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Published on Apr 29, 2024 Updated 0 Hours ago

छोटे द्वीपीय विकासशील देशों (SIDS) में मलेरिया के बढ़ते मामलों को देखते हुए जलवायु से प्रेरित मलेरिया के प्रसार और फिर से शुरू होने को लेकर बोझ हल्का करने के लिए एक नए सिरे से वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है.

छोटे द्वीपीय विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन और मलेरिया के आपसी संबंध को समझने की कोशिश!

हर साल 25 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व मलेरिया दिवस मलेरिया के ख़िलाफ़ मौजूदा लड़ाई की याद दिलाने का महत्वपूर्ण काम जारी रखे हुए है जो निर्णायक पहलुओं जैसे कि स्वास्थ्य समानता, लैंगिक संवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के असर का समाधान करने के महत्व को बढ़ाता है. दुनिया भर में मलेरिया लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है. एक अनुमान के मुताबिक 2022 में मलेरिया के 24.90 करोड़ मामले सामने आए और 6,08,000 लोगों की मौत हुई. कमज़ोर देशों में आजीविका, दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि और विकास पर इसके असर का दायरा पहले की तुलना में महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ रहा है. ये एक चिंता का विषय है, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण उथल-पुथल और अनिश्चितता बढ़ने की वजह से. बाहरी कारकों जैसे जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी), प्रवासन (माइग्रेशन), शहरीकरण और ज़मीन के इस्तेमाल के असर की वजह से मलेरिया और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध जटिल है. हालांकि,वैश्विक तापमान और बारिश में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित उथल-पुथल, जो कि मलेरिया के परजीवी (पैरासाइट) और वेक्टर के लिए अनुकूल है, उसका मलेरिया के फैलने, जिन इलाकों में मलेरिया ख़त्म हो चुका है वहां फिर से ज़िंदा होने और आजीविका के नुकसान को बढ़ाने के मामले में बहुत ज़्यादा क्षमता है. 

छोटे द्वीपीय विकासशील देश यानी (स्मॉल आईलैंड डेवलपिंग स्टेट्स या SIDS) विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से बहुत अधिक प्रभावित हैं और वो मलेरिया के मामलों की बढ़ती संख्या को लेकर अधिक संवेदनशील हैं. 

छोटे द्वीपीय विकासशील देश यानी (स्मॉल आईलैंड डेवलपिंग स्टेट्स या SIDS) विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से बहुत अधिक प्रभावित हैं और वो मलेरिया के मामलों की बढ़ती संख्या को लेकर अधिक संवेदनशील हैं. रेखाचित्र 1 2020 में SIDS में जोखिम में घिरी प्रति 1,000 जनसंख्या में मलेरिया के मामलों को दिखाता है. हालांकि 2021 और 2022 के बीच मलेरिया के मामलों की संख्या में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई और इस तरह ये संख्या WHO के पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र, जहां कई SIDS हैं, में 19 लाख पर पहुंच गई. इस क्षेत्र में पापुआ न्यू गिनी में मलेरिया के 90 प्रतिशत केस दर्ज किए गए और मलेरिया की वजह से मौतों की संख्या में 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. वैसे तो कैरिबियन क्षेत्र के SIDS में मलेरिया का काफी हद तक उन्मूलन हो चुका है लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, नागरिक अशांति, जलवायु के झटकों और हैती जैसे देशों में ज़रूरत से कम फंडिंग अभी भी एक ख़तरा और स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े बुनियादी ढांचे की मज़बूती में प्रगति एवं आवश्यक संसाधनों के प्रवाह में रुकावट बनी हुई है. इस तरह SIDS में मलेरिया के इन बढ़ते मामलों के उदाहरण जलवायु से प्रेरित प्रसार और फिर से उभार को कम करने के लिए नए सिरे से वैश्विक प्रतिक्रिया की मांग करते हैं.   

रेखाचित्र 1: SIDS में जोखिम में घिरी प्रति 1,000 जनसंख्या में मलेरिया के मामले (2020)

स्रोत: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)-SIDS पोर्टफोलियो

SIDS में नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है जो न केवल स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं का समाधान करें बल्कि सीमित हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर, घटती फंडिंग, अपर्याप्त संसाधनों, मज़बूत निगरानी की कमी और विखंडित शासन व्यवस्था की व्यवस्थात्मक चुनौतियों को भी हल करें. 2015 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मलेरिया के लिए वैश्विक तकनीकी रणनीति 2015-2030 की शुरुआत की जिसका लक्ष्य दुनिया भर में मलेरिया के मामलों और मृत्यु दर में 2030 तक कम-से-कम 90 प्रतिशत कम करना था. वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम और मलेरिया उन्मूलन के लिए एक रूप-रेखा की भी शुरुआत की गई ताकि अलग-अलग देशों को तकनीकी रणनीति के द्वारा तय लक्ष्य तक पहुंचने में मदद दी जा सके. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने मलेरिया और सतत विकास के लिए व्यापक बहुक्षेत्रीय कार्रवाई रूप-रेखा जारी की जिसमें ये परिकल्पना की गई है कि मलेरिया के उन्मूलन में “संपूर्ण समाज, संपूर्ण सरकार और सभी नीतियों में स्वास्थ्य” का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है. हालांकि, इन पहल के बावजूद फिजी की अध्यक्षता में कॉप23 (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2017) के दौरान विशेष पहल के रूप में मलेरिया का ज़िक्र किया गया और WHO एवं जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूप-रेखा सम्मेलन (UNFCC) सचिवालय की साझेदारी में क्षेत्रीय योजनाओं की शुरुआत की गई जिन्होंने SIDS में जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के बीच आपसी संबंध और कमज़ोरी को स्वीकार किया. 

वैसे तो मलेरिया के ख़िलाफ़ स्वास्थ्य प्रणाली के सामर्थ्य को बढ़ाने की वैश्विक पहल चल रही है लेकिन इस तरह की पहल को फंड करना महत्वपूर्ण हो जाता है. 2022 से ग्लोबल फंड टू फाइट एड्स, ट्यूबरक्लोसिस एंड मलेरिया जैसी बहुपक्षीय वित्तीय पहल ने बीमारी की आशंका वाले और संवेदनशील क्षेत्रों में समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

वैसे तो मलेरिया के ख़िलाफ़ स्वास्थ्य प्रणाली के सामर्थ्य को बढ़ाने की वैश्विक पहल चल रही है लेकिन इस तरह की पहल को फंड करना महत्वपूर्ण हो जाता है. 2022 से ग्लोबल फंड टू फाइट एड्स, ट्यूबरक्लोसिस एंड मलेरिया जैसी बहुपक्षीय वित्तीय पहल ने बीमारी की आशंका वाले और संवेदनशील क्षेत्रों में समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. रेखाचित्र 2 SIDS में 2023-2025 के दौरान मलेरिया के लिए वैश्विक फंड के आवंटन को दिखाता है और पापुआ न्यू गिनी में भयावह स्थिति को स्वीकार करने पर ज़ोर डालता है. लेकिन वैश्विक मलेरिया फंडिंग के लिए अमेरिका, जिसका फंड में 36 प्रतिशत योगदान है, पर बहुत ज़्यादा निर्भरता सहायता लेने वाले देशों में राष्ट्रीय मलेरिया नीतियों और परिणामों पर बहुत ज़्यादा असर डाल सकती है. इसके अलावा WHO का कहना है कि फंडिंग में अंतर बढ़ रहा है और 2018 में फंड के मामले में 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर की कमी 2022 में बढ़कर 3.7 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई. ये रुझान SIDS के लिए ख़ास तौर पर चिंताजनक हो सकता है. चूंकि सहायता के प्रावधान को तय करने में प्रति व्यक्ति GDP को माप के रूप में इस्तेमाल किया गया है, ऐसे में जलवायु प्रेरित स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों को लेकर बेहद संवेदनशील होने के बावजूद SIDS की कम जनसंख्या फंड के आवंटन में बाधा डाल सकती है. 

रेखाचित्र 2: SIDS में 2023-2025 के दौरान मलेरिया के लिए वैश्विक फंड का आवंटन (मिलियन अमेरिकी डॉलर में)

स्रोत: द ग्लोबल फंड 

मलेरिया के प्रसार को रोकने और उसके ख़िलाफ़ तैयारी के लिए एक प्रभावी साधन वैक्सीन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना और सुनिश्चित करना है. मलेरिया वैक्सीन कार्यान्वयन कार्यक्रम (MVIP) के तहत RTS/AS01 मलेरिया वैक्सीन के वितरण के पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद अफ्रीका के बेहत संवेदनशील क्षेत्रों में 2023 से 2025 के बीच बांटने के लिए 1.8 करोड़ डोज़ आवंटित की गई है. वैसे तो वैक्सीन का ये आवंटन अभी भी अपर्याप्त है लेकिन ऐसे कार्यक्रमों का SIDS तक विस्तार उनकी तैयारी के लिए महत्वपूर्ण बन सकता है. भविष्य में मलेरिया वैक्सीन हासिल करने के लिए SIDS को अपनी ज़रूरत को लेकर सटीक एवं सुसंगत डेटा जमा करने का तौर-तरीका विकसित करना चाहिए ताकि वैक्सीन की बर्बादी कम की जा सके. SIDS में जलवायु-स्वास्थ्य के आपसी संबंध पर रिसर्च में ज़्यादा अलग-अलग विशेषज्ञता (ट्रांसडिसिप्लिनरी) और वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग की भी आवश्यकता है क्योंकि ये इन द्वीपीय देशों के लिए कोल्ड चेन की ख़ास ज़रूरत को तय करने में भी मदद कर सकता है. वैसे तो SIDS में मलेरिया को कम करने और मलेरिया वैक्सीन की सप्लाई चेन के मैनेजमेंट में अमेरिका और चीन जैसे अंतर्राष्ट्रीय किरदारों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है लेकिन वैश्विक स्वास्थ्य पहल में भारत जैसी उभरती शक्तियों की बढ़ती भागीदारी द्वीपों में जलवायु के मामले में मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण की प्रगति को तेज़ कर सकती है.  

दुनिया के दवाखाने” (फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड) के रूप में मशहूर भारत अपनी विशेषज्ञता, गुणवत्ता और मलेरिया वैक्सीन की किफायती सप्लाई के ज़रिए SIDS में मलेरिया के ख़तरों को कम करने की काफी क्षमता रखता है. चूंकि भारत स्वास्थ्य कूटनीति की पहल के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य शासन व्यवस्था में नेतृत्व की भूमिका में आने की काफी इच्छा रखता है, ऐसे में वो SIDS को जलवायु और स्वास्थ्य सहायता मुहैया करा सकता है. कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रिज़िलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (CDRI) के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर रिज़िलिएंट आईलैंड स्टेट्स (IRIS) की पहल का लक्ष्य SIDS में जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के असर के ख़िलाफ़ इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करना है. चूंकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-सामरिक संवाद के केंद्र में आ गया है, ऐसे में भारत ने वित्तीय समर्थन के अपने तौर-तरीकों और अलग-अलग क्षेत्रों में पहल के साथ पैसिफिक के SIDS के साथ मज़बूत संबंध बनाए हैं. भारत मलेरिया के ख़िलाफ़ स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने के लिए सागर अमृत पहल का भी उपयोग कर सकता है क्योंकि इसे पैसिफिक द्वीप के देशों में क्षमता निर्माण और प्रोफेशनल्स की ट्रेनिंग को तेज़ करने के लिए शुरू किया गया था. इस तरह सहयोग बनाना, सहायता प्रदान करना, क्षमता निर्माण, वेक्टर और पानी से होने वाली बीमारियों को कम करना और जलवायु पर कदम की सुविधा मुहैया कराना SIDS के साथ भारत के कूटनीतिक संबंधों के लिए महत्वपूर्ण मददगार हैं. 

भारत अपनी विशेषज्ञता, गुणवत्ता और मलेरिया वैक्सीन की किफायती सप्लाई के ज़रिए SIDS में मलेरिया के ख़तरों को कम करने की काफी क्षमता रखता है. चूंकि भारत स्वास्थ्य कूटनीति की पहल के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य शासन व्यवस्था में नेतृत्व की भूमिका में आने की काफी इच्छा रखता है, ऐसे में वो SIDS को जलवायु और स्वास्थ्य सहायता मुहैया करा सकता है

सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, रिसर्चर्स और समुदायों को शामिल करके कूटनीतिक और तालमेल की कोशिशें असरदार, न्यायसंगत और समावेशी नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए आवश्यक हैं. लक्ष्य बनाकर जलवायु अनुकूलन की रणनीतियां, एकीकृत वेक्टर प्रबंधन और स्वास्थ्य प्रणाली में मज़बूती SIDS में मलेरिया के प्रभावों को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. हालांकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को द्वीपीय देशों में तैयारी को सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक निर्धारकों के समाधान पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए. SIDS में सर्वश्रेष्ठ नीतिगत प्रथाओं को साझा करना या अपनाना जलवायु और मलेरिया के बीच जटिल संबंध को हल करने के लिए आवश्यक प्रासंगिक समझ और उपायों को सक्षम बना सकता है. छोटे द्वीपीय विकासशील देशों पर आगामी चौथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन जलवायु और स्वास्थ्य के आपसी संबंध की चर्चा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच हो सकता है. बीमारी के हिसाब से समाधानों की तुलना में व्यवस्थात्मक सुधारों के माध्यम से जलवायु और स्वास्थ्य नीतियों के बीच अंतर को पाटना SIDS के लिए एक स्वस्थ और मलेरिया के मामले में अधिक मज़बूत भविष्य के उद्देश्य से एक रास्ता तैयार कर सकता है.  


अनिरुद्ध इनामदार मणिपाल में मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE) में प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस के सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी में रिसर्च फेलो हैं.

अनिरुद्ध प्रेम मणिपाल में मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE) में प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस के सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी में रिसर्च फेलो हैं.

संजय एम. पट्टनशेट्टी मणिपाल में मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE) में प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस के प्रमुख हैं.

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Authors

Aniruddha Inamdar

Aniruddha Inamdar

Aniruddha Inamdar is a Research Fellow at the Centre for Health Diplomacy, Department of Global Health Governance, Prasanna School of Public Health, Manipal Academy of ...

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Anirudh Prem

Anirudh Prem

Anirudh Prem is a Research Fellow at the Centre for Health Diplomacy, Department of Global Health Governance, Prasanna School of Public Health, Manipal Academy of ...

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Sanjay Pattanshetty

Sanjay Pattanshetty

Dr. Sanjay M Pattanshetty is Head of theDepartment of Global Health Governance Prasanna School of Public Health Manipal Academy of Higher Education (MAHE) Manipal Karnataka ...

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