Published on Jan 21, 2021 Updated 0 Hours ago

नेपाल में नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई वाली के पी शर्मा ओली सरकार के राजनीतिक भंवर में घिरते ही भारत और चीन के बीच की रस्साकशी और तेज़ हो गई है 

भारत-चीन प्रतिद्वंदिता के बीच रस्साकशी का अखाड़ा बनता नेपाल

नेपाल में नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई वाली के.पी.शर्मा ओली सरकार के राजनीतिक भंवर में घिरते ही भारत और चीन के बीच की रस्साकशी और तेज़ हो गई है. अब भंग हो चुकी संसद में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी को करीब दो तिहाई बहुमत हासिल था. अपने कार्यकतार्ओं में बढ़ते असंतोष की वजह से नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में टूट की आशंकाएं प्रबल हो गई हैं. ऐसे में नेपाली राजशाही से जुड़ी ताकतें अपने पतन के 12 साल बाद फिर से सिर उठाने लगी हैं. नेपाल की सरकार देश में कोविड-19 पर काबू पाने में नाकाम रही है. मौजूदा सरकार के कार्यकाल में वहां प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार का साम्राज्य कायम हो गया है. ऐसे में भारत नेपाल में फिर से अपना परंपरागत प्रभाव जमाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है. दूसरी ओर चीन भी नेपाल में अपना सिक्का जमाने की रेस में पीछे नहीं रहना चाहता.

कई लोगों का मानना है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े अमेरिकी नीति दिशानिर्देशों के हिसाब से एमसीसी के तहत नेपाल को अनुदान की ये पेशकश चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की काट के तौर पर की गई है. 

इतना ही नहीं ऐसे मौके पर अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी शक्तियां भी नेपाल में सक्रिय हो गई हैं. अमेरिका ने नेपाल को अपने मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) के तहत 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान देने की पेशकश की है. हालांकि, इस मदद को अभी नेपाली संसद का अनुमोदन मिलना बाकी है. कई लोगों का मानना है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े अमेरिकी नीति दिशानिर्देशों के हिसाब से एमसीसी के तहत नेपाल को अनुदान की ये पेशकश चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की काट के तौर पर की गई है. इसके साथ ही कई दूसरी विश्व शक्तियां यहां धर्मांतरण में भी जुटी हुई हैं. नेपाल की उथलपुथल भरी घरेलू परिस्थितियों ने इन विदेशी ताकतों को यहां दखलंदाज़ी का मौका दे दिया है.

बहरहाल, नेपाल में अस्थिरता भरे इस माहौल के बीच भारत ने उससे अपने रिश्ते सुधारने के प्रयास शुरू कर दिए हैं. पिछले साल लिम्पियाधुरा-कालापानी-लिपुलेख सीमा मसले को लेकर दोनों देशों के बीच रिश्तों में तल्ख़ी आ गई थी. इस मकसद से ही भारत की ओर से कई शीर्ष अधिकारियों ने हाल के महीनों में नेपाल के दौरे किए. भारत की रिर्सच एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के निदेशक सामंत कुमार गोयल ने 21  अक्टूबर को नेपाल का दौरा किया. इसके फौरन बाद भारत के थल सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे भी 4 से 6 नवंबर के बीच नेपाल के दौरे पर पहुंचे. आगे चलकर भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने 26-27 नवंबर को नेपाल की यात्रा की. शीर्ष स्तर की इन यात्राओं से स्पष्ट है कि नेपाल के साथ जारी गतिरोध वाली स्थिति को ख़त्म करने को लेकर भारत कितना गंभीर है.

ठंडे रिश्ते में गर्माहट लाने की कोशिश

अपना नेपाल दौरा खत्म करते वक्त विदेश सचिव श्रृंगला ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत नेपाल का सबसे अभिन्न मित्र और विकास के रास्ते का सच्चा हमसफ़र है. उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल की सभ्यता-संस्कृति एक जैसी है और दोनों देशों के रिश्ते चार मज़बूत खंभों पर टिके हैं. ये चार खंभे हैं- विकास में सहयोग, मज़बूत कनेक्टिविटी, विस्तृत बुनियादी ढांचा और आर्थिक परियोजनाएं. उन्होंने गर्मजोशी भरे लहजे में कहा कि नेपाल और भारत की सोच और दृष्टिकोण एक समान हैं. शीर्ष स्तर के अधिकारियों के इन दौरों के तत्काल बाद भारत और नेपाल के रिश्तों में सुधार के संकेत नज़र आने लगे हैं. कम से कम इन दौरों से ये तो हुआ ही कि दोनों देशों के बीच पिछले कुछ समय से जो संवादहीनता की स्थिति बन गई थी वो दूर हुई और दोनों के बीच संपर्क सूत्र फिर से बहाल हुए.

अब ऐसा लग रहा है कि नई दिल्ली और काठमांडू के बीच सीमित संख्य़ा में में ही सही लेकिन वायु सेवा बहाल हो जाएगी. भारत के साथ एयर बबल व्यवस्था के तहत उड़ान सेवाएं शुरू करने की दिशा में नेपाल का रुख़ सकारात्मक दिख रहा है. 

अब ऐसा लग रहा है कि नई दिल्ली और काठमांडू के बीच सीमित संख्य़ा में में ही सही लेकिन वायु सेवा बहाल हो जाएगी. भारत के साथ एयर बबल व्यवस्था के तहत उड़ान सेवाएं शुरू करने की दिशा में नेपाल का रुख़ सकारात्मक दिख रहा है. दोनों देश पंचेश्वर मल्टी-मोडल परियोजना को बहाल करने पर भी सहमत हो गए हैं. भारत के साथ सामान्य रिश्ते फिर बहाल करने के मकसद से नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली जनवरी में भारत के दौरे पर पहुंचे. नई दिल्ली में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ उनकी बैठकें हुईं. इसके अलावा उन्होंने भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक की भी अध्यक्षता की. इस बैठक में दोनों देशों के अधिकारियों के बीच व्यापार, परिवहन और जल संसाधनों से जुड़े मसलों पर बातचीत हुई. बड़ी बात ये है कि भारत और नेपाल के बीच विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी करीब दो दर्ज़न कार्ययोजनाएं जो करीब एक साल से ठंडे बस्ते में पड़ी हुई थीं अब उनके फिर से बहाल होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं.

हालांकि, ऐसा लगता है कि भारत के शीर्ष अधिकारियों द्वारा हाल में की गई नेपाल यात्राओं को लेकर चीन सशंकित हो गया है. वैसे तो पहले ये संकेत दिए गए थे कि नेपाल-चीन के बीच के रिश्तों का किसी तीसरे देश पर कोई असर पड़ने की संभावनाएं नहीं हैं. लेकिन भारतीय विदेश सचिव श्रृंगला के नेपाल दौरे के दो दिन बाद ही चीन के स्टेट काउंसलर और रक्षामंत्री वेई फेंगही ने 29 नवंबर को काठमांडू का एक दिन का दौरा किया. वो पाकिस्तान जाने से पहले नेपाल पहुंचे थे.

भारत के कदम से चीन की सक्रियता बढ़ी

कूटनीतिक हल्कों में इस बात की चर्चा है कि चीन ने आनन-फानन में अपने हाई प्रोफाइल रक्षा मंत्री को नेपाल इसलिए भेजा क्योंकि उसे आशंका थी कि भारत के शीर्ष अधिकारियों के नेपाल दौरे से नेपाल के साथ उसके रिश्तों पर आंच न आए. नेपाल में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत जारी परियोजनाओं की सुस्त रफ्तार को लेकर चीन पहले से ही चिंतित रहा है. दोनों देशों ने 2017 में बीआरआई से जुड़े समझौते पर दस्तख़त किए थे. उस समय पुष्प कमल दहल नेपाल के प्रधानमंत्री थे. दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अमेरिका के बढ़ते दखल पर भी चीन में बौखलाहट है.

चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगही के नेपाल दौरे से क्या हासिल हुआ इसको लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है. जनरल फेंगही 20 सदस्यीय शिष्टमंडल के साथ नेपाल पहुंचे थे. मीडिया की ख़बरों से साफ़ है कि उनके दौरे का मुख्य़ उद्देश्य दोनों देशों के बीच आपसी सैन्य सहयोग को मज़बूत करना था. 

चीन चाहता है कि नेपाल की सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में एकजुटता बनी रहे. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का नेपाल की एनसीपी के साथ करीबी रिश्ता है. ऐसे में चीन को लगता है कि नेपाल में अपने हितों की रक्षा के लिए एनसीपी में एकता ज़रूरी है. हालांकि अभी हाल में नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने चीन को दो टूक संकेत दे दिए हैं कि वो अपनी पार्टी के भीतरी विवाद को बिना किसी विदेशी दखल के खुद संभाल सकते हैं.

चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगही के नेपाल दौरे से क्या हासिल हुआ इसको लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है. जनरल फेंगही 20 सदस्यीय शिष्टमंडल के साथ नेपाल पहुंचे थे. मीडिया की ख़बरों से साफ़ है कि उनके दौरे का मुख्य़ उद्देश्य दोनों देशों के बीच आपसी सैन्य सहयोग को मज़बूत करना था. बताया जाता है कि उन्होंने नेपाल के साथ साझा सैन्य प्रशिक्षण और सहयोग बहाल करने पर चर्चा की. स्पष्ट है कि चीन नेपाल के साथ अपनी सैनिक साझेदारी और बढ़ाना चाहता है. इस यात्रा के बाद नेपाली सेना को चीन की ओर से 150 मिलियन आरएमबी मूल्य के सैन्य-उपकरणों की आपूर्ति में तेज़ी आने की संभावना है.

चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंगही ने दावा किया कि नेपाल और चीन के रिश्ते पहले से ही मज़बूत हैं और वो इसे और भी नई ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते हैं. उन्होंने नेपाल को ये भरोसा भी दिलाया कि चीन उसकी संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेगा. बदले में नेपाल ने “वन चाइना” नीति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई. साथ ही नेपाल ने चीन को ये भी भरोसा दिलाया कि वो उसके साथ किए गए समझौतों पर अमल सुनिश्चित करेगा.

एक ऐसे समय में जब भारत और नेपाल अपने संबंधों को एक बार फिर से पटरी पर लाने की कोशिशें कर रहे हैं ये ध्यान में रखना ज़रूरी है कि कुछ तत्व इन प्रयासों से खुश नहीं होंगे. ऐसी ताकतें दोनों देशों द्वारा रिश्ते सुधारने के रास्ते में अबतक हासिल उपलब्धियों पर पलीता लगाने की पूरी कोशिशें करेंगी. ऐसे में दोनों पक्षों को काफ़ी सतर्क रहना होगा और ये सुनिश्चित करना होगा कि भारत और नेपाल के रिश्तों में ऐसी ताक़तें कोई दखलंदाज़ी न कर सकें. नेपाल का अपने एक पड़ोसी की कीमत पर दूसरे पड़ोसी की ओर झुकाव रखना किसी के लिए भी ठीक नहीं है. भविष्य में नेपाल को राजनीतिक कौशल दिखाते हुए अपने विदेशी संबंधों खासकर अपने पड़ोसी- भारत और चीन के साथ अपने रिश्तों में ज़रूरी संतुलन लाना पड़ेगा. इतना ही नहीं उसे अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी भरोसे में लेकर आगे बढ़ना होगा.

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