Author : Kamal Davar

Expert Speak Raisina Debates
Published on Aug 28, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत की व्यापक राष्ट्रीय नीति के अहम तत्व के तौर पर सैन्य कूटनीति की संभावनाओं की बहुत अनदेखी हुई है और राष्ट्र के लक्ष्य हासिल करने के लिए इस पर समग्र रूप से ज़ोर देने की आवश्यकता है.

सैन्य कूटनीति: शासन की कला का एक अहम पहलू!

पड़ोसी देश बांग्लादेश की हालिया घटनाओं में जब चार बार की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को अचानक सत्ता से बेदख़ल किया गया, तो पूरी दुनिया हैरान रह गई. देश की आज़ादी के योद्धाओं के बच्चों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण के ख़िलाफ़ छात्रों का विरोध प्रदर्शन इतना हिंसक और सांप्रदायिक हो जाएगा, इसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. इस मामले को लेकर भारत भी पूरी तरह से हैरान रह गया था. क्या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत के पास अपने पड़ोसी देश के वास्तविक सियासी हालात की गोपनीय जानकारी का अभाव था? या फिर, ये एक दोस्त देश की घटनाओं को प्रभावित कर पाने में भारत की कूटनीति की नाकामी था? शेख़ हसीना के अचानक देश छोड़कर भागने की वजह से बांग्लादेश में हिंदुओं के ख़िलाफ़ भयानक हिंसा हुई और हिंदू मंदिरों पर बड़े पैमाने पर हमले और तोड़ फोड़ की गई. अगर भारत ने कूटनीतिक प्रयासों के साथ साथ, बांग्लादेश की दोस्ताना फ़ौज के साथ सैन्य कूटनीतिक रिश्ते भी विकसित किए होते, तो भी हम शायद बांग्लादेश की सेना को इस बात में मदद कर पाते कि वो शेख़ हसीना विरोधी या भारत विरोधी गतिविधियों पर क़ाबू पाने की कोशिश करती. अन्य उभरती ताक़तों के उलट भारत ने अपनी आज़ादी के बाद से ही सैन्य कूटनीति की कला का भरपूर इस्तेमाल नहीं किया है. आज़ादी के बाद के दशकों में भारत के राजनीतिक नेतृत्व और आम तौर पर हमारी अफ़सरशाही ने सैन्य बलों को ऐसे प्रयासों से दूर रखा है.

 कूटनीति, शांतिपूर्ण संपर्कों और वार्ता करने वाले देशों के बीच अच्छे रिश्ते क़ायम करने के लिए द्विपक्षीय या फिर बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाने और चलाने में इस्तेमाल होती है.

सैन्य कूटनीति: एक समीक्षा

 

ऊपरी तौर पर देखें तो सेना और कूटनीति एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग दुनिया लगती हैं. कूटनीति, शांतिपूर्ण संपर्कों और वार्ता करने वाले देशों के बीच अच्छे रिश्ते क़ायम करने के लिए द्विपक्षीय या फिर बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाने और चलाने में इस्तेमाल होती है. अगर कूटनीति नाकाम रहती है, तो उसके बाद की कोशिशें ऐसी भी हो सकती हैं, जिनमें ताक़त के दम पर विवादों का फ़ैसला किया जाए. ऊपरी तौर पर देखें, तो मिलिट्री इंटेलिजेंस की तरह सैन्य कूटनीति भी शायद विरोधाभास ही लगे. हालांकि, ‘सैन्य कूटनीति’ वैसे तो कोई मानक परिभाषा नहीं हैय लेकिन, इसका मतलब किसी देश की विदेश नीति के लक्ष्य हासिल करने के लिए सैन्य बलों और संसाधनों का शांतिपूर्ण, ग़ैर युद्धक इस्तेमाल करना होता है. मशहूर सामरिक विश्लेषक एंटन डु प्लेसिस सैन्य कूटनीति को इन शब्दों में संक्षेप में बयां करते हैं कि, ‘सैन्य बलों का युद्ध के अलावा इस्तेमाल करना, उनकी प्रशिक्षित विशेषज्ञता और अनुशासन का उपयोग राष्ट्रीय और विदेश से जुड़े लक्ष्य हासिल करने में करना.’ हालांकि, यहां इस बात पर भी ध्यान देना ज़रूरी होगा कि ताक़तवर देश ज़रूरत पड़ने पर सैन्य बलों के इस्तेमाल की धमकी देकर अपनी सैन्य ताक़त का इस्तेमाल दबदबे के लिए भी करते हैं. इसे अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में मशहूर रही ‘गन बोट डिप्लोमैसी’ के तौर पर भी जाना जाता है. कुल मिलाकर सैन्य कूटनीति देशों के बीच रक्षा सहयोग में इज़ाफ़ा करती है और उनके आपसी संबंधों को दोस्ताना बनाती है. भारतीय नौसेना द्वारा दूसरे देशों के बंधकों को पश्चिमी एशियाई समुद्री क्षेत्र में सक्रिय सोमालिया या फिर हूती डकैतों के चंगुल से छुड़ाना प्रभावी सैन्य कूटनीति का एक अच्छा उदाहरण है. मालदीव में 1988 का सैन्य अभियान (ऑपरेशन कैक्टस) या फिर श्रीलंका की गुज़ारिश पर वहां भारत के शांति रक्षक बलों को भेजने को हम सैन्य कूटनीति के दायरे में नहीं रख सकते हैं. 1950 के दशक से संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों के तहत दुनिया भर में भारतीय सैनिकों की तैनाती को ज़रूर भारत के सैन्य कूटनीतिक प्रयासों के दर्जे में रखा जा सकता है.

 

लक्ष्य

 

आज की संघर्षों में उलझी दुनिया में ऐसे क्रांतिकारी भू-राजनीतिक बदलाव आते दिख रहे हैं, जो पहले देखे सुने नहीं गए. ऐसे में किसी भी देश के लिए अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की तैयारी को बहुत ऊंचे दर्जे का रखना चाहिए. ये ज़रूरत मुख्य रूप से किसी देश की व्यापक राष्ट्रीय शक्ति (CNP) को मज़बूत बनाने की होती है. CNP असल में किसी देश की आर्थिक क्षमता, सैन्य शक्ति और सामुदायिक सौहार्द का समुचित और सामूहिक तालमेल होती है, जो घरेलू स्तर पर राजनीतिक स्थिरता, प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, शिक्षा और उच्च तकनीक के मानक, आबादी के लाभ और मूलभूत ढांचे की उपलब्धता और प्रगति, पर्याप्त मेडिकल संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करती है, और सबसे अहम बात दुनिया के तमाम देशों की नज़रों में उस देश की स्थिति सम्मानजनक होती है और उसकी कूटनीति को निष्पक्ष और परोपकारी माना जाता है.

 

सैन्य कूटनीति का मक़सद, सामूहिक राष्ट्रीय रणनीति के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लक्ष्य हासिल करना होता है. पिछले कुछ दशकों के दौरान, सैन्य कूटनीति ने भारत में अपने दायरे और क्षमता को बढ़ाया तो है. लेकिन, भारत जैसी उभरती वैश्विक ताक़त के लिए, इस मामले में और प्रयास करने की ज़रूरत है. बेस्ट सेलर किताब ‘ग्लूम बूम ऐंड डूम’ के लेखक डॉक्टर मार्क फेबर ने भी कुछ साल पहले ये राय व्यक्त की थी कि, ‘भारत ‘शक्ति’ को लेकर दुविधा में नज़र आता है और वो अपनी बढ़ती आर्थिक क्षमताओं के अनुरूप कोई सामरिक एजेंडा विकसित कर पाने में असफल रहा है. अपने पूरे इतिहास में भारत अपने राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल करने के लिए सैन्य संसाधनों की संरचना करने, उनकी तैनाती और उपयोग कर पाने में नाकाम रहा है.’

 बेस्ट सेलर किताब ‘ग्लूम बूम ऐंड डूम’ के लेखक डॉक्टर मार्क फेबर ने भी कुछ साल पहले ये राय व्यक्त की थी कि, ‘भारत ‘शक्ति’ को लेकर दुविधा में नज़र आता है और वो अपनी बढ़ती आर्थिक क्षमताओं के अनुरूप कोई सामरिक एजेंडा विकसित कर पाने में असफल रहा है.

सैन्य कूटनीति किसी भी देश की विदेश या फिर सुरक्षा नीति की जगह नहीं लेती, बल्कि ये देश के लिए ज़्यादा बड़े और विविधता भरे लाभ हासिल करने में पूरक का काम करती है. सैन्य कूटनीति अन्य देशों के साथ रक्षा समेत अन्य क्षेत्रों में बेहतर सहयोग में इज़ाफ़ा करती है, जिससे आर्थिक रिश्तों और आपसी विश्वास बढ़ाने के साझा प्रयासों के बेहतर परिणाम निकलते हैं. तकनीकी रूप से उन्नत देशों के साथ बेहतर सहयोग से उच्च तकनीक, आधुनिकतम हथियार और अत्यंत उन्नत प्लेटफॉर्म हासिल करने में मदद मिलती है. दोस्ताना देशों के साथ खुफिया क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने और समय पर अहम खुफिया जानकारी साझा करने से किसी भी देश के हितों पर तबाही मचाने वाली घटनाओं को रोका जा सकता है. इसमें आतंकवाद निरोधक अभियानों में सहयोग भी शामिल है. इसके अलावा सुरक्षा के ग़ैर पारंपरिक क्षेत्रों में सहयोग से आपदा प्रबंधन को लेकर तेज़ प्रतिक्रिया देने, समुद्री डकैती रोकने के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं तय करने, महामारी निरोधक प्रयासों और ज़रूरत पड़ने पर किसी देश से अपने नागरिको को बड़े पैमाने पर दूसरे देशों से बाहर निकालने जैसे सभी प्रयास सैन्य कूटनीति के ही अंतर्गत आते हैं.

 

मौजूदा स्थिति

 

पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने अपनी कूटनीति में एक शांतिवादी, गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को अपनाया था. उनके बाद की सरकारें भी भी मोटे तौर पर इसी नीति पर चलती रही थीं. पूर्व थल सेनाध्यक्ष रिटायर्ड जनरल वेद प्रकाश मलकि ने सैन्य कूटनीति को लेकर भारत की कोशिशों को बड़े सटीक शब्दों में बयान करते हुए कहा था कि, ‘भारत ने सैन्य कूटनीति को राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति का औज़ार बनाने के मामले में बहुत कमज़ोर शुरुआत की थी. नेहरू के दौर का भारत सैन्य बलों पर अविश्वास करता था और उन्हें रक्षा मंत्रालय और अहम निर्णय प्रक्रियाओं से दूर रखा जाता था.’ हालांकि, नेहरू ने अपनी विश्व दृष्टि और वैश्विक नज़रिए के साथ 1953 में संयुक्त राष्ट्र के न्यूट्रल नेशंस रिपैट्रिएशन कमीशन की अध्यक्षता ज़रूर की थी और सैन्य बलों का एक बड़ा दस्ता और फील्ड हॉस्पिटल दक्षिण कोरिया भेजा था. नेहरू ने अन्य देशों के संघर्षरत क्षेत्रों में भारत के कुछ सैनिकों को भेजने को भी प्रोत्साहन दिया था. ये नीति आज कहीं बड़ी तादाद में सैनिकों को शांति मिशन पर भेजने के तौर पर आज भी जारी है और दुनिया में इससे भारत को काफ़ी सम्मान भी हासिल होता है.

 
पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत ने कई पश्चिमी और अफ्रीकी एशियाई देशों के लिए अपने सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों के दरवाज़े खोले हैं. भारत के इस क़दम की दुनिया में काफ़ी तारीफ़ भी की जाती है.

पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत ने कई पश्चिमी और अफ्रीकी एशियाई देशों के लिए अपने सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों के दरवाज़े खोले हैं. भारत के इस क़दम की दुनिया में काफ़ी तारीफ़ भी की जाती है. विदेशों में भारत के लगभग 52 सैन्य/रक्षा संपर्क अधिकारी (MA/DA) तैनात हैं और लगभग 102 देशों ने भारत में अपने सैन्य संपर्क अधिकारी तैनात कर रखे हैं. ये सभी नियुक्तियां भारत और अन्य देशों के बीच रक्षा क्षेत्र के दायरे से बाहर भी बेहतर संबंध बनाने में अहम योगदान देती हैं.

 

निष्कर्ष

 

मार्च 2002 में अपनी स्थापना के साथ ही भारत की डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी, विदेशों में तैनात भारत के रक्षा और सैन्य संपर्क अधिकारियों का प्रबंधन करती है और भारत में तैनात दूसरे देशों के ऐसे ही अधिकारियों के साथ तालमेल करती है. डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी को और ताक़तवर बनाया जाना चाहिए, ताकि वो भारत की सैन्य कूटनीति के प्रयासों को को देश और विदेश में और बढ़ाए, जिससे देश के सामरिक हितों को बहुत लाभ मिलेगा. सैन्य कूटनीति अभी भी भारत की सामूहिक राष्ट्रीय शक्ति का एक कम इस्तेमाल किया गया तत्व है. इसीलिए इसको लेकर एक समग्र नज़रिया अपनाकर ठोस रूप से बढ़ावा देने की ज़रूरत है, ताकि राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति आसान हो सके.

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