Author : Ramanath Jha

Expert Speak Urban Futures
Published on Feb 07, 2025 Updated 0 Hours ago

वैसे तो शहरी घनत्व के कई लाभ हैं लेकिन कुछ बड़े शहरों में बहुत अधिक घनत्व और संसाधनों के इकट्ठा होने के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए शहरी विकास को विकेंद्रित करना ज़रूरी है.

पूरी दुनिया के शहरों में शहरी घनत्व की समस्या से जुड़ी दिक्कतें!

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शहरी घनत्व को किसी शहर की कुल आबादी और शहर के द्वारा सतह पर ली गई कुल जगह के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. वैश्विक स्तर पर देखें तो शहरी घनत्व में बहुत ज़्यादा अंतर है. विश्व जनसंख्या समीक्षा 2024 शहरी घनत्व के मामले में मनीला को सबसे ऊपर रखती है जहां प्रत्येक वर्ग किमी पर 74,750 व्यक्ति रहते हैं. एशिया के शहर जहां सबसे घने शहरों में से हैं वहीं पश्चिमी देशों के शहर तुलनात्मक रूप से कम घने हैं. अमेरिका में सबसे घने न्यूयॉर्क शहर में प्रत्येक वर्ग किमी में 16,844 लोग रहते हैं, वहीं लंदन में 9,904 और बर्लिन में 3,809 व्यक्ति प्रत्येक वर्ग किमी में हैं. ये दुनिया में शहरी घनत्व में भारी विषमता को दिखाता है. 

समय के साथ पश्चिमी देशों के शहरों ने शहरी घनत्व को लेकर अपनी नीतियों में बदलाव किया है. अमेरिका में 20वी शताब्दी के दौरान शहरी जनसंख्या और घनत्व में भारी बढ़ोतरी देखी गई. तीन दशकों के भीतर (1900-1930) डेट्रॉयट की जनसंख्या चार गुना बढ़ गई जबकि न्यूयॉर्क की आबादी दोगुनी हो गई.

समय के साथ पश्चिमी देशों के शहरों ने शहरी घनत्व को लेकर अपनी नीतियों में बदलाव किया है. अमेरिका में 20वी शताब्दी के दौरान शहरी जनसंख्या और घनत्व में भारी बढ़ोतरी देखी गई. तीन दशकों के भीतर (1900-1930) डेट्रॉयट की जनसंख्या चार गुना बढ़ गई जबकि न्यूयॉर्क की आबादी दोगुनी हो गई. लेकिन 21वीं शताब्दी के आगमन के साथ न्यूयॉर्क, लॉस एंजलिस और सैन फ्रांसिस्को ने घनत्व विरोधी रवैया अपनाया. इन शहरों ने ज़ोन से जुड़े सख्त नियमों के साथ अपनी आबादी में बढ़ोत्तरी को कम करने का फैसला लिया. भारत के शहरों में शहरी घनत्व बहुत अधिक होने के बावजूद ऐसी कोई नीति नहीं बनाई गई. 

पश्चिमी देशों के अर्थशास्त्री, सामाजिक वैज्ञानिक और शहरी योजना बनाने वाले शहरी घनत्व के मज़बूत समर्थक रहे हैं. बेशक सबसे बड़ा लाभ ये है कि शहरी घनत्व आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है. बहुत अधिक लोगों को एक-दूसरे के नज़दीक लाने से काफी ज़्यादा संख्या में उत्पादक गतिविधियां शुरू हो जाती हैं जो उच्च आर्थिक उत्पादकता की ओर ले जाती है. इसके अलावा, शहरी घनत्व इनोवेशन शुरू करने में मदद करता है. इसमें रचनात्मक जानकारी रखने वाले कामगारों के बेहद अलग-अलग समूहों के जुटने से काफी मदद मिलती है. ये “शहरी रचनात्मक घनत्व” इनोवेटिव प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है. 

शहरों में लोगों के जमा होने का नतीजा जगह के बेहतरीन इस्तेमाल के रूप में निकलता है. ये खेती की ज़मीन को बिना खेती वाले काम में बदलने से रोकता है. इस तरह खाद्य उत्पादकता और प्राकृतिक वनस्पति पर नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं. अमेरिका में ज़ोन से जुड़े नियमों का उद्देश्य कृषि भूमि में शहरी विस्तार को कम-से-कम करना है. भारत में योजना बनाने वाले इसी उद्देश्य के लिए ज़ोन का उपयोग करते हैं. मक़सद साफ है: शहरी फैलाव को रोकना.

घनी आबादी और सार्वजनिक परिवहन

शहरी घनत्व सार्वजनिक परिवहन की भी सहायता करता है. दूसरी तरफ कम घनत्व वाले विकास में ऑटो पर निर्भरता को बढ़ाने और पैदल यात्रा, बाइकिंग एवं सार्वजनिक परिवहन को हतोत्साहित करने की प्रवृत्ति होती है. इस संदर्भ में “ट्रांज़िट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट” (TOD) ठोस शहरी विकास के लिए बहुत बड़ा साधन बन गया है. ये ऐसे शहरी विकास को बढ़ावा देता है जहां घर, व्यवसाय और सुविधाएं सार्वजनिक परिवहन से पैदल दूरी पर होती हैं. इसे यात्रियों, सेवाओं और गतिविधियों को एक साथ लाने के उद्देश्य से तैयार किया गया है. 

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि शहर आर्थिक विकास और राष्ट्रीय संपदा का निर्माण करने में सबसे आगे हैं. लेकिन घनत्व की भी कई खामियां हैं. उच्च शहरी घनत्व का परिणाम भीड़ जमा होने के रूप में निकलता है. प्रमाणों से पता चलता है कि भीड़ के कारण अवांछित मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और जैविक प्रभाव पड़ते हैं. ये दुष्प्रभाव निजता की कमी, डिप्रेशन और मनोवैज्ञानिक हताशा से जुड़े हुए हैं. मुंबई की बेहद सघन झुग्गी में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि वहां रहने वाले लोगों को भीड़ की वजह से मानसिक बीमारी होने का बहुत ज़्यादा ख़तरा होता है. 

अधिक घनत्व शहरों को महामारियों के मामले में असुरक्षित बनाता है. कोविड-19 ने सबसे बड़े शहरों को सबसे बुरी तरह प्रभावित किया. अप्रैल 2020 में अमेरिका में गैर-महानगरीय क्षेत्रों में प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर मृत्यु दर 0.43 थी; छोटे महानगरों में मृत्यु दर थोड़ी ज्यादा 0.72 थी; मध्यम आकार के महानगरों में मृत्यु दर 0.85 और बड़े महानगरों में 0.94 थी. भारत में हालात अलग नहीं थे. अप्रैल 2020 में भारत के 10 सबसे बड़े शहरों में कोरोना वायरस के आधे से ज़्यादा मामले थे. कुल केस में से 30 प्रतिशत मुंबई और दिल्ली में थे.  

अधिक घनत्व शहरों को महामारियों के मामले में असुरक्षित बनाता है. कोविड-19 ने सबसे बड़े शहरों को सबसे बुरी तरह प्रभावित किया. अप्रैल 2020 में अमेरिका में गैर-महानगरीय क्षेत्रों में प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर मृत्यु दर 0.43 थी; छोटे महानगरों में मृत्यु दर थोड़ी ज्यादा 0.72 थी

शहरी घनत्व में बढ़ोतरी से ज़मीन की कीमत में उछाल आता है. इस तरह घर महंगे हो जाते हैं और निम्न मध्यम वर्ग और शहरों में रहने वाले ग़रीबों की पहुंच से बाहर हो जाते हैं. 2019 के लिए अमेरिकन कम्यूनिटी सर्वे (ACS) ने इस दलील का खंडन किया कि शहरी क्षेत्रों के सघनीकरण का नतीजा बेहतर आवास सामर्थ्य के रूप में निकलेगा. इसने ये स्थापित किया कि उच्च शहरी घनत्व आवास के सामर्थ्य में गिरावट के साथ जुड़ा है. भारत में इसका उदाहरण दिल्ली का मास्टर प्लान 2041 है जिसके अनुमान के मुताबिक 85 प्रतिशत निवासी नियमित आश्रय का खर्च नहीं उठा सकते हैं.   

अधिक घनत्व वाले शहरों को भारी ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ सकता है. टॉम टॉम के ताज़ा ट्रैफिक इंडेक्स रैंकिंग 2023 में लंदन, न्यूयॉर्क, पेरिस, टोक्यो, बर्लिन, मेक्सिको सिटी, रोम, जकार्ता, इस्तांबुल और बार्सिलोना- ये सभी शहर उन शीर्ष 100 शहरों में शामिल हैं जो ट्रैफिक जाम का सामना कर रहे हैं. इसी तरह भारत के बड़े शहर- बेंगलुरु, पुणे, दिल्ली और मुंबई हैं. यात्रा में लगने वाले समय की वजह से शहर की अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ने के अलावा गाड़ियां प्रदूषण उत्पन्न करती हैं और गाड़ी चलाते समय लोगों को तनाव का सामना करना पड़ता है. 

भारी शहरी घनत्व का एक दुखद परिणाम सार्वजनिक रूप से खुली जगहों की कमी है. भारत सरकार के दिशानिर्देश के तहत प्रति व्यक्ति 10 से 12 वर्ग मीटर का खुला स्थान आवश्यक बनाया गया है. लेकिन शहरों में बढ़ते घनत्व की वजह से नियमों में संशोधन किया जाता है जो खुली जगह कम करते हैं. उदाहरण के लिए, मुंबई में सार्वजनिक रूप से खुली जगह निर्धारित मानक से कम हो गई है और ये प्रति व्यक्ति 1.24 वर्ग मीटर के निचले स्तर तक पहुंच गई है. 

शहरी घनत्व के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन ने ख़ुद को एक बड़ी चुनौती में बदल लिया है. शहरों को बाढ़, चक्रवात, बहुत ज़्यादा ठंड और परेशान करने वाली हीट वेव का सामना करना पड़ रहा है जिनकी तीव्रता बढ़ रही है और वो बार-बार दस्तक दे रहे हैं. लोगों की जान लेने के अलावा ये घटनाएं शहरों के बुनियादी ढांचे और आजीविका को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं. दुख की बात ये है कि शहरों में रहने वाले ग़रीबों पर इसके विनाशकारी परिणाम हैं. सबसे ज़्यादा चिंता करने वाला पहलू ये है कि जैसे-जैसे शहरों का घनत्व और बढ़ रहा है, वैसे-वैसे राहत और अनुकूलन के उपाय और मुश्किल होते जा रहे हैं. अपनी प्रकृति की वजह से आपदा की स्थिति में सेवाओं एवं लोगों को एक-जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करने की आवश्यकता होती है. लेकिन जैसे-जैसे शहरों का घनत्व बढ़ता है, वैसे-वैसे उसे और ज़्यादा निर्माण करना पड़ता है जिसके कारण आपदाओं से निपटने के लिए कम जगह छूट जाती है. 

शहर और अपराध

शहरी घनत्व अधिक अपराध दर के साथ जुड़ा है. 19 बड़े शहरों, जहां देश की आबादी के 8.12 प्रतिशत लोग रहते हैं, में संज्ञेय अपराध के 14.65 प्रतिशत केस दर्ज किए गए. ये व्यापक स्तर पर स्वीकार किए गए इस निष्कर्ष की पुष्टि करता प्रतीत होता है कि छोटे शहरों एवं गांवों की तुलना में बड़े शहरों में अपराध की दर बहुत ज़्यादा है. ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सही लगता है. अमेरिका में 1994 के सांख्यिकीय सार में पाया गया कि दूसरे शहरों की तुलना में अमेरिका के महानगरों में 79 प्रतिशत ज़्यादा अपराध होता है. इसके अलावा न्यूयॉर्क और लॉस एंजिलिस, जो अमेरिका के सबसे बड़े शहर हैं, में अपराध की दर दूसरे महानगरीय क्षेत्रों की तुलना में लगभग चार गुना अधिक थी. 

ये परिदृश्य उजागर करता है कि शहरी घनत्व से जहां कई लाभ मिलते हैं, वहीं अत्यधिक शहरी घनत्व नकारात्मकता को बढ़ाना शुरू कर देता है. पश्चिमी देशों में शहरी घनत्व पर ज़ोर एक अलग संदर्भ में दिया जाता है. कम प्रजनन दर के साथ-साथ आर्थिक गिरावट की वजह से पश्चिमी देशों के शहरों में आबादी कम हो रही है. पश्चिमी देशों के शहरों से अलग भारत के बड़े शहर बढ़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ती आबादी का सामना कर रहे हैं. शहरी घनत्व के गुणों से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन हमें ये पूछने की आवश्यकता है कि कितना घनत्व नुकसानदेह होना शुरू कर देता है.  

भारतीय शहरों के संबंध में ताज़ा आंकड़ों से पता चलता है कि जब शहरों में रहन-सहन के स्तर में भारी गिरावट आती है तो इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ने लगता है. वैसे तो भारत के बड़े शहर कुल शहरी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में काफी बड़े हिस्से का योगदान करते हैं, जो निर्विवाद रूप से अधिक घनत्व से प्रेरित है, लेकिन उनकी जनसांख्यिकीय सघनता अस्थिर ढंग से बढ़ रही है जिससे अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, समानता और जलवायु सामर्थ्य के लिए समस्या पैदा हो रही है. अत्यधिक शहरी घनत्व के दुष्परिणाम निर्विवाद हैं. जब संसाधन कुछ ही स्थानों में बहुत ज़्यादा केंद्रित हो जाते हैं तो सड़कों पर जाम, रहन-सहन की लागत और उत्पादन की लागत बहुत ज़्यादा स्तर पर पहुंच जाती है जिससे शहरी सेवाओं की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है.  

अत्यधिक शहरी घनत्व के दुष्परिणाम निर्विवाद हैं. जब संसाधन कुछ ही स्थानों में बहुत ज़्यादा केंद्रित हो जाते हैं तो सड़कों पर जाम, रहन-सहन की लागत और उत्पादन की लागत बहुत ज़्यादा स्तर पर पहुंच जाती है जिससे शहरी सेवाओं की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है.  

इस पृष्ठभूमि में दूसरे संभावित शहरों और कस्बों में निवेश के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर योजना तैयार की जानी चाहिए. फिर इन कस्बों और शहरों में निवेश किया जाना चाहिए ताकि वो रोज़गार निर्माण के लिए सक्षम हो सकें. इसके पीछे विचार ये है कि बेहद सघन शहरों में और ज़्यादा घनत्व को हतोत्साहित किया जा सके और प्रवासी जनसंख्या को अन्य योग्य शहरों की तरफ ले जाया जा सके. ये बिल्कुल साफ है कि ऊपर ज़िक्र की गई पद्धति तभी संभव हो सकेगी जब सरकार और योजना बनाने वाले दूसरे संभावित शहरों में अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान देंगे. विकेंद्रित शहरीकरण टिकाऊ शहरों के लिए महत्वपूर्ण है. इसकी अनुपस्थिति में देश के गिने-चुने बड़े शहरों का और अधिक सघन होना तय है जिससे वहां रहन-सहन का स्तर गिरेगा और वो अधिक अस्थिर बनेंगे. 


रामनाथ झा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंग्विश्ड फेलो हैं. 

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