Author : Kabir Taneja

Expert Speak Raisina Debates
Published on Feb 03, 2025 Updated 0 Hours ago

बीते 15 महीनों से चल रहा इज़रायल-ईरान संघर्ष एक ज्वलंत उदाहरण है, जो आधुनिक युद्ध में मानव खुफ़िया जानकारी के महत्व को लगातार स्पष्ट करता है. यह नई टेक्नोलॉजी की कमज़ोरियों को उजागर कर रहा है.

मिडिल ईस्ट की आधुनिक जंग – खुफ़िया तंत्र बनाम फॉरवर्ड डिफेंस

Image Source: Getty

पिछले 15 महीनों में, संकट से जूझ रहे मध्य-पूर्व ने साफ़ कर दिया है कि राष्ट्र और ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’, यानी राजनीतिक रसूख़ रखने वाले गैर-राष्ट्रीय समूहों द्वारा अपने सियासी एजेंडे को आगे बढ़ाने और अपने फायदे के हिसाब से क्षेत्र की भू-राजनीति को आकार देने के लिए किस-किस तरह की रणनीति अपनाई जा सकती है. उल्लेखनीय है कि 7 अक्तूबर, 2023 को इज़रायल पर हमास ने आतंकी हमला कर दिया था, जिसके बाद इज़रायल और ईरान आमने-सामने आ गए और पारंपरिक युद्ध का ख़तरा बढ़ गया था. बेशक, इज़रायल ने गाज़ा में हमास और बाद में लेबनान में हिज़बुल्लाह को कमजोर करने की नीति अपनाई, पर ईरान के ‘एक्सिस ऑफ़ रेज़िस्टेंस’ को भी खासा नुकसान पहुंचा है, ‘एक्सिस ऑफ़ रेज़िस्टेंस’ दरअसल, ईरान की मदद से बना एक अनौपचारिक समूह है, जिसमें फ़िलस्तीन के हमास, लेबनान के हिज़बुल्लाह, यमन के हूती और इराक व सीरिया के विद्रोही शामिल हैं.

मध्य-पूर्व में रणनीतिक तनाव किस कदर है, इसे इज़रायल-ईरान रिश्ते बीते कई वर्षों से उजागर करते रहे हैं, क्योंकि अरब देशों ने अपनी आर्थिक और कारोबारी ताकत बढ़ाने पर ज़्यादा ज़ोर दिया है.

मध्य-पूर्व में रणनीतिक तनाव किस कदर है, इसे इज़रायल-ईरान रिश्ते बीते कई वर्षों से उजागर करते रहे हैं, क्योंकि अरब देशों ने अपनी आर्थिक और कारोबारी ताकत बढ़ाने पर ज़्यादा ज़ोर दिया है. उन्होंने तेहरान जैसे दुश्मन देशों के साथ अल्पकालिक समझौतों को आगे बढ़ाने और इज़रायल से परदे के पीछे से बातचीत करने को तवज्जो दी है, ताकि वे निरपेक्ष दिख सकें. हालांकि, इज़रायल ने खुफिया तंत्र की मज़बूती पर भरोसा किया और ईरान की ‘फॉरवर्ड डिफेंस’ (जिसे आक्रामक रक्षा नीति के रूप में भी जाना जाता है) से निपटने के लिए ‘फॉरवर्ड ऑफेंस’ (आक्रमण की नीति) बनाई, जिसे इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गॉर्ड कॉर्प्स (IRGC) के प्रमुख और कुद्स फोर्स के कमांडर मरहूम क़ासिम सुलेमानी के नेतृत्व में तैयार किया गया था.

इज़रायल की खुफ़िया एजेंसियां, खासतौर से विदेश में काम करने वाली ‘द इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंटेलिजेंस ऐंड स्पेशल ऑपरेशंस’ यानी मोसाद लंबे समय से रणनीतिक और सामरिक, दोनों तरह से इसकी पहली सुरक्षा पंक्ति रही है.

सामने से आघात

इज़रायल की खुफ़िया एजेंसियां, खासतौर से विदेश में काम करने वाली ‘द इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंटेलिजेंस ऐंड स्पेशल ऑपरेशंस’ यानी मोसाद लंबे समय से रणनीतिक और सामरिक, दोनों तरह से इसकी पहली सुरक्षा पंक्ति रही है. इसका मुख्य मक़सद कथित ख़तरों के खिलाफ़ आक्रामक, लेकिन लक्षित तरीके से काम करना है. इस रणनीति में पारंपरिक युद्ध शुरू होने से पहले ख़तरे से निपटना संभव हो जाता है. चूंकि इज़रायल एक छोटा देश है, इसलिए कोई भी पारंपरिक युद्ध उसके लिए महंगा साबित होगा और उसके अस्तित्व पर ख़तरा पैदा हो सकता है. भले ही, उसने पहले ऐसी जंग में अच्छा प्रदर्शन किया है, जैसा कि 1973 के योम किप्पुर युद्ध के दौरान देखा गया था, जब उसने मिस्र और सीरिया के नेतृत्व वाले अरब राष्ट्रों के गठबंधन को खदेड़ दिया था. फिर भी, खुफ़िया अभियानों पर सबसे अधिक भरोसा करने की रणनीति इज़रायल को न सिर्फ रणनीतिक रूप से सुरक्षित बनाती है, बल्कि पारंपरिक युद्ध से भी शुरुआती तौर पर बचाती है. इस नीति में हत्या करने जैसे कई विवादास्पद तरीके भी शामिल हैं. पत्रकार रोनेन बर्गमैन इज़रायली खुफ़िया कार्रवाइयों पर अध्ययन कर बताते हैं कि कैसे 1940 के दशक से इज़रायल अपनी सुरक्षा रणनीति के तहत हत्या को प्राथमिकता देता रहा है. तब से कई अहम घटनाओं में, जिसमें फ़लस्तीनी आंतकी संगठन ‘ब्लैक सेप्टेंबर’ द्वारा 1972 में जर्मनी के ओलंपिक खेलों में इज़रायली एथलीटों की हत्या भी शामिल है, सुरक्षा की पहली पंक्ति के रूप में मानव खुफिया जानकारी की जरूरत समझी गई है.

इन रुझानों के मद्देनज़र पेजर जैसे ऑपरेशन, जो 7 अक्टूबर के हमले के बाद लेबनान में ढांचे में दीर्घकालिक ख़ुफिया कार्रवाइयों के महत्व को कहीं अधिक प्रासंगिक बनाते हैं. सैकड़ों कथित हिज़बुल्लाह लड़ाकों को निशाना बनाने के लिए चलाए गए थे, इज़रायली सुरक्षा इज़रायल ने जहां ईरान के भीतर ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाकर उसके परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाया, वहीं हथियारों की आमद रोकने और आतंकी अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करने के लिए दुनिया भर में हमास और हिज़बुल्लाह के लड़ाकों पर लक्षित हमले किए, जैसे- 2010 में दुबई में मोसाद द्वारा महमूद अल-मबौह की हत्या, जो हमास के लिए हथियार जुटाने वाला मुख्य कमांडर था. हमास की 2023 की सफलता से खार खाए इज़रायल ने 7 अक्टूबर की घटना के बाद हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हनीया की मध्य तेहरान में हत्या कर दी. यह सब उस गहन और दीर्घकालिक रणनीतिक योजना के क्रियान्वयन की निरंतरता का संकेत है, जिसके लिए इज़रायल जाना जाता है.

 

फॉरवर्ड डिफेंस

ईरान ने ‘फॉरवर्ड डिफेंस’ के माध्यम से अपने लंबे समय के फायदे के लिए पूरे क्षेत्र के मिलिशिया समूहों (अराजक तत्वों) के राजनीतिक उद्देश्यों को हथियार बनाकर पेश किया, जिसका फायदा उसे, खासकर उसके सबसे ताकतवर माने जाने वाले इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स को खूब मिला है. शोधार्थी हामिद्रेजा अजीजी के मुताबिक, ईरान की यह नीति ‘कोई नया सैन्य सिद्धांत नहीं, बल्कि व्याप्त खतरों से निपटने का एक विकसित और बेहतर रूप’ है. एक तरफ ईरान की वैचारिक सोच से लेबनान में हिज़बुल्लाह जैसे गुट बहुत गहरे जुड़े हुए हैं, वहीं सुन्नी फ़िलस्तीनी समूह हमास और ज़ैदी शिया राजनीतिक व आतंकी गुट हुती से उसके मत अलग हैं, इसलिए यहां ईरान एक सीमा से आगे दख़ल देना पसंद नहीं करता है. इसका मतलब है कि सामरिक नज़रिये से ‘एक्सिस ऑफ़ रेज़िस्टेंस’ का पूरा ढांचा संपूर्ण नहीं है.

उदाहरण के लिए, इज़रायली सैन्य अभियानों से हमास और हिज़बुल्लाह, दोनों को हुए नुकसान के बाद हूतियों को एक स्थापित ताकत के रूप में देखा जाता रहा है, और आज भी यह सोच बनी हुई है. भले ही हूतियों की विचारधारा ज़ैदी और वहाबियों के बीच सीधे संघर्ष पर टिकी हुई है, जिसे आम भाषा में सुन्नियों और शियाओं के बीच टकराव कह सकते हैं, लेकिन असलियत में सऊदी से उसका सीधा टकराव, जो 2015 में शुरू हुआ था, आज बातचीत, वार्ता और राजनीतिक समझौते तक सीमित हो गया है. हूती नेतृत्व को नुकसान न पहुंचा पाना बताता है कि उसके खिलाफ़ महत्वपूर्ण खुफ़िया सूचनाओं की कमी है. उस पर एयर स्ट्राइक यानी हवाई हमले का भी बहुत खास असर नहीं पड़ा है. हालांकि, ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका इसे आतंकी गुटों की सूची में फिर से शामिल करने जा रहा है, जिसे 2021 में बाइडेन सरकार ने निकाल बाहर किया था.

भले ही हूतियों की विचारधारा ज़ैदी और वहाबियों के बीच सीधे संघर्ष पर टिकी हुई है, जिसे आम भाषा में सुन्नियों और शियाओं के बीच टकराव कह सकते हैं, लेकिन असलियत में सऊदी से उसका सीधा टकराव, जो 2015 में शुरू हुआ था, आज बातचीत, वार्ता और राजनीतिक समझौते तक सीमित हो गया है.

‘एक्सिस’ के इस अहम सदस्य की यह ताकत, जिसे फिलहाल हमास और हिज़बुल्लाह से अधिक क्षमताओं वाला माना जा रहा है, 2023 में चीन की मध्यस्थता से किए गई ईरान-सऊदी समझौते से भी जुड़ी है. हूती एक तरफ जहां फ़िलस्तीनी संप्रभुता और आज़ादी का आह्वान करते हुए इज़रायल को धमकाता और निशाना बनाता रहा है, वहीं दूसरी तरफ, इज़रायल-हमास युद्धविराम से भी वह जुड़ता दिखा है. कई रिपोर्ट के अनुसार, लाल सागर में सैकड़ों अरबों डॉलर के व्यापार को नुकसान पहुंचाने वाला यह यमनी समूह अब गैर-इज़रायली वाणिज्यिक जहाजों को निशाना नहीं बनाएगा.

हालांकि, आज स्थिति यही है कि हमास और हिज़बुल्लाह के पतन के साथ-साथ बशर अल-असद के सीरियाई शासन के अंत होने से ‘एक्सिस’ को बड़ा झटका लगा है. इज़रायली सैन्य ताकत के खिलाफ़ ईरान ने जिस छद्म जाल को आगे बढ़ाया, और जिसमें अपनी डिजिटल और साइबर ताकत झोंकने के साथ-साथ अमेरिकी सैन्य तकनीक की भी मदद ली, उसे फिलहाल भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

 

मध्य पूर्व के आधुनिक युद्ध के मुख्य बिंदु

मध्य पूर्व में आधुनिक युद्ध का यदि विश्लेषण करना है, तो पूरे क्षेत्र के बजाय इज़रायल-ईरान तनाव पर ध्यान लगाना उचित होगा. 7 अक्टूबर का हमला एक ऐसा उदाहरण है, जहां सुरक्षा के मामले में अत्याधुनिक तकनीकों पर अत्यधिक निर्भरता को कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं, बल्कि चिंता की वज़ह के रूप में देखा जाना चाहिए. मध्य पूर्व में तकनीक के इस्तेमाल की बहस पारंपरिक फ़ौजों और हथियार प्रणालियों से नहीं, बल्कि गैर-राष्ट्रीय तत्वों और उनके बनाए व इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन से शुरू हुई है. तथाकथित इस्लामिक स्टेट (जिसे आईएसआईएस या अरबी में ‘दाएश’ के नाम से जाना जाता है) एक तरह से उत्प्रेरक था, जिसने ड्रोन बनाने के लिए कार्यशालाएं कीं और शुरुआती दिनों से जुड़े यूरोप व बाहर के इंजीनियरों की विशेषज्ञता का उपयोग किया.

जाहिर है, मध्य पूर्व ने बताया है कि आधुनिक युद्ध स्वचालित, तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर ज़ोर देने की बहस को नया आयाम देता है. भले ही ये ताकत-प्रदर्शन के बड़े-बड़े मंचों पर सबसे आगे दिखते हैं, लेकिन क्षेत्रीय, सांप्रदायिक और वैचारिक संघर्षों में आज भी पारंपरिक अभियानों और खुफ़िया कार्रवाइयों की ही ज़रूरत बनी रहेगी.

डेटा माइनिंग, ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस और सिग्नल इंटेलिजेंस जैसी नई-नई तकनीकें सूचना क्षमताओं में उल्लेखनीय इजाफ़ा करती हैं, लेकिन मानव खुफिया पर आधारित रणनीतिक व सामरिक योजना की अनिवार्यता किसी भी अन्य प्रारूप में कही अधिक अहमियत रखती है.

बेशक, डेटा माइनिंग, ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस और सिग्नल इंटेलिजेंस (इसे 2000 के दशक की शुरुआत में टेक्नोलॉजी इंटेलिजेंस के रूप में भी जाना जाता था) जैसी नई-नई तकनीकें सूचना क्षमताओं में उल्लेखनीय इजाफ़ा करती हैं, लेकिन मानव खुफिया पर आधारित रणनीतिक व सामरिक योजना की अनिवार्यता किसी भी अन्य प्रारूप में कही अधिक अहमियत रखती है. 2011 में पाकिस्तान में अल-क़ायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के अंत और 2019 में सीरिया के बारिशा में ISIS के संस्थापक व खलीफ़ा अबू-बकर-अल-बग़दादी की हत्या, दोनों इंसानी बुद्धिमानी के कारण ही संभव हो सके थे. ब्रिटेन के सीक्रेट इंटेलिजेंस सर्विस (MI6) के प्रमुख रिचर्ड मूर ने 2023 में कहा भी था कि एआई के प्रसार के बावजूद इंसान की बुद्धिमानी और उसके फैसले पर ही जासूसी का भविष्य निर्भर करेगा. यह दुनिया के सबसे प्रमुख खुफ़िया संगठन के किसी बड़े अधिकारी का काफी अहम नज़रिया था, जिसका मध्य पूर्व में सफलताओं और विफलताओं, दोनों का एक लंबा इतिहास रहा है.

 

निष्कर्ष

साफ है, रणनीतिक और सामरिक नीतियों को टेक्नोलॉजी की क्षमताओं के आधार पर आकार देने से बचना चाहिए, बल्कि इंसानी ज़रूरतों के आधार पर उसे तैयार किया जाना आवश्यक है. आधुनिक और पारंपरिक युद्धों के बीच मौकों व कमियों की पड़ताल करने में इज़रायल-ईरान संघर्ष एक दिलचस्प केस स्टडी है.


(कबीर तनेजा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में स्ट्रैटीजिक स्टडीज प्रोग्राम के उप-निदेशक और फेलो हैं)

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.