Published on Aug 01, 2022 Updated 0 Hours ago

सामरिक हितों के मज़बूत मेल-जोल के साथ इज़रायल , संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच सैन्य-सुरक्षा सहयोग उम्मीदों से भरा दिखता है.

इज़रायल के नज़रिए से 2020 के अब्राहम संधि का सैन्य-सुरक्षा पहलू

इज़रायल के हाल के राजनीतिक और कूटनीतिक सफ़र के इतिहास में अगस्त-सितंबर 2020 में खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के दो प्रमुख सदस्य देशों- संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बहरीन– के साथ उसके संबंधों का सामान्य होना, जो अब्राहम संधि के नाम से मशहूर है, एक बड़ी सफलता है. अपने ही क्षेत्र में 1948 से अलगाव महसूस करने वाले इज़रायल के लिए संबंधों में ये उभरता बदलाव बेहद महत्व रखता है. ये भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और व्यापक मध्य-पूर्व के सुरक्षा परिदृश्य, जहां साझा सामरिक हितों के आधार पर समान विचार वाले देशों के बीच दोस्ताना संबंध को मज़बूत करने और उसका विस्तार करने की कोशिशें जारी हैं, की बदलती गतिशीलता का भी संकेत देता है. अब्राहम संधि धीरे-धीरे कई क्षेत्रों में इन देशों के बीच सहयोग के महत्वपूर्ण रास्तों को खोल रही है. सहयोग के इन क्षेत्रों में एक सैन्य-सुरक्षा संबंध भी है जिसमें रक्षा व्यापार शामिल है.

अगस्त-सितंबर 2020 में खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के दो प्रमुख सदस्य देशों- संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बहरीन- के साथ उसके संबंधों का सामान्य होना, जो अब्राहम संधि के नाम से मशहूर है, एक बड़ी सफलता है. 

इज़रायल की युद्ध सामग्री संबंधित रणनीति

हाल के दिनों में ख़तरे को लेकर साझा सोच, जो कि ज़्यादातर ईरान के विवादित परमाणु कार्यक्रम और मध्य-पूर्व में उसकी “सामरिक गहराई” की वजह से है, ने मेल-मिलाप का रास्ता तैयार कर दिया. क्षेत्र और अस्तित्व को लेकर ख़तरे (ख़ास तौर पर इज़रायल के लिए) को भी हाल में इज़रायल और जीसीसी के कुछ देशों के बीच चुपचाप सुरक्षा सहयोग (जिनमें खुफ़िया जानकारी साझा करना भी शामिल है) की स्थापना का कारण बताया गया है. अब सामान्य संबंध की वजह से इज़रायल के पास इस बात की गुंजाइश रहेगी कि वो उन रिश्तों को और गहरा करे और जीसीसी के दोनों देशों के रक्षा बाज़ार का भी फ़ायदा उठाए. 50 के दशक की शुरुआत से हथियारों की बिक्री इज़रायल की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण औज़ार रहा है. कुछ मामलों में तो हथियारों की बिक्री की कूटनीति अंत में राजनयिक संबंधों की स्थापना का कारण भी बनी है. जनवरी 1992 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ भी ऐसे ही हुआ है. इसी तरह भारत- इज़रायल के बीच भी गुपचुप ढंग से हथियारों का व्यापार ही मुख्य रूप से लंबे समय तक संबंधों पर हावी रहा. ये सिलसिला 2010 के आसपास तक चलता रहा जब ये गुप्त जानकारी बाहर आई. 2014 के मध्य से दोनों देशों के बीच कुल मिलाकर सैन्य-सुरक्षा सहयोग में और मज़बूती आई. इसलिए विदेश नीति के उद्देश्यों को पूरा करने में हथियारों की बिक्री की प्रधानता इज़रायल के लिए अभी भी प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बनी हुई है.

कुछ समय पहले तक इज़रायल और खाड़ी के देशों के बीच हथियारों के व्यापार (और सैन्य सहयोग) के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था लेकिन अब्राहम संधि के बाद इस बात के संकेत हैं कि ऐसी हिस्सेदारी में तेज़ी आ रही है. इज़रायल की हथियारों की बिक्री और उसकी विदेश, राजनीति एवं आर्थिक नीतियों के बीच स्वाभाविक संबंधों को आरोन एस. क्लीमैन जैसे विद्वान ने अपनी बहुचर्चित किताब इज़रायल्स ग्लोबल रीच: आर्म्स सेल्स एज़ डिप्लोमैसी (1985) में इन शब्दों में समुचित रूप से चर्चा की है: “इज़रायल के हथियारों के हस्तांतरण के पीछे सैन्य कारण वास्तव में एक तरफ़ राजनीतिक और विदेश नीति के प्रोत्साहनों के मध्य बीच के संपर्क के रूप में काम करता है, दूसरी तरफ़ आर्थिक उद्देश्य के रूप में.” इज़रायल के लिए संबंधों का सामान्य होना उसके रक्षा उद्योग के लिए, जो दुनिया में कुछ सबसे आधुनिक सैन्य तकनीकों को विकसित करता है, फ़ायदेमंद साबित हो सकता है.

अब्राहम संधि इज़रायल को इस बात की इजाज़त देती है कि वो जीसीसी के दो देशों के साथ सैन्य-औद्योगिक सहयोग स्थापित करने की संभावनाओं की तलाश करे. जीसीसी के ये दोनों देश अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाने की दिशा में आयात के साथ-साथ आत्मनिर्भरता के लिए अपने स्थानीय सैन्य उद्योगों को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं. इसे देखते हुए इज़रायल , बहरीन और अमीरात के रक्षा उद्योगों के बीच संयुक्त उपक्रम निकट भविष्य में होने वाला है. इसके साथ-साथ यूएई और बहरीन इज़रायल से कुछ रक्षा उपकरण का आयात भी करने वाले हैं. अब्राहम संधि ने इन देशों के बीच, जो अपने ढंग से तकनीकी और आर्थिक रूप से विकसित हैं, “सहयोग में विस्तार, जानकारी साझा करने, निवेश को बढ़ावा देने, साझा तकनीक के विकास और स्थानीयकरण” के लिए एक महत्वपूर्ण झरोखा भी खोल दिया है. इज़रायल  के द्वारा निर्यात की जाने वाली हथियारों की कुछ उन्नत प्रणाली, जैसे कि मिसाइल, एयर डिफेंस सिस्टम, अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स (यूएवी), जासूसी वाले रडार एवं मिसाइल-डिफेंस रडार (जैसे कि ग्रीन पाइन सिस्टम) और अलग-अलग तरह के हथियार और गोला-बारूद, कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिनकी मांग यूएई और बहरीन की तरफ़ से ज़्यादा हो रही है. इसकी वजह दोनों देशों के सामने ख़तरे की मौजूदा समझ है.

आरोन एस. क्लीमैन जैसे विद्वान ने अपनी बहुचर्चित किताब इज़रायल्स ग्लोबल रीच: आर्म्स सेल्स एज़ डिप्लोमैसी (1985) में इन शब्दों में समुचित रूप से चर्चा की है: “इज़रायल के हथियारों के हस्तांतरण के पीछे सैन्य कारण वास्तव में एक तरफ़ राजनीतिक और विदेश नीति के प्रोत्साहनों के मध्य बीच के संपर्क के रूप में काम करता है

यमन आधारित हूती विद्रोहियों, जिनके बारे में माना जाता है कि ईरान उन्हें वित्तीय और साजो-सामान का समर्थन मुहैया कराता है, के मिसाइल/ड्रोन हमलों की वजह से यूएई अपने एयर डिफेंस सिस्टम को मज़बूत करना चाहता है. इसके लिए वो इज़रायल समेत बाहर की कंपनियों से सैन्य ख़रीदारी कर रहा है. ख़बरों के मुताबिक़ यूएई और बहरीन ने किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल ख़तरे से रक्षा के लिए इज़रायल में बने आयरन डोम एंड ग्रीन पाइन मिसाइल डिफेंस सिस्टम की ख़रीदारी को लेकर चर्चा की है. इस तरह की सुरक्षा चुनौतियां इज़रायल और यूएई के बीच सैन्य-सुरक्षा सहयोग (औद्योगिक उपक्रम समेत) को आगे बढ़ा रही हैं. ऐसा ही कुछ बहरीन के साथ भी देखा जा सकता है. इसकी वजह ये है कि इज़रायल ने फरवरी 2022 में पहली बार किसी खाड़ी के देश के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर दस्तख़त किए हैं जिसमें “खुफ़िया, सैन्य, औद्योगिक सहयोग और अन्य क्षेत्रों में भविष्य में साथ काम करने” का समर्थन किया गया है. रक्षा संबंधों को इस तरह औपचारिक रूप देने से कई दूसरे क्षेत्रों में भी सहयोग का विस्तार करने की संभावना बनती है और ये सहयोग सिर्फ़ विक्रेता और ख़रीदार के संबंधों तक सीमित नहीं रहेगा. निकट भविष्य में बहरीन के द्वारा अपने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों को किसी भी सैन्य कार्रवाई से सुरक्षित करने के लिए इज़रायल में बने यूएवी और एंटी-ड्रोन सिस्टम को ख़रीदने की संभावना है. ऐसा भी लगता है कि यूएई और बहरीन के साथ इज़रायल के सहयोग का विस्तार समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र तक होने वाला है. इसकी वजह ये है कि फारस की खाड़ी और लाल सागर में ख़तरा बढ़ता जा रहा है. फारस की खाड़ी और लाल सागर न सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय  समुद्री व्यापार के महत्वपूर्ण रास्ते हैं बल्कि एशिया और अफ्रीका के साझेदारों के साथ इज़रायल के संचार और व्यावसायिक लेन-देन के लिए भी अहम हैं.

अमेरिका अभी भी मध्य-पूर्व के ज़्यादातर देशों के लिए हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. 2017-21 के दौरान अमेरिका के हथियार निर्यात में मध्य-पूर्व का हिस्सा 43 प्रतिशत था. इसमें सऊदी अरब और यूएई दो सबसे बड़े ख़रीदार थे.  

अब क्षेत्रीय भू-राजनीति की बदली दिशा और बढ़ते सौहार्द के साथ यूएई और बहरीन को इज़रायल के द्वारा सैन्य उपकरणों की संभावित बिक्री से इज़रायल को हथियारों के निर्यात से राजस्व बढ़ाने में मदद मिलेगी. ग़ैर-रक्षा व्यापार के साथ हथियारों के निर्यात से होने वाली आमदनी इज़रायल के आर्थिक विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक बनी हुई है. हथियारों की बिक्री इज़रायल के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि स्थानीय स्तर पर विकसित अपने हथियारों की ख़पत करने की उसकी क्षमता सीमित है और इसलिए वो हमेशा अपने अतिरिक्त रक्षा उत्पादों के निर्यात के लिए ग्राहकों की तलाश में रहता है. पिछले एक दशक से ज़्यादा समय से इज़रायल लगातार 10 सबसे बड़े रक्षा निर्यातक देशों में शामिल रहा है और 2021 में उसके हथियारों का निर्यात 11.3 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया जबकि 2020 में उसने 8.3 अरब अमेरिकी डॉलर के हथियारों का निर्यात किया था. ख़बरों के मुताबिक़ 2021 में इज़रायल के कुल हथियार निर्यात में यूएई और बहरीन का हिस्सा 7 प्रतिशत था, यूरोप का 41 प्रतिशत, एशिया-पैसिफिक का 34 प्रतिशत, उत्तरी अमेरिका का 12 प्रतिशत और 3-3 प्रतिशत अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का था. 2021 में इज़रायल के हथियार निर्यात में 20 प्रतिशत के साथ मिसाइल, रॉकेट और एयर डिफेंस सिस्टम का सबसे बड़ा हिस्सा था जबकि यूएवी, ड्रोन, रडार और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम (ईडब्ल्यूएस) का हिस्सा कुल हथियारों की बिक्री में 9 प्रतिशत था. यूएई और बहरीन के इज़रायल के नये बाज़ार के रूप में उभरने के साथ हथियारों की बिक्री से इज़रायल को मिलने वाला राजस्व उसके रक्षा अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) कार्यक्रमों के लिए फंड का महत्वपूर्ण स्रोत बन जाएगा क्योंकि इज़रायल को बिना रुके हुए विदेश से होने वाली कमाई को देश में लाने की ज़रूरत है.

इज़रायल बनाम अमेरिका

2020 की अब्राहम संधि इज़रायल और जीसीसी के दोनों देशों के बीच हथियारों के व्यापार की संभावना तो बढ़ाती है लेकिन बाद में इज़रायल को मध्य-पूर्व में हथियारों का निर्यात करने वाले परंपरागत और नये निर्यातकों से मुक़ाबले का सामना करना पड़ सकता है. मिसाइल, एंटी मिसाइल, ड्रोन/यूएवी, रडार के क्षेत्र में ये मुक़ाबला हो सकता है. अमेरिका अभी भी मध्य-पूर्व के ज़्यादातर देशों के लिए हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. 2017-21 के दौरान अमेरिका के हथियार निर्यात में मध्य-पूर्व का हिस्सा 43 प्रतिशत था. इसमें सऊदी अरब और यूएई दो सबसे बड़े ख़रीदार थे. इसके अलावा चीन (एक उभरता हुआ निर्यातक) और मध्य-पूर्व के कुछ देशों (यूएई शामिल) के बीच हथियारों के व्यापार में लगातार बढ़ोतरी लंबे समय में इज़रायल के रक्षा निर्यातकों के लिए चुनौती बन सकती है. चीन ने धीरे-धीरे मध्य-पूर्व के बाज़ारों के ग्राहकों, जिनमें यूएई और सऊदी अरब शामिल हैं, को यूएवी/ड्रोन (जैसे कि विंग लूंग I, विंग लूंग II, सीएच-4 और सीआर500 गोल्डन ईगल) का निर्यात करके फ़ायदा उठाना शुरू कर दिया है. चीन तकनीक के ट्रांसफर को बढ़ाने और मध्य-पूर्व के दूसरे देशों के साथ रक्षा औद्योगिक सहयोग को मज़बूत करने की भी लगातार कोशिश कर रहा है. इस क्षेत्र में निरंतर बढ़ते अपने आर्थिक और तकनीकी दायरे के साथ एक वक़्त ऐसा भी आएगा जब चीन इज़रायल समेत दूसरे हथियारों के निर्यातकों के साथ मुक़ाबला करेगा. अमेरिका की प्रतिबंधात्मक हथियार बिक्री की नीति (मुख्य तौर पर सशस्त्र ड्रोन के लिए) ने यूएई जैसे देशों को कम शर्तों वाले उपलब्ध विकल्पों की तरफ़ देखने के लिए मजबूर कर दिया है. ये एक महत्वपूर्ण खालीपन है जिसे चीन भरना चाहता है और इज़रायल भी मध्य-पूर्व में अपना दखल बढ़ाने के लिए इसी तरह के उपकरणों को अपने नये ग्राहकों को ट्रांसफर करने की महत्वाकांक्षा रखेगा.

फिर भी इज़रायल और ऊपर बताये गए जीसीसी के देश सैन्य-सुरक्षा के मामले में सहयोग के सभी संभावित क्षेत्रों की तलाश जारी रखेंगे और किसी भी तीसरे पक्ष को अपने नये-नये स्थापित कूटनीतिक संबंधों के और ज़्यादा विस्तार में रुकावट पैदा करने की इजाज़त नहीं देंगे. इसी रूप-रेखा के भीतर इज़रायल ऊर्जा के मामले में समृद्ध जीसीसी के दोनों देशों के साथ फ़ायदेमंद हथियारों का समझौता करने की कोशिश करेगा. रक्षा उद्योग के क्षेत्र में तकनीकी रूप से आगे बढ़ने की तलाश में यूएई और बहरीन को इज़रायल के साथ संबंधों को मज़बूत करने का प्रोत्साहन मिलता है. उनका द्विपक्षीय संबंध भी सैन्य-सुरक्षा के क्षेत्र में उनके रिश्ते और साझा सुरक्षा चुनौतियों से आगे बढ़ता रहेगा. सामरिक हितों के मज़बूत मेल-जोल के साथ सैन्य-सुरक्षा सहयोग भरोसेमंद दिखता है और इन दोनों देशों के साथ इज़रायल के हथियारों का लेन-देन धीरे-धीरे और बढ़ने की संभावना है.

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