भू-राजनीति के साये में नेपाल और चीन के बनते-बिगड़ते रिश्ते!
1 अगस्त 1955 से, जबसे नेपाल और चीन के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए हैं, तबसे उनके संबंध इस स्तर तक नहीं बिगड़े जितने कि बीते दो वर्षों में कोविड -19 महामारी के प्रकोप के दौरान बिगड़े हैं. चीन के साथ व्यापार करने वाले नेपाली व्यवसायिक समुदाय ने, सीमा बंद करने को लेकर चीन के खिलाफ़ समय-समय पर विरोध किया है. चीन के साथ होने वाले व्यापारिक घाटे को लेकर नेपाल में काफी चिंता है. दोनों देशों के बीच के तनाव तब और बढ़ गए जब नेपाल ने, चीनी सरकार की इच्छा के विरुद्ध, मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (एमसीसी) के अंतर्गत 27 फ़रवरी 2022 को अमेरिकी $ 500 मिलियन के अमेरिकी अनुदान प्राप्त करने को अपनी सहमति प्रदान की.
चीन चाहता है कि नेपाल अपने दोनों पड़ोसी देशों, भारत और चीन के बीच बिल्कुल “तटस्थ” खड़ा रहे, और उसे अमेरिका और भारत द्वारा, चीन के विरुद्ध किसी घटक को बनाने के प्रयास में घसीटे जाने से या हिस्सा बनाये जाने से बचना चाहिए.
चीनी-नेपाल संबंधों की बिगड़ी हुई स्थिति उस वक्त और स्पष्ट हो गई जब, 25-27 मार्च के अपने नेपाल दौरे के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने नेपाल को बाहरी हस्तक्षेप को लेकर आगाह किया जो नेपाल और चीन के हितों के लिए खतरा बन सकता है. चीन चाहता है कि नेपाल अपने दोनों पड़ोसी देशों, भारत और चीन के बीच बिल्कुल “तटस्थ” खड़ा रहे, और उसे अमेरिका और भारत द्वारा, चीन के विरुद्ध किसी घटक को बनाने के प्रयास में घसीटे जाने से या हिस्सा बनाये जाने से बचना चाहिए. कुछ हलकों में, ऐसा भय व्याप्त है कि वॉशिंगटन भविष्य में एमसीसी का इस्तेमाल चीनी बेल्ट और रोड इनिशियेटिव (बीआरआई) का सामना करने के लिए कर सकता है. बीजिंग की बीआरआई जिसका की नेपाल भी एक हस्ताक्षरकर्ता है, और अमेरिका की एमसीसी जिसे नेपाल ने हाल ही में समर्थन किया है, दोनों ही ओवरलैप कर रहे हैं चूंकि दोनों ही नेपाल के ढांचागत परियोजना सेक्टर के विकास के लिए कार्य कर रहे हैं.
चीन के कर्ज़ का प्रलोभन
नेपाल का मानना है कि एमसीसी प्रोजेक्ट को इस प्रकार से डिजाइन किया गया हैकि नेपाल और भारत के बीच सीमापार, बिजली का संचरण और मजबूत हो सके, अतिरिक्त रोजगार के अवसर और नेपाली अर्थव्यवस्था के विकास के साथ ही भारत को बेचे जाने वाली अतिरिक्त ऊर्जा, नेपाल के लिए एक सतत और लगातार आय का साधन होगा. नेपाल द्वारा एमसीसी को सहमति दिए जाने के बाद, बीजिंग ने नेपाल को बीआरआई के अंतर्गत, विभिन्न प्रोजेक्ट आदि के लिए कर्ज़ लेने को काफी प्रेरित करने की कोशिश की. हालांकि, प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने साफ़ कर दिया कि नेपाल चीन से केवल परियोजना हेतु अनुदान चाहता है ना की कर्ज.
नेपाल ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि अगर फिर भी उन्हें कर्ज़ लेने की ज़रूरत पड़ती है तो, वो लोन 2 प्रतिशत से भी कम ब्याज़ पर, हल्के और रियायती होनी चाहिए. इस देश को बीजिंग से सिर्फ़ ऐसे ही कर्ज की कृपा चाहिए जो अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुरूप हो, जैसा कि विश्व बैंक या फिर एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे बहुपक्षीय संस्थानें दिया करती हैं. उन्हें बीआरआई के अंतर्गत सिर्फ़ ऐसे ही योजनाओं की ज़रूरत है जो कि ना सिर्फ़ अन्य बीआरआई प्रोजेक्ट की तरह सिर्फ़ चीनी फर्म बल्कि सभी के बोली लगाने के लिए खुली हो. चीन से मिलने वाले कर्ज़ को प्रोत्साहित ना करने की नेपाल की चिंता वाजिब है. वर्तमान आर्थिक वर्ष 2020-21 के दूसरे तिमाही तक, देश का कर्ज उसके जीडीपी अनुपात 40.53 प्रतिशत की ऊंचाई तक पहुँच चुकी है जो कि2015-16 की स्थिति की तुलना में काफी चिंताजनक है जब उसने 25.65 प्रतिशत तक की ऊंचाई की छलांग लगाई थी.
चीन के साथ व्यापार के संतुलन से नेपाल को भारी घाटा है. 2020-21 में, चीन से नेपाल ने 233.92 बिलियन समतुल्य एनपीआर के सामानों का आयात किया, परंतु उसी समय में देश ने एनपीआर 1 बिलियन के सामानों का निर्यात किया.
नेपाल ने चीनी यूनिवर्सिटियों में पढ़ रहे नेपाली छात्रों के बाबत भी सवाल उठाए जो कि अभी नेपाल में ही रुके पड़े हैं. उन्हें कोविड 19 के प्रकोप के बाद चीन से निकाला गया था, और चीन ने उनकी क्लासेज़ दुबारा शुरू किये जाने को लेकर थोड़ी भी दिलचस्पी नहीं दिखाई है. चीन के साथ व्यापार के संतुलन से नेपाल को भारी घाटा है. 2020-21 में, चीन से नेपाल ने 233.92 बिलियन समतुल्य एनपीआर के सामानों का आयात किया, परंतु उसी समय में देश ने एनपीआर 1 बिलियन के सामानों का निर्यात किया. देश का चीन के साथ का व्यापारिक घाटा बढ़कर एनपीआर 232.90 बिलियन पहुँच चुका है, जो कि मिलकर देश का कुल 14 प्रतिशत व्यापारिक घाटा बन चुका है.
कोविड-19 प्रकोप के बाद से दोनों देशों के बीच की अंतरराष्ट्रीय उड़ान बंद हो रखी है. इसके अलावा, चीन के साथ के बॉर्डर चेकपॉइंट – तातोपानी- -झाँगमू और रसुवागढी –केरुङ – बंद हैं, जिससे कि दोनों देशों से लोगों एवं सामानों का आवागमन बंद है. चीन द्वारा नेपाल के आंतरिक मुद्दों में बढ़ते दखल, नेपाल की चिंता का विषय है. गेजा शर्मावागले, जो कि रणनीतिक और विदेशी मामलों के जानकार हैं, ने कहा कि बीजिंग ने बग़ैर ये समझे हुए कि ये न केवल द्विपक्षीय बल्कि नेपाल और अमेरिका के बीच का घरेलू मामला है, एमसीसी कम्पैक्ट के विषय में ‘बेवजह, गैर-राजनयिक और विरोधी आलोचना की हैं’.
सहभागिता की तरफ छोटे कदम
हालांकि, चीन के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए, यी’ के नेपाल दौरे के दौरान, नेपाल और चीन ने कुल नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें आर्थिक और तकनीकी सहयोग, चीन-नेपाल क्रॉस-बॉर्डर प्रोजेक्ट का अध्ययन, चीन-नेपाल पावर ग्रिड इंटरकनेक्शन की व्यवहार्यता अध्ययन, और चीन में निर्यात किये जाने वाले 98 प्रतिशत सामानों पर ड्यूटी फ्री ट्रीटमेंट लागू करना भी शामिल है. दोनों देश अगले चार वर्षों के लिए केरुङ-काठमांडू रेलवे प्रोजेक्ट की विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने को भी राजी हुए हैं.
वर्ष 2006 से निष्क्रिय पड़े सीमा निरीक्षण तंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए भी चीन सहमत हुआ है. चीन ने नेपाल को इस बाबत भी आशान्वित किया है कि वो उन नेपाली छात्रों की परेशानियों का भी हल करने की कोशिश करेगा जो कि कोविड-19 प्रकोप की वजह से नेपाल वापस आने के बाद से, चीनी यूनिवर्सिटियों में अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पा रहे हैं. एक और समझौते में, नेपाल चीन को ओले का आयात करने को भी राजी हो गया है. ओले एक प्रकार की घास है जिसका इस्तेमाल तिब्बत में घोड़े, याक, और बकरियों के चारे के रूप में होता है. क्योंकि, इस घास में काफी उच्च पौष्टिकता होती है और यह जानवरों में दूध देने की क्षमता को काफी बढ़ाती है. ओले की खेती से लाभ प्राप्त करने हेतु, चंद चीनी कंपनियों ने, इस घास की उपज के लिए, जो किनवलपरसी, गोरखा और डांग जिले में भी पैदा होते हैं, चितवन ज़िले में भी निवेश किया है.
नेपाल में पिछले 75 सालों से सबसे बड़े विकास के साझीदार के रूप में अमेरिका की भूमिका को बिल्कुल भी नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता है. उसी तरह से चीन और भारत भी उनके समीपवर्ती पड़ोसी होने के नाते उतने ही महत्वपूर्ण हैं.
एक तरफ जहां अमेरिका और चीन और दूसरी तरफ भारत और चीन के बीच की प्रतिद्वंद्विता के बीच, नेपाल के लिए इन सब के साथ एक समुचित संतुलन बनाए रख पाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है. यह किसी एक के विरोध में बाकी अन्य को नाराज़ करने का जोख़िम नहीं ले सकता है. नेपाल में पिछले 75 सालों से सबसे बड़े विकास के साझीदार के रूप में अमेरिका की भूमिका को बिल्कुल भी नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता है. उसी तरह से चीन और भारत भी उनके समीपवर्ती पड़ोसी होने के नाते उतने ही महत्वपूर्ण हैं. ऐसी स्थिति में, जिस दृढ़ता से नेपाल ने बीआरआई के अंतर्गत अन्य प्रोजेक्ट्स को देशहित में नकारा है, और इसके लिए, देउबा सरकार को पूरा श्रेय जाता हैं. वर्तमान भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक खेल में, नेपाल को स्वतंत्र विदेश नीति पर अपना ध्यान केंद्रित रखना चाहिए और राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए, इन शक्तियों के बीच राजनयिक संतुलन को प्रोत्साहित करना चाहिए.
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