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Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

मेटावर्स के उभार के साथ-साथ निजता, यूज़र की सुरक्षा और बौद्धिक संपदा अधिकारों से जुड़ी नई चुनौतियां सामने आएंगी.

भारत में मेटावर्स की पड़ताल: चार चुनौतियां और चंद सुझाव
भारत में मेटावर्स की पड़ताल: चार चुनौतियां और चंद सुझाव

मेटावर्स (Metaverse) शब्द के मायने अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हैं. हालांकि मुख्य रूप से इसका मतलब है- अत्याधुनिक डिजिटल संचार और मनोरंजन. इस साल इस मोर्चे पर कई तरह के घटनाक्रम देखने को मिले हैं, जिनसे तकनीक से जुड़े इस पूरे परिदृश्य में तेज़ रफ़्तार विकास के संकेत मिलते हैं. जनवरी में दक्षिण कोरिया ने अपने मेटावर्स उद्योग को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक कार्यक्रमकी घोषणा की थी.. दक्षिण कोरिया ने अगले पांच सालों में दुनिया में मेटावर्स का पांचवा सबसे बड़ा बाज़ार बनकर उभरने का लक्ष्य रखा है. इसी तरह माइक्रोसॉफ़्ट ने 68.7 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से एक्टिविज़न का अधिग्रहण किया है. गेमिंग के इतिहास में ये अब तक की सबसे बड़ी ख़रीद है. इससे मेटावर्स क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा में और अधिक तेज़ी आने की उम्मीद है. भारत के केंद्रीय बजट में एनिमेशन विज़ुअल इफ़ेक्ट्स गेमिंग एंड कॉमिक्स (AVGC) के क्षेत्र में एक कार्यबल के गठन का एलान किया गया है. इससे नई आभासी दुनिया में घरेलू तकनीक जगत को अगुवा बनने का बेहतरीन मौक़ा हासिल होने की संभावना है.

व्यावहारिक तौर पर मेटावर्स को परिभाषित करते हुए हम यह कह सकते हैं कि ये 3 डी संसार के प्रायोगिक समूह पर आधारित वैकल्पिक डिजिटल यथार्थ है. इनका इस्तेमाल करने वाले, आभासी और संवर्धित वास्तविक वातावरणों का अभिन्न अंग होते हैं. ख़बरों के मुताबिक भारत में तकनीक के क्षेत्र की अगुवाई करने वाली टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ और इंफ़ोसिस जैसी कंपनियां इस इकोसिस्टम में हिस्सा लेने के लिए कमर कसकर तैयार हो रही हैं. इस उद्योग की फ़ितरत पूरी तरह से अपने-आप में डुबो लेने वाली है. इसके अलावा इसमें हिस्सा लेने वाले यूज़र्स के साथ समकालिक रूप से तालमेल बिठाने और लगातार आभासी दुनिया के बरकरार रहने जैसे मसले भी मौजूद होते हैं. ग़ौरतलब है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था के मौजूदा स्वरूप में भी उसका सही तरह से संचालन कर पाने में नीति-निर्माताओं के पसीने छूट रहे हैं. ऐसे में मेटावर्स उद्योग नीति निर्माताओं के लिए और पेचीदगियों भरा सबब बन जाएगा. इस सिलसिले में हम जनहित से जुड़े चार मसलों पर रोशनी डाल रहे हैं. AVGC कार्यबल सिविल सोसाइटी के विशेषज्ञों की मदद से इनकी पड़ताल कर सकता है.

भारत के केंद्रीय बजट में एनिमेशन विज़ुअल इफ़ेक्ट्स गेमिंग एंड कॉमिक्स (AVGC) के क्षेत्र में एक कार्यबल के गठन का एलान किया गया है. इससे नई आभासी दुनिया में घरेलू तकनीक जगत को अगुवा बनने का बेहतरीन मौक़ा हासिल होने की संभावना है.

AVGC बाज़ारों में शैतानी बर्ताव नई बात नहीं

इस सूची में पहला मसला प्रयोगकर्ता की सुरक्षा (user safety) से जुड़ा हुआ है. भारत के एनिमेशन विज़ुअल इफ़ेक्ट्स गेमिंग एंड कॉमिक्स बाज़ार के लिए ये एक अज्ञातलेकिन अहम पहलू है. इससे पहले मेटावर्स से जुड़ी क़वायद में ज़ोर-ज़बरदस्ती और यौन उत्पीड़न के मसले सामने आ चुके थे. ऐसी दो अलग-अलग वारदातों में बीटा टेस्टर्स ने दावा किया था कि मेटावर्स में उन्हें यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था. AVGC बाज़ारों (मसलन गेमिंग) में शैतानी बर्ताव कोई नई बात नहीं है. ऑनलाइन गेमिंग में अक्सर उत्पीड़न, हिंसा और दादागीरी देखने को मिलती है. बहरहाल यूज़र्स को दिमाग़ी तौर पर पूरी तरह से अपने आग़ोश में ले लेने की वर्चुअल रिएलिटी (VR) की फ़ितरत के चलते इसमें नियम-क़ायदों के उल्लंघन का एक नया आयाम जुड़ जाता है. मेटावर्स में वर्चुअल रिएलिटी की क़वायद लोगों की दिमाग़ी संवेदनाओं को चौतरफ़ा रूप से अपने अंदर डुबो लेती है. ऐसे में किसी भी तरह का अनचाहा बर्ताव असलियत लगने लगती है.

ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के मसलों में भारतीय क़ानूनों का अमल कतई पर्याप्त नहीं हैं. मिसाल के तौर पर भद्दी या अश्लील टिप्पणियां पोस्ट करने, यौन इच्छाएं थोपने या पॉर्नोग्राफ़ी दिखाने जैसी हरकतें भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए के तहत दंडनीय अपराध हैं. हालांकि धारा 354ए मुख्य रूप से भौतिक रूप से किए गए संपर्कों या ज़ोर ज़बरदस्तियों को दंडित करने के लिए है. इसके तहत डिजिटल वातावरणों में ज़ोर ज़बरदस्ती या छेड़खानी जैसे उत्पीड़नों पर विचार का प्रावधान नहीं है. इसी तरह धारा 354डी के तहत साइबर तरीक़े से पीछा करने की वारदात लिंग-निरपेक्ष नहीं है. इसके तहत पीछा करने को केवल तभी अपराध माना गया है जब एक पुरुष किसी महिला का पीछा करता है और उसके साफ़-साफ़ मना करने के बावजूद उससे संपर्क करता है. पीछा करने वाले के लिंग की पहचान करने या उसकी पुष्टि कर पाने में नाकामी इस प्रावधान को बेकार बना सकती है. ऑनलाइन माध्यमों में अजनबियों और गुमनामी से जुड़ी आम चुनौतियां मेटावर्स की दुनिया में और पेचीदा हो जाएंगी. इस तरह इस पूरी क़वायद के गहरे फ़र्जीवाड़े और हैकिंग के नए-नए स्वरूपों का अड्डा बनना तय है.

ऑनलाइन माध्यमों में अजनबियों और गुमनामी से जुड़ी आम चुनौतियां मेटावर्स की दुनिया में और पेचीदा हो जाएंगी. इस तरह इस पूरी क़वायद के गहरे फ़र्जीवाड़े और हैकिंग के नए-नए स्वरूपों का अड्डा बनना तय है.

दूसरे, मेटावर्सों में यूज़र्स की निजता की सुरक्षा के ठोस तौर-तरीक़ों की ज़रूरत होगी. मेटावर्स इंजनों के पास यूज़र्स के बर्तावों और अलग-अलग संवेदी कारकों पर उनकी प्रतिक्रियाओं की जानकारी रहेगी. इसके मायने ये हैं कि वो गतिशील रूप से प्रयोगकर्ता के हावभाव, चेहरे की प्रतिक्रियाओं, नज़रों, बोलचाल में उतार-चढ़ावों और बाक़ी तमाम अहम कारकों की निगरानी और पड़ताल कर उसकी भावनाओं में बदलावों का पूर्वानुमान कर सकेगा. इससे इन सेवाओं को यूज़र्स की सूझबूझ और दिमाग़ी तौर-तरीक़ों को परखने और उनका हिसाब-क़िताब रखने में आसानी हो जाएगी. मौजूदा AVGC उद्योगों की ऐसी ही क़वायदों से नए प्रकार के उद्योग दो क़दम आगे रहेंगे. इससे निजता को लेकर पारंपरिक क़ानूनी ढांचे के सामने गंभीर चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी. भविष्य में प्रयोगकर्ता पेचीदा आभासी दुनिया में जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाएगा, डेटा प्रॉसेस करने के लिए उनकी सहमति हासिल करने की प्रक्रिया बोझिल होती चली जाएगी. सबसे ख़ास बात यह है कि ड्राफ़्ट डेटा प्रोटेक्शन बिल 2021 के तहत नोटिस और सहमति से जुड़ा तंत्र बेअसर हो जाएगा. ऐसे में डेटा सुरक्षा की मौजूदा क़वायद की बजाए ज़्यादा जोख़िम भरे रुख़ की ओर आगे बढ़ना लाज़िमी हो जाएगा. ख़ास किस्म के नुक़सानों (जैसे जैविक चिन्हों के आधार पर पहचान खड़ा करना) को कम से कम करने के लक्ष्य के हिसाब से ऐसे रुख़ तैयार करने पड़ेंगे.

IP व्यवस्था के सामने होंगी नई चुनौतियां

तीसरा, विविध प्रकार के मेटावर्सों के विस्तार से बौद्धिक संपदा (IP) व्यवस्था के सामने अनेक नई-नई चुनौतियां खड़ी होने लगेंगी. इनमें कॉपीराइट और ट्रेडमार्क से जुड़े मसले प्रमुख होंगे. मौजूदा AVGC उद्योगों को यही संचालित कर रहे हैं. मेटावर्सों में पहुंच और छंटाई को संतुलित करने के हिसाब से पारंपरिक बौद्धिक संपदा सिद्धांतों को नहीं बदलने पर वो अप्रासंगिक हो जाएंगे. मिसाल के तौर पर अगर कोई यूज़र किसी ख़ास मेटावर्स में कोई कलाकृति तैयार करता है, तो क्या वो यूज़र का माना जाएगा या मेटावर्स सर्विस का? या उस कला के निर्माण में इस्तेमाल हुए कारकों के मालिक़ का या फिर उस कला के लिए ज़रूरी साधन मुहैया कराने वाले ऐप डेवलपर का? साथ ही मेटावर्स के वातावरण में बौद्धिक संपदा अधिकार वाली किसी सामग्री को बिना मंज़ूरी के इस्तेमाल किए जाने के लिए कौन ज़िम्मेदार होगा?

प्रचलित रूप में,  बौद्धिक संपदा के बचाव के लिए उनसे जुड़े अधिकारों के धारक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों और मध्यस्थों के आसरे रहते हैं. मिसाल के तौर पर, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियमावली, 2021 के तहत ऑनलाइन मध्यस्थों द्वारा उचित जांच-पड़ताल को ज़रूरी बना दिया गया है. साथ ही चुराई गई या पायरेसी सामग्रियों को सख़्ती के साथ बाहर निकालने की ज़रूरत भी बताई गई है. ग़ौरतलब है कि आज के ज़माने में रोज़ाना 2.5 क्विंटिलियन बाइट्स डेटा तैयार हो रहे हैं. नोटिस और सामग्रियां हटाने से जुड़ी व्यवस्थाएं डिजिटल युग में नकल रोकने से जुड़ी क़वायद के हिसाब से कतई अनुकूल नहीं हैं. मेटावर्स के उभार से डेटा निर्माण में बेहिसाब बढ़ोतरी होना तय है. ऐसे में इस बात को लेकर भी आशंकाएं पैदा होने लगी हैं कि टेलीकॉम और इंटरनेट के नेटवर्क इस बढ़ोतरी का बोझ उठाने के लिए तैयार हो पाएंगे या नहीं.

आज के ज़माने में रोज़ाना 2.5 क्विंटिलियन बाइट्स डेटा तैयार हो रहे हैं. नोटिस और सामग्रियां हटाने से जुड़ी व्यवस्थाएं डिजिटल युग में नकल रोकने से जुड़ी क़वायद के हिसाब से कतई अनुकूल नहीं हैं. मेटावर्स के उभार से डेटा निर्माण में बेहिसाब बढ़ोतरी होना तय है.

मेटावर्स के उभार से नीतिगत मोर्चे पर अनेक प्रकार की उलझनें सामने आने की संभावना है. ऊपर बताई गई चिंताएं ​नीतिगत मसलों से जुड़ी उलझनों का महज़ एक छोटा सा हिस्सा हैं. मिसाल के तौर पर मेटावर्स  को ताक़त देने वाली टेक्नोलॉजी के बेहद अहम और संवेदनशील स्वभाव के चलते प्रतिस्पर्धा और व्यापार नीतियों में आमूलचूल बदलाव की ज़रूरत पड़ेगी. इस सिलसिले में क्वॉन्टम कम्प्यूटर्स जैसे अत्याधुनिक हार्डवेयर के अलावा न्यूरल नेटवर्क तक शुमार हैं. इसी नेटवर्क से एलगोरिदम और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) की ज़रूरतें पूरी होती हैं. अगर AVGC कार्यदल को महज़ एक लक्ष्य पूरा करना हो तो उसे क़ानूनों और नियमों को अत्याधुनिक बनाने से जुड़ी ज़रूरतों की तात्कालिकता पर तवज्जो देनी चाहिए. फ़िलहाल भारत के डिजिटल इकोसिस्टम का इन्हीं नियम क़ायदों के ज़रिए संचालन किया जा रहा है. आभासी दुनिया के रोमांचक और चुनौतीपूर्ण सफ़र को आगे बढ़ाने में इनसे रणनीतिक तौर पर बेहद अहम नतीजे हासिल किए जा सकते हैं.

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Authors

Vivan Sharan

Vivan Sharan

Vivan was a visiting fellow at ORF, where he supports programmes on the ‘new economy’. Previously, as the CEO of ORF’s Global Governance Initiative, he ...

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Noyanika Batta

Noyanika Batta

Noyanika Batta is a Research Assistant at the Esya Centre New Delhi. She is a lawyer whose research interests lie in technology policy regulatory governance ...

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