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ट्रंप प्रशासन के तहत म्यांमार के साथ अमेरिका की भागीदारी प्रतिबंधों, दुर्लभ धातु से जुड़े हितों और सैन्य सरकार की लॉबिंग के प्रयास से नया रूप ले रही है.
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जनवरी 2025 में व्हाइट हाउस में डोनाल्ड जे. ट्रंप की वापसी ने राष्ट्रवादी बयानबाज़ी और रणनीतिक पक्षपात के जाने-पहचाने मिश्रण को फिर से पेश किया है, जो अब लेन-देन के तर्क से कम और अनिश्चितता से अधिक प्रेरित है. वैश्विक संकट सामने आने के साथ इस नए प्रशासन के तहत जिस संकट पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, वो है म्यांमार का मौजूदा संघर्ष. म्यांमार अभी भी 2021 के सैन्य विद्रोह के बाद के हालात, गृह युद्ध और मानवीय त्रासदी से जूझ रहा है. इस देश में पिछले दिनों आपातकालीन नियम हटा दिया गया लेकिन सेना का वर्चस्व अभी भी बना हुआ है. 28 दिसंबर को नए चुनाव शुरू होने वाले हैं.
म्यांमार अभी भी 2021 के सैन्य विद्रोह के बाद के हालात, गृह युद्ध और मानवीय त्रासदी से जूझ रहा है. इस देश में पिछले दिनों आपातकालीन नियम हटा दिया गया लेकिन सेना का वर्चस्व अभी भी बना हुआ है. 28 दिसंबर को नए चुनाव शुरू होने वाले हैं.
ट्रंप के पहले कार्यकाल (2017-2021) के दौरान म्यांमार अमेरिका के रणनीतिक हितों के लिए महत्वहीन था. रोहिंग्या नरसंहार और उसके बाद लोकतांत्रिक पतन- दोनों को लेकर अमेरिका की प्रतिक्रिया धीमी, देर से और परस्पर विरोधी थी. इसके विपरीत राष्ट्रपति जो बाइडेन (2021-2024) के प्रशासन ने मूल्य आधारित और कभी-कभी हस्तक्षेप न करने वाला दृष्टिकोण अपनाया. बाइडेन प्रशासन ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों का समर्थन किया, निशाना बनाकर सैन्य जनरलों एवं सेना से जुड़ी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया, इस क्षेत्र में मौजूद लोकतांत्रिक देशों के साथ संबंधों को मज़बूत किया और सहायता के लिए दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) पर निर्भरता बढ़ाई.
हालांकि, ट्रंप का दूसरा कार्यकाल एक पूरी तरह से अलग भू-राजनीतिक माहौल में शुरू हुआ- म्यांमार में चीन का प्रभाव बढ़ गया है, आम सहमति बनाने में आसियान को जूझना पड़ा है और पश्चिमी देशों के प्रतिबंध सैन्य सरकार के व्यवहार को उम्मीद के मुताबिक बदलने में नकाम रहे हैं. इस पृष्ठभूमि में ट्रंप की म्यांमार नीति बदलाव की तुलना में अधिक निरंतरता के बारे में बताती है: अस्थिर संकेत, लेन-देन की प्रवृत्ति और ताकत के रूप में प्रतिबंध को लेकर दुविधा. यद्यपि म्यांमार के जनरलों ने ट्रंप के साथ संपर्क को कूटनीतिक मान्यता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है, किंतु अमेरिका के रुख और म्यांमार की प्रतिक्रिया की वास्तविकता का स्वतंत्र आकलन आवश्यक है.
यद्यपि म्यांमार के जनरलों ने ट्रंप के साथ संपर्क को कूटनीतिक मान्यता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है, किंतु अमेरिका के रुख और म्यांमार की प्रतिक्रिया की वास्तविकता का स्वतंत्र आकलन आवश्यक है.
तालिका: ट्रंप प्रशासन के तहत म्यांमार को लेकर अमेरिका की नीति
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नीतिगत क्षेत्र |
पहला कार्यकाल (2017–21) |
वर्तमान कार्यकाल |
टिप्पणी |
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प्रतिबंध लागू |
ग्लोबल मैग्निटस्की एक्ट के तहत प्रमुख जनरलों पर प्रतिबंध; धारा 7031 (सी) के तहत वीज़ा पर पाबंदी. |
IEEPA के तहत नए सिरे से प्रतिबंध; OFAC ने करेन नेशनल आर्मी को निशाना बनाया; बाद में सेना से जुड़ी कुछ कंपनियों को सूची से बाहर किया गया. |
विस्तार हुआ लेकिन परस्पर विरोधी दृष्टिकोण. |
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प्रवासी नीतियां |
2020 की यात्रा पाबंदी में म्यांमार को जोड़ा गया, प्रवासी वीज़ा पर प्रतिबंध लगाया गया. |
जून 2025 में यात्रा पाबंदी नए सिरे से लागू/विस्तार किया गया; म्यांमार को अधिक ख़तरे वाला देश बताया गया. |
एक सख्त दायरे के साथ निरंतरता. |
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व्यापार और टैरिफ |
म्यांमार के निशाना बनाकर टैरिफ नहीं. |
अप्रैल 2025 के कार्यकारी आदेश (EO) के तहत 44 प्रतिशत टैरिफ लागू, बाद में 40 प्रतिशत किया गया. |
दंडात्मक व्यापार नीति की तरफ महत्वपूर्ण बदलाव. |
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मानवीय सहायता |
रोहिंग्या संकट को लेकर 1 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा सहायता के रूप में (2017-20) |
कार्यकारी आदेश (EO) 14169 के तहत ज़्यादातर सहायता रोकी गई; सीमित भूकंप सहायता (9 मिलियन डॉलर). |
कटौती से आपदा को लेकर अमेरिका की प्रतिक्रिया में बाधा. . |
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रोहिंग्या संकट |
हिंसा की निंदा लेकिन नरसंहार बताने से परहेज़. |
बाइडेन का 2022 का नरसंहार का निर्णय बना हुआ है; इसे रद्द नहीं किया गया है. |
आधिकारिक अमेरिकी रुख में बदलाव नहीं. |
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सैन्य और सुरक्षा |
अंतर्राष्ट्रीय सैन्य शिक्षा और प्रशिक्षण (IMET), विदेशी सैन्य वित्तपोषण (FMF) और हथियार प्रतिबंध को निलंबित किया. |
प्रतिबंध और सहायता को नए सिरे से निलंबित किया गया; इसका विस्तार साइबर अपराध के नेटवर्क तक हुआ. |
भागीदारी की शुरुआत नहीं. |
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कूटनीतिक भागीदारी |
उच्च स्तर के संपर्क को कम किया; सीमित बहुपक्षीय भूमिका. |
न्यूनतम सीधी भागीदारी; लेन-देन में टैरिफ का इस्तेमाल. |
भागीदारी में दूरी, एकतरफा. |
स्रोत: लेखक की अपनी तैयारी
ट्रंप 2.0 के तहत अमेरिकी नीति की दिशा को समझने के लिए उनके पहले के कार्यकाल पर फिर से ध्यान देना आवश्यक है. 2017 के रोहिंग्या संकट के दौरान ट्रंप प्रशासन ने धीमी गति से कार्रवाई की, ग्लोबल मैग्निटस्की एक्ट के तहत सीमित प्रतिबंध लगाए, अत्याचार के पैमाने को कभी भी स्वीकार नहीं किया या उन्हें नरसंहार की श्रेणी में नहीं रखा. बाइडेन प्रशासन ने 2022 में ये कदम उठाए. मानवीय चिंताओं को व्यापक भू-राजनीतिक गुणा-भाग के नीचे रखा गया, विशेष रूप से अमेरिका-चीन शत्रुता को देखते हुए. यहां तक कि 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद भी पद से हट चुके ट्रंप ने म्यांमार में सत्ता पर सेना के कब्ज़े या लोकतंत्र समर्थक प्रतिरोध को लेकर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की जो सीधे रणनीतिक फायदे की कमी वाले दक्षिण-पूर्व एशिया में संघर्ष को लेकर उनकी निरंतर उदासीनता को दर्शाता है.
2025 में ओवल ऑफिस में फिर से लौटने के बाद से ट्रंप वैश्विक मंच पर सक्रिय रहे हैं. यूक्रेन-रूस और ईरान-इज़रायल संघर्षों के दौरान उनके उच्च-स्तरीय हस्तक्षेप को पूरी दुनिया ने देखा लेकिन म्यांमार जैसे संकट को लेकर उन्होंने बहुत कम दिलचस्पी दिखाई है. जिस समय म्यांमार में गृह युद्ध गहराता जा रहा है और सैन्य शासन, जातीय सशस्त्र संगठनों (EAO) एवं पीपुल्स डिफेंस फोर्स (PDF) के बीच व्यापक स्तर पर लड़ाई हो रही है, तब म्यांमार के संकट को लेकर साफ तौर पर चुप्पी बिना किसी मक़सद के नहीं है.
11 जुलाई को वरिष्ठ जनरल मिन ऑन्ग ह्लेंग ने कथित तौर पर एक चिट्ठी ट्रंप को लिखी जिसमें उनके “मज़बूत नेतृत्व” की प्रशंसा की गई थी. चिट्ठी में म्यांमार के 2020 के चुनाव (जिसे सैन्य सरकार चुनावी धोखाधड़ी बताती है) तथा अमेरिकी चुनाव के बीच समानता बताई गई और टैरिफ एवं प्रतिबंधों से राहत के लिए अपील की गई. इसके ठीक 2 हफ्तों के बाद 24 जुलाई को अमेरिकी वित्त विभाग ने चुपके से म्यांमार की सेना से जुड़े कई लोगों एवं कंपनियों से प्रतिबंध हटा लिए. इनमें KT सर्विसेज़ एंड लॉजिस्टिक्स, MCM ग्रुप, सनटैक टेक्नोलॉजीज़ और टिन लैट मिन शामिल हैं. वैसे तो अमेरिका के अधिकारी ज़ोर देकर कहते हैं कि ये निर्णय नियमित प्रशासनिक फेरबदल का हिस्सा था और इसका चिट्ठी से कोई संबंध नहीं है लेकिन फैसले के समय ने चिंता उत्पन्न की है.
लोकतंत्र समर्थक ताकतों के द्वारा समर्थित समानांतर नागरिक प्रशासन यानी राष्ट्रीय एकता सरकार (NUG) के साथ भागीदारी को महत्व नहीं दिया गया है जो म्यांमार की सैन्य सरकार को लेकर अमेरिकी रवैये के पूरी तरह से नरम होने की तुलना में बारीक बदलाव का इशारा करता है.
अमेरिका और म्यांमार के संबंधों में इस तस्वीर को म्यांमार के रेयर अर्थ संसाधनों की भूमिका और जटिल बना रही है. ये दक्षिण-पूर्व एशियाई देश भारी दुर्लभ धातुओं का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. ये धातु इलेक्ट्रिक गाड़ियों, विंड टर्बाइन और आधुनिक रक्षा तकनीकों के लिए आवश्यक हैं. दुनिया में रेयर अर्थ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद अमेरिका अपने लगभग तीन-चौथाई रेयर अर्थ आयात के लिए चीन पर निर्भर बना हुआ है क्योंकि 85 प्रतिशत वैश्विक प्रसंस्करण- विशेष रूप से भारी दुर्लभ धातुओं का- पर चीन का नियंत्रण है. इस कमज़ोरी ने अमेरिका का ध्यान म्यांमार के भंडारों की तरफ़ खींचा है. वास्तव में जुलाई 2025 तक रेयर अर्थ तक पहुंच के प्रस्तावों को औपचारिक रूप से ट्रंप प्रशासन के सामने प्रस्तुत किया गया जिनमें सैन्य शासन या कचिन इंडिपेंडेंस ऑर्गेनाइज़ेशन (KIO) (जो कचिन प्रांत में संसाधन से भरपूर खनन क्षेत्र के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण रखता है) के साथ काम करने का प्रस्ताव शामिल है.
अमेरिका को म्यांमार के भंडार आकर्षक लगते हैं. एक तो ये चीन के सप्लाई चेन वर्चस्व के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का काम करेंगे और दूसरा दक्षिण-पूर्व एशिया में रणनीतिक बराबरी के रूप में.
अमेरिका को म्यांमार के भंडार आकर्षक लगते हैं. एक तो ये चीन के सप्लाई चेन वर्चस्व के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का काम करेंगे और दूसरा दक्षिण-पूर्व एशिया में रणनीतिक बराबरी के रूप में. फिर भी वास्तविकता ये है कि रेयर अर्थ तक आसान पहुंच की कोई भी उम्मीद ख़त्म हो जाती है. कचिन में सभी खनन चीन में प्रवाहित होते हैं जो इस प्रांत के साथ सीमा साझा करता है और अपने पुरस्कार एवं दंड के दृष्टिकोण के माध्यम से पर्याप्त नियंत्रण भी रखता है. प्रमुख भंडार चिपवी और मोमौक टाउनशिप जैसे विवादित क्षेत्रों में है जिन पर हथियारबंद समूहों का नियंत्रण है. सैन्य सरकार ख़ुद भी लगातार अपने क्षेत्र गंवा रही है और वो मुख्य रूप से बड़े शहरों तक सीमित रह गई है. भारत तक ज़मीनी रास्ते में परिवहन और रिफाइनिंग से जुड़े बुनियादी ढांचे की कमी है जिसकी वजह से वैकल्पिक सप्लाई चेन अव्यवहारिक बन जाती हैं.
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका भविष्य में रेयर अर्थ तक पहुंच के बदले प्रतिबंधों को ढील करने के लिए तैयार हो भी जाता है तो ये प्रयास विफल हो सकते हैं और ये अमेरिका के दीर्घकालिक रणनीतिक हितों को कमज़ोर कर सकता है. चीन और रूस पर बहुत ज़्यादा निर्भर सैन्य शासन पर दांव लगाना प्रतिरोध के बलों (जिनको अमेरिकी भागीदारी के लिए बहुत ज़्यादा लोगों का समर्थन प्राप्त है) के साथ बातचीत करने की तुलना में बहुत कम व्यावहारिक है. इस बात की अधिक संभावना है कि प्रतिरोध के बल चीन के प्रभाव को चुनौती देंगे. अमेरिका के दृष्टिकोण में स्पष्टता की कमी से मिले-जुले संकेत जाने का ख़तरा है- एक तरफ तो इससे म्यांमार में उम्मीद बढ़ेगी और दूसरी तरफ अमेरिका की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को लेकर उसके सहयोगियों में संदेह गहरा होगा.
सैन्य सरकार के लिए अमेरिका के कदमों को कमज़ोरी के बदले ताकत और वैधता प्रदर्शित करने के अवसर के रूप में प्रस्तुत किया गया है. जुलाई में अमेरिका के द्वारा म्यांमार के निर्यातों पर 40 प्रतिशत टैरिफ लागू करने के फैसले के बाद सैन्य शासन ने इस कदम को एक आर्थिक दबाव की जगह पश्चिमी देशों से मान्यता के सबूत के रूप में पेश किया. राष्ट्रपति ट्रंप को लिखी एक चापलूसी भरी चिट्ठी में मिन ऑन्ग ह्लेंग ने टैरिफ में पर्याप्त कमी का अनुरोध किया. उन्होंने निर्यात पर टैरिफ में कटौती करके 10-20 प्रतिशत करने का प्रस्ताव दिया और इसके बदले अमेरिका से आयात पर 0-10 प्रतिशत की दर का प्रस्ताव दिया. बातचीत के लिए उन्होंने वार्ताकारों की एक टीम अमेरिका भेजने का सुझाव भी दिया. लेकिन ये बात अभी तक आगे नहीं बढ़ सकी है. सरकारी मीडिया ने इस प्रस्ताव को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया और इसे म्यांमार के आर्थिक सामर्थ्य के प्रमाण और निरंतर कूटनीतिक स्वीकार्यता के संकेत के रूप में पेश किया.
सैन्य सरकार अपनी छवि को बदलने के लिए सचेत प्रयास कर रही है. उदाहरण के लिए, 8 अगस्त को म्यांमार के सूचना मंत्रालय ने व्यापार, प्राकृतिक संसाधनों और मानवीय पहुंच पर बातचीत को बढ़ावा देने के लिए DCI ग्रुप के साथ 3 मिलियन अमेरिकी डॉलर के एक सालाना लॉबिंग समझौते पर हस्ताक्षर किए. ये कंपनी पूर्व ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों से जुड़ी है. ये लॉबिंग अभियान म्यांमार में इस मान्यता को दिखाता है कि ट्रंप प्रशासन अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में लेन-देन और हित से ज़्यादा प्रेरित है और इस तरह अगर अमेरिका के आर्थिक हितों के इर्द-गिर्द काम किया जाए तो ये भागीदारी के लिए ज़्यादा तैयार है. लगता है कि ये प्रयास सैन्य शासन को व्यापार में एक संभावित साझेदार के रूप में स्थापित करने और कुछ स्थिरता हासिल करने के लिए किए गए हैं. कुल मिलाकर अगर टैरिफ में राहत के प्रस्तावों और लॉबिंग के पैंतरे को एक साथ जोड़ा जाए तो ये दिखाते हैं कि म्यांमार के जनरल नए सिरे से भागीदारी के लिए दंडात्मक उपायों को अवसर में बदलने के लिए काम कर रहे हैं, भले ही ये मान्यता कितनी भी सतही और अल्पकालिक क्यों न हो.
अगर टैरिफ में राहत के प्रस्तावों और लॉबिंग के पैंतरे को एक साथ जोड़ा जाए तो ये दिखाते हैं कि म्यांमार के जनरल नए सिरे से भागीदारी के लिए दंडात्मक उपायों को अवसर में बदलने के लिए काम कर रहे हैं, भले ही ये मान्यता कितनी भी सतही और अल्पकालिक क्यों न हो.
इसके साथ-साथ सैन्य शासन ने लोकतंत्र, मानवीय सहायता, स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा के कार्यक्रमों में USAID की लगभग 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग के निलंबन का इस्तेमाल संप्रभुता के अपने नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए किया है. सरकारी मीडिया ने इस नुकसान को विदेशी हस्तक्षेप में कमी के रूप में पेश किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत, चीन और आसियान के साथ गहरे संबंधों के माध्यम से म्यांमार इसकी भरपाई कर सकता है. ये दोहरा संदेश- एक तरफ लॉबिंग के ज़रिए अमेरिका को खुश करना और दूसरी तरफ क्षेत्रीय साझेदारों की तरफ निर्भरता बढ़ाना- दिखाता है कि म्यांमार के जनरल किस प्रकार बाहरी दबाव को राजनीतिक फायदे में बदलना चाहते हैं.
राजनीतिक रूप से ध्रुवीकृत अमेरिका में भी म्यांमार संघर्ष को लेकर ऐतिहासिक रूप से संसद में द्विदलीय समर्थन रहा है. बर्मा एक्ट जैसे कानून और मानवीय सहायता के उद्देश्य से वार्षिक अनुदान की निगरानी एवं प्रवर्तन के लिए शक्तिशाली साधन बने हुए हैं. विभिन्न दलों के प्रमुख सांसद पहले ही सैन्य शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के प्रशासन के किसी भी कदम को लेकर चिंता जता चुके हैं. इस तरह ये सुनिश्चित किया गया है कि कार्यकारी लचीलापन विधायी छानबीन से संतुलित हो.
द्वि-दलीय सहमति का एक और उभरता हुआ क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय साइबर अपराध के ख़िलाफ़ लड़ाई है. म्यांमार, लाओस और कंबोडिया से काम करने वाले सिंडिकेट ने ऑनलाइन घोटालों, साइबर गुलामी और डिजिटल धोखाधड़ी के माध्यम से अमेरिका समेत दुनिया भर के लोगों को निशाना बनाया है. इस बढ़ते ख़तरे ने अमेरिका के नीति निर्माताओं के संकल्प को मज़बूत किया है जिससे साइबर अपराध नीतिगत चर्चा में सबसे आगे आ गया है. इसके कारण हथियारबंद समूहों और सैन्य सहयोगियों से जुड़े नेटवर्क के ख़िलाफ़ कड़े प्रतिबंधों और प्रवर्तन का तौर-तरीका लागू करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है.
इसके साथ-साथ अमेरिका स्थित सिविल सोसायटी संगठन और म्यांमार के प्रवासी लोगों के नेटवर्क जवाबदेही के उद्देश्य से लॉबिंग करने, शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए वकालत करने और म्यांमार के मानवीय संकट की तरफ लोगों का ध्यान खींचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. उनकी सक्रियता बदलती कार्यकारी प्राथमिकताओं के लिए एक आवश्यक प्रतिसंतुलन प्रदान करती है. चूंकि अमेरिका का ध्यान घरेलू राजनीति और वैश्विक संकटों के बीच झूल रहा है, ऐसे में ये नेटवर्क इस बात को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होंगे कि म्यांमार नीतिगत रडार से बाहर नहीं हो जाए.
श्रीपर्णा बनर्जी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.
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Sreeparna Banerjee is an Associate Fellow in the Strategic Studies Programme. Her work focuses on the geopolitical and strategic affairs concerning two Southeast Asian countries, namely ...
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