Image Source: Getty
इस दशक की शुरुआत के साथ ही, जाने-समझने ख़तरों में बढ़ोत्तरी (भू-राजनीति से प्रेरित संघर्ष और भू-आर्थिक मक़सदों से लगाए गए प्रतिबंधों) और उभरते हुए अनजाने जोख़िमों (जैसे कि जेनेरेटिव आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और साइबर सुरक्षा के ख़तरों) की वजह से अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के तमाम उद्योगों के लिए बीमा के प्रीमियम बहुत बढ़ गए हैं. इन जाने अनजाने जोख़िमों की अनिश्चितता ने बीमा करने वालों के लिए जोखिम के स्तर और उसके दायरे का मूल्यांकन करना मुश्किल बना दिया है. ख़ास तौर से मध्य पूर्व के संघर्ष, यूक्रेन में रूस के विशेष सैन्य अभियान और रूस व चीन के ख़िलाफ़ इसके बदले में पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों जैसे भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक ख़तरों ने इस चुनौती में और इज़ाफ़ा कर दिया है.
इस लेख में हम राजनीतिक जोखिम, भार-वाहन और समुद्री व्यापार के क्षेत्र में बीमा के बढ़ते प्रीमियम के पीछे भू-राजनीति से प्रेरित संघर्षों की भूमिका का भी विश्लेषण करेंगे.
भू-राजनीतिक तौर पर इस उथल-पुथल भरे दौर में जब आर्थिक संबंधों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को भू-राजनीतिक दबदबा बढ़ाने के हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में इस बात के पक्ष में तमाम तर्क दिए जा सकते हैं कि विदेशों में कारोबार करने वाली अपनी घरेलू निजी कंपनियों को सुरक्षा की सबसे प्रभावी गारंटी देने के लिए संबंधित देशों की सरकारों को आगे आने की ज़रूरत बढ़ गई है. इस मामले में एक शुरुआती क़दम ये हो सकता है कि सरकार के सहयोग से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के मिले जुले प्रयासों के तहत देशों के बीच आपसी तालमेल से विकसित किए जा रहे आर्थिक गलियारों में बीमा की सेवाएं मुहैया कराई जा सकती हैं. ये आर्थिक गलियारे वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं में भू-राजनीति की उभरती भूमिका का एक उदाहरण हैं. सरकारों के बीच आपसी सहयोग वाले आर्थिक गलियारे, जैसे कि भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच आर्थिक गलियारा (IMEC), इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), मध्य गलियारा और पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड इन्वेस्टमेंट (PGI) लोबितो गलियारे, व्यापार के वो मार्ग हैं, जिनको सरकारें आपसी सहयोग से विकसित कर रही हैं और ये लाल सागर जैसे संघर्ष के भयंकर जोखिम वाले इलाक़ों, राजनीतिक रूप से अस्थिर और संघर्ष के शिकार मध्य अफ्रीका और दक्षिणी कॉकेशस से होकर गुज़रते हैं. इस गलियारे के साझीदारों को चाहिए कि वो व्यापार के इन भू-आर्थिक मार्गों को सैन्य और वित्त दोनों ही तरीक़ों से महफ़ूज़ बनाएं. इस लेख में हम ये सुझाव दे रहे हैं कि सरकारें किस तरह आर्थिक गतिविधियों वाले गलियारों में आपसी तालमेल से क़दम उठा सकती हैं, ताकि इन्हें भू-राजनीतिक ख़तरों और आक्रामक भू-आर्थिक क़दमों के प्रति सुरक्षित बनाकर, कुशलता से निर्बाध व्यापार सुनिश्चित किया जा सके. इस लेख में हम राजनीतिक जोखिम, भार-वाहन और समुद्री व्यापार के क्षेत्र में बीमा के बढ़ते प्रीमियम के पीछे भू-राजनीति से प्रेरित संघर्षों की भूमिका का भी विश्लेषण करेंगे.
भू-राजनीति और बीमा
इस दशक के आग़ाज़ के साथ ही हमने कम महंगाई दर और सस्ते श्रम और आसानी से पूंजी उपलब्ध कराने के मामले में लंबे समय से चली आ रही वैश्विक आम सहमति का अंत होते देखा. ये सब 1945 के बाद के भूमंडलीकरण के दौर का परिणाम थे. इनके ख़ात्मे की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक के बाद एक लगे झटकों (यूक्रेन पर रूस का हमला, लाल सागर की आपूर्ति श्रृंखला का संकट और महामारी) थे. इनकी वजह से दुनिया भर में बड़े पैमाने पर महंगाई बढ़ गई और तमाम विकसित देशों के अलावा ज़्यादातर उभरते बाज़ारों और विकासशील देशों में ब्याज दरों में इज़ाफ़ा होते देखा गया. 2024 में 64 देशों (और यूरोपीय संघ) में हुए चुनावों और इनकी वजह से इन देशों और विशेष रूप से अमेरिका में नीतिगत उठा-पटक के जोखिमों ने इन भू-राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चितताओं को और बढ़ा दिया है.
आर्थिक नीति की अनिश्चितताओं और आपूर्ति श्रृंखलाओं में भू-राजनीति से प्रेरित खलल ने भी बीमा उद्योग पर दबाव और बढ़ा दिया. जबकि बीमा उद्योग का निर्माण तो कारोबारी गतिविधियों को मौद्रिक उपायों के ज़रिए कभी-कभार ही राहत देने के मक़सद से हुआ था, न कि भू-राजनीतिक संघर्षों और आर्थिक प्रतिबंधों जैसी संरचनात्मक चुनौतियों से निपटने के लिए.
दुनिया में आए इन बदवावों की वजह से पहले से चले आ रहे भू-राजनीतिक और आर्थिक समीकरणों में बदलाव होने लगे. आर्थिक नीति की अनिश्चितताओं और आपूर्ति श्रृंखलाओं में भू-राजनीति से प्रेरित खलल ने भी बीमा उद्योग पर दबाव और बढ़ा दिया. जबकि बीमा उद्योग का निर्माण तो कारोबारी गतिविधियों को मौद्रिक उपायों के ज़रिए कभी-कभार ही राहत देने के मक़सद से हुआ था, न कि भू-राजनीतिक संघर्षों और आर्थिक प्रतिबंधों जैसी संरचनात्मक चुनौतियों से निपटने के लिए. बीमा करने वाले और बीमा करने वालों का बीमा करने वाले (reinsurers) प्रीमियम और अपने मुनाफ़ों का निर्धारण पहुंच (मुनाफ़े, नुक़सान और भुगतान), अचानक पैदा होने वाली चुनौतियों (जिसका बीमा होता है, उसके सामने पैदा होने वाली अनिश्चितताएं, जिन पर उसका अपना कोई नियंत्रण नहीं होता) और आपसी सहयोग (जोखिम से निपटने के लिए भागीदारों की विविधता) के आधार पर करते हैं. अक्सर, भू-राजनीतिक झटकों से होने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुक़सान का मूल्यांकन, पूर्वानुमान या दूसरों से साझा नहीं किया जा सकता है. क्योंकि, भू-राजनीति से प्रेरित नुक़सान लक्ष्य बनाकर थोपे जाते हैं. इन नई समस्याओं से निपटने में दुनिया के बीमा उद्योग में क्षमता के अभाव की वजह से बीमा करने वाले और रीइनश्योर करने वालों ने तमाम उद्योगों और आर्थिक क्षेत्रों के बीमा प्रीमियम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं.
इसके अलावा, जैसे जैसे जोखिम की आशंका बढ़ती है, वैसे वैसे प्रीमियम भी बढ़ते जाते हैं. लाल सागर में हूती बाग़ियों की बढ़ती गतिविधियों की वजह से अक्टूबर 2023 से ही उस इलाक़े से गुज़रने वाले मालवाहक जहाज़ों की ढुलाई पर प्रीमियम बढ़ने लगे थे. दक्षिण अफ्रीका के उत्तम आशा अंतरीप (केप ऑफ गुड होप) से होकर जाने वाला इसका जो वैकल्पिक मार्ग है, उसमें 30 दिन ज़्यादा लगते हैं और परिवहन का ख़र्च भी लगभग दस लाख डॉलर बढ़ जाता है. इससे एशिया के निर्यातकों के लिए समस्या खड़ी हो जाती है. सच तो ये है कि 2023-24 की दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान भारत से अमेरिका और यूरोपीय संघ को होने वाले निर्यातों में गिरावट आई थी. क्योंकि, जोखिम के प्रीमियम से बढ़ी हुई लागत की वजह से बहुत से निर्यातकों ने अपने सामान रोक लिए थे. IMEC, INSTC, मिडिल कॉरिडोर और PGI मोटे तौर पर इन जोखिमों से निपटने के लिए ही उठाए गए क़दम हैं. इनसे जोखिम के अतिरिक्त प्रीमियम और लंबी दूरी तय करने जाने में लगने वाली लागत के बोझ से बचने में मदद मिलती है. क्योंकि बढ़ी हुई लागत की वजह से बीमा का प्रीमियम भी बढ़ जाता है.
पिछले चार सालों के दौरान दुनिया में बीमा के प्रीमियम दस प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहे हैं. राजनीतिक और भू-राजनीतिक जोखिमों से जुड़े बीमा प्रीमियम तो 2022 से 2024 के बीच 13 फ़ीसद की दर से बढ़े हैं.
पिछले चार सालों के दौरान दुनिया में बीमा के प्रीमियम दस प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहे हैं. राजनीतिक और भू-राजनीतिक जोखिमों से जुड़े बीमा प्रीमियम तो 2022 से 2024 के बीच 13 फ़ीसद की दर से बढ़े हैं. औद्योगिक लिहाज़ से देखें, तो जहाज़रानी उद्योग का प्रीमियम 2022 से 2024 के बीच 20 प्रतिशत बढ़ गया. युद्ध के जोख़िम से जुड़े प्रीमियम जो पहले किसी जहाज़ की बीमा के मुताबिक़ क़ीमत का 0.05 प्रतिशत हुआ करते थे, वो अब बढ़कर बीमा की गई रक़म के 0.75 से एक प्रतिशत तक पहुंच गए हैं. समुद्र और शिपिंग सेक्टर के बीमा प्रीमियम के ये आंकड़े ज़रूरी हैं, क्योंकि दुनिया का लगभग 90 प्रतिशत व्यापार समुद्र के रास्ते होता है. इसके अलावा ऑटोमोबाइल और साइबर क्षेत्र के बीमा के प्रीमियम में हुई बढ़ोत्तरी भी भू-राजनीतिक संघर्षों और विवाद के क्षेत्र में आक्रामकता का ही नतीजा हैं.
कनेक्टिविटी वाले व्यापारिक गलियारों के लिए सरकारी बीमा की ज़रूरत
आज जब जोखिम कहीं ज़्यादा जटिल और अनिश्चितता भरे हो गए हैं, तो बीमा करने वाले पहले के आंकड़ों के आधार पर इनका मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं. ये बात, मध्य पूर्व, यूरोप और अफ्रीका के लिए तो ख़ास तौर पर कही जा सकती है, जहां IMEC, INSTC, मिडिल कॉरिडोर और यूरोपिय ग्लोबल गेटवे जैसे आर्थिक गलियारे अब समान विचारधारा वाले साझीदारों के बीच आर्थिक सहयोग के अहम मार्गों के तौर पर उभर रहे हैं. हालांकि ये क्षेत्र और महाद्वीप युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता, उग्रवाद और व्यापार के अहम रास्तों पर हथियारबंद ग़ैर सरकारी किरदारों की दख़लंदाज़ी से भी पीड़ित हैं. इनके घरेलू निजी सेक्टर को इन गलियारों में निवेश करके इन्हें अंतरराष्ट्रीय व्यापार का अहम मार्ग बनाने के लिए सरकार को पहले इन पूरे गलियारों में आवाजाही की सुरक्षा की गारंटी देनी होगी और तमाम गलियारों के बीच राजनीतिक/भू-राजनीतिक जोखिमों से निपटने के लिए इन देशों की सरकारों के बीच बीमा की रूप-रेखाएं विकसित करनी होंगी.
भू-राजनीतिक संघर्षों की अनिश्चितता और इनकी वजह से अचानक होने वाले संभावित नुक़सानों को देखते हुए सरकार के दख़ल देने की ज़रूरत साफ़ हो जाती है. इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र के साथ साथ निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों द्वारा मिलकर काम करने की मिसालें भी मौजूद हैं. अमेरिका का इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन, अपने यहां के निजी क्षेत्र को 49 देशों में एक अरब डॉलर तक के कवरेज की गारंटी देता है. इसके अलावा, जब 1990 के दशक के अंत में ब्रिटेन में आइरिश रिपब्लिकन आर्मी ने एक के बाद एक कई हमले किए तो ब्रिटिश सरकार और देश के निजी क्षेत्र ने मिलकर पूर रे के नाम से एक व्यवस्था का निर्माण किया, जिसमें वित्तीय सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार उठाती है. पूल रे, ब्रिटिश कारोबारियों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर के तमाम तरह के राजनीतिक जोखिमों के प्रति बीमा की सुविधा मुहैया कराती है. निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की मिली जुली पहल की ऐसी और भी मिसालें हम, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), चीन, सऊदी अरब, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में भी पाते हैं.
अगर IMEC, INSTC और दूसरे आर्थिक गलियारों में शामिल साझीदार देश, इन गलियारों का अधिकतम दोहन करना चाहते हैं, तो इन देशों की सरकारों को मिलकर एक बहुआयामी संस्था बनानी होगी, जो भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति बीमा की सुविधा उपलब्ध कराए.
चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में चीन के निजी क्षेत्र के बढ़-चढ़कर भागीदारी करने की एक बड़ी वजह ये है कि सरकारी बीमा, टैक्स में सब्सिडी और BRI की रूप-रेखा के तहत निवेश के नियमों और परमिट में आसानी जैसी तमाम सहूलतें चीन की सरकार मुहैया कराती है. इसकी वजह से बहुत ज़्यादा राजनीतिक जोखिम वाले कम और मध्यम आमदनी के देशों में चीन के निजी क्षेत्र की तरफ़ से भारी निवेश किया जा रहा है. अगर IMEC, INSTC और दूसरे आर्थिक गलियारों में शामिल साझीदार देश, इन गलियारों का अधिकतम दोहन करना चाहते हैं, तो इन देशों की सरकारों को मिलकर एक बहुआयामी संस्था बनानी होगी, जो भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति बीमा की सुविधा उपलब्ध कराए. जैसे कि विश्व बैंक ग्रुप के मल्टीलैटरल इन्वेस्टमेंट गारंटी एजेंसी की तर्ज पर किसी ख़ास गलियारे के लिए संस्था बनाई जा सकती है. विश्व बैंक की ये संस्था विकासशील देशों में ग़ैर कारोबारी जोखिमों के प्रति बीमा की सुविधा देती है. इसके अलावा, आवाजाही के दौरान सुरक्षा अभी भी किसी सरकार की तरफ़ से राजनीतिक जोखिम के प्रति उपलब्ध कराई जाने वाली बीमा की सुविधा का प्रमुख हिस्सा है. इससे व्यापारिक मार्गों को सुरक्षित बनाने में देशों की सेनाओं की अहम भूमिका रेखांकित होती है.
निष्कर्ष
राजनीतिक जोखिमों के प्रति बीमा के लिए सरकारी या सरकारी औऱ निजी क्षेत्र द्वारा मिल-जुलकर बीमा की सुविधा देने का विचार अभी भी क्रांतिकारी ही है. जबकि ये आज की ज़रूरत बन चुका है. भयंकर ख़तरों वाले इलाक़ों से गुज़रने वाले कनेक्टिविटी के गलियारों के लिए तो ये ज़रूरत और भी ज़्यादा है. आज जब निजी क्षेत्र भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रति बीमा देने की चुनौती से जूझ रहा है. ऐसे में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के साझा या फिर सरकार की तरफ़ से बीमा की सुविधा से न केवल निजी क्षेत्र पर पड़ रहा बोझ कम होगा, बल्कि उन आर्थिक गलियारों का अधिकतम इस्तेमाल भी किया जा सकेगा, जो आज बहुत से देशों के लिए अहम आर्थिक प्राथमिकता बन चुके हैं. सरकारी अथवा निजी और सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा मिलकर ऐसे बीमाकी सुविधा देने का एक फ़ायदा ये भी होगा कि इससे निजी कंपनियों को देश से बाहर निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार करने का मौक़ा मिलेगा. आर्थिक प्रगति और विकास की महत्वाकांक्षा रखने वाले किसी भी देश के लिए ऐसा होना ज़रूरी है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.