म्यांमार में मौजूदा मानवीय संकट के बीच अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी किरदारों ने पूरी फुर्ती और कुशलता के साथ अपनी भूमिका निभाई है.
म्यांमार में पिछले साल फ़रवरी में हुए तख़्तापलट के बाद से मानवीय हालात बेहद चिंताजनक बने हुए हैं. राजनीतिक और आर्थिक अव्यवस्था के चलते 2022 की शुरुआत तक म्यांमार की क़रीब-क़रीब आधी आबादी (तक़रीबन ढाई करोड़ लोग) ग़रीबी की दलदल में फंस चुकी है. कोविड-19 से जुड़ी दिक़्क़तों (जैसे आवाजाही पर लगी रोक और आर्थिक सुस्ती) के साथ-साथ तख़्तापलट से जुड़ी चुनौतियों (मौजूदा विरोध-प्रदर्शनों और बढ़ती असुरक्षा), बैंकिंग से जुड़ी पाबंदियों, नक़दी के प्रवाह को लेकर रोकटोक और जुंटा (फ़ौज) द्वारा जानबूझकर सहायता पर रोक लगाए जाने से मानवतावादी क़वायदों के रास्ते में रुकावटें खड़ी हो गई हैं. दूसरी ओर ऐसी मदद की ज़रूरतें आज काफ़ी बढ़ चुकी हैं. तख़्तापलट के बाद से कम से कम 4,25,000 लोग नए सिरे से विस्थापित हो चुके हैं. 2022 में ऐसे लोगों की तादाद 10 लाख तक पहुंच चुकी है. इसके बावजूद मानवतावादी मदद की पहुंच धीमी हो गई है. फ़ौज द्वारा विरोध की हथियारबंद मुहिमों को कुंद करने की कोशिशों के चलते ऐसे नतीजे देखने को मिल रहे हैं.
हाल ही में नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी के पूर्व सांसद को फ्यो ज़ेया थॉ और लोकतंत्र का समर्थन करने वाले वरिष्ठ कार्यकर्ता को जिमी के लिए मौत की सज़ा को मंज़ूरी दी गई है. फ़ौजी हुकूमत के ख़िलाफ़ गतिविधियों के चलते दोनों को ये सज़ा सुनाई गई है. इससे मौजूदा शासन व्यवस्था में जारी अत्याचार का पता चलता है.
हाल ही में नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी के पूर्व सांसद को फ्यो ज़ेया थॉ और लोकतंत्र का समर्थन करने वाले वरिष्ठ कार्यकर्ता को जिमी के लिए मौत की सज़ा को मंज़ूरी दी गई है. फ़ौजी हुकूमत के ख़िलाफ़ गतिविधियों के चलते दोनों को ये सज़ा सुनाई गई है. इससे मौजूदा शासन व्यवस्था में जारी अत्याचार का पता चलता है.
2022 की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक 1.44 करोड़ लोगों को मानवीय मदद की दरकार है. म्यांमार के कई हिस्सों में मानवीय सुरक्षा के हालात बदतर हो गए हैं. इनमें वो इलाक़े भी शामिल हैं जो हाल के वर्षों में घरेलू संघर्ष से मोटे तौर पर अछूते रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार आंतरिक रूप से विस्थापित (IDP) हुए हज़ारों लोग पहले से ही अपने घर-बार और पनाहगाह छोड़कर जा चुके हैं. इन्हें दोबारा विस्थापित किया जाने लगा है. तख़्तापलट के बाद से तक़रीबन 40,000 लोग म्यांमार की सीमा से पलायन करके पड़ोसी देशों- थाइलैंड और भारत में शरण ले चुके हैं. 2021 में संघर्षों के चलते 12,700 से ज़्यादा सार्वजनिक संपत्तियां तबाह हो गईं. इनमें पारिवारिक और धार्मिक इमारतें (जैसे गिरजाघर, मठ) और शैक्षणिक संस्थाएं शामिल हैं. ऐसे में IDP के सामने वापसी को लेकर पेचीदा हालात पैदा हो चुके हैं. नई इमारतें तैयार न होने या वापसी के बेहतर हालात नहीं बनने की सूरत में ऐसा होना मुमकिन नहीं लगता. मानवीय संघर्षों के बीच क़ुदरत भी अपना ग़ुस्सा दिखा रही है. अप्रैल 2022 से कई बार देश के तटीय इलाक़ों में आंधी-तूफ़ान और मूसलाधार बरसात की मार पड़ चुकी है. कायिन, काचिन, रखाइन और शान जैसे राज्यों के निचले इलाक़ों में बारिश से मकानों और पनाहगाहों को ज़बरदस्त नुक़सान पहुंचा है. पहले से ही तमाम मुसीबतें झेल रहे म्यांमार के लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं. ख़ासतौर से विस्तृत इलाक़े में फैले विस्थापन केंद्रों में रह रहे IDP की कठिनाइयां काफ़ी बढ़ गई हैं.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक 16 लाख लोग अपनी नौकरियां गंवा चुके हैं. बढ़ती महंगाई उनके लिए दोहरी मुसीबत लेकर आई है. खाने-पीने की वस्तुओं और ईंधन समेत तमाम बुनियादी सामानों की क़ीमतें आसमान छूने लगी हैं. बढ़ती महंगाई के पीछे यूक्रेन में जारी संघर्ष का भी हाथ रहा है.
संघर्ष का शिकार बने इलाक़ों से विस्थापित हुए लोगों के अलावा यांगून के शहरी क्षेत्रों में खाने-पीने के सामानों की किल्लत महसूस की जा रही है. यहां भी लोगों के सामने विस्थापन का ख़तरा है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक 16 लाख लोग अपनी नौकरियां गंवा चुके हैं. बढ़ती महंगाई उनके लिए दोहरी मुसीबत लेकर आई है. खाने-पीने की वस्तुओं और ईंधन समेत तमाम बुनियादी सामानों की क़ीमतें आसमान छूने लगी हैं. बढ़ती महंगाई के पीछे यूक्रेन में जारी संघर्ष का भी हाथ रहा है. फ़रवरी 2022 से अप्रैल 2022 के बीच म्यांमार में डीज़ल के दाम 27 प्रतिशत बढ़ चुके हैं. अप्रैल 2022 के मध्य तक ईंधन की औसत क़ीमतें फ़रवरी 2021 के मुक़ाबले तक़रीबन ढाई गुणा बढ़ चुकी हैं. बढ़ती महंगाई ने लोगों की ख़रीद क्षमता पर असर डाला है, जिससे खाद्य असुरक्षा पैदा हो गई है.
मानवतावादी किरदारों की प्रतिक्रिया
बहरहाल मानवतावादी किरदारों ने प्रभावित परिवारों तक तत्काल पहुंच बनाकर उन्हें ग़ैर-खाद्यान्न वस्तुएं (जैसे रस्सियां, कंबल, किचन सेट्स, मच्छरदानी, बालटी, चटाई, सैनिटरी किट्स, कोविड-19 से निजी सुरक्षा देने वाले सामान, सोलर लैंप) मुहैया कराई हैं. इनके अलावा मरम्मती सुविधाएं और तिरपाल जैसी चीज़ें भी उपलब्ध करवाई गई हैं. आंतरिक संघर्ष की चपेट में आए लोगों तक ज़िंदगी बचाने वाला खाद्यान्न और पोषण की सहायता पहुंचाने के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) रात-दिन काम पर लगा है. 2021 में WFP ने तक़रीबन 30 लाख लोगों तक खाद्य और पोषण सहायता पहुंचाई है. इनमें युद्धग्रस्त इलाकों के 56,000 IDP और शहरी क्षेत्रों के 17 लाख लोग शामिल हैं. हालांकि इन लोगों की आवश्यकताएं मौजूदा क्षमताओं, संसाधनों और पहुंच से कहीं ज़्यादा है.
फ़ौजी जुंटा ने देश के संघर्ष-प्रभावित इलाक़ों में मानवतावादी सहायता पहुंचाने वालों के प्रवेश पर कई तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं. उसने आपूर्ति सेवाओं पर रोक लगा रखी है और कई मामलों में आवागमन की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. चिन राज्य और उत्तरपश्चिमी हिस्से में वस्तुओं का आवागमन लगभग पूरी तरह से ठप हो चुका है. यहां नियमित तौर पर जांच-पड़ताल की जा रही है. नतीजतन खाद्य और ग़ैर-खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति रुक गई है. सहायता कर्मी अपनी हिफ़ाज़त और दूरदराज़ के इलाक़ों तक सुचारू रूप से आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए या तो वहां के नस्ली हथियारबंद गुटों या फिर स्थानीय लोगों की मदद लेते हैं. वो फ़ौजी ज़रियों से संपर्क क़ायम करने की क़वायद से परहेज़ करते हैं.
IDP के साथ काम करते हुए मानवतावादी किरदारों को भारी ख़तरों से जूझना पड़ रहा है. दरअसल फ़ौजी जुंटा अब पहले की तरह नागरिकों और नस्ली हथियारबंद गुटों के बीच फ़र्क़ नहीं कर रही है. अब वो जायदादों और जला रही है और लोगों को निशाना बना रही है. 2 जून तक फ़ौज 1,883 लोगों की जान ले चुकी है. 13,500 से ज़्यादा लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं. पिछले साल दिसंबर में जुंटा ने 2 मानवतावादी कामगारों के साथ-साथ दूसरे कई नागरिकों को जलाकर मार डाला था. अगर युद्ध जैसे हालातों में जल्द ही नरमी नहीं आई तो आने वाले वक़्त में ऐसी घटनाएं और बढ़ सकती हैं. सहायता कर्मी ज़रूरतमंद लोगों की देखभाल करने के साथ-साथ उन तक ज़रूरी सामान पहुंचा रहे हैं. ऐसे में उनकी सुरक्षा बेहद ज़रूरी हो जाती है.
सुरक्षा के साथ-साथ तमाम ज़रूरतें पूरी करने के लिए और ज़्यादा रकम की दरकार है. 2022 की पहली तिमाही के अंत तक 26 लाख लोगों तक मानवतावादी मदद पहुंचाई जा चुकी है. हालांकि अब भी 59 फ़ीसदी ज़रूरतमंद आबादी तक सहायता पहुंचनी बाक़ी है.
सुरक्षा के साथ-साथ तमाम ज़रूरतें पूरी करने के लिए और ज़्यादा रकम की दरकार है. 2022 की पहली तिमाही के अंत तक 26 लाख लोगों तक मानवतावादी मदद पहुंचाई जा चुकी है. हालांकि अब भी 59 फ़ीसदी ज़रूरतमंद आबादी तक सहायता पहुंचनी बाक़ी है. ऐसे में और ज़्यादा फ़ंडिंग की ज़रूरत है. 2022 में सिर्फ़ 10 प्रतिशत फ़ंडिंग ही मिल पाई है. तमाम ज़रूरतें पूरी करने के लिए अभी और 74 करोड़ अमेरिकी डॉलर की दरकार है. जब सहायता की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, तभी मानवतावादी किरदारों को मदद से जुड़ी अपनी क़वायद में कटौती करनी पड़ सकती है.
क्षेत्रीय किरदारों की प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद म्यांमार तक मानवतावादी मदद की आपूर्ति से जुड़ी किसी ठोस योजना को लेकर वार्ताओं से कोई रास्ता निकाल पाने में नाकाम रहा है. आसियान जैसे क्षेत्रीय संगठन ने पांच-सूत्री सहमति के दायरे में मानवीय मदद से जुड़े बिंदु पर अमल करने का प्रयास किया है. हालांकि इस क़वायद को लेकर उसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. दरअसल आसियान के अध्यक्ष कंबोडिया ने मदद बांटने के लिए म्यांमार के फ़ौजी जनरल की मंज़ूरी और सहायता मांग ली थी. 6 मई को आसियान अध्यक्ष के साथ-साथ आसियान कोआर्डिनेटिंग सेंटर फ़ॉर ह्यूमेनिटेरियन असिस्टेंस ऑन डिज़ास्टर मैनेजमेंट सेंटर (AHA) ने म्यांमार टास्क फ़ोर्स से मुलाक़ात की थी. इस टास्क फ़ोर्स में म्यांमार रेड क्रॉस सोसाइटी जैसे मानवतावादी सहायता संगठन शामिल हैं. ये संगठन फ़ौजी दिशानिर्देशों के मुताबिक काम करते हैं. इस बैठक में 70 लाख अमेरिकी डॉलर की मदद पहुंचाने के तौर-तरीक़ों पर चर्चा के साथ-साथ अतिरिक्त 7 लाख अमेरिकी डॉलर की मेडिकल सप्लाई और ज़रूरतमंद आबादी के लिए कोविड-19 से निपटने के लिए ज़रूरी साज़ोसामान मुहैया कराए जाने पर बातचीत हुई. मदद की क़वायद में किसी की अनदेखी न होने के सिद्धांत पर बातचीत की पूरी प्रक्रिया केंद्रित रही. इस बात पर ज़ोर दिया गया कि तमाम गतिविधियां और कार्यक्रम बिना किसी भेदभाव के और स्वतंत्र रूप से संचालित होने चाहिए. मानवतावादी समूहों, संयुक्त राष्ट्र और राष्ट्रीय एकता सरकार (निर्वासित सरकार) ने स्पष्ट किया कि वार्ताओं में जुंटा को शामिल किए जाने से वो इस मसले की भावना को बरक़रार रखने में नाकाम रहे हैं. ज़ाहिर है ये जुंटा ही है जो ऐसे ज़रूरतमंद लोगों पर ज़ुल्म ढा रहा है.
आसियान अध्यक्ष के साथ-साथ आसियान कोआर्डिनेटिंग सेंटर फ़ॉर ह्यूमेनिटेरियन असिस्टेंस ऑन डिज़ास्टर मैनेजमेंट सेंटर (AHA) ने म्यांमार टास्क फ़ोर्स से मुलाक़ात की थी. इस टास्क फ़ोर्स में म्यांमार रेड क्रॉस सोसाइटी जैसे मानवतावादी सहायता संगठन शामिल हैं.
मानवीय सहायता के वितरण को लेकर चर्चा से जुड़ी क़वायद के पीछे कंबोडिया का इरादा नेक़ था. उसका मक़सद ये सुनिश्चित करना था कि मदद सही लोगों तक पहुंचे. विश्लेषकों का सुझाव है कि आसियान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से मानवतावादी हस्तक्षेपों को लेकर निर्देश जारी करने की अपील करनी चाहिए. इसके तहत तमाम ज़रूरी ठिकानों पर सहायताकर्मियों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की मौजूदगी की ज़रूरत को शामिल किया जाना चाहिए.
आसियान, यूरोपीय संघ, यूके, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं द्वारा स्थानीय एजेंसियों या किरदारों के साथ भागीदारी क़ायम करना ज़रूरी है. सीमा पार के संपर्कों द्वारा सीधे मानवीय मदद पहुंचाने की कोशिश की जानी चाहिए ताकि ज़रूरतमंद लोगों तक मदद सुनिश्चित की जा सके. मौजूदा सामुदायिक संपर्कों के इस्तेमाल के लिए जनता से जनता के बीच संपर्क क़ायम करने वाले रुख़ की ज़रूरत पड़ेगी. इससे समुचित रूप से मदद पहुंचाने की क़वायद सुनिश्चित की जा सकेगी. इसके साथ ही उचित व्यवस्थाओं और सुपुर्दगी के उपायों की कामयाबी के लिए वक़्त पर ज़रूरी रकम मुहैया कराते रहना भी आवश्यक है.
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