Author : Gurjit Singh

Published on Sep 19, 2023 Updated 0 Hours ago

बदलती विश्व व्यवस्था और साउथ चाइना सी में चीन की बढ़ती घुसपैठ ने आसियान देशों को अपनी सेना पर खर्च बढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया है. 

आसियान के सदस्य देशों में सैन्य विस्तार

महाशक्तियों के बीच मुकाबले की वजह से बदलते वैश्विक समीकरण के साथ इंडो-पैसिफिक रीजन आसियान के मूल में हिंद प्रशांत  की पारंपरिक सोच को चुनौती दे रहा है. कई आसियान केंद्रित संगठनों ने क्षेत्रीय सुरक्षा का ढांचा मुहैया कराया है. अमेरिका और क्वॉड में उसके साझेदारों- भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया- ने साउथ चाइना सी (SCS) और व्यापक इंडो-पैसिफिक में चीन के आक्रामक इरादे को चुनौती देने का फैसला किया है. ऐसे में आसियान के सामने चिंता है कि उसे दोनों में से किसी एक पक्ष को चुनना होगा.

आसियान देशों में ख़तरे की समझ बढ़ने के साथ-साथ रक्षा पर खर्च में भी बढ़ोतरी हुई है. इसे हथियारों की रेस का नाम नहीं दिया जा सकता है क्योंकि आसियान के सदस्य देश आपस में मुकाबला नहीं कर रहे हैं

चीन की अर्थव्यवस्था के साथ आसियान का जुड़ाव काफी ज़्यादा है. चीन के साथ उसकी रक्षा भागीदारी दक्षिण चीन सागर में चीन के ज़िद्दी रवैये और नाइन-डैश लाइन के द्वारा बताई गई रूप-रेखा के तहत ‘परंपरागत अधिकारों’ के ऊपर इसके दावे की वजह से मजबूरी की स्थिति में है. इसकी वजह से आसियान के पांच देशों के साथ चीन संघर्ष की स्थिति में है, ख़ास तौर पर वियतनाम और फिलीपींस के साथ. मलेशिया, ब्रूनेई और इंडोनेशिया के साथ विवाद काफी हद तक शांत है.

क्वॉड, ऑकस, ताइवान में संघर्ष का ख़तरा और यूक्रेन संकट आसियान के लिए बेचैनी की वजह हैं. सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के मामले में आसियान के उदारवादी दृष्टिकोण की पारंपरिक स्थिति कमज़ोर हो रही है. चीन ने 2002 से आसियान के द्वारा कोड ऑफ कंडक्ट (CoC) बनाने की कोशिशों के प्रति झूठे मन से समर्थन मुहैया कराते हुए SCS में वास्तविकता को उलट दिया है.

आसियान देशों में ख़तरे की समझ बढ़ने के साथ-साथ रक्षा पर खर्च में भी बढ़ोतरी हुई है. इसे हथियारों की रेस का नाम नहीं दिया जा सकता है क्योंकि आसियान के सदस्य देश आपस में मुकाबला नहीं कर रहे हैं, साथ ही वो इस स्थिति में नहीं हैं कि चीन या किसी दूसरे दुश्मन देश को चुनौती दे सकें. फिर भी सैन्य ख़रीद बढ़ रही है क्योंकि समुद्री सुरक्षा का महत्व बढ़ गया है.

आसियान देशों में सैन्य आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चल रही है. इसके कई पहलू हैं. कुछ जहां पहले शुरू हुए वहीं रक्षा को बढ़ावा देने और सैन्य उपकरणों को बदलने की आवश्यकता का 2010 से चीन के आक्रामक रुख के साथ संबंध है. सिपरी मिलिट्री एक्सपेंडिचर डेटा बेस 2023 के मुताबिक, आसियान का सैन्य खर्च वर्ष 2000 के 20.3 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2021 में 43.2 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. 2002-2007 के बीच सैन्य खर्च सालाना 30 अरब अमेरिकी डॉलर से कम था. 2015 से आसियान देशों ने 41 अरब अमेरिकी डॉलर या उससे ज़्यादा खर्च किया. 2020 में सबसे ज़्यादा 44.3 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किया गया.

2012 से साउथ चाइना सी में चीन की घुसपैठ बढ़ गई और पांच आसियान देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ), समुद्र और तटों पर वो अपने जहाज़ ला रहा है. ध्यान देने की बात है कि आसियान का सैन्य खर्च 2013 से बढ़ने लगा. उस समय रक्षा खर्च 34 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 38 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया और तब से लगातार बढ़ रहा है. सिपरी के मुताबिक आसियान के देशों में सिंगापुर का रक्षा बजट सबसे ज़्यादा है जो 11 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है. सिंगापुर के बाद इंडोनेशिया आता है जिसने 2023 में सेना पर 8.2 अरब अमेरिकी डॉलर का बजट रखा जो कि 2020 के 9.3 अरब अमेरिकी डॉलर के बजट से थोड़ा कम है. 2012 से इंडोनेशिया ने अपना रक्षा खर्च बढ़ाना शुरू किया और ये 6.5 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2013 में 8.3 अरब अमेरिकी डॉलर पहुंच गया और तब से उसने बजट खर्च में बढ़ोतरी को लगातार बरकरार रखा है.

दिसंबर 2022 में वियतनाम ने अपनी पहली रक्षा प्रदर्शनी का आयोजन किया जिसमें 30 देशों की 170 कंपनियों ने हिस्सा लिया. ये इस बात का संकेत था कि चीन की लगातार दुश्मनी का सामना कर रहा वियतनाम रक्षा के मामले में रूस पर अपनी निर्भरता में विविधता लाने का इरादा रखता है.

6.6 अरब अमेरिकी डॉलर के बजट के साथ थाईलैंड हथियारों का एक और बड़ा आयातक है. हालांकि थाईलैंड ने पिछले तीन वर्षों से 7 अरब अमेरिकी डॉलर के अपने बजट को बरकरार  रखा है. मलेशिया और फिलीपींस- दोनों देशों ने रक्षा खर्च पर 3 अरब अमेरिकी डॉलर सालाना की सीमा को पार कर लिया है और पिछले एक दशक से ये इस स्तर पर बना हुआ है. इसमें और बढ़ोतरी की संभावना है.

सिपरी के पास वियतनाम के रक्षा खर्च का विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है लेकिन उसके अनुमान के मुताबिक वियतनाम हर साल लगभग 5.5 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च करता है. वियतनाम ने 2018 से अपना रक्षा बजट प्रकाशित करना बंद कर दिया. उस वक्त वियतनाम का रक्षा बजट GDP का 2.36 प्रतिशत होने का अनुमान था. दिसंबर 2022 में वियतनाम ने अपनी पहली रक्षा प्रदर्शनी का आयोजन किया जिसमें 30 देशों की 170 कंपनियों ने हिस्सा लिया. ये इस बात का संकेत था कि चीन की लगातार दुश्मनी का सामना कर रहा वियतनाम रक्षा के मामले में रूस पर अपनी निर्भरता में विविधता लाने का इरादा रखता है. रूस की JSC रोसोबोरोनएक्सपोर्ट , अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन, यूरोप की एयरबस, भारत की ब्रह्मोस एयरोस्पेस  और जापान की मित्सुबिशी इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों ने इसमें भाग लिया. वैसे तो चीन की कंपनियों को भी न्योता दिया गया था लेकिन वो गैर-हाज़िर रहीं. वियतनाम किसी समय अपने 70 प्रतिशत हथियारों के लिए रूस पर निर्भर करता था. उसके ज़्यादातर बड़े सैन्य उपकरण रूसी हैं. हालांकि 2021 में रूस पर निर्भरता घटकर 60 प्रतिशत के नीचे रह गई. 2016 में अमेरिका ने वियतनाम को हथियारों के ट्रांसफर पर लगी एक पाबंदी को हटा दिया. इसके बाद 2017 से अमेरिका और दक्षिण कोरिया सप्लायर बन गए.

दक्षिण कोरिया ने आसियान को अपना निर्यात बढ़ाया है. फरवरी 2023 में कोरिया की एयरोस्पेस  इंडस्ट्रीज  ने मलेशिया को 18 FA-50 फाइटर के लिए 910 मिलियन अमेरिकी डॉलर के एक समझौते पर हस्ताक्षर किया; उन्होंने भारत के तेजस एयरक्राफ्ट की पेशकश को चुनौती दी. वैसे तो मलेशिया हथियारों पर बहुत ज़्यादा खर्च नहीं करता है लेकिन दक्षिण कोरिया और तुर्किए के साथ उसकी भागीदारी बढ़ रही है. सिपरी के मुताबिक 2017 से 2021 के बीच दक्षिण कोरिया ने फिलीपींस, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, म्यांमार और मलेशिया को 2 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा की कीमत के रक्षा उपकरण बेचे.

ख़तरे की समझ और उसका मतलब

आसियान के सदस्य देशों के बीच ख़तरे की समझ और उससे मुकाबले को लेकर सोच अलग-अलग हैं. कुछ देश क्वॉड के सदस्यों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ बातचीत में अधिक सहज हैं जबकि कुछ ज़्यादा सावधान हैं. ये फर्क ख़तरे की समझ में अंतर के कारण है. मिसाल के तौर पर, वियतनाम और फिलीपींस दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता के सबसे बड़े शिकार हैं. चीन ने द्वीपों पर कब्ज़ा कर लिया है और उन टापुओं एवं कम गहरे इलाकों (शोल्स) में वियतनाम और फिलीपींस के नियंत्रण को चुनौती दी है जिन पर पारंपरिक रूप से उनका शासन था लेकिन जिनकी रक्षा नहीं की जा रही थी. फिलीपींस के मिसचीफ रीफ और सेकेंड थॉमस शोल और वियतनाम के जॉनसन रीफ ने ऐसी आक्रामकता देखी है. इसलिए वियतनाम और फिलीपींस के आर्म्ड फोर्सेज़ और उनके उपकरणों एवं क्षमताओं का विस्तार एक महत्वपूर्ण फैक्टर है.

जिन देशों में सैन्य विद्रोह हुआ है, जैसे कि थाईलैंड और म्यांमार, वहां सेना का विस्तार तेज़ी से और लगातार हुआ है. म्यांमार और थाईलैंड के द्वारा ख़रीदे गए कुछ उपकरणों को आसानी से सीधी धमकी से नहीं जोड़ा जा सकता है क्योंकि ये देश साउथ चाइना सी में चीन के साथ आमने-सामने के मुकाबले में शामिल नहीं हैं. इन देशों में आंतरिक हालात को छोड़कर प्रत्यक्ष रूप से कोई दुश्मन नहीं है लेकिन इसके बावजूद पनडुब्बी हासिल करना, जैसे कि थाईलैंड को 2017 में चीन से मिलना और म्यांमार को गिफ्ट के रूप में भारत से मिलना, अजीब लग रहा है. म्यांमार शायद बांग्लादेश के द्वारा चीन से पनडुब्बी हासिल करने का जवाब दे रहा है. आसियान में सिंगापुर, इंडोनेशिया, वियतनाम और मलेशिया के द्वारा पनडुब्बी ख़रीदने पर भी ध्यान दिया गया है.

आसियान के कई देशों में इलाके की रक्षा के पीछे की विचारधारा बदल गई है. थाईलैंड और म्यांमार में सेना के द्वारा नियंत्रण ने जहां रक्षा खर्च को तेज़ किया वहीं इंडोनेशिया और फिलीपींस में सैन्य सरकार से लोकतंत्र की तरफ जाना दूसरी दिशा की तरफ है.

आसियान के कई देशों में इलाके की रक्षा के पीछे की विचारधारा बदल गई है. थाईलैंड और म्यांमार में सेना के द्वारा नियंत्रण ने जहां रक्षा खर्च को तेज़ किया वहीं इंडोनेशिया और फिलीपींस में सैन्य सरकार से लोकतंत्र की तरफ जाना दूसरी दिशा की तरफ है. आंतरिक नियंत्रण और उग्रवाद से निपटने के इरादे से बड़ी सेना रखने की तरफ ध्यान देने के बदले समुद्री चुनौतियों को समझने और नौसैनिक एवं हवाई हथियारों को ख़रीदने पर ज़ोर दिया जा रहा है ताकि समुद्री सुरक्षा की क्षमताओं को विकसित किया जा सके.

लोकतांत्रिक समाज में बजट की मजबूरी अक्सर नए सैन्य उपकरणों की ख़रीद के रास्ते में बाधा बनती है. इसके लिए कार्यपालिका को विधायिका और राजकोष (ट्रेज़री) के साथ तालमेल करने की ज़रूरत होती है. इसका असर ख़रीदे जा रहे वेपन सिस्टम के प्रकार पर पड़ता है या फिर ये एक मौका गंवाने की तरह बन जाता है. आंतरिक तौर पर तालमेल की क्षमता के कारण फिलीपींस ने भारत से ब्रह्मोस मिसाइल का ऑर्डर देने में इंडोनेशिया और वियतनाम को पीछे छोड़ दिया. इंडोनेशिया में ये ऑर्डर अभी तक पूरा नहीं हो सका है क्योंकि सरकार और संसद के बीच आंतरिक समन्वय का नतीजा नहीं निकल सका.

ये साफ नहीं हो सका है कि ब्रह्मोस में दिलचस्पी दिखाने और दूसरे स्रोतों से हथियारों के लिए ऑर्डर देने के बावजूद वियतनाम झिझक क्यों रहा है. हालांकि वो भारत से वॉरशिप के तोहफे को खुशी मन से स्वीकार कर लेता है.

इंडोनेशिया की बात करें तो उसने फ्रांस को 42 रफाल का ऑर्डर दिया. इस बीच उसने 792 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत पर क़तर से 12 सेकेंड-हैंड मिराज 2000-5 फाइटर जेट हासिल किए. ये बजट की लाचारी का नतीजा है.

फिलीपींस ने सेना के आधुनिकीकरण के पहले दौर (2013 से 2017) में आंतरिक सुरक्षा के लिए सैन्य उपकरण ख़रीदे. दूसरे दौर (2017 से 2022) में आंतरिक सुरक्षा के बदले अपने क्षेत्र की रक्षा की तरफ ध्यान गया. फिलीपींस ने दूसरे दौर के लिए 5.6 अरब अमेरिकी डॉलर का आवंटन किया जबकि तीसरे दौर (2022-2027) के लिए 4 अरब अमेरिकी डॉलर.

2022 में थाईलैंड ने समुद्री अभियान में समर्थन के लिए अमेरिका से आर्म्ड रिकॉन्सेंस (टोही) AH-6 हेलीकॉप्टर का जबकि इज़रायल से हर्म्स 900 ड्रोन का ऑर्डर दिया. 2023 में सिंगापुर का रक्षा बजट 13.4 अरब अमेरिकी डॉलर है जो 2022 के मुक़ाबले 10 प्रतिशत ज़्यादा है. सिंगापुर अपने F16 की जगह STOVL (शॉर्ट टेक-ऑफ एंड वर्टिकल लैंडिंग) से लैस लॉकहीड मार्टिन के 8 F-35B फाइटर एयरक्राफ्ट ख़रीदेगा. मलेशिय़ा तो कोरिया के फाइटर जेट के अलावा तुर्किए की एरोस्पेस इंडस्ट्री से तीन अनमैन्ड एरियल सिस्टम और इटली की कंपनी लियोनार्डो से दो समुद्री निगरानी करने वाला एयरक्राफ्ट भी ख़रीदेगा. इंडोनेशिया में नए हेलीकॉप्टर, एयरक्राफ्ट, नौसैनिक जहाज़ एवं सरफेस कॉम्बैटेंट , मिलिट्री रोटरक्राफ्ट, पनडुब्बी और अंडरवॉटर एंड इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर  सिस्टम विस्तार के लिए प्रमुख सैन्य उपकरण हैं.

सिपरी के मुताबिक 2021 में आसियान के देशों ने रक्षा पर 43 अरब डॉलर खर्च किए जो कि दुनिया भर में रक्षा पर किए गए खर्च का महज़ 2 प्रतिशत है. इसकी तुलना दूसरे क्षेत्रों से करें तो अमेरिका ने 827 अरब अमेरिकी डॉलर (39 प्रतिशत), यूरोप ने 418 अरब डॉलर (20 प्रतिशत), चीन ने 292 अरब अमेरिकी डॉलर (13 प्रतिशत) और जापान एवं दक्षिण कोरिया- दोनों ने 46-46 अरब अमेरिकी डॉलर (2.1 प्रतिशत) खर्च किए.

सिपरी के मुताबिक 2021 में आसियान के देशों ने रक्षा पर 43 अरब डॉलर खर्च किए जो कि दुनिया भर में रक्षा पर किए गए खर्च का महज़ 2 प्रतिशत है.

रक्षा पर खर्च में ये तेज़ी 2010 के आसपास शुरू हुई. रूस ने फौरन मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम को सैन्य उपकरण, विशेष रूप से सुखोई एयरक्राफ्ट, मुहैया कराए. इन देशों में पनडुब्बी की भी मांग थी. हालांकि यूक्रेन संकट और अमेरिका के मनाने की वजह से आसियान रूसी सैन्य उपकरण से परहेज करने लगा. साल 2000 से 2020 के बीच रूस आसियान में हथियारों का सबसे बड़ा सप्लायर था. इस दौरान रूस ने 11 अरब अमेरिकी डॉलर के जबकि अमेरिका ने 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर के हथियार बेचे. लागत का फैक्टर, आसियान देशों के आंतरिक मामलों में रूस के द्वारा हस्तक्षेप नहीं करना और कभी-कभी कमोडिटी में पेमेंट की बार्टर व्यवस्था के इस्तेमाल से रूस को मदद मिली. लेकिन रूस पर अमेरिकी पाबंदी की वजह से इंडोनेशिया ने सुखोई 35 फाइटर डील को रद्द कर दिया और 16 मिलिट्री हेलिकॉप्टर ख़रीदने में फिलीपींस की दिलचस्पी कम हो गई.

यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस हथियारों की सप्लाई करने में लाचार है. रूस की क्षमता में गिरावट की वजह से आसियान के देश अमेरिका, यूरोप और एशिया के दूसरे देशों से नये हथियार ख़रीद रहे हैं. सबसे ज़्यादा फायदा दक्षिण कोरिया को हुआ है. वो प्रतिस्पर्धी लागत पर अच्छी तकनीक मुहैया कराता है और आसियान की घरेलू राजनीति में उसकी दिलचस्पी बेहद कम है. आसियान में सैन्य आधुनिकीकरण में नई तेज़ी को देखते हुए ये बाज़ार बीच की ताकतों, ख़ास तौर पर भारत, को अपनी छाप का विस्तार करने के लिए अच्छा मौका देता है.

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