Published on Apr 18, 2023 Updated 0 Hours ago
रूस ने उत्तर कोरिया से खाने के बदले लिए हथियार

रूस और उत्तर कोरिया के बीच सौदे के सबूत सामने आए हैं. इस सौदे के तहत रूस ने उत्तर कोरिया को हथियारों के बदले में खाद्यान्न उपलब्ध कराया है. उत्तर कोरिया और रूस के इस सौदे का यूक्रेन में चल रहे युद्ध से कहीं ज़्यादा व्यापक असर होगा. रूस को दूसरे देशों से सैन्य सहयोग की ज़रूरत किसी को हैरान नहीं करती. ही उत्तर कोरिया द्वारा दूसरे देशों से खाद्यान्न हासिल करने की कोशिश पर अचरज होना चाहिए. उत्तर कोरिया तो पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण है. वो 1990 के दशक से तबाही वाले अकाल से जूझ रहा है, फिर भी वो अपनी सैन्य ज़रूरतों पर कहीं ज़्यादा ख़र्च करता है. खाने के बदले हथियार देना उत्तर कोरिया के लिए उचित ही है. वहीं, रूस तो अपने हथियारों की घटती तादाद के कारण उत्तर कोरिया से संपर्क करने के लिए मजबूर हुआ है, जो कोई हैरानी वाली बात नहीं है. ये बात सबको पता है और इसके दस्तावेज़ी सबूत भी है कि रूस के भाड़े के लड़ाकों वाली कंपनी वैगनर ग्रुप ने उत्तर कोरिया से हथियार और गोला-बारूद हासिल किए है. उत्तर कोरिया ने वैगनर ग्रुप को मिसाइल और रॉकेट उपलब्ध कराई है, जो युद्ध में काम आएंगे. यूक्रेन में चल रहे युद्ध में वैगनर ग्रुप बहुत गहराई से शामिल है और उसके लड़ाके इस वक़्त बख़मुत के मोर्चे पर भी लड़ रहे है.

उत्तर कोरिया ने वैगनर ग्रुप को मिसाइल और रॉकेट उपलब्ध कराई है, जो युद्ध में काम आएंगे. यूक्रेन में चल रहे युद्ध में वैगनर ग्रुप बहुत गहराई से शामिल है और उसके लड़ाके इस वक़्त बख़मुत के मोर्चे पर भी लड़ रहे है.

वहीं दूसरी ओर युद्ध के लिए उत्तर कोरिया से हथियार और गोला-बारूद लेने का मतलब है कि इस वक़्त रूस का रक्षा उद्योग, रूस की सेना की युद्ध संबंधी ज़रूरतें पूरी कर पाने में अक्षम है, जो यूक्रेन में जंग लड़ रही है. वैसे ये यूक्रेन में चल रहे युद्ध को लंबा खींचने की रूस की बेसब्री का संकेत भी हो सकती है. फिर भी वो आने वाले समय के लिए एक बड़ा अशुभ संकेत है.

पहला तो रूस का अपने गोला-बारूद के लिए उत्तर कोरिया जैसे देश पर निर्भर होना मुख्य समस्या का लक्षण है. अब रूस अपने हथियारों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों पर निर्भर हो गया है, जिन पर व्यापक प्रतिबंध लगे हुए हैं, भले ही रूस की ये निर्भरता अपनी सेना की सारी ज़रूरतों के बजाय सिर्फ़ यूक्रेन की सेना के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अभियान के लिए ही क्यों हो. ये अब बुरी तरह साफ़ हो गया है कि रूस का रक्षा उद्योग अपने दम पर यूक्रेन में जंग का साज़--सामान उपलब्ध नहीं करा सकता है. दूसरा, ये माना जा सकता है कि चीन को भी रूस को हथियारों की आपूर्ति करनी चाहिए थी. क्योंकि इस वक़्त चीन ही रूस की सबसे नज़दीकी बड़ी ताक़त है. लेकिन, ऐसा नहीं है. बल्कि पश्चिमी देशों और ख़ास तौर से अमेरिका द्वारा कई तरह से दबाव डालने के कारण चीन ने रूस को सैन्य सहयोग देने से परहेज़ किया है. ऐसे में ज़ाहिर है कि चीन ने बड़ी चालाकी से ये दांव चला है कि उसने सीधे रूस को हथियार मुहैया कराने के बजाय इस काम के लिए उत्तर कोरिया का इस्तेमाल किया है. उत्तर कोरिया चीन का ही मोहरा है और वो रूस को हथियार मुहैया कराने के लिए चीन का मध्यस्थ बन गया है. उत्तर कोरिया के ज़रिए सैन्य साज़--सामान की आपूर्ति चीन को ये विकल्प उपलब्ध कराती है कि वो रूस को ये जंग लड़ने में सीधे तौर पर मदद नहीं करा रहा है. इस तरक़ीब से वो उन प्रतिबंधों से भी बच गया है, जो रूस को सीधे हथियार देने पर पश्चिमी देश चीन के ऊपर लगा सकते थे.

चीन के दांव-पेंच और रूस और उत्तर कोरिया के बीच हथियारों के बदले में खाद्यान्न की सौदेबाज़ी जिसमें नक़दी, कारोबारी विमान, खाद्य पदार्थ और कच्चे सामान भी शामिल है. जिनके बदले में उत्तर कोरिया ने रूस को गोला-बारूद मुहैया कराया है. ऐसे में भारत की रक्षा ज़रूरतों के लिहाज़ से रूस और चीन के रिश्ते एक बड़ी चुनौती पेश करते है.

इसके भारत के लिए मायने

रूस द्वारा अपने ही युद्ध के लिए संसाधनों की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति कर पाने का मतलब है कि उसका रक्षा उद्योग बड़ी तेज़ी से कमज़ोर हो रहा है. आज की तारीख़ में रूस के सैन्य उद्योग के पास अपनी ज़रूरत से अधिक सामान नहीं है कि वो भारत को हथियार और गोला-बारूद उपलब्ध करा सके और कहीं भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया तो हालात और बिगड़ सकते हैं. यूक्रेन संकट के नतीजे में जिस तरह रूस और चीन के बीच नज़दीकी बढ़ी है, उससे रूस अपनी आर्थिक आवश्यकताएं पूरी करने के लिए चीन पर बुरी तरह निर्भर हो गया है. अधिकतम भू-राजनीतिक सहयोग हासिल करने के लिए भी रूस, चीन पर निर्भर है या फिर वो कम से कम अपनी हथियारों की ज़रूरत पूरी करने के लिए चीन का मोहरा कहे जाने वाले उत्तर कोरिया जैसे देश के भरोसे हो गया है. इन परिस्थितियों में भारत के लिए ये बहुत ज़रूरी हो गया है कि वो अपनी सैन्य ज़रूरतें, रूस के बजाय अन्य देशों से पूरी करने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़े. अगर और कुछ नहीं, तो रूस और उत्तर कोरिया के बीच हुआ सौदा इसी बात को रेखांकित करता है कि भारत ख़ुद को अपने हथियारों के लिए रूस पर अत्यधिक निर्भरता वाली कमज़ोर कड़ी से आज़ाद करे. जैसा कि हाल ही में भारत के पूर्व विदेश सचिव ने कहा भी कि रूस पर भारत को रूस से मिले हथियारों, गोला बारूद और भारतीय सेनाओं के मौजूदा हथियारों को इस्तेमाल लायक़ बनाए रखने के लिए कल पुर्ज़े नहीं देने का दबाव बनाने की चीन की क्षमता आज बढ़ चुकी है.

भारत को रूस के सैन्य साज़-ओ-सामान पर अपनी निर्भरता के बुरे नतीजों से निपटने के लिए कई उपायों के मेल जैसे कि अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, इज़राइल, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया से नज़दीकी बढ़ाने और जहां भी संभव हो अपनी सैन्य ज़रूरतों को ज़्यादा से ज़्यादा स्वदेश में विकसित करने से काम लेना होगा.

आगे चलकर भारत को रूस के सैन्य साज़--सामान पर अपनी निर्भरता के बुरे नतीजों से निपटने के लिए कई उपायों के मेल जैसे कि अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, इज़राइल, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया से नज़दीकी बढ़ाने और जहां भी संभव हो अपनी सैन्य ज़रूरतों को ज़्यादा से ज़्यादा स्वदेश में विकसित करने से काम लेना होगा. इस प्रयासों के साथ कुछ अन्य कोशिशें जैसे कि रिवर्स इंजीनियरिंग भी करनी होगी, जो निश्चित रूप से आसान काम नहीं है. क्योंकि, इसमें सैन्य तकनीक को दोबारा तैयार करना और उसका उत्पादन करना शामिल है. भारतीय सेनाओं के पास जो रूस से मिले हथियार और युद्ध संबंधी दूसरे संसाधन है, उनके लिए कल पुर्ज़े हासिल करने के लिए रिवर्स इंजीनियरिंग और निर्माण के लिए सरकार को केवल रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और उसकी सहायक कंपनियों और रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक इकाइयों (DPSUs) पर निर्भर रहना होगा, बल्कि उसे निजी क्षेत्र के उद्यमों की मदद भी लेनी होगी.

हमें पता है कि इनमें से कुछ प्रयास तो किए भी जा रहे है. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) का नासिक प्लांट इस समय भारतीय वायुसेना के कम से कम 20 सुखोई लड़ाकू विमानों की मरम्मत और ओवरहालिंग का काम कर रहा है. फिर भी ये प्रयास अपर्याप्त है. क्योंकि, रक्षा मंत्रालय और तीनों सेवाओं पर अभी भी रूस की तरफ़ से हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति में देरी की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. भारत को रूस को ये भी बताना होगा कि आज अगर वो रूस में बने हथियारों और दूसरे युद्धक संसाधनों का इस्तेमाल जारी रखने के लिए, उनके कल-पुर्ज़े और मरम्मत के लिए ज़रूरी सामान अगर स्वदेशी तकनीक और दूसरे देशों से हासिल करने की कोशिश कर रहा है, तो ये सिर्फ़ और सिर्फ़ रूस के रक्षा उद्योग की अपनी कमज़ोरियों और आपूर्ति में देरी का नतीजा है

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