Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 26, 2022 Updated 29 Days ago

चीन हिंद महासागर में भारत को चुनौती देने के लिए म्यानमार में कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है.

चीन का अगला मोहरा बन गया है ‘म्यांमार’

म्यांमार में चीन इधर कई ऐसी पुरानी परियोजनाओं को शुरू करने की कोशिश कर रहा है, जिसे वहां की लोकतांत्रिक सरकार ने पहले बंद कर दिया था. उन परियोजनाओं से म्यांमार में पर्यावरण पर बुरा असर पड़ने का डर था. लेकिन सैन्य शासन की वजह से अब इन्हें फिर से शुरू करना आसान हो गया है. इनमें सालवीन नदी पर बांध और बासाइन डीप सी पोर्ट जैसी परियोजनाएं शामिल हैं. इस पोर्ट परियोजना को रेल और सड़क से भी जोड़ा जा रहा है. यह कनेक्टिविटी चीन के कुनमिंग तक होगी. दूसरी ओर, चीन को म्यांमार के कोकांग रीजन से जोड़ने के लिए क्रॉस बॉर्डर स्पेशल इकॉनमिक जोन बनाया जा रहा है.

बांग्लादेश के लैंड बॉर्डर के ज़रिए चीन भारत के पूर्वी तटों के करीब पहुंचने की कोशिश कर रहा है. म्यांमार में वह ग्रेटर मेकोंग रीजन पर दबदबा बनाना चाहता है, चाहे उसमें म्यांमार-कंबोडिया और थाईलैंड वाला ही इलाका क्यों न हो.

क्या चाहता है चीन?

इनमें से कुछ परियोजनाएं ऐसी हैं, जिनसे चीन भारत को टारगेट कर रहा है. भारत की मुश्किलें बढ़ाने के लिए वह बांग्लादेश का भी इस्तेमाल करना चाहता है. बांग्लादेश के लैंड बॉर्डर के ज़रिए चीन भारत के पूर्वी तटों के करीब पहुंचने की कोशिश कर रहा है. म्यांमार में वह ग्रेटर मेकोंग रीजन पर दबदबा बनाना चाहता है, चाहे उसमें म्यांमार-कंबोडिया और थाईलैंड वाला ही इलाक़ा क्यों न हो. इसके जरिये उसकी नजर हिंद महासागर क्षेत्र पर है.

भारत के ख़िलाफ म्यांमार का इस्तेमाल करने की योजना पर चीन लंबे समय से काम कर रहा है. वह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की पकड़ को कमजोर करना चाहता है. उसकी इस योजना में म्यांमार की सैन्य सरकार महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है. हिंद महासागर पर चीन की नजर काफी समय से रही है. अगर हिंद महासागर में चीन का दखल बढ़ता है तो इससे उसे भारत को घेरने में मदद मिलेगी. पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत की अपनी एक रणनीति है. इसमें वह इस इलाके को एक मैरिटाइम यूनिट के तौर पर देखता है. चीन इसे भी चैलेंज कर पाएगा. लेकिन इधर उसकी इस रणनीति पर सवालिया निशान लग गया है.

दुनिया ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट करने के चलते म्यांमार के सैन्य शासन को अलग-थलग किया हुआ है. चीन इसी का फायदा उठाकर वहां अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुटा हुआ है.

चीन जिस तरह से एक समय श्रीलंका को हिंद महासागर में अपने पावर प्रोजेक्शन हब के रूप में देख रहा था, उसे पड़ोसी देश में चल रहे हालिया संकट से बड़ा धक्का लगा है.

श्रीलंका क्राइसिस के कारण बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया के कई देश चीन की कर्ज डिप्लोमेसी से आशंकित हैं.

ऐसे में उसके लिए म्यांमार की अहमियत काफी बढ़ गई है. इसके साथ उसे सतर्क दिख रहे बांग्लादेश को लैंड कॉरिडोर के लिए भी राजी करना होगा.

भारत के लिए भी म्यांमार की सेना का सपोर्ट बहुत ज़रुरी है क्योंकि नॉर्थ ईस्ट में कई उग्रवादी समूह हैं, जिनके ख़िलाफ जब भारत कार्रवाई करता है तो उसे म्यांमार की मदद की ज़रुरत पड़ती है.

म्यांमार को साधना चीन के लिए आसान है. वहां की सैन्य सरकार को अभी पैसों की ज़रुरत है. दुनिया ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट करने के चलते म्यांमार के सैन्य शासन को अलग-थलग किया हुआ है. चीन इसी का फायदा उठाकर वहां अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुटा हुआ है. भारत ने पिछले कुछ समय से अपने पूर्वी हिस्से पर काफी ध्यान देना शुरू किया है. यहां उसने बिम्सटेक के जरिए उपस्थिति बनानी शुरू की है. म्यांमार की मदद से चीन इसमें भी बाधा डालना चाहता है. 

भारत की योजना क्या है? 

दक्षिण पूर्व एशिया के मामले में भारत ने कहा है कि म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों से भारत का पारंपरिक रिश्ता रहा है, इसलिए इस क्षेत्र के लिए भारत कोई बाहरी ताकत नहीं है. म्यांमार और थाईलैंड उसके लिए महत्वपूर्ण देश हैं. चीन, म्यांमार के जरिए भारत की इसी रणनीति को तोड़ने की कोशिश कर रहा है. भारत के लिए चुनौती काफी ज्यादा है क्योंकि वह भी म्यांमार की सैन्य सरकार के साथ अपने संबंध अच्छे रखना चाहता है. इसलिए लोकतांत्रिक सरकार हटाए जाने के बाद भारत ने वहां की सैन्य सरकार से संबंध नहीं तोड़े.

भारत के लिए भी म्यांमार की सेना का सपोर्ट बहुत ज़रुरी है क्योंकि नॉर्थ ईस्ट में कई उग्रवादी समूह हैं, जिनके ख़िलाफ जब भारत कार्रवाई करता है तो उसे म्यांमार की मदद की ज़रुरत पड़ती है.

भारत और म्यांमार ने 2010 में एग्रीमेंट किया था कि दोनों देशों की सेनाएं क्रॉस बॉर्डर जाकर उग्रवादियों के ख़िलाफ कार्रवाई कर सकती हैं. इसी के तहत म्यांमार की सीमा के अंदर चल रहे नगालैंड और मणिपुर के विद्रोही संगठनों को भारत ने टारगेट किया.

म्यांमार में भारत के काफी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट सालों से चल रहे हैं, जो अभी तक पूरे नहीं हुए हैं. वह उन्हें पूरा करके म्यांमार को एक विकल्प दे सकता है. 

इसलिए भारत भी म्यांमार को आर्थिक और सैन्य मदद दे रहा है, ताकि पश्चिमी देशों के हटने से वहां जो खालीपन है, उसे अकेले चीन ना भर सके. लेकिन यह बात सही है कि जिस तरह का निवेश चीन कर रहा है, जिस तरह के रिर्सोसेज दे रहा है, उससे चीन का दख़ल वहां काफी ज्यादा बढ़ा है. चीन इस समय म्यांमार को धन के साथ हथियार भी दे रहा है. चीन, म्यांमार की सैन्य सरकार को दिखाना चाहता है कि भले दुनिया उसके ख़िलाफ रहे, लेकिन चीन उसके सैन्य शासन को मान्यता दे सकता है. चीन की यह रणनीति भारत के लिए काफी दिक्कत पैदा करने वाली है. भारत को बैलेंस अप्रोच के साथ आगे बढ़ना पड़ेगा क्योंकि वहां की सैन्य सरकार के साथ उसके भी हित जुड़े हुए हैं.

म्यांमार में चीन के दखल को देखते हुए भारत को आगे की रणनीति बनानी पड़ेगी. जिस तेजी से चीन वहां की इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी में आगे बढ़ रहा है, भारत को और भी मजबूती से आगे बढ़ना पड़ेगा. म्यांमार में भारत के काफी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट सालों से चल रहे हैं, जो अभी तक पूरे नहीं हुए हैं. वह उन्हें पूरा करके म्यांमार को एक विकल्प दे सकता है. वह म्यांमार को श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों का हाल दिखाकर चीन से आगाह कर सकता है. भारत के लिए ये सारे तथ्य अहम हैं. उसे इन सभी बातों का ध्यान रखकर अपनी म्यांमार नीति बनानी होगी. तभी वह हिंद महासागर को लेकर चीन की चाल को नाकाम कर पाएगा.

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यह लेख नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है .

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