सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) के अधीनस्थ केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने हाल ही में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के लिए GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुमानित आंकड़े जारी किए हैं। नई श्रृंखला के तहत स्थिर मूल्यों पर GDP ने पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्शाई है। इसी तरह नई श्रृंखला के तहत स्थिर मूल्यों पर जीवीए (सकल मूल्य वर्धित) ने पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 8.0 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्शाई है।
यह GDP की पिछली सीरीज में फेरबदल से उठे भारी विवादों के बीच वर्तमान एनडीए सरकार के लिए बड़ी राहत भरी खबर है, जो नई 2011-12 सीरीज पर आधारित है और जिसे सरकार द्वारा गठित समिति द्वारा वर्ष 2015 में पेश किया गया था। ‘रियल सेक्टर सांख्यिकी पर गठित समिति (सीआरएसएस),’ जैसा कि इसका नाम रखा गया है, की रिपोर्ट में पुरानी GDP सीरीज को नए आधार वर्ष 2011-12 के अनुरूप रूपांतरित करने से संबंधित एक खंड शामिल है, जिसके लिए मोटे तौर पर ‘उत्पादन उन्मुख दृष्टिकोण’ का उपयोग किया गया है।
रिपोर्ट में आकलित पिछली सीरीज यह दर्शाती है कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान स्थिर मूल्यों पर समग्र GDP वृद्धि दर वास्तव में न केवल एक बार, बल्कि दो बार 10.0 प्रतिशत के जादुई आंकड़े को पार कर गई थी। स्थिर मूल्यों पर GDP वृद्धि दर वर्ष 2007-08 में 10.2 प्रतिशत और वर्ष 2010-11 में 10.8 प्रतिशत आंकी गई थी। वैसे तो वर्तमान एनडीए सरकार के कार्यकाल में GDP वृद्धि दर वित्त वर्ष 2017-18 को छोड़कर हमेशा ही 7.0 प्रतिशत से ज्यादा आंकी गई है, लेकिन इस दौरान यह एक बार भी यहां तक कि 9.0 प्रतिशत के आंकड़े को भी पार करने में नाकामयाब साबित हुई है, जैसा कि नीचे दी गई तालिका से स्पष्ट होता है।
नई सीरीज के तहत GDP/जीवीए और अन्य परिवर्तनीय घटकों की वृद्धि दरें (प्रतिशत में) |
वर्ष |
जीवीए (स्थिर मूल्यों पर) |
GDP (स्थिर मूल्यों पर) |
अंतर (जीडीपी–जीवीए) (आधार अंकों में) |
जीडीपी एमपी (वर्तमान मूल्यों पर) |
जीडीपी डिफ्लेटर (प्रतिशत में) |
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (वार्षिक आधार पर प्रतिशत में) |
राजकोषीय घाटा (जीडीपी का % ) |
1994-95 |
4.9 |
5.4 |
46 |
15.9 |
10.0 |
10.2 |
5.5 |
1995-96 |
6.3 |
6.7 |
40 |
16.4 |
9.1 |
10.6 |
4.9 |
1996-97 |
7.3 |
6.9 |
-34 |
15.0 |
7.6 |
3.7 |
4.7 |
1997-98 |
3.8 |
3.5 |
-28 |
10.2 |
6.5 |
0.7 |
5.7 |
1998-99 |
6.5 |
5.9 |
-55 |
14.4 |
8.0 |
0.4 |
6.3 |
1999-00 |
7.3 |
8.2 |
96 |
11.3 |
2.9 |
18.5 |
5.2 |
2000-01 |
3.9 |
3.7 |
-27 |
7.4 |
3.7 |
1.0 |
5.5 |
2001-02 |
5.3 |
4.7 |
-53 |
8.1 |
3.2 |
-0.5 |
6.0 |
2002-03 |
3.8 |
3.7 |
-5 |
7.6 |
3.7 |
3.2 |
5.7 |
2003-04 |
8.2 |
8.1 |
-14 |
12.3 |
3.9 |
6.6 |
4.3 |
2004-05 |
7.5 |
8.2 |
68 |
14.6 |
5.9 |
15.5 |
3.9 |
2005-06 |
9.8 |
9.6 |
-23 |
14.2 |
4.2 |
7.2 |
4.0 |
2006-07 |
10.1 |
9.7 |
-38 |
16.7 |
6.4 |
5.8 |
3.3 |
2007-08 |
9.8 |
10.2 |
44 |
16.6 |
5.8 |
15.0 |
2.5 |
2008-09 |
7.2 |
4.2 |
-301 |
13.2 |
8.7 |
-26.6 |
6.0 |
2009-10 |
9.0 |
8.8 |
-15 |
15.4 |
6.1 |
6.5 |
6.5 |
2010-11 |
9.4 |
10.8 |
136 |
20.7 |
9.0 |
31.5 |
4.8 |
2011-12 |
7.1 |
7.0 |
-9 |
16.1 |
8.5 |
5.8 |
5.9 |
2012-13 |
5.4 |
5.5 |
4 |
13.8 |
7.9 |
5.9 |
4.9 |
2013-14 |
6.1 |
6.4 |
34 |
13.0 |
6.2 |
10.6 |
4.5 |
2014-15 |
7.2 |
7.4 |
26 |
10.8 |
3.1 |
10.5 |
4.1 |
2015-16 |
8.1 |
8.2 |
1 |
10.6 |
2.3 |
8.2 |
3.9 |
2016-17 |
7.1 |
7.1 |
3 |
10.8 |
3.5 |
7.4 |
3.5 |
2017-18 |
6.5 |
6.7 |
20 |
10.0 |
3.1 |
9.1 |
3.5 |
* जीडीपी एमपी = बाजार मूल्यों पर जीडीपी; बीपी = आधार अंक
स्रोत: रियल सेक्टर सांख्यिकी पर गठित समिति की रिपोर्ट; एसबीआई इकोरैप 20 अगस्त 2018 का अंक
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दिलचस्प बात यह है कि यहां तक कि पूर्ववर्ती एनडीए सरकार के कार्यकाल में भी GDP वृद्धि दर एक बार भी 9.0 प्रतिशत का आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी। अक्सर यह माना जाता है कि पिछली एनडीए सरकार के कार्यकाल में लागू किए गए सुधारों से केंद्र में उसके बाद सत्तारूढ़ हुई यूपीए सरकार काफी लाभान्वित हुई थी। कारण चाहे जो भी हो, तथ्य यही है कि 2004-05 और 2010-11 (2008-09 में 4.2 प्रतिशत की निम्न GDP वृद्धि दर रहने के बावजूद) के बीच के सात वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर औसतन 8.8 प्रतिशत आंकी गई। यह अलग बात है कि इसके बाद के कुछ वर्षों में विकास की रफ्तार धीमी पड़ गई।
यदि देखा जाए तो एक तरह से नई सीरीज के तहत GDP की इस पिछली सीरीज गणना के मुताबिक, 2010-11 एक असाधारण वर्ष के रूप में सामने आया है क्योंकि उस दौरान न केवल GDP और जीवीए वृद्धि दरें काफी तेजी से बढ़ीं, बल्कि शुद्ध अप्रत्यक्ष कर संग्रह में भी 31.5 प्रतिशत की अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज की गई। हालांकि, कीमतों में भी कुछ अलग ढंग से बढ़ोतरी का रुख देखा गया क्योंकि GDP डिफ्लेटर 9.0 प्रतिशत बढ़ गया। इतना ही नहीं, कीमतों में उछाल का यह रुख आगे चलकर यूपीए सरकार के पतन का एक प्रमुख कारण साबित हुआ। बहरहाल, सांख्यिकीय दृष्टि से सात वर्षों की यह अवधि (2004-05 से लेकर 2010-11 तक) अब भी GDP वृद्धि दरों के लिहाज से भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली अवधि है।
इससे साफ जाहिर है कि आखिरकार क्यों वित्त वर्ष 2010-11 में दर्ज की गई GDP वृद्धि दर ने आगे चलकर एक नए राजनीतिक विवाद का रूप धारण कर लिया। इसका नतीजा यह निकला कि अंतत: सीआरएसएस की रिपोर्ट को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के पोर्टल से हटा दिया गया। हालांकि, इस सबसे लोकप्रिय आर्थिक संकेतक से जुड़ी इस विडंबनात्मक राजनीतिक बहस में भाग ले रहे ज्यादातर लोग यह भूल गए हैं कि यहां तक कि पुरानी सीरीज के मुताबिक भी GDP वृद्धि दर वर्ष 2010-11 में 10.3 प्रतिशत आंकी गई थी जो अब तक का सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ GDP प्रदर्शन है।
आइए, हम GDP का अनुमान लगाने की नई पद्धति पर फिर से चर्चा करते हैं। इस पद्धति के अनुसार आकलन करने पर GDP और इसके प्रमुख घटक क्षेत्रों के कुल मूल्यों एवं वृद्धि दरों में व्यापक बदलाव नजर आते हैं। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के एक बाह्य सदस्य एवं आईआईएम में प्रोफेसर रवींद्र एच. ढोलकिया ने एक लेख में यह दलील दी है कि GDP की नई आकलन विधि में अनेक कमियां हैं। इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (1 सितंबर 2018 के अंक) में छपे इस लेख के सह-लेखक आर. नागराज और मनीष पांड्या हैं।
सीएसओ के अनुसार, नई सीरीज विनिर्माण क्षेत्र में होने वाले मूल्यवर्द्धन को कहीं बेहतर ढंग से आंकती है क्योंकि इसमें एमसीए (कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय) के डेटाबेस का उपयोग किया जाता है। दरअसल, इस डेटाबेस में उद्योगों की विभिन्न गतिविधियों (जैसे कि उद्योगों के मुख्यालय के अलावा अन्य स्थानों पर भी होने वाली बिक्री, विपणन और अनुसंधान एवं विकास) को भी कवर किया जाता है, जबकि इन पर अब तक एएसआई (उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण) के तहत गौर नहीं किया जाता था। पुरानी सीरीज उद्योगों, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र के वास्ते GDP का अंतिम अनुमान व्यक्त करने के लिए एएसआई से जुड़े डेटा पर काफी हद तक निर्भर रहती थी। हालांकि, इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में छपे ढोलकिया एवं अन्य लेखकों के आलेख में यह भी बताया गया है —
“..लेख में यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि एएसआई की कमियों के बारे में सीएसओ के दावे क्या वास्तव में सच हैं। विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत अन्वेषकों को प्रदान की गई एएसआई की निर्देश पुस्तिका का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने से यह पता चलता है कि इस बारे में आधिकारिक दलील काफी हद तक गलत है… इसके बाद हमने चुनिंदा उद्यमों के लिए तैयार एएसआई की भरी हुई प्रश्नावली के जरिए इन निष्कर्षों की पुष्टि करने की कोशिश की है.. विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त सूचनाएं हमारी इस दलील को सही ठहराती हैं: एएसआई में वास्तव में कारखानों जैसे कि कंपनी मुख्यालय और बिक्री डिवीजन से बाहर होने वाली गतिविधियों में होने वाला मूल्य वृर्द्धन भी शामिल होता है।”
इससे नई सीरीज के तहत विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र के विकास अनुमानों को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है क्योंकि वर्तमान मूल्यों पर GDP में इसका हिस्सा पुरानी सीरीज की तुलना में लगभग 2 प्रतिशत अधिक पाया गया है। नई सीरीज में वार्षिक विकास दरें भी काफी अधिक पाई गई हैं और इसके साथ ही इनमें व्यापक उतार-चढ़ाव भी देखा गया है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2013-14 में स्थिर मूल्यों पर विनिर्माण जीवीए की वृद्धि दर पुरानी सीरीज के (-) 0.7 प्रतिशत से बढ़कर नई सीरीज में (+) 5.3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई। दो अलग-अलग सीरीज के तहत समान वर्ष के लिए आकलित वृद्धि दर में इतना ज्यादा अंतर होना अप्रत्याशित है जिसकी कड़ी आलोचना होना तय है।
वर्ष 2015 में नई सीरीज को पेश करने के बाद से ही वामपंथी से लेकर दक्षिणपंथी अर्थशास्त्रियों तक ने इस पद्धति पर संशय व्यक्त किया क्योंकि इससे जुड़े GDP अनुमान अक्सर विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को मिथ्या साबित कर रहे थे जैसा कि अन्य सामान्य संकेतकों यथा औद्योगिक ऋण या मोटरसाइकिल/दोपहिया वाहनों की बिक्री वृद्धि दर के मामले में पाया गया। इस साल अप्रैल में आरबीआई ने ‘वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं’ का हवाला देते हुए जीवीए पद्धति को डंप करने के साथ ही कथित रूप से GDP आधारित विकास अनुमानों को वापस अपना लिया।
इस बीच, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के पोर्टल से सीआरएसएस की रिपोर्ट को वापस लेने के बाद सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस रिपोर्ट में आकलित किए गए अनुमान महज ‘प्रायोगिक’ ही हैं और ये अभी तक ‘आधिकारिक या सरकारी अनुमान’ नहीं हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग का कहना है कि इस दिशा में कार्य अभी प्रगति पर है। ऐसे में हमें यही आशा करनी चाहिए कि जो ‘कार्य अभी प्रगति पर है’ उसकी बदौलत GDP आकलन की महत्वपूर्ण विधि जल्द से जल्द संशय के घने बादलों से बाहर निकल आएगी। हालांकि, तब तक ऐसा कतई प्रतीत नहीं होता है कि इस आर्थिक बहस की आड़ में परोक्ष रूप से जारी सियासी जंग बहुत जल्द थम जाएगी।
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