Published on Oct 19, 2023 Updated 0 Hours ago
मॉस्को का प्रारूप बैठक और रूस की ‘अफ़ग़ान’ नीति का लेखा-जोखा!

29 सितंबर 2023 को रूस के शहर कज़ान ने अफ़ग़ानिस्तान पर “मॉस्को प्रारूप” सलाहकारी वार्ताओं की मेज़बानी की, जिसमें 14 देशों ने हिस्सा लिया. इस तंत्र के स्थायी सदस्यों- चीन, भारत, ईरान, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के अलावा सऊदी अरब, तुर्किए, क़तर और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के प्रतिनिधियों ने भी विशिष्ट अतिथि के तौर पर बैठक में हिस्सा लिया. अफ़ग़ानिस्तन के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी की अगुवाई में तालिबानी प्रतिनिधिमंडल भी इस क़वायद में शामिल रहा. 

2017 में लॉन्च अफ़ग़ानिस्तान पर “मॉस्को प्रारूप” परामर्श अफ़ग़ान मसलों के निपटारे के लिए एक नियमित स्थान बन गया है. रूस इस संवाद मंच को बरक़रार रखने में कामयाब रहा है.

2017 में लॉन्च अफ़ग़ानिस्तान पर “मॉस्को प्रारूप” परामर्श अफ़ग़ान मसलों के निपटारे के लिए एक नियमित स्थान बन गया है. रूस इस संवाद मंच को बरक़रार रखने में कामयाब रहा है. पूरे यूरेशिया के सभी हिस्सेदारों का तालिबान समूह पर अलग-अलग रुख़ होने के बावजूद ये तमाम देश अफ़ग़ानिस्तान और उसके इर्द-गिर्द के हालात पर अपने विचार और चिंताएं साझा करने के लिए इस मंच पर इकट्ठा होते हैं

रूस में एक ग़ैर-क़ानूनी आतंकवादी संगठन होने के बावजूद तालिबान को रूस की अगुवाई में होने वाले विभिन्न आयोजनों के लिए न्योता मिलता रहता है. महज़ पांच महीने पहले मई 2023 में अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी अमीरात के कार्यवाहक व्यापार मंत्री नूरूद्दीन अज़ीज़ी और कार्यवाहक संस्कृति मंत्री ख़ैरुल्लाह ख़ैरख़्वाह ने “रूस और इस्लामिक दुनिया” विषय पर कज़ान में ही आयोजित एक और सम्मेलन में हिस्सा लिया था. यहां हुई वार्ताओं ने कुछ क़रारों के लिए रास्ता साफ़ कर दिया, जिनमें काबुल में रूसी कारोबारी केंद्र शामिल है. वैसे तो तालिबान-शासित अफ़ग़ानिस्तान के साथ पूर्ण-कालिक आर्थिक सहयोग अभी शुरुआती दौर में है और दीर्घकालिक महत्वाकांक्षी परियोजनाएं अब भी दूर की कौड़ी बनी हुई हैं. इन परियोजनाओं में तुर्कमेनिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन और ट्रांस-अफ़ग़ान रेलवे रोड शामिल हैं, जिनमें रूसी सार्वजनिक कंपनियों ने दिलचस्पी ली है.  

तालिबान को लेकर अस्पष्ट नज़रिया

आर्थिक रिश्ते विकसित करने और मानवतावादी मदद भेजते वक़्त रूस ने तालिबान के साथ अपने संबंध में अस्पष्टता बरती है. अफ़ग़ानिस्तान के लिए रूसी राष्ट्रपति के विशेष दूत ज़मीर काबुलोव ने अपने हालिया साक्षात्कार में ज़ोर देकर कहा है कि रूस का तालिबानी सरकार को मान्यता देने का कोई इरादा नहीं है. हालांकि इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि “हम उनको (तालिबान) वास्तविक रूप में आतंकवादी नहीं मानते हैं” क्योंकि वो अफ़ग़ानिस्तान के “राष्ट्रीय आंदोलन के तौर पर उभर चुके हैं.” हालांकि ये पूरी तरह से साफ़ नहीं है कि क्या रूस के राजनीतिक अभिजात वर्ग में हरेक के विचार ऐसे ही हैं. अतीत में रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव निकोले पत्रुशेव अफ़ग़ानिस्तान में बिगड़ते सुरक्षा हालात पर नकारात्मक राय रख चुके हैं, जबकि ताजिकिस्तान में तैनात रूसी राजदूत ग्रिगोरिएव ने कमज़ोर प्रशासन और आतंकी संगठनों को खुली छूट देने के लिए तालिबान की मुखर रूप से आलोचना की है. हालांकि रूसी अधिकारियों के मुताबिक़ अफ़ग़ानी ज़मीन से उभरने वाला बड़ा आतंकी ख़तरा अब भी इस्लामिक स्टेट (इस्लामिक स्टेट ख़ुरासान प्रांत, IS-K) ही बना हुआ है. इसे कथित तौर पर “विदेशी ख़ुफ़िया सेवाओं से वित्तीय समर्थन” मिलता है, और उनके ख़िलाफ़ “तालिबान लड़ते आ रहे हैं.”

अफ़ग़ानिस्तान के लिए रूसी राष्ट्रपति के विशेष दूत ज़मीर काबुलोव ने अपने हालिया साक्षात्कार में ज़ोर देकर कहा है कि रूस का तालिबानी सरकार को मान्यता देने का कोई इरादा नहीं है. हालांकि इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि “हम उनको (तालिबान) वास्तविक रूप में आतंकवादी नहीं मानते हैं”

रूस, तालिबान के ख़िलाफ़ साम दाम दंड भेद की नीति अपनाने की कोशिश कर रहा है. इस कड़ी में “वास्तव में समावेशी सरकार” के बदले उनकी सरकार को मान्यता देना अंतिम “बोनस” हो सकता है. काबुलोव के मुताबिक़ रूस किसी ख़ास जातीय राजनीतिक समूह को प्रशासनिक प्रक्रिया में शामिल करने की बात नहीं “थोपेगा”, क्योंकि रूस ये मानता है कि अफ़ग़ानिस्तान के भीतर संवाद प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम ख़ुद तालिबान को करना चाहिए. फिर भी, रूस ने तालिबान विरोधी ताक़तों के साथ अपने संबंधों को और गहरा किया है, इस तरह उसने अफ़ग़ानिस्तान के हालात के प्रति अप्रत्यक्ष रूप से अपनी नाख़ुशी के संकेत दिए हैं.  

अगस्त 2023 के अंत में अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (NRF) के नेता अख़मद मसूद ने मॉस्को का औचक दौरा किया और रूसी संसद ने उनकी मेज़बानी की. अफ़ग़ानिस्तान के मुख्य विपक्षी नेता की रूस की ये अपनी तरह की पहली यात्रा थी. ख़बरों के मुताबिक़ इसका उद्देश्य NRF के प्रतिनिधियों के साथ अतीत की कुछ अनाधिकारिक वार्ताओं को जारी रखना था. इस दौरे ने इस विचार को प्रेरित किया कि रूस, तालिबान के साथ किसी व्यवस्था में साथ आने का भरोसा खो चुका है, और वो अपनी अफ़ग़ान नीति की दिशा-दशा बदल रहा है. भले ही मसूद को रूसी संसद के निचले सदन ड्यूमा की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी “स्प्रावेदलिवाया रोसिया” पार्टी ने न्योता दिया था, और ये मेल-मुलाक़ात पार्टी के अध्यक्ष सर्गेय मिरोनोव और चंद मुट्ठीभर सदस्यों तक ही सीमित थी, लेकिन इस बात पर भरोसा करना मुश्किल है कि इस तरह की क़वायद क्रेमलिन यानी रूसी सरकार की मंज़ूरी के बग़ैर हुई होगी. ग़ौरतलब है कि पार्टी की प्रेस सेवा ने भी इस परिचर्चा के कुछ अंश प्रकाशित किए हैं, जिसमें मसूद ने तालिबानी शासन के तहत अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक हालात बिगड़ने की बात कही है: “आतंकवादी संगठन और ड्रग तस्करी देश में फल-फूल रही है, (जबकि) जनता के अधिकारों का हनन हो रहा है.”  

मॉस्को प्रारूप बैठक 2023 के नतीजा दस्तावेज़ यानी कज़ान घोषणापत्र की शब्दावली बड़ी चतुराई भरी है, जो इसे नवंबर 2022 के साझा बयान से काफ़ी हद तक अलग करती है.

मॉस्को प्रारूप बैठक 2023 के नतीजा दस्तावेज़ यानी कज़ान घोषणापत्र की शब्दावली बड़ी चतुराई भरी है, जो इसे नवंबर 2022 के साझा बयान से काफ़ी हद तक अलग करती है. नवंबर में हुए परामर्श में तालिबान को आमंत्रित नहीं किया गया था. ज़ाहिर तौर पर तालिबान के साथ निपटने के नरमी भरे दृष्टिकोण को सभी प्रतिभागियों ने स्वीकार नहीं किया है. ताजिकिस्तान ने घोषणापत्र पर दस्तख़त करने से इनकार कर दिया और रूसी विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में बैठक में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागी के तौर पर ताजिकिस्तान का नाम तक नहीं लिया गया. जैसा कि बाद में काबुलोव ने ख़ुलासा किया, ताजिकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल ने दो बिंदुओं को मंज़ूर नहीं किया: IS-K के ख़िलाफ़ लड़ाई में तालिबान की कामयाबियों की स्वीकृति और उसकी “प्रभावी” नशीली दवा विरोधी नीति.

तालिबान की ओर ऐसे दोहरे रवैए को परे करें, तो ये अमेरिका के साथ कभी ना ख़त्म होने वाला टकराव है जो रूस की अफ़ग़ान नीति के केंद्र में है. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के निकल जाने के बाद रूस वहां खाली हुए स्थान को भरने और तालिबान के साथ नज़दीकी संबंध बनाने की अगुवाई करने का उत्सुक है. अमेरिका के साथ संपर्क तोड़ने के बाद रूस, अफ़ग़ानिस्तान पर वार्ताओं के लिए मॉस्को प्रारूप को एक क्षेत्रीय समूह के तौर पर प्रोत्साहित कर रहा है. साथ ही इस प्रारूप के प्रतिभागियों और पश्चिम के बीच दरार डालने की भी कोशिश कर रहा है. मिसाल के तौर पर अपने साझेदारों की ओर से बोलते हुए रूस ने कहा है कि “क्षेत्र के देशों और नेटो के बीच क़वायदों का पूर्ण स्तरीय संग्रह केवल इस शर्त के साथ संभव है कि नेटो अफ़ग़ानिस्तान में अपनी 20 साल की सैन्य मौजूदगी के दुखद परिणामों को पूरी तरह से स्वीकार करे, जिनका हश्र संपूर्ण रूप से नाकामी के तौर पर हुआ है.” 

अमेरिका की भूमिका

रूस के लिए बातचीत के लिहाज़ से एक और अहम मसला ये है कि अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी और नेटो सैन्य बुनियादी सुविधाओं की मौजूदगी उसे “किसी भी सूरत में अस्वीकार्य” है. भले ही कज़ान घोषणापत्र में समान रूप से तैयार किए गए बिंदु शामिल किए गए हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि रूस और उसके क्षेत्रीय साझीदार इस मुद्दे पर एक राय रखते हैं. चीन और ईरान (जिनके अमेरिका के साथ अपने तनाव चले आ रहे हैं) को छोड़कर, दूसरे प्रतिभागी अमेरिका की क्षेत्रीय भूमिका पर इतने कठोर शिगूफ़ों का समर्थन नहीं करते हैं.

हक़ीक़त ये है कि अफ़ग़ान मसले पर कई क्षेत्रीय किरदार बाइडेन प्रशासन के साथ नज़दीकी संपर्क बनाए हुए हैं. हाल ही में इस मसले को न्यूयॉर्क में संपन्न C5+1 प्रारूप बैठक और उज़्बेकिस्तान के ताशकंद में आयोजित क्षेत्रीय सुरक्षा सम्मेलन में प्रमुखता से उठाया गया. ताशकंद की बैठक में उज़्बेकिस्तान, कज़ाख़स्तान, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान के सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ प्रमुख और अमेरिकी सेंट्रल कमांड के कमांडर ने हिस्सा लिया था. ख़ुद तालिबान ने हाल ही में अमेरिकी अधिकारियों से मुलाक़ात की और दोनों पक्षों के बीच प्रतिबंध हटाने, बैंक जमाओं पर रोक ख़त्म करने, अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक स्थिरता, और नशीले पदार्थों और मानवाधिकार जैसे मसलों पर बातचीत हुई.

अफ़ग़ानिस्तान में मानवतावादी और सुरक्षा हालात पर चिंताए साझा करते हुए भारत ने किसी भी तरह की अमेरिका-विरोधी भावना को बढ़ावा नहीं दिया है, और क्षेत्र में स्थिरता के पीछे तालिबान के दावों का भी अनुमोदन नहीं किया है.

सवाल उठता है कि भारत का रुख़ क्या है? अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर भारत, रूस के साथ नज़दीकी जुड़ाव बनाए हुए है. ख़ासतौर से दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों में संपर्क क़ायम है. अफ़ग़ानिस्तान में मानवतावादी और सुरक्षा हालात पर चिंताए साझा करते हुए भारत ने किसी भी तरह की अमेरिका-विरोधी भावना को बढ़ावा नहीं दिया है, और क्षेत्र में स्थिरता के पीछे तालिबान के दावों का भी अनुमोदन नहीं किया है. इस बात को दिमाग़ में रखते हुए रूस अब भी अपनी क्षेत्रीय पहलों के लिए भारत के समर्थन पर भरोसा कर सकता है, बशर्ते इन क़वायदों का उद्देश्य बिना किसी लाग-लपेट के अफ़ग़ान जनता की तकलीफ़ों को कम करना हो और इनके साथ किसी भी तरह की भूराजनीतिक बंधन ना जुड़े हों.


डॉ. अलेक्सेई ज़ाखारोव नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में विज़िटिंग फेलो हैं.     

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