राजधानी दिल्ली में वायु-प्रदूषण: चौथे मास्टर प्लान में प्रदूषण पर लगाम कसने के सुझाव
हवा की अच्छी गुणवत्ता बनाए रखने में दिल्ली का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. साल के ज़्यादातर महीनों में शहर का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) ‘ख़राब’ श्रेणी में बना रहता है. शहर में रहने वाले लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले बाहरी लोगों के लिए भी मौजूदा स्थिति स्वास्थ्य के हिसाब से ठीक नहीं है. वैसे तो दिल्ली की सरकार ने स्थिति पर नज़र बना रखी है और इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए क़दम उठा रही है, लेकिन इसके बावजूद परिस्थितियों में सुधार नहीं हुआ है. मौजूदा हालात के लिए प्रशासन की तरफ़ से अपर्याप्त योजना, तैयारी और क़दम को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. इसकी वजह से आम लोगों, कारोबारों, और व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों को भी नियम और क़ानून को तोड़ने का अवसर मिलता है.
इस लेख में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए एमपीडी प्रस्तावों के मसौदे की समीक्षा और उनका विश्लेषण किया गया है. दिल्ली में औद्योगिक गतिविधियों और पड़ोसी राज्यों हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश (यूपी) में कृषि (पराली जलाने) गतिविधियों की वजह से प्रदूषण होता है.
अगले 20 वर्षों यानी 2021-2041 के बीच शहर में विकास का रास्ता दिखाने और रहन-सहन की अच्छी स्थिति बनाने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के द्वारा दिल्ली के चौथे मास्टर प्लान (एमपीडी) का मसौदा तैयार किया गया है. इस लेख में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए एमपीडी प्रस्तावों के मसौदे की समीक्षा और उनका विश्लेषण किया गया है. दिल्ली में औद्योगिक गतिविधियों और पड़ोसी राज्यों हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश (यूपी) में कृषि (पराली जलाने) गतिविधियों की वजह से प्रदूषण होता है. इस संबंध में एमपीडी के मसौदे में सुझाव दिया गया है कि इन पड़ोसी राज्यों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) योजना के द्वारा अनुशंसित/निर्धारित उत्सर्जन मानक का पालन करना चाहिए और साथ मिलकर इस चुनौती का समाधान करना चाहिए.
अतीत में इस तरह की कोशिशें काफ़ी हद तक बेअसर रही हैं क्योंकि प्रदूषण पैदा करने वाले कई संस्थाओं/गतिविधियों की निगरानी नहीं की जा रही थी या उन पर जुर्माना नहीं लगाया जा रहा था और उसका उपयुक्त विकल्प प्रदान नहीं किया जा रहा था. इसके अलावा अलग-अलग राज्यों की सीमा में चलने वाली क्षेत्रीय योजनाओं जैसे कि नदी के पानी का संरक्षण और हरित क्षेत्र बनाने में राज्यों की भागीदारी (जहां अलग-अलग राजनीतिक दलों का शासन है) को सुनिश्चित करने में परेशानी का सामना करना पड़ता था.
अरावली पर्वतश्रेणी में नियोजित के साथ-साथ अनधिकृत निर्माण ने दिल्ली के बहुमूल्य पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के लिए ख़तरा पैदा कर दिया है. शहर के दूसरे हिस्सों में बंजर ज़मीन को वनस्पतियों से ढंका जाना अभी बाक़ी है. जहां तक बात पानी के स्रोतों की है तो पानी में प्रदूषण बहुत ज़्यादा है क्योंकि गंदे पानी/औद्योगिक प्रवाह, और कूड़े को पानी में बहाया जाता है.
मास्टर प्लान के सुझाव
स्थानीय स्रोतों (यानी शहर के भीतर) से प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली की हरित और नीली संपदा के महत्व की व्याख्या की गई है. ये ज़िक्र किया गया है कि प्रदूषण को निगलने और जलवायु परिवर्तन के ख़राब असर जैसे अनियमित बारिश, ज़्यादा गर्मी और बाढ़ को कम करने में हरित आवरण (वन, पार्क, उद्यान) और पानी के स्रोत (नदी, प्राकृतिक नाली, झील, तालाब, सरोवर, दलदली ज़मीन) एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. इसी के अनुसार मास्टर प्लान के मसौदे में इन संपदाओं के रख-रखाव और उन्हें सुधारने की बात की गई है. जो सुझाव दिए गए हैं उनमें स्थानीय पेड़ों/पौधों की प्रजातियों को रोपना शामिल हैं. ये पेड़/पौधे प्रदूषण छानने का काम करते हैं. इसके अलावा मियावाकी पद्धति पर आधारित प्राकृतिक/देसीय वन का विकास, चारदीवारी/दीवार के ज़रिए हरित और नीली संपदा का संरक्षण, नदी के पास की ज़मीन के संरक्षण के लिए यमुना नदी के किनारे हरित क्षेत्र का निर्माण और धुंध को सोखने वाले टावर की स्थापना का भी सुझाव दिया गया है.
लेकिन अरावली पर्वतश्रेणी में नियोजित के साथ-साथ अनधिकृत निर्माण ने दिल्ली के बहुमूल्य पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के लिए ख़तरा पैदा कर दिया है. शहर के दूसरे हिस्सों में बंजर ज़मीन को वनस्पतियों से ढंका जाना अभी बाक़ी है. जहां तक बात पानी के स्रोतों की है तो पानी में प्रदूषण बहुत ज़्यादा है क्योंकि गंदे पानी/औद्योगिक प्रवाह, और कूड़े को पानी में बहाया जाता है. दिल्ली में प्रतिबंध के बावजूद प्रदूषण पैदा करने वाले कई उद्योग हैं. उन्हें उचित जगह पर स्थानांतरित करने की ज़रूरत है. इसके अलावा मास्टर प्लान के मसौदे में बिना प्रदूषण वाली आर्थिक गतिविधियों जैसे सायबर केंद्र, अत्याधुनिक रोबोटिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स, नॉलेज और इनोवेशन, रिसर्च और डेवलपमेंट, मेहमानवाज़ी, शहरी खेती, बागवानी, इत्यादि की स्थापना की बात की गई है.
पुरानी दिल्ली के घने, भीड़ भरे हिस्से में प्रशासन अलग-अलग प्रदूषण पैदा करने वाली आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी और उनकी मौजूदगी की निगरानी करने में सफल नहीं रहा है. इन पर ज़्यादा कुशलता के साथ निगरानी रखने की ज़रूरत है. इसके अलावा, अगर सरकार की नीति के कारण इन गतिविधियों में शामिल कामगारों की नौकरी पर ख़राब असर पड़ता है तो उन्हें उपयुक्त विकल्प/मार्गदर्शन प्रदान करने की ज़रूरत है. मास्टर प्लान के मसौदे में कहा गया है कि परिवहन क्षेत्र दिल्ली में कुल वायु प्रदूषण का 20 प्रतिशत हिस्सा उत्पन्न करता है. इसको कम करने के लिए चार सुझाव दिए गए हैं. पहला सुझाव ये है कि लोगों के गाड़ी से आने-जाने को कम किया जाना चाहिए. इसके लिए भूमि/इमारत के कई/मिले-जुले उपयोग (रिहायशी और व्यावसायिक) की ज़रूरत है. साथ ही ट्रांज़िट ओरिएंटेड डेवलपमेंट यानी रिहायशी इलाक़े के नज़दीक व्यावसायिक केंद्र/कार्यालय बनाने की आवश्यकता है. दूसरा सुझाव है कि, सार्वजनिक परिवहन सेवा को बेहतर बनाया जाए ताकि ज़्यादा लोगों को इनकी तरफ़ आकर्षित किया जा सके. तीसरा सुझाव है कि सार्वजनिक परिवहन सेवा को हरित ईंधन पर चलाना चाहिए. चौथा सुझाव है हरित आवागमन को प्रोत्साहन. इसके लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियों (ईवी) की शुरुआत करनी होगी और ईवी, पैदल चलने वालों और साइकिल चलाने वालों के लिए बुनियादी ढांचा बेहतर करना होगा. दिल्ली सरकार पहले ही (अगस्त 2020 में) अपनी ईवी नीति को अधिसूचित कर चुकी है ताकि इलेक्ट्रिक गाड़ियों को इस्तेमाल करने की गति बढ़ाई जा सके और धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल बढ़ भी रहा है. वर्तमान में एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमी और परंपरागत ईंधन (पेट्रोल और डीज़ल) पर चलने वाली मोटर गाड़ियों- निजी और व्यावसायिक दोनों- की ज़्यादा संख्या दो बड़ी चुनौतियां हैं. परिवहन सेक्टर से उत्सर्जन कम करने के लिए इसके समाधान की आवश्यकता है.
वर्तमान में एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमी और परंपरागत ईंधन (पेट्रोल और डीज़ल) पर चलने वाली मोटर गाड़ियों- निजी और व्यावसायिक दोनों- की ज़्यादा संख्या दो बड़ी चुनौतियां हैं.
निगरानी दस्ते का निर्माण
कंस्ट्रक्शन सेक्टर भी बड़ी मात्रा में धूल उत्पन्न करता है. भविष्य की विकास परियोजनाओं में धूल कम करने के उपायों को लागू कर इसको नियंत्रित करने की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, कंस्ट्रक्शन का काम करने वाली एजेंसियों को सीपीसीबी के दिशानिर्देशों के अनुसार धूल के प्रबंधन की योजना बनाने और उनका पालन करने की ज़रूरत होगी. इस योजना में कंस्ट्रक्शन और तोड़-फोड़ के कूड़ा-करकट के प्रबंधन की पद्धतियों का वर्णन भी होगा. इसके अलावा, स्थानीय सरकार नियमित तौर पर कंस्ट्रक्शन साइट की निगरानी करेगी ताकि दिशानिर्देशों का पालन कराया जा सके. नई इमारतों की हरित रेटिंग का भी प्रस्ताव है.
इमारतों के निर्माण के दिशानिर्देशों को मानने की कमी न सिर्फ़ दिल्ली बल्कि पड़ोस के शहरों में भी बेहद आम बात है. इसे बिल्डिंग बनाने वालों के द्वारा धूल पर नियंत्रण के लिए अपर्याप्त इंतज़ाम से देखा गया है. इस तरह के उल्लंघन के कारण लोगों को दूर तक नहीं दिखता है और सांस की समस्या होती है. जैसे मास्टर प्लान के मसौदे में प्रस्तावित है, वैसे ही कंस्ट्रक्शन साइट की नियमित निगरानी की ज़रूरत होगी.
ऊर्जा सेक्टर के लिए मास्टर प्लान के मसौदे में जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों की तरफ़ बदलाव और कुशल बिजली उपभोग की सिफ़ारिश की गई है. इसके लिए सोलर फार्म के विकास के ज़रिए सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने, कम ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाली इमारतों को प्रोत्साहन, रोशनी, पानी गर्म करने, इत्यादि के लिए छतों पर सोलर पैनल की स्थापना करनी होगी. देश में राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन 2010 से अस्तित्व में है और दिल्ली ने 2016 में सौर ऊर्जा नीति बनाई.
वैसे तो सड़कों और राजमार्गों के साथ-साथ कुछ सरकारी/निजी इमारतों में भी सौर ऊर्जा से जलने वाली लाइट लगाने में कुछ प्रगति हासिल हुई है लेकिन घरों के स्तर पर इसका इस्तेमाल अभी भी काफ़ी कम है. सौर ऊर्जा के उत्पादों को ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है लेकिन स्थानीय दुकानदार ऐसे सामान बहुत कम बेचते हैं. दिल्ली सरकार के द्वारा लोगों को सौर ऊर्जा के उत्पादों के उपयोग और उन्हें लगाने के लिए मार्गदर्शन का प्रभावशाली तौर-तरीक़ा बनाया जाना अभी बाक़ी है. प्लास्टिक/नगर निगम के द्वारा इकट्ठा कूड़े-करकट को खुले में जलाना प्रदूषण का उतना ही महत्वपूर्ण स्रोत है. इस तरीक़े से ज़हरीले गैस का उत्सर्जन होता है और ये लोगों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है. इस पर रोकथाम के लिए मास्टर प्लान के मसौदे में निगरानी दस्ते की स्थापना का प्रस्ताव दिया गया है.
ऊर्जा सेक्टर के लिए मास्टर प्लान के मसौदे में जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों की तरफ़ बदलाव और कुशल बिजली उपभोग की सिफ़ारिश की गई है. इसके लिए सोलर फार्म के विकास के ज़रिए सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने, कम ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाली इमारतों को प्रोत्साहन, रोशनी, पानी गर्म करने, इत्यादि के लिए छतों पर सोलर पैनल की स्थापना करनी होगी.
मास्टर प्लान के मसौदे में निगरानी की एक मज़बूत रूप-रेखा तैयार करके, हर पांच वर्ष में प्रदूषण के स्रोत के विभाजन का अध्ययन करने के साथ-साथ लोगों के बीच जागरुकता उत्पन्न करके पर्यावरणीय मानदंडों (जैसे कि वायु प्रदूषण) की निगरानी के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया है.
दिल्ली में हवा की गुणवत्ता की समीक्षा और विश्लेषण निम्नलिखित तीन निष्कर्षों तक ले जाती है:
- दिल्ली में प्रदूषण के मुद्दे के समाधान के लिए कई क्षेत्रों में काम करने की ज़रूरत है. चूंकि इस मुद्दे के निपटारे की ज़िम्मेदारी दिल्ली सरकार के अलग-अलग विभागों- जैसे कि पर्यावरण, जल, उद्योग, शहरी विकास, परिवहन, ऊर्जा, स्वच्छता, इत्यादि- के साथ-साथ नागरिकों के पास है, ऐसे में अलग-अलग काम करने वालों के बीच कार्यवाही के बेहतर समन्वय की ज़रूरत है. इतना ही महत्वपूर्ण है दूसरे शहरों और निजी क्षेत्र के साथ सहयोग को बढ़ाना. अंतिम मास्टर प्लान में अलग-अलग खंडों के तहत मुद्दों को प्रस्तुत करने के अलावा इस संबंध में पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए.
- दूसरा पहलू जिसे मज़बूत करने की ज़रूरत है, वो है नियमों और क़ानूनों को लागू करना. सरकार को महसूस होना चाहिए कि इस मुद्दे से ध्यान हटने के कारण बहुत अधिक मानवीय और प्राकृतिक संसाधनों का नुक़सान हुआ है.
- आख़िर में, अलग-अलग हस्तक्षेपों के ज़रिए प्रदूषण से जुड़ी सभी चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए विशाल फंड की ज़रूरत होगी. इस उद्देश्य के लिए एक वित्तीय योजना बनाना उपयोगी क़दम होगा.
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