिस्तानी सरकार और उन्हें समर्थन दे रही सेना को वह हथियार दे दिया है, जिसकी वह ख़ोज कर रहे थे. सरकार और वहां की सेना अब इमरान ख़ान की पार्टी को ख़त्म करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.
क्या इमरान ख़ान ऐसा कर सकते हैं? आखिरकार किसने यह सोचा था कि वे अपने ख़िलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के बाद सत्ता से बेदख़ल होने के बावजूद पाकिस्तान की राजनीति के केंद्र में बने रहेंगे. लेकिन एक साल से अधिक वक़्त से उन्होंने न केवल अपने समर्थकों को जागृत और लामबंद किया है, बल्कि उकसाया भी है. ऐसा करते हुए इमरान ख़ान ने पाकिस्तानी सेना में अपने हमदर्दों के लिए एक ऐसा सिरदर्द पैदा कर दिया है, जिसमें पाकिस्तानी सेना यह समझ नहीं पा रही है कि आखिर इमरान को कैसे संभाला जाए या फिर कैसे उन्हें काबू में रखकर इमरान ख़ान को उसकी जगह बताई जाए. लेकिन नौ मई की घटनाओं ने शायद पाकिस्तानी सरकार और उन्हें समर्थन दे रही सेना को वह हथियार दे दिया है, जिसकी वह ख़ोज कर रहे थे. सरकार और वहां की सेना अब इमरान ख़ान की पार्टी को ख़त्म करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. उनका प्रयास है कि इमरान ख़ान की पार्टी को मिलने वाले समर्थन से उसे वंचित कर दिया जाएं. इतना ही नहीं इमरान ख़ान को अयोग्य घोषित करने की योजना पर भी काम चल रहा है, ताकि वक़्त आने पर उन्हें कालकोठरी में भेज दिया जाएं. इमरान के लिए कम से कम फ़िलहाल इस कानूनी कार्रवाई से उबरना और पुन: सत्ता हासिल करना लगभग असंभव लग रहा है. केवल एक चमत्कार या ब्लैक स्वान इवेंट ही उन्हें सत्ता में वापस ला सकता है.
पाकिस्तान की राजनीति में उद्देश्यपूर्ण परिस्थितियां और सत्ता की गतिशीलता इमरान ख़ान के लिए दूसरी पारी को बेहद असंभव बना देती है. पाकिस्तानी सेना वहां के राजनीतिक ढांचे में फिर से अपनी पैठ बनाकर खुद को स्थापित करते हुए अपनी प्रधानता की पुष्टि करने की पूरी तैयारी कर चुकी है. ऐसे में वह इमरान ख़ान को जल्दी ही आने वाले समय में या संभवत: कभी वापसी करने देने की अनुमति नहीं देगी. इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ जो सबसे बड़ी बात जाती है, वह है पाकिस्तानी सेना का वर्तमान नेतृत्व. वहां की सेना के प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के इमरान ख़ान के साथ संबंध बहुत ज़्यादा ख़राब हैं. इसके अलावा सेना के अन्य अफसर जैसे कि इंटर-सर्विसेस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम और उनके डेप्युटी मेजर जनरल फ़ैसल नसीर भी अब इमरान ख़ान को बख्शने वाले नहीं है. यदि वे कुछ करेंगे भी तो यही सुनिश्चत करेंगे कि इमरान ख़ान अब वहां की राजनीति से बाहर हो जाएं.
इमरान ख़ान ने ध्रुवीकरण करते हुए देश को बीच से ही विभाजित कर दिया था. यहां तक तो ठीक था, लेकिन इमरान ने जब सेना को ही विभाजित करने की कोशिश की तो उनकी यह बात अक्षम्य थी.
जनरल आसिम मुनीर नवंबर 2025 तक पाकिस्तानी सेना के प्रमुख बने रहेंगे. यदि उन्हें विस्तार दे दिया गया तो वे नवंबर 2028 तक यह ज़िम्मेदारी संभालेंगे. इमरान ख़ान ने जिस तरीके से और जिस अंदाज में आसिम मुनीर के साथ अपने विवाद को व्यक्तिगत स्वरूप देते हुए उन्हें निशाना बनाया है, ऐसे में यह उम्मीद करना बेमानी होगा कि आसिम मुनीर उन्हें माफ़ कर देंगे. मुनीर समेत अन्य जनरल्स इस बात को जानते हैं कि इमरान ख़ान कितने शातिर और प्रतिशोधी व्यक्ति है. वे यह जानते है कि सत्ता में लौटते ही इमरान अपना बदला लेना चाहेंगे. जब इमरान को इस बात का अहसास हुआ कि चीजें कितने गलत तरीके से उनके ख़िलाफ़ हो गईं है तो उन्होंने सेना को लुभाने का प्रयास किया. लेकिन इसके बावजूद एपॉलेट्स यानी कंधे पर सेना के मेडल धारण करने वाला कोई भी व्यक्ति कभी भी इमरान की बात पर भरोसा नहीं करेगा. इसका कारण यह है कि इमरान की सुविधा देखकर यू-टर्न लेने और अपनी ही कही बातों से पलटने की उनकी प्रवृत्ति से सभी परिचित हैं.
नकारात्मक व्यक्तिगत समीकरणों के अलावा, सेना के शीर्ष अधिकारी इमरान द्वारा सेना का राजनीतिकरण करने और उसके रैंक और फ़ाइल में विभाजन के बीज बोने की कोशिश करने के तरीके से भी काफ़ी नाराज हैं. इमरान ख़ान ने ध्रुवीकरण करते हुए देश को बीच से ही विभाजित कर दिया था. यहां तक तो ठीक था, लेकिन इमरान ने जब सेना को ही विभाजित करने की कोशिश की तो उनकी यह बात अक्षम्य थी. इससे भी बदतर बात यह हुई कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के कार्यकर्ताओं ने सैन्य प्रतिष्ठानों और स्मारकों पर हमला कर दिया. उनकी इस हरकत को सेना और एक देश के रूप में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा के रूप में देखा गया. सेना को यह भरोसा हो गया कि इमरान ख़ान सिर्फ सत्ता हथियाने के लिए देश को गृहयुद्ध की स्थिति में धकेलने के लिए तैयार थे. सेना यह भी मानने लगी कि इमरान ही पाकिस्तान की सड़कों पर हिंसा भड़काने की पूरी योजना में शामिल थे. इन्हीं कारणों से अब सेना के लिए इमरान ख़ान की स्वीकार्यता का मुद्दा लगभग डूब चुका है.
फ़िलहाल के लिए, सैन्य प्रतिष्ठान और उसके असैन्य सहयोगियों का गेम प्लान यह सुनिश्चित करना होगा कि वे ऐसी सारी बातें करें जिसकी वज़ह से लोगों का ध्यान इमरान ख़ान की तरफ जाना बिलकुल ही बंद हो जाएं. उनकी पार्टी के आला नेताओं को पार्टी छोड़ने पर मजबूर करते हुए उनकी पार्टी का सफाया किया जा रहा है; उनके समर्थकों को चुप रहने पर मजबूर कर कैद किया जा रहा है. इमरान के घोटालों और छल-कपटों को उजागर करके उनकी प्रतिष्ठा और छवि को धूमिल किया जा रहा है. इसके साथ ही उन्हें सैकड़ों मामलों में फंसाया जा रहा हैं. अब इस बात की पूरी संभावना है कि नौ मई की घटनाओं में शामिल होने के लिए इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ सैन्य अदालतों में मुकदमा चलाया जाएगा. पाकिस्तानी सेना इसे धूर्तता के साथ नाटकीय अंदाज़ में अपना 9/11 बता रही है. इमरान के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई के अलावा मिलीजुली सरकार को यह तय करना होगा कि इमरान को लेकर आगे करना क्या है. उनके समक्ष कुछ विकल्प इस प्रकार हैं:
इमरान ख़ान को इस बात का अहसास होने लगा है कि वे गंभीर संकट में है. लेकिन वे फिर भी उद्दंड बने हुए हैं. ऐसा लगता है कि वे अभी भी सोचते हैं कि वे शक्तिशाली सेना का मुकाबला कर सकते है और शीर्ष पर आ सकते हैं. उनका यह आत्मविश्वास कहां से आ रहा है ये कहना मुश्किल है.
इमरान के हार मानने से इंकार करने के बाद अब गेंद मिली-जुली सरकार के पाले में है. मिली-जुली सरकार को तय करना होगा कि वह इमरान ख़ान को पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य से कैसे हटाना चाहती है.
इमरान के हार मानने से इंकार करने के बाद अब गेंद मिली-जुली सरकार के पाले में है. मिली-जुली सरकार को तय करना होगा कि वह इमरान ख़ान को पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य से कैसे हटाना चाहती है. हालांकि, समझदार लोगों के लिए इसी बात पर दांव लगाना उचित होगा कि निकट भविष्य और संभवत: किसी भी सूरत में इमरान ख़ान को उनकी दूसरी पारी खेलने का अवसर नहीं मिलने जा रहा है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Sushant Sareen is Senior Fellow at Observer Research Foundation. His published works include: Balochistan: Forgotten War, Forsaken People (Monograph, 2017) Corridor Calculus: China-Pakistan Economic Corridor & China’s comprador ...
Read More +